चुनाव से पहले एक लोकलुभावन बजट
2023-24 का बजट पेश करते हुए केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के अपने अपेक्षाकृत छोटे भाषण के पहले ही पैराग्राफ ने यह स्पष्ट कर दिया कि अगले आम चुनाव से पहले यह उनका आखिरी पूर्ण बजट था। उन्होंने एक "समृद्ध और समावेशी भारत" की कल्पना करने की बात की, जिसमें विकास का फल सभी क्षेत्रों और नागरिकों तक पहुंचे," विशेष रूप से युवा, महिलाओं, किसानों, अन्य पिछड़े वर्ग (ओबीसी), अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) से संबंधित लोगों तक। यह प्रयास साफतौर पर सरकार के विरोधियों की आलोचना का मुकाबला करने के लिए था क्योंकी अक्सर विरोधी ये आरोप लगाते हैं कि ये वही सेक्शंस हैं जिन्होंने नरेंद्र मोदी सरकार के पिछले साढ़े आठ सालों में सबसे अधिक नुकसान झेला है।
वित्त मंत्री को सबसे ज़्यादा सराहना तब मिली जब उन्होंने व्यक्तिगत इनकम टैक्स रिजीम को बदलने के अपने प्रस्ताव की घोषणा की - जिससे तहत सालाना टैक्स योग्य इनकम पर छूट की सीमा को 5 लाख रुपये से बढ़ाकर 7 लाख रुपये और इनकम स्लैब की संख्या को छह से घटाकर पांच कर दिया गया-जिससे लगभग 37,000 करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान हुआ। हालाँकि एक मध्यम वर्ग के करदाता को कम से कम 10,000 रुपये का लाभ होगा, लेकिन टैक्स प्लानिंग के साथ, ये लाभ अधिक होगा। यहां यह याद किया जाना चाहिए कि पांच साल पहले, 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले, 2017-18 के बजट में भी सरकार ने व्यक्तिगत इनकम टैक्स रिजीम में संशोधन किया था। ये कुछ जाना-पहचाना सा लगता है, है ना?
सीतारमण ने गरीबों के लिए प्रधानमंत्री आवास योजना पर परिव्यय 66 प्रतिशत बढ़ाकर 79,000 करोड़ रुपये से अधिक कर दिया है। और, जैसा कि इस सरकार की ख़ासियत है, पीएम-प्रणाम (पृथ्वी की बहाली, जागरूकता, पोषण और सुधार के लिए पीएम कार्यक्रम), पीएम विकास (पीएम विश्वकर्मा कौशल सम्मान) और और मिष्टी (मैंग्रोव इनिशिएटिव फॉर शोरलाइन हैबिटेट एंड टैंजिबल इनकम) जैसी आकर्षक नामों की योजनाओं के साथ नई योजनाओं की घोषणा की। बाजरा, ज्वार और रागी जैसे मोटे अनाजों का नाम बदलकर 'श्री अन्न' कर दिया गया।
बजट का एक सकारात्मक पहलू स्वास्थ्य और परिवार कल्याण व शिक्षा मंत्रालयों के लिए उच्च परिव्यय को लेकर है जो हाल के दिनों में स्थिर या कम हो गया था। सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) के लिए ऋण गारंटी योजनाओं का विस्तार किया गया है। कुल पूंजीगत व्यय (कैपेक्स) को भी एक तिहाई बढ़ाकर एक लाख करोड़ रुपये से अधिक करने का प्रस्ताव है। एक उम्मीद है (लेकिन निश्चित नही है) कि उच्च कैपेक्स का बड़ा हिस्सा कुछ कुलीन वर्गों के नेतृत्व वाले ग्रुप्स द्वारा नहीं लिया जाएगा।
राज्य सरकारों को उनके सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) के 3.5 प्रतिशत के अनुपात के रूप में राजकोषीय घाटे की अनुमति दी गई है, जिसमें से 0.5 प्रतिशत "बिजली क्षेत्र सुधारों से जुड़ा" होगा-जोकि वित्तीय रूप से तंगी से जूझ रही बिजली वितरण कंपनियों (या डिस्कॉम) को उबारने के लिए एक प्रेयोक्ति है। हालाँकि, बजट में बहुत कुछ ऐसा है जो अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक है, खासकर वंचितों के लिए। 2023-24 के लिए पीएम पोषण या मिड-डे मील योजना का बजट अनुमान चालू वित्त वर्ष के लिए 12,800 करोड़ रुपये के संशोधित अनुमान (जो 31 मार्च को समाप्त होने वाला है) के मुकाबले 11,600 करोड़ रुपये है।
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) के तहत बजट अनुमान, 2022-23 के लिए 89400 करोड़ रुपये के संशोधित अनुमान के मुकाबले 60,000 करोड़ रुपये प्रस्तावित किया गया है।
ब्याज भुगतान के बाद केंद्र सरकार के व्यय का सबसे बड़ा मद खाद्य, उर्वरक और पेट्रोलियम उत्पादों के लिए सब्सिडी प्रदान करने पर खर्च होता है। सभी तीन उदाहरणों में, यदि 2022-23 के संशोधित अनुमान की तुलना 2023-24 के बजट अनुमान से की जाए, तो कुल गिरावट 28 प्रतिशत की है। खाद्य सब्सिडी लगभग एक तिहाई (2.87 लाख करोड़ रुपये से घटकर 1.97 लाख करोड़ रुपये) रह गई है। उर्वरक सब्सिडी लगभग 22 प्रतिशत कम हो गई है (2.25 लाख करोड़ रुपये से 1.75 लाख करोड़ रुपये), जबकि पेट्रोलियम उत्पादों पर सब्सिडी तीन चौथाई (9,171 करोड़ रुपये से 2,257 करोड़ रुपये) घट गई है। सरकार यह तर्क दे सकती है कि वह अनुदानों की पूरक मांगों के माध्यम से परिव्यय बढ़ा सकती है, जैसा कि उसने पहले भी किया है। लेकिन कम परिव्यय अच्छे ऑप्टिक्स के लिए नहीं हैं।
अहमदाबाद में प्रधानमंत्री के पसंदीदा अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र, गुजरात इंटरनेशनल फिन-टेक (GIFT) सिटी को कई लाभ दिए गए हैं, जैसा कि केंद्र सरकार के पिछले कुछ बजटों में भी दिया गया था। कुल मिलाकर बजट का लक्ष्य भारतीय समाज के सभी वर्गों को खुश करना है। लेकिन फिर मोदी सरकार को भी यह दिखाना होगा कि यह बजट गरीबों के लिए है, भले ही उसके कई कार्यों ने अमीरों की मदद की हो, जबकि सामाजिक सुरक्षा, बाल पोषण और गर्भवती माताओं पर सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के अनुपात में खर्च स्थिर हो गया है या मुश्किल से बढ़ा है।
भले ही कुछ योजनाओं की नौकरी-सृजन करने की क्षमता का उल्लेख किया गया हो, लेकिन वित्त मंत्री के बजट भाषण में दो शब्दों का स्पष्टतौर पर ज़िक्र नही हुआ और ये हैं- 'बेरोज़गारी' और 'महंगाई' - हालांकि कोविड-19 के कारण दुनिया भर में आई "बड़े पैमाने पर मंदी" और "एक युद्ध" का भी उल्लेख किया गया।
अंत में, बजट का एक असामान्य पहलू यह था कि कुछ शेयरों ने कैसा प्रदर्शन किया। जैसा कि शेयर बाजार सूचकांक दिन के दौरान ऊपर-नीचे हुआ और एक सकारात्मक नोट पर समाप्त हुआ, ऐसे में "एक विशेष ग्रुप" से संबंधित कंपनियों के शेयर की कीमतों ने ट्रेंड को कम कर दिया। एक व्यक्तिगत नोट पर, चूंकि अदालतों ने मुझ पर ''गैग ऑर्डर्स'' दिए हैं, इसलिए मैं इस ग्रुप का नाम नही लूंगा।
(लेखक गुरुग्राम, हरियाणा स्थित एक स्वतंत्र पत्रकार और आर्थिक विश्लेषक हैं।)
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