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लॉकडाउन खुलने के बावजूद नहीं खिला फूलों का बाज़ार, किसान परेशान

“लॉकडाउन में हमारा कारोबार पूरी तरह चौपट हो गया। हमारे पॉलीहाउस में 12 खेतिहर मज़दूर काम करते थे। उन्हें वेतन देना हमारे लिए मुश्किल हो गया। जुलाई में 12 में से 6 मजदूर किसान वापस लौट गए। बाज़ार में फूलों की मांग बिलकुल ठप है। हमने एक पॉलीहाउस में गुलाब रखे हैं। दूसरे पॉलीहाउस से गुलाब के पौधे उखाड़ कर शिमला मिर्च लगा दी है।”
किसान
खेत मज़दूर गंभीर सिंह। फोटो : वर्षा सिंह

सर्दियों के शुरू होने से ठीक पहले की चुभती धूप और तेज़ गर्मी में गंभीर सिंह घुटने मोड़े गुलाब के फूलों के ईर्द-गिर्द उग आई घास करीने से साफ़ कर रहे हैं। वह इस काम को उतना ही संजीदा होकर कर रहे हैं जैसे कोई पेंटर अपनी पेंटिंग पर रंगों को करीने से आकार देता हो। नाम पूछने पर उनके ईर्दगिर्द बैठी महिलाएं हंसी घोलकर कहती हैं “गंभीर सिंह”। पीछे से किसान जयकिशन चमोली आवाज़ लगाते हैं “गंभीर सिंह अपनी मूंछे तो तान दो”। महिलाएं हंसती हैं “टीवी में आएगी फोटो, ज़रा हंस दो”। गंभीर सिंह का चेहरा शांत रहता है।

लॉकडाउन के दौरान फूलों की बिक्री बंद हो गई तो फूलों की खेती करने वाले किसान से लेकर खेत मज़दूर तक इस संकट से जूझ रहे हैं। उम्रदराज गंभीर सिंह कई सालों से ये काम कर रहे हैं इसलिए उनकी नौकरी बच गई।

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फोटो :अमित पांडेय

बाज़ार में नहीं है फूलों की मांग

देहरादून के मियांवाला क्षेत्र के शमशेरगढ़ में जयकिशन चमोली वर्ष 1990 से फूलों की खेती करते हैं। वह कहते हैं “ लॉकडाउन में हमारा कारोबार पूरी तरह चौपट हो गया। हमारे पॉलीहाउस में 12 खेतिहर मज़दूर काम करते थे। उन्हें वेतन देना हमारे लिए मुश्किल हो गया। जुलाई में 12 में से 6 मजदूर किसान वापस लौट गए। बाज़ार में फूलों की मांग बिलकुल ठप है। हमने एक पॉलीहाउस में गुलाब रखे हैं। दूसरे पॉलीहाउस से गुलाब के पौधे उखाड़ कर शिमला मिर्च लगा दी है।”

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फूलों की खेती करने वाले किसान जयकिशन। फोटो : वर्षा सिंह

जयकिशन कहते हैं कि हम बरसों से यही काम करते आए हैं अब कुछ और धंधा नहीं कर सकते। “ पहले एक दिन में गुलाब के औसतन 200-250 बंडल बाजार में जाते थे। एक बंडल की कीमत 100 रुपये होती है। इसमें 20 गुलाब की स्टिक होती हैं। हर महीने हमारा खाद-पानी का खर्च आता है। लॉकडाउन खुलने के बाद भी फूलों का बाज़ार नहीं उठ सका है। बड़े शादी-समारोह नहीं हो रहे। जिसमें फूलों की सबसे ज्यादा मांग होती है। आने वाले समय में भी ऐसी उम्मीद नहीं दिखती। किसान तब तक बर्बाद हो जाएगा”।       

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फोटो : अमित पांडेय

हमने फूल उगाने बंद कर दिए

उत्तराखंड सरकार युवाओं को फूलों की खेती करने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। देहरादून में कॉर्पोरेट की नौकरी छोड़कर और बैंक से 56 लाख रुपये का लोन लेकर अमित पांडे ने फूलों की खेती का काम शुरू किया। देहरादून के विकासनगर-हरबर्टपुर के कुंजाग्रांट गांव में 12 बीघा ज़मीन पर पॉली हाउस लगाकर अमित ने फूलों की खेती शुरू की।

अमित बताते हैं,  “2014 में मैंने पॉलीहाउस में जरबेरा फूलों की खेती शुरू की। तब सीजन के समय एक जरबेरा स्टिक के 12-13 रुपये तक मिलते थे। बिना सीजन दो से ढाई रुपये तक। सीजन का मतलब है शादियों का समय। अप्रैल-मई और फिर सर्दियों में शादियों के समय बाज़ार में फूलों की मांग बढ़ जाती है। जीएसटी के बाद से फूलों की मंडी में डाउन फॉल हुआ। उसके बाद ये मार्केट कभी उठ ही नहीं पाया। अब मैंने ये कारोबार बंद करने का फ़ैसला ले लिया है। पिछले 6 महीने से बिना किसी कमाई के वर्कर्स को सैलरी दे रहे हैं।”

अमित कहते हैं कि फूलों के पौधों की एक बच्चे की तरह देखभाल करनी होती है। उनकी गुड़ाई-निराई, समय पर खाद-पानी का इंतज़ाम करना होता है। खेतिहर मज़दूरों को वेतन देना होता है। ट्रांसपोर्ट का भाड़ा मिलाकर हर महीने 60-70 हज़ार रुपये खर्च करने पड़ते हैं।

“इस साल अप्रैल में शादियों का बड़ा सीजन था। हमने फरवरी से इसकी तैयारी करनी शुरू कर दी थी। ताकि अप्रैल में जब बाज़ार में इनकी मांग बढ़ेगी, खूब फूल आएं। मार्च में लॉकडाउन से हम पर जबरदस्त असर पड़ा। हमने इतना बुरा समय नहीं देखा। इसकी भरपायी नहीं की जा सकती। आने वाले 6-8 महीने में भी हमें फूलों के बाज़ार में बढ़त की कोई उम्मीद नहीं दिख रही। पहले शादी समारोहों में 50 लोगों के जुटने की अनुमति थी। अब इसे बढ़ाकर 100 कर दिया गया है। इतने कम लोगों के समारोहों के लिए कोई क्या फूल खरीदेगा। मेरे आसपास के ज्यादातर लोगों ने फूल उगाने बंद कर दिए हैं।”

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लॉकडाउन के दौरान ग़ाज़ीपुर मंडी का हाल। फोटो : अमित पांडेय

अमित के पॉलीहाउस से फूल दिल्ली में ग़ाज़ीपुर की मंडी में भेजे जाते हैं। ग़ाज़ीपुर मंडी एशिया की सबसे बड़ी फूल मंडी कही जाती है। वह कहते हैं “इस समय मंडी से फूल की जो मांग आ रही है, उसकी कीमत 1-2 रुपए प्रति स्टिक है। इतनी कम कीमत के लिए किसान क्या फूल उगाएगा। मैंने अगस्त में पॉलीहाउस खाली कर दिया। फूलों को सड़क पर फेंकना पड़ा। गायों के आगे डालना पड़ा”।

अमित को अभी बैंक का लोन चुकाना है। फूलों की खेती पर सरकार द्वारा दी गई सब्सिडी भी तभी मिलेगी जब लोन पूरा हो जमा हो जाए। वह कहते हैं कि अगले कुछ महीनों तक तो हालात सामान्य होने की उम्मीद नहीं है।

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पॉलीहाउस बंद, लाखों का नुकसान

देहरादून के विकासनगर में उद्यान केंद्र के प्रभारी इंदुभूषण कुमोला कहते हैं “लॉकडाउन में फूलों का सारा काम चौपट हो गया। बहुत से लोगों ने अपने पॉलीहाउस बंद कर दिए। लोगों को लाखों का नुकसान हुआ। स्थिति सामान्य होने तक फूलों का कारोबार नहीं हो पाएगा। फूलों के किसान बेरोजगार हो गए हैं। ये सभी मध्यम श्रेणी के किसान हैं। कुछ लोगों ने पॉली हाउस में शिमला मिर्च लगाए हैं”।

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कमेटी बनी, मदद नहीं मिली

देहरादून में मुख्य उद्यान अधिकारी मीनाक्षी जोशी ने बताया, “फूलों की खेती करने वाले किसानों को हुए नुकसान का आकलन किया गया है। शासन स्तर पर इसके लिए एक कमेटी भी बनी। लेकिन अभी फूलों का कारोबार करने वाले किसानों को किसी तरह की मदद नहीं की जा सकी है। हम फूलों की खेती करने वाले किसानों को अब सब्जियां उगाने की सलाह दे रहे हैं”।

देहरादून में मुख्य उद्यान अधिकारी के कार्यालय से मिली जानकारी के मुताबिक 22 मार्च से 3 मई तक देहरादून के 64 किसानों ने 10 हेक्टेअर क्षेत्र में गेंदा फूलों की खेती की। जिसमें उन्हें  5.3 लाख रुपये का नुकसान हुआ। ग्लेडोलियस की खेती करने वाले 33 किसानों को 22 मार्च से 3 मई तक 61.5 लाख रुपये का नुकसान हुआ। गुलाब की खेती करने वाले 8 किसान को इस दौरान 54 लाख रुपये का नुकसान हुआ। जरबेरा की खेती करने वाले 32 किसानों को दो करोड़ से अधिक का नुकसान हुआ। कार्नेशन की खेती करने वाले 7 किसानों को 17 लाख से अधिक का नुकसान हुआ। लिलियम की खेती में 2 किसानों को 2.64 लाख तक का नुकसान हुआ। 

तो लॉकडाउन की शुरुआत में मात्र 43 दिनों में फूलों की खेती करने वाले मध्यम श्रेणी के किसानों को लाखों का नुकसान झेलना पड़ा। अब भी फूलों का कारोबार बेहद कम है। इन किसानों के साथ इनके खेत में काम करने वाले खेतिहर मज़दूरों की आजीविका भी कोरोना में बुरी तरह प्रभावित हुई है। 

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