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आख़िर प्रसार भारती पीटीआई से ख़फ़ा क्यों है?

प्रसार भारती ने देश की सबसे बड़ी न्यूज़ एजेंसी पीटीआई को ‘राष्ट्रीय हितों के अनुरूप काम नहीं’ करने वाला बताते हुए उसकी सेवाएँ लेना बंद करने की चेतावनी दी है। अब इसके ख़िलाफ़ कई मीडिया संगठन पीटीआई के सपोर्ट में उतर आए हैं और सोशल मीडिया पर 'स्टैंड विद पीटीआई' ट्रेंड कर रहा है।
प्रसार भारती पीटीआई

“भारत आशा करता है कि चीन तनाव कम करने और इलाक़ा खाली करने में अपनी ज़िम्मेदारी समझेगा और एलएसी में अपनी तरफ पीछे हट जाएगा।”

ये बयान चीन में भारत के राजदूत विक्रम मिस्री का है। उनके इस बयान को बीते शुक्रवार यानी 26 जून को पीटीआई (प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया) ने ट्वीट के माध्यम से शेयर किया था। पीटीआई ने इस बाबत मिस्री का इंटरव्यू किया था, जिसे लेकर अब विवाद शुरू हो गया है। प्रसार भारती ने पीटीआई को ‘राष्ट्रीय हितों के अनुरूप काम नहीं’ करने वाला बताते हुए उसकी सेवाएँ लेना बंद करने की चेतावनी दी है तो वहीं अब कई मीडिया संगठन पीटीआई के सपोर्ट में उतर आए हैं।

क्या है पूरा मामला?

लद्दाख की गलवान घाटी में 15 जून की रात भारत और चीन के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हुई। जिसमें भारत के 20 जवान शहीद हो गए थे तो वहीं लगभग अन्य 76 जवानों के घायल होने की खबर सामने आई। इस घटना के बाद दोनों देशों के लाइन ऑफ एक्चुयल कंट्रोल (एलएसी) पर लगातार तनाव बना हुआ है।

पिछले दिनों समाचार एजेंसी पीटीआई ने भारत-चीन के बीच चल रहे इसी तनाव के सिलसिले में भारत में चीनी राजदूत का इंटरव्यू किया था। इस इंटरव्यू को प्रसार भारती ने "राष्ट्रहित के खिलाफ़" बताया है।

इस संबंध में प्रसार भारती ने शनिवार, 27 जून को एक पत्र भेजकर कहा कि “पीटीआई की न्यूज़ रिपोर्टिंग राष्ट्र हित में नहीं है। इसके संचालन को लेकर संपूर्णता में चीज़ों को देखा जा रहा है।”

प्रसार भारती  ने इस पत्र में ये भी कहा है कि वो पीटीआई से अपने संबंधों को आगे जारी रखने को लेकर समीक्षा कर रहा है और इस संदर्भ में जल्द ही फ़ैसले से अवगत करा दिया जाएगा।

शनिवार को प्रसार भारती के अधिकारियों ने पत्रकारों से कहा कि सार्वजनिक प्रसारणकर्ता अपनी अगली बोर्ड बैठक से पहले पीटीआई को एक सख्त पत्र भेज रहा है, जिसमें पीटीआई द्वारा राष्ट्र विरोधी रिपोर्टिंग पर गहरी नाराजगी व्यक्त की गई है।

क्या था पीटीआई के साक्षात्कार में?

पीटीआई ने चीन में भारतीय राजदूत विक्रम मिस्री के हवाले से कहा था कि “चीन को तनाव कम करने के लिए अपनी जिम्मेदारी समझते हुए लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के अपनी तरफ वापस जाना होगा।”

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पीटीआई के एक अन्य ट्वीट में मिस्री कहते हैं, “चीन को एलएसी के भारतीय हिस्से की ओर अतिक्रमण के प्रयास और संरचनाओं को खड़ा करने की कोशिश को रोकना होगा।”

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दरअसल मिस्री के एलएसी पर चीन को लेकर दिए गए यह बयान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सर्वदलीय बैठक में दिए उस बयान के विपरीत है जिसमें उन्होंने कहा था कि “न वहां कोई हमारी सीमा में घुस आया है, न ही कोई घुसा हुआ है। न ही हमारी कोई पोस्ट किसी दूसरे के कब्ज़े में है।”

पीटीआई ने एक तीसरा ट्वीट भी किया था, जिसमें मिस्री के हवाले से कहा गया कि “एलएसी पर सैन्य तनाव का केवल एक ही समाधान है और यह कि चीन नई संरचनाएं बनाना रोक दे।”

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हालांकि इस ट्वीट को शनिवार सुबह डिलीट कर दिया गया। लेकिन न तो विदेश मंत्रालय और न ही मिस्री ने पीटीआई के ट्वीट की सत्यता को खारिज किया।

'द वायर' ने प्रसार भारती के एक अधिकारी के हवाले से कहा है कि 'पीटीआई की राष्ट्र विरोधी रिपोर्टिंग की वजह से यह स्वीकार्य नहीं है कि उसके साथ संबंध बरक़रार रखा जाए। पीटीआई के व्यवहार की वजह से प्रसार भारती उसके साथ संबंध पर पुनर्विचार कर रहा है। उसे जल्द ही अंतिम फ़ैसले की जानकारी दे दी जाएगी।'

प्रसार भारती का यह भी कहना है कि वह पीटीआई को फ़ीस के रूप में हर साल मोटी रकम देता है और अब तक करोड़ों रुपए उसे दे चुका है।

बता दें कि इससे पहले भी पीटीआई ने भारत में चीन के राजदूत सुन वीदोंग का साक्षात्कार किया था जिसे लेकर विवाद खड़ा हो गया था। चीनी दूतावास ने इस इंटरव्यू का एक छोटा संस्करण अपनी वेबसाइट पर प्रस्तुत किया था, जिसे लेकर पीटीआई की आलोचना हुई थी। इसके बाद विदेश मंत्रालय ने राजदूत सुन के बयानों पर जवाब दिया था।

'स्टैंड विद पीटीआई' क्यों ट्रेंड कर रहा है?

सोशल मीडिया पर रविवार, 28 जून से #StandwithPTI (हैशटैग स्टैंड विद पीटीआई) ट्रेंड कर रहा है। कई मीडिया संगठन और पत्रकार पीटीआई के समर्थन में अपनी प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं। मिस्री के इंटरव्यू पर प्रसार भारती के पत्र को लेकर सरकार की आलोचना भी हो रही है।

प्रेस एसोसिएशन और ऑल इंडिया वुमेंस प्रेस कोर (आइडब्ल्यूपीसी) ने प्रसार भारती के रवैए पर चिंता प्रकट की है और कहा है कि पीटीआई अपनी पेशेवर ज़िम्मेदारी निभा रही है।

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दोनों मीडिया संगठनों ने  बयान जारी कर कहा कि यह विडंबना ही है कि इमरजेंसी की 45वीं बरसी के कुछ घंटों के भीतर पीटीआई जैसी संस्था को निशाना बनाया जा रहा है।

बयान में कहा गया है कि "ऐसा लगता है कि प्रशासन इस बात को समझ पाने में नाकाम रहा है कि स्वतंत्र, वस्तुपरक और निष्पक्ष मीडिया लोकतंत्र की बुनियादी शर्त है।"

एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के अध्यक्ष और द प्रिंट के संस्थापक शेखर गुप्ता ने ट्वीट कर पीटीआई को निशाना बनाने की घटना को दुखद बताया।

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उन्होंने लिखा, "पीटीआई धारा 8 के तहत बनी एक क़ानूनी तौर पर गै़र-लाभकारी कंपनी है। देश के प्रमुख समाचार पत्र समूह इसके शेयरधारक हैं। वो अपने मालिकों और सीईओ के ज़रिए बोर्ड में प्रतिनिधित्व करते हैं साथ ही यहां कम से कम तीन स्वतंत्र निदेशक हैं। अगर पीटीआई को चरित्र बदलने के लिए मजबूर किया गया तो यह दुखद होगा।"

द हिंदू की नेशनल एडिटर सुहासिनी हैदर ने ट्वीट कर सरकार पहर निशाना साधा है। उनके अनुसार ये “अगर दूसरे शब्दों में कहें तो सरकार सत्ता हथिया रही है।"

एक और ट्वीट में सुहासिनी हैदर ने कहा, "पीटीआई की हालिया कवरेज को राष्ट्रीय हित और क्षेत्रीय अखंडता के ख़िलाफ़ बताकर प्रशासन स्वतंत्र, निष्पक्ष और वस्तुनिष्ठ मीडिया, जो लोकतंत्र का अहम अंग है, उसकी प्रशंसा करने में नाकाम रहा है।"

पत्रकार माया मीरचंदानी ने लिखा, "पीटीआई को राष्ट्र विरोधी कह कर प्रशासन ये समझने में नाकाम रहा है कि किसी गणतंत्र में स्वतंत्र, वस्तुपरक और निष्पक्ष मीडिया बेहद ज़रूरी होता है। फ्री प्रेस हमारे देश के संविधान का और आईडिया ऑफ़ इंडिया का अभिन्न हिस्सा है।"

गौरतलब है कि पीटीआई एक स्वतंत्र संस्थान है, जिसका रजिस्ट्रेशन 1947 में हुआ था। इसके बाद 1949 से पीटीआई देश की सबसे बड़ी न्यूज़ एजेंसी के रुप में कार्यरत है। इसके रेवेन्यू का स्रोत इसकी सर्विस सब्सक्रिप्शन है। इसका संचालन एक निदेशक मंडल के जरिए होता है।

हालांकि ये कोई पहली बार नहीं है जब प्रसार भारती और पीटीआई आमने-सामने हैं। इसके पहले भी साल 2016 में मोदी सरकार ने समाचार एजेंसी के लंबे समय तक एडिटर-इन-चीफ रहे एमके राजदान के सेवानिवृत्त होने पर एक आधिकारिक नामित सदस्य नियुक्त करने को कहा था। जिसे पीटीआई निदेशक मंडल ने नामंजूर कर दिया था।

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