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अमेरिका ने ईरान के ख़िलाफ़ की प्रॉक्सी वॉर की शुरूआत

फ़ारस की खाड़ी के इलाक़े में अमेरिकी विमान वाहक समूह की इस वक़्त में उपस्थिती काफ़ी अधिक उत्सुकता पैदा करने वाली है।
IRAN

तथाकथित ग्रेटर वेस्ट एशिया के व्यापक इलाके में बड़े पैमाने पर अमेरिकी नौसैनिक बलों की तैनाती की जा रही है - जो पूर्वी भूमध्य सागर में क्रेते से लेकर लाल सागर और बाब अल मंडेब और अदन की खाड़ी और ओमान की खाड़ी के पूरे रास्ते तक फैली हुई है। यह ईरान को हतोत्साह करने वाली गतिविधि बड़े पैमाने पर आक्रामक अभियानों का रूप ले सकती है और इसका उद्देश्य भू-राजनीतिक अलाइनमेंट को फिर से तैयार करना और उन्हें खाड़ी इलाके में विभिन्न इलाकाई प्रतिद्वंद्विता के पारंपरिक खांचे में वापस लाना है।

एयरक्राफ्ट की खोज करने वालों ने सबसे पहले कहा था कि गुरुवार तक, विमानवाहक पोत यूएसएस ड्वाइट डी. आइजनहावर और उसके अनुरक्षक ओमान की खाड़ी में होर्मुज जलडमरूमध्य के ठीक बाहर नौकायन करते नज़र आए, और फारस की खाड़ी की ओर बढ़ रहे थे। पेंटागन के एक अधिकारी ने इसकी पुष्टि की है, लेकिन यह नहीं बताया कि वाहक होर्मुज जलडमरूमध्य से गुजरते हुए फारस की खाड़ी में प्रवेश करेगा या नहीं।

इलाके में अमेरिकी नौसैनिकों की तैनाती में एक अन्य कॅरियर हमलावर/स्ट्राइक समूह भी शामिल है -जिसका नाम यूएसएस फोर्ड और उसके एस्कॉर्ट्स है - जो पिछले सप्ताह इजरायली तट से दूर चले गए थे और अब एयरक्राफ्ट के खोजकर्ताओं के अनुसार, क्रेते के दक्षिण में फिर से तैनात कर दिए गए हैं, जाहिरा तौर पर ये लेबनान के हिजबुल्लाह की मिसाइल हमले की पहुंच से काफी दूर हैं। 

इन हमलावर एयरक्राफ्ट समूहों के अलावा, अमेरिकी तैनाती में 26 वीं समुद्री अभियान इकाई के साथ तीन जहाज बाटन एम्फीबियस रेडी ग्रुप और कई निर्देशित-मिसाइल विध्वंसक - यूएसएस बाटन और यूएसएस कार्टर हॉल भी शामिल हैं जो लाल सागर के उत्तरी हिस्से में काम कर रहे हैं, और जो कमांड एयरक्राफ्ट यूएसएस माउंट व्हिटनी के साथ पूर्वी भूमध्य सागर में यूएसएस मेसा वर्डे के साथ डटे हैं।

इसके अलावा, इस इलाके में कुछ संख्या में अमेरिकी हमलावर पनडुब्बियां भी मौजूद हैं, लेकिन पेंटागन आम तौर पर उनके स्थानों का खुलासा नहीं करता है - हाल ही में यूएस सेंट्रल कमांड ने 5 नवंबर को परमाणु निर्देशित मिसाइल पनडुब्बी यूएसएस फ्लोरिडा के पारगमन के एक दुर्लभ खुलासे को छोड़कर इस बारे में नहीं बताया है जो स्वेज़ नहर के पूर्व में है। 

इस तरह की दुर्जेय नौसैनिक तैनाती की सबसे स्पष्ट व्याख्या यही की जा सकती है कि यह दक्षिणी इज़राइल और गज़ा में मौजूदा संघर्ष को नियंत्रित रखने के अमेरिकी प्रयास का एक हिस्सा है।

हिज़्बुल्लाह ने लेबनान से इज़राइल पर रॉकेट और टैंक रोधी मिसाइलें दागना जारी रखा हुआ है; ईरान समर्थित शिया आतंकवादी समूह इराक और सीरिया में अमेरिकी ठिकानों पर हमला कर रहे हैं; और यमन में हौथी विद्रोही इजराइल की ओर मिसाइलें दाग रहे हैं। 17 अक्टूबर से अब तक, अमेरिकी ठिकानों पर कम से कम 58 हमले हुए हैं, जिनमें से ज्यादातर ठिकाने इराक में मौजूद हैं।

अमेरिका में कट्टरपंथी राय का सार यह है कि अमेरिकी सेना पर हमला करने वाले आतंकवादी समूह ईरान के इशारे पर काम कर रहे हैं। यह आरोप एक पुराना अमेरिकी-इज़राइली हौवा है और जब भी ईरान सवालों के घेरे में होता है और/या आरोप-प्रत्यारोप की जरूरत होती है, तब यह हौवा बढ़ता रहता है। अमेरिका सहित विशेषज्ञों की राय हमेशा इसे लेकर सतर्क रही है।

लंबे समय से, पर्यवेक्षकों का अनुमान है कि हालांकि तेहरान अमेरिका और इज़राइल को पीछे धकेलने के लिए पश्चिम एशिया में सक्रिय विभिन्न प्रतिरोध समूहों की खुले तौर पर मदद करता रहा है, लेकिन यह हक़ीक़त में इन समूहों को कभी भी "ईरानी प्रॉक्सी" नहीं बनाता है। यह इस तथ्य से भी पता चलता है कि 7 अक्टूबर को इज़राइल के खिलाफ हमास के हमले से ईरान भी आश्चर्यचकित रह गया था। रॉयटर्स के अनुसार, हाल ही में तेहरान में राजनीतिक ब्यूरो के अध्यक्ष इस्माइल हनियेह के साथ एक बैठक में, ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई ने इस बात को प्रमुखता से सामने रखा था। 

किसी भी कीमत पर, यह एक माना हुआ तथ्य है कि अमेरिकी प्रशासन ईरान के साथ अपनी स्थिति की जमीनी हकीकत से अच्छी तरह वाकिफ है और उसने शिया आतंकवादी समूहों के साथ अपने अच्छे कार्यालयों का इस्तेमाल करने के लिए तेहरान के साथ बैक चैनल का इस्तेमाल करने में संकोच नहीं किया है। इराक में संयम बरता जाए। लेकिन लब्बोलुआब यह है कि आज के असाधारण समय में ईरान की भी अपनी सीमाएँ हैं, तब-जब मुस्लिम देशों में अमेरिका और इज़राइल के प्रति नफ़रत और गुस्सा चरम पर पहुंच गया है।

दिलचस्प बात यह है कि होर्मुज जलडमरूमध्य के पानी में विमानवाहक पोत यूएसएस ड्वाइट डी. आइजनहावर और उसके अनुरक्षकों के आगमन के साथ ही, इंटरनेशनल मैरीटाइम सिक्योरिटी कंस्ट्रक्ट [आईएमएससी] – जिसका बहरीन में मुख्यालय है और यह कई देशों की एक यूनियन है, जिसका आधिकारिक घोषित उद्देश्य, फारस की खाड़ी, ओमान की खाड़ी, अदन की खाड़ी और दक्षिणी लाल सागर में व्यवस्था और सुरक्षा बनाए रखना है, विशेष रूप से वैश्विक तेल आपूर्ति मार्गों की समुद्री सुरक्षा रखना है और इसके लिए बाब अल मंडेब और लाल सागर के रास्ते से गुजरने वाले जहाजों के लिए गुरुवार को एक सलाह जारी की गई है, और उन्हे विशेष रूप से सलाह दी गई कि "मार्ग चुनते समय, यमनी जल से अधिकतम संभव दूरी बनाने पर ध्यान दें।"

दो दिन बाद, इज़रायली सेना ने कहा है कि यमन के हौथियों ने वास्तव में दक्षिणी लाल सागर में एक मालवाहक जहाज को जब्त कर लिया था, तब-जब वह तुर्किये से भारत की ओर जा रहा था; हालाँकि सेना ने कहा कि जहाज इज़रायली स्वामित्व वाला नहीं था और इसके चालक दल में कोई भी इज़रायली नहीं था, सार्वजनिक शिपिंग डेटाबेस में स्वामित्व विवरण जहाज के मालिकों को रे कार कैरियर्स से जोड़ते थे, जिसकी स्थापना अब्राहम "रामी" उन्गर ने की थी, जिन्हें इज़राइल के सबसे अमीर व्यक्तियों में एक के रूप में जाना जाता है। 

यह पता लगाने के लिए बहुत चालाक होने की जरूरत नहीं है कि अमेरिका, जो पहले से ही हौथिस द्वारा हाल ही में अंतरराष्ट्रीय जलक्षेत्र में यूएस एमक्यू-9 रीपर ड्रोन को मार गिराए जाने के अपमान से घबरा रहा है, हौथिस के खिलाफ आगे बढ़ रहा है। इसे समझने की जरूरत है।

मुद्दा यह है कि, आईएमएससी एक अमेरिकी नेतृत्व वाला "इच्छुकों का गठबंधन" है जो अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन, संयुक्त राष्ट्र की विशेष एजेंसी "सहयोग के माध्यम से सुरक्षित, संरक्षित, पर्यावरण की दृष्टि से सुदृढ़, कुशल और टिकाऊ शिपिंग को बढ़ावा देने" के मिशन के दायरे से बाहर है।”

इसकी स्थापना 2019 में यमन में युद्ध की पृष्ठभूमि में की गई थी और इसमें अन्य लोगों के अलावा खाड़ी इलाके से संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब शामिल थे। इसका मक़सद यमन में सऊदी-अमीराती हस्तक्षेप के दौरान ईरान-हौथी गठबंधन का मुकाबला करना था - अनिवार्य रूप से, यह उस समय इलाकाई राजनीति पर हावी ईरान के खिलाफ अमेरिका की रोकथाम रणनीति के हिस्से के रूप में था।

गौरतलब है कि अगर बाइडेन प्रशासन, हौथिस पर हमला करने की योजना बना रहा है और इसे एक जवाबी/दंडात्मक हमले के रूप में देखता है तो अंत में, यह आईएमएससी मंच के इस्तेमाल का आह्वान कर सकता है, जो चीन द्वारा मध्यस्थता किए गए सऊदी-ईरान मेल-मिलाप से पहले के युग से संबंधित मसला है। तो यह एक शानदार भू-राजनीतिक चाल बन जाती है, जिसके ज़रिए अमेरिका कई लक्ष्यों को हासिल करने की उम्मीद में एक ही तीर से कई शिकार कर रहा है।

इन सब का मक़सद ताक़तों की गतिशीलता की इलाकाई लोककथाओं में ईरान को एक या दो पायदान नीचे लाना है; सऊदी अरब और ईरान के बीच ऐसे समय में दरार पैदा हो रही है जब दो पारंपरिक प्रतिद्वंद्वियों के बीच मित्रता इजरायल को "एकीकृत" करने की अमेरिकी योजना को विफल कर रही है; पश्चिम एशिया और विश्व स्तर पर अमेरिकी शक्ति के सदमे और खौफ को फिर से स्थापित करना; इज़रायली जहाजों के लिए लाल सागर शिपिंग लाइनों को खुला रखना; और, रणनीतिक दृष्टि से, स्वेज़ नहर की ओर जाने वाले लाल सागर के जलमार्ग पर प्रभुत्व स्थापित करना है।

वैसे, लाल सागर में हाल ही में बड़ी शक्ति प्रतियोगिता देखी जा रही है - चीन के पास जिबूती में एक नौसैनिक अड्डा है और रूस को सूडान में एक पनडुब्बी अड्डा स्थापित करने की उम्मीद है; लाल सागर में इरिट्रिया एक कट्टर अमेरिकी विरोधी देश है; और, अमेरिका अफ्रीकी महाद्वीप के सबसे बड़े देश इथियोपिया में उस सत्ता परिवर्तन के लिए बेताब कोशिश कर रहा है, जो रूस के साथ बहुत दोस्ताना शर्तों पर काम कर रहा है।

इससे भी अधिक उत्सुकता फारस की खाड़ी के इलाके में अमेरिकी विमान वाहक समूह के समय को लेकर है। चीनी विदेश मंत्रालय ने रविवार को घोषणा की कि अरब और इस्लामी विदेश मंत्रियों का एक प्रतिनिधिमंडल 20 से 21 नवंबर तक चीन का दौरा करेगा ताकि चल रहे फिलिस्तीनी-इजरायल संघर्ष को कम किया जा सके तथा सुरक्षा के तरीकों पर बीजिंग के साथ "गहन संचार और समन्वय" स्थापित किया जा सके ताकि नागरिकों और फ़िलिस्तीनी प्रश्न का उचित समाधान ढूंढा जा सके।"

प्रतिनिधिमंडल में सऊदी विदेश मंत्री प्रिंस फैसल बिन फरहान अल सऊद, जॉर्डन के उप प्रधान मंत्री और विदेश मंत्री अयमान सफादी, मिस्र के विदेश मंत्री समेह शौकरी, इंडोनेशियाई विदेश मंत्री रेटनो मार्सुडी, फिलिस्तीनी विदेश मंत्री रियाद अल-मलिकी और इस्लामिक सहयोग संगठन के महासचिव हुसैन ब्राहिम ताहा शामिल हैं। 

उपरोक्त घटना एक सऊदी पहल है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि फ़िलिस्तीन-इज़राइल संघर्ष के वर्तमान चरण में अपने प्रमुख वार्ताकार के रूप में चीन को लेना, मुस्लिम देशों द्वारा अमेरिका के लिए एक राजनयिक झटका है। संक्षेप में कहें तो, अरब एकता ऐसे समय में राष्ट्रपति बाइडेन के लिए भी कांटा बनती जा रही है, जब अमेरिका के लिए गज़ा में युद्धविराम के लिए चीनी-अरब प्रयास को रोकना और इजरायल की फ़िलिस्तीनी लोगों के खिलाफ भयावह हिंसा की अंतरराष्ट्रीय निंदा का मुकाबला करना कठिन होता जा रहा है,  विशेषकर ग्लोबल साउथ में यह निंदा काफी प्रमुख है।

यमन के हौथिस पर हमला करके, बाइडेन प्रशासन की योजना एक तरफ हौथिस के प्रति सऊदी की नापसंदगी और दूसरी तरफ तेहरान पर ताना मारकर सऊदी-ईरान मेलजोल को कमजोर करना है। मूलतः, अमेरिका ईरान को उसी मुद्रा में जवाब देने की उम्मीद रखता है।

जैसा कि हिल में लिखे एक लेख में कहा गया है कि, "अब समय आ गया है कि बाइडेन और उनकी राष्ट्रीय सुरक्षा टीम के प्रमुख सलाहकारों को... ईरानी परदे के पीछे सख्ती से और क्षमाप्रार्थी तरीके से हमला करके एक सक्रिय बचाव करना चाहिए, तब-जब वे खतरा पेश करते नज़र आ रहे हैं, न कि तब जब वे पहले ही हमला कर चुके हों। और इसका संभावित कारण इराक और सीरिया में दूरदराज के ठिकानों पर तैनात हमारे द वाले सेवा सदस्यों की सुरक्षा होना चाहिए... खूनी हमला ही एकमात्र प्रतिक्रिया है जिसे ईरान समझता है, और ठीक यही प्रतिक्रिया अमेरिका को देनी चाहिए। (यहाँ पढे)

बाइडेन प्रशासन को पहले से ही यह एहसास हो रहा होगा कि हमास के खिलाफ इजरायली कार्रवाई कहीं नहीं पहुंच पा रही है और ज़ायोनी हुकूमत अपने अपराध और शर्मिंदगी का सामना करने या फ़िलिस्तीन के मुद्दे को दो-राष्ट्र के समाधान के रूप में स्वीकार करने से इनकार करने के जिद्द की वजह से यह लंबा चल सकता है। अमेरिकी जनता की राय बाइडेन की स्थिति से निपटने के बारे में संदेहपूर्ण होती जा रही है और अमेरिका के सहयोगी परेशान महसूस कर रहे हैं। वास्तव में, इज़राइल खुद काफी विभाजित घर है।

इस बीच, पश्चिम एशिया में अमेरिका का कूटनीतिक अलगाव आज अभूतपूर्व स्तर को छू रहा है। बड़ा सवाल यह है कि क्या जबरदस्ती - "स्मार्ट पावर" के माध्यम से खोई हुई जमीन वापस पाना संभव है, जहां मामले की जड़ यह है कि पश्चिम एशिया में अब अमेरिका पर भरोसा नहीं किया जाता है। इसके अलावा, ईरान के पास "स्मार्ट पावर" का पेटेंट है, जिसे उसने पिछले चार दशकों में अमेरिका से अस्तित्व संबंधी चुनौतियों से सफलतापूर्वक बचने के लिए एक राजनयिक उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया है।

अमेरिका को उन प्रतिरोधी समूहों के साथ उलझने का जोखिम है, जिनके पास खोने के लिए कुछ नहीं है और वाशिंगटन के लिए दलदल पैदा करके हासिल करने के लिए सब कुछ है। मामले की जड़ यह है कि प्रतिरोध समूह अपनी मूल भूमि में काम कर रहे हैं और उन्हें सामाजिक समर्थन का विशाल नेटवर्क हासिल है। इसलिए, अंतिम विश्लेषण में यह एक असमान लड़ाई बन जाती है।

क्या यह जोखिम लेने लायक है - यह सब इसरायल के गिरते मनोबल को बढ़ाने के लिए किया जा रहा है- पश्चिम एशिया में हमेशा के लिए एक ओर युद्ध शुरू करने से पहले बाइडेन प्रशासन के लिए एक आत्म-मंथन करने वाला प्रश्न होना चाहिए।

एमके भद्रकुमार एक पूर्व राजनयिक हैं। वे उज़्बेकिस्तान और तुर्की में भारत के राजदूत रह चुके हैं। व्यक्त विचार निजी हैं।

साभार: इंडियन पंचलाइन

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