विश्लेषण: कर्नाटक की ज़मीनी आवाज़ें, भाजपा के दांव और हक़ीक़त
कर्नाटक चुनाव के नतीजे साबित करेंगे कि कर्नाटक भारतीय जनता पार्टी के लिए gate way of south साबित होगा या नहीं। यही वजह रही कि इस एक राज्य को जीतने के लिए देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने, जो भाजपा के स्टार प्रचारक हैं—सारा जोर लगा दिया। साम-दाम-दंड-भेद से भरे उनके दांव कर्नाटक चुनावों के जमीनी मुद्दों से ध्यान भटकाने में कुछ हद तक तो सफल रहे। कम से कम मीडिया (प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक) में भाजपा को जो रोज हैडिंग और प्राइम टाइम में जगह मिली, उसका 100 फीसदी श्रेय मोदी को जाता है। वरना जमीन से भाजपा की राज्य सरकार को लेकर जो गहरा आक्रोश था, वह खबरों की सुर्खियों में रहता।
ऐसे में मैं आपके साथ साझा करना चाहती हूं कुछ ऐसी ठोस आवाज़ें, जिन्हें मुझे सुनने का मौका ग्राउंड रिपोर्टिंग करते कर्नाटक के अलग-अलग हिस्सों में मिला। हर बार की तरह, इस बार भी मैंने अपने चुनावी कवरेज में उन लोगों को केंद्र में रखा था, जो श्रमजीवी हैं, मज़दूर हैं, किसान हैं, नौजवान हैं। इसी क्रम में बंगलुरु से मांडया के रास्ते में रामनगर के पास हाइवे में कुछ दिहाड़ी महिला मजदूरों से बात की। इनमें से एक महिला कविता ने जो बात कही, वह बड़े मार्के की लगी—
एक बात बताओ, सब तरफ शोर है कि मोदी को वोट दो, मोदी को वोट दो। मुझे बताओ, मोदी ने क्या किया जो हम उसे वोट दें। चावल, दाल, तेल, साबुन, शैंपू, रसोई गैस से लेकर जीने की हर बड़ी-छोटी चीज महंगी कर दी। हम दिहाड़ी मज़दूर हैं, रोज कमाते हैं, तब घर चलता है। मोदीजी नये-नये कपड़े पहनकर फूलों से नहा रहे हैं, इससे हमें क्या फायदा। नौकरी नहीं, चाकरी नहीं, हम कैसे अपने बच्चों को स्कूल भेजें, कैसे उनकी शादी करें—इस बारे में कोई बात ही नहीं कर रहा। कम से कम जब कांग्रेस थी तब हमें राशन मिल जाता था। कई चीजें सस्ती थीं, कम से कम ऐसी आग तो नहीं लगी थी। यहां तो बस मोदी का रोड शो, रोड शो है—इससे क्या गरीबों का पेट भरेगा, उनकी किताब में तो हम कुली (मज़दूर) लोग हैं ही नहीं...
कविता (दिहाड़ी मज़दूर, रामनगर)
अब ज़रा गौर फरमाइए मांडया इलाके में ऑटो चलाने वाले श्रीनिवास के गुस्से पर—
बताइए भाजपा सरकार ने सब चीज पर टैक्स लगा दिया। पीने के पानी पर भी मीटर लगा दिया। आप लोगों के शहरों में तो ये सब चलता होगा, लेकिन इन छोटे गांव-कस्बे में अगर हमें पीने के पानी पर पैसे देने पड़ जाएंगे, तो हम तो मर जाएंगे न। हमारी इतनी कमाई नहीं होती और फिर पानी तो प्रकृति की देन है न। मुझे तो लगता है कि अगर ये (भाजपा) इस बार आ गई, तो हमारी सांस लेने पर भी मीटर लगाकर हम से पैसे वसूलेगी। हर चीज में झूठ बोलती है मोदी सरकार। फ्री अकाउंट खोलने की घोषणा की मोदी सरकार ने, हमारे पास कोई पैसे नहीं आए, हमने 500 रुपये देकर खाता खुलवाया और एक साल बाद बैंक ने हमारे ही पैसे से सर्विस टैक्स काट लिया। मोदी जी भगवान उनके लिए हैं, जिनके पेट भरे हुए हैं और जो मोटे कारोबारी हैं। जो गरीब है, भूखे हैं, जिंदा रहने के लिए मेहनत करते हैं, वे झूठ नहीं बोलेंगें...
(ऑटो चलाने वाले श्रीनिवास)
और आइए अब देखते हैं कि इसी इलाके में रहने वाले भाजपा समर्थक पराशिवामूर्ति क्या तर्क देते हैं—
भाजपा ही देश को आगे चला सकती है, बाकी सारे लोग देश को तोड़ने में लगे हुए हैं। सिख अलग देश की मांग कर रहे हैं, मुसलमान अलग हैं। कांग्रेस बंटवारे की राजनीति कर रही है। जबकि भाजपा सबको साथ रखने की बात करती है। हमारे हित की रक्षा करती है। मुसलमानों को उनकी जगह बताती है, कश्मीर से देखिए 370 हटाकर बराबरी कर दी ना। इसी से कांग्रेस परेशान है। कुछ भी कर ले कांग्रेस, अंत में सत्ता में भाजपा ही आएगी। हमें यह आता है।
(भाजपा समर्थक पराशिवामूर्ति)
तकरीबन इसी अंदाज में मारिअम्मा बोलती है मैसूर से सटे इलाके में—
मोदी ने अच्छा काम किया है। वह देश के लिए अच्छा काम कर रहे हैं। वही जीतेंगे। (पूछने पर, जवाब में कहती हैं) ये बात सही है कि महंगाई बढ़ी है, तेल और गैस महंगी हुई है। लेकिन ज़रूरी काम तो कर ही रहे हैं न। (पूछने पर कि यह चुनाव कर्नाटक के हैं...) सही है बोम्मई सरकार ही वापस आएगी, क्योंकि मोदी साथ में हैं। वह सब ठीक कर देंगे।
(मारिअम्मा)
मैसूर किले के सामने टकराए रघु और उन्होंने जो कहा, वही टोन पूरे राज्य के भाजपा समर्थकों का था—
मोदीजी की हवा बहुत अच्छी है। उनके आगे कोई नहीं ठहरता। वह देश को दुनिया में सबसे ऊपर ले जाना चाहते हैं। (पूछने पर) मोदी जी को चुनाव प्रचार इसलिए करना पड़ रहा है क्योंकि येदुरप्पा रिटायर हो चुके हैं और बोम्मई को सिर्फ दो साल ही मिले। मोदी जी ने हाईवे बनवाए, बहुत विकास का काम किया है।
(रघु)
कर्नाटक में भाजपा के गढ़ माने जाने वाले मंगलूरू के पास रहने वाली लेखिका एच.एस. अनुपमा ने कहा—
ये इलाका अनेक कारणों से भारतीय जनता पार्टी, राष्ट्रीय स्वयंसवेक संघ सहित अन्य उग्र दलों की Fertile land (उर्वरक ज़मीन) रही है। इस इलाके में सामाजिक-सांस्कृतिक आंदोलन का घोर अभाव रहा है। यहां मुसलमानों की आर्थिक स्थिति मजबूत है। लिहाजा आर्थिक कारणों से भी वे निशाने पर रहे हैं। लेकिन इस बार तमाम कोशिशों के बावजूद उस तरह का तीखा ध्रुवीकरण यहां नहीं हो पाया है। यही वजह है कि एक नई टीम को यहां उतारा गया, लेकिन उनका ग्राफ गिरेगा।
ये तमाम स्वर, अलग-अलग जाति समूहों-वर्ग समूहों के हैं। कर्नाटक चुनावों में चले प्रचार के पीछे की राजनीति के मर्म को समझने के लिए ये सूत्र देते हैं। कर्नाटक में इस बार भारतीय जनता पार्टी के पास प्रधानमंत्री के नाम और तथाकथित करिश्मे की चर्चा तो खूब रही, लेकिन असल दांव कहीं और रहा। वह था हिंदुत्व का कार्ड जिसे पूरे जोर-शोर से भाजपा की केंद्रीय टीम ने सड़कों पर उतारा। मेरा मानना है कि इस पर भाजपा को बढ़त भी मिल सकती है क्योंकि पिछले नौ सालों से एक सुनियोजित रणनीति के तहत मुसलमानों के ख़िलाफ नफ़रत को internalize (आत्मसात) करा दिया गया है। इसे Undercurrent के रूप में मैंने कर्नाटक की अलग-अलग विधानसभाओं में महसूस किया।
तकरीबन हर जगह भाजपा या यूं कहें मोदी के पक्ष में वोट देने वालों के तर्क एक समान थे। मोदी ने देश के लिए बहुत कुछ किया है, दुनिया में भारत का नाम ऊंचा किया है, बहुत विकास किया है। थोड़ा और कुरेदने के बाद, हल्के से मुस्कुराते हुए कहते है, उन्हें भी सही जगह दिखा दी (मुसलमानों को) यह काम मोदी जी ही कर सकते हैं, वरना ये लोग हमेशा दंगा ही करते रहते।
बातचीत का सिलसिला लव-जिहाद से लेकर हिजाब-हलाल, मुसलमानों की धार्मिक कट्टरता, उनके ज्यादा बच्चे पैदा करने और कश्मीर से 370 हटने तक जा सकता है। ये एक ऐसा बुनियादी फ्रेमवर्क है, जिससे आप देश के किसी भी कोने में टकरा सकते हैं। लेकिन कर्नाटक में इसका प्रयोग करने के लिए कई हथकंडे इस्तेमाल किये गये। हालांकि यहां भी भाजपा एक ही फंडे पर केंद्रित नहीं रही। इसमें सबसे पहले प्रधानमंत्री ने खुद को ही सबसे बड़े चुनावी मुद्दे में तब्दील करने का दांव चला। victimhood card. अपने ऊपर पड़ी गालियों का जिक्र करते हुए बताया कि दरअसल वह ही चुनावी मुद्दा हैं। मोदी के भाषणों को सुनकर ऐसा आभास होने लगा था कि मानो कर्नाटक में भाजपा की नहीं कांग्रेस की सरकार हो। --ये थी ध्यान भटकाने की रणनीति
इसके बाद एक नॉन इश्यू को चुनावी मुद्दा बनाया गया। कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में बजरंग दल और पीएफआई पर प्रतिबंध लगाने की बात कही, जिसे खींच कर मोदी बजंरग बली पर प्रतिबंध लगाने की बात कहने लगे। सारा विमर्श, मीडिया में बहसें इसी ओर खींच ली गईं। अब ये सारी करामात एक खुराफाती दिमाग की उपज ही कही जा सकती है। जिसकी परिणति मोदी की इस अपील में हुई कि जब मतदाता वोट डालने जाएं, तो जय बजरंग बली बोलें और वोट डाले। --कायदे से इस बयान पर चुनाव आग तो तत्काल हस्तक्षेप करते हुए नोटिस भेज देना चाहिए था। लेकिन हम सब चुनाव आयोग की निष्पक्षता को लेकर अब किसी भ्रम में नहीं है। लिहाजा, ये चुनावी मुद्दा बनाने में भाजपा सफल रही।
कर्नाटक के कुछ इलाकों में जहां उत्तर भारतीयों की संख्या अच्छी-खासी है, वहां उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को उतारा गया। योगी ने खुल कर कार्ड चला राम मंदिर के दर्शन से लेकर बजरंग बली का। उनके साथ असम के हेमंत बिस्वासरमा ने सारे नियम-कायदे कानूनों को ताक पर रख कर मुसलमानों के खिलाफ विष वमन किया। उनके साथ ताल मिलाई तेलंगाना के राजा सिंह औऱ बाकी हिंसक ब्रिगेड ने। ये बहुत दिलचस्प तथ्य है कि एक तरफ ये सारे उग्र हिंदुत्व के एजेंडे में हवा भरी जा रही थी, वहीं कर्नाटक भाजपा के नेता चाहे वह येदियुरप्पा हों या बोम्मई—वे कह रहे थे कि कर्नाटक में न तो हिजाब मुद्दा है और न ही हलाल मुद्दा है। अब देखिए ये दोनों बातें भारतीय जनता पार्टी के नेता ही कह रहे हैं। दोनों का टार्गेट ऑडियंस अलग-अलग है।
कर्नाटक चुनाव भाजपा के पैसे से लैस-ग्लेमरस चुनाव प्रचार के लिए भी जाना जाएगा। भारतीय जनता पार्टी का दावा है कि उसने 400 से अधिक जनसभाएं—public rallies कीं, 130 रोड शो किये। इन रोड शोज में अकूत पैसा खर्च किया गया। फूलों की अनवरत बौछार को लेकर भी करोड़ों रुपये खर्च होने के आकलन सामने आए। मोदी ने 29 अप्रैल से लेकर 19 बड़ी जनसभाएं, छह रोड-शो बंगलुरु सहित बड़े शहरों में किए। इन रोड शो में मीडिया ने पूरे समय उन भाजपाई महिलाओं को दिखाया जो चिल्ला-चिल्ला कर कैमरे के सामने मोदी को भगवान, मोदी को भगवान का अवतार, देश-दुनिया और कर्नाटक लिए बहुत अहम बता रही थीं। अब यही विमर्श बाकी इलाकों में फैल गया और हर जगह मतदाताओं से यही सवाल पूछा जाने लगा कि क्या वे भी मोदी को भगवान या अवतार मानते हैं? इस तरह से चुनावी एजेंडे को फिर बदल दिया गया। फिर कमान संभाल ली केरला स्टोरी जैसे पूरी तरह से फ़ेक न्यूज़ पर आधारित प्रोपोगेंडा फ़िल्म ने।
कर्नाटक चुनाव में अगर हम भाजपा की रणनीति को सिर्फ और सिर्फ हिंदू उग्र एजेंडे तक केंद्रित रखेंगे, तो शायद बड़ी भूल होगी। जातिगत समीकरणों में हेर-फेर करने का भाजपा का calculated risk कितना कारगर होगा, ये तो वक्त ही बताएगा। कर्नाटक की राजनीति लिंगायत और वोक्कालिगा नाम के दो जाति समूहों के बीच घूमती रहती है। लिंगायत 17 फीसदी हैं, अगड़ी जाति हैं, राजनीतिक रूप से सबसे ताकतवर हैं। भाजपा इन्हीं के बल पर सत्ता में आई। सबसे कद्दावर नेता रहे हैं येदियुरप्पा-जिनका दबदबा अच्छा खासा रहा है। उनको हटाकर भाजपा ने बोम्मई को मुख्यमंत्री बनाया, वह भी है तो लिंगायत, लेकिन रसूख वाले नेता नहीं है। इन चुनावों में एक बड़ा चेहरा तक नहीं बन पाए।
लिंगायत प्रभाव वाले बड़े इलाकों में बीदर, बागलकोट, धारवाड़, विजयपुरा, बेलगावी, हावेरी, गडग और उत्तर कन्नड़ शामिल हैं। इस बार भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े बड़े लिंगायत नेता जगदीश शेट्टर के कांग्रेस में आने से भी कांग्रेस को इस समाज के वोट मिलने की आस बंधी है।
कर्नाटक के 31 ज़िलों में सिमटी हैं 224 विधानसभा सीटें, इनमें से जिसे भी 113 सीटों पर कब्ज़ा मिल जाएगा, सरकार उसकी।
वोक्कालिगा समाज की 15 फीसदी के करीब आबादी है। मुख्यतः यह जनता दल (सेक्यूलर) के साथ जुड़ा हुआ है। हसन, तुमकूर, मांडया, मैसूर, चामराजनगर, चित्रदुर्गा आदि जिले वोक्कालिगा बहुल इलाके हैं। लिंगायत और वोक्कालिगा तकरीबन 140 विधानसभा सीटों पर पकड़ रखते हैं।
इन चुनावों में जो परेशान करने वाली बात नजर आई कि भाजपा और संघ दोनों इन जातियों के वर्चस्व को चुनौती देना चाहते हैं। इनमें सेंध लगाकर अपनी ब्रिगेड के नेताओं को प्रोमोट कर हैं। ये निश्चित तौर पर कन्नडिगा अस्मिता और गर्व के लिए खतरा है। दरअसल भाजपा की रणनीति है क्षेत्रीय क्षत्रपों -नेताओं को पूरी तरह ध्वस्त कर देना। ऐसा करके ही वे अपनी विचारधारा की सान पर कसे-नफ़रती बोल वाले नेताओं को प्रोमोट कर रहे हैं। इस बार ऐसे नेताओं को चुनाव भी लड़ाया गया।
दरअसल भाजपा की रणनीति कर्नाटक को नये ढंग की हिंदुत्व की प्रयोगशाला में तब्दील करने की तो है ही, जातीय और क्षेत्रीय अस्मिता व गर्व को कम करने की भी है। कन्नडिगा अस्मिता हर बार भाजपा को हिंदुत्व के भगवा रंग की चादर को सब भक्तों पर डालने में आड़े हाथ आती है। इसीलिए लिंगायत नेता येदियुरप्पा को cut to size करने के साथ-साथ कुरबा नेता इश्वरप्पा को नीचे बैठाने का कदम उठाया। वहीं ब्राह्मण नेता तेजस्वी सूर्या को चमकते सितारे के तौर पर उभारा गया। इसी कड़ी में बी.एल संतोष और प्रह्लाद जोशी को कर्नाटक की जिम्मेदारी सौंपने को भी देखा जा सकता है।
इस बारे में कन्नड के अहम रचनाकार देवानूरू महादेवा ने जो कहा, वह सटीक लगता है—
कर्नाटक में देश के संविधान और मनु-संविधान के बीच लड़ाई है। भाजपा कर्नाटक को तब तक पूरी तरह से अपने कब्जे में नहीं कर पाएगी, जब तक यहां ताकतवर क्षेत्रीय नेता हैं। इसलिए उनका खात्मा करके वह खतरनाक खेल, खेल रही है।
ये सारे सवाल, चुनावी समर से उपजे हैं। इनका हल कर्नाटक की जनता के पास ही है। कन्नडिगा गरिमा, बसवना की विरासत और हिंदुत्व के आक्रमक रूप में लड़ाई वैसे भी लंबी चलनी है।
(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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