सतत सुधार के लिए एक खाका पेश करती अंशुमान तिवारी और अनिंद्य सेनगुप्ता की किताब "उल्टी गिंनती"
आर्थिक खबरों के विश्लेषण के लिए हिंदी की दुनिया के जाने-माने पत्रकार अंशुमान तिवारी और सार्वजनिक नीति विश्लेषक अनिंद्य सेनगुप्ता द्वारा लिखित किताब "उल्टी गिनती" का दूसरा संस्करण अक्टूबर 2021 में प्रकाशित हुआ है। यह किताब अर्थ जगत में दिलचस्पी रखने वालें लोगों के लिए बहुत खास है। किताब 'मंदी और महामारी की दोहरी मार' से कैसे उभरेगा भारत? इस पर विभिन्न आयामों की परख करती है। और भारत के भविष्य के लिए आर्थिक सुधारों का एक मुखौटा पेश करने का प्रयास करती है। पुस्तक भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थायी और पुरानी दरारों को समझने और खोजने की कोशिश है, जो कोविड-19 की दो लहरों के बाद कहीं ज्यादा चौड़ी और घातक हो गई हैं। तो चलिए हम रुख़ करते हैं कि अंशुमान तिवारी और अनिंद्य सेनगुप्ता इस किताब के जरिए कोरोनाकाल और भारत के भविष्य की आर्थिक स्थिति को किस तरह देखते है।
वह किताब में जिक्र करते है कि भारत की मंदी 2020-21 को पूरी तरह एक मजबूर लॉकडाउन और ध्वस्त स्वास्थ्य व्यवस्था से निकला भले मान लिया गया हो, लेकिन हकीकत में भारतीय अर्थव्यवस्था की ढलान 2012 से प्रारंभ हो चुकी थी। 2018 आने तक भारत में श्रम बाजार में 1.2 करोड़ लोग हर साल रोजगार मांगते नजर आने लगे।
वहीं 2020 में कोविड-19 के असर से करीब 11 करोड़ लोग बेरोजगार हुए। जून 2021 में आए सर्वेक्षणों से पता चला कि ओला-उबर जो उस वक्त सबसे ज्यादा रोजगार लाए थे। उनकी करीब 35000 कैब कर्ज बकाए के कारण बैंकों और वित्तीय कंपनियों ने जब्त कर ली।
पुस्तक में आगे बताया गया कि अप्रैल 2021 में डन एंड ब्रैडस्ट्रीट ने एक सर्वे में पाया था कि करीब 82 फ़ीसदी छोटे उद्योगों का कामकाज चौपट हो गया और भारत में करीब 80 फ़ीसदी छोटी इकाइयां पूंजी की भयानक कमीं का शिकार हैं। मार्च 2020 से मार्च 2021 के बीच भारत में कुल रोजगारों में 54 लाख की कमीं आयी। नवंबर 2020 तक बेरोजगारी की 49 फीसदी मार महिलाओं पर पड़ चुकी थी और कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान अप्रैल 2021 में महिलाओं में बेरोजगारी पुरुषों के मुकाबले 3 गुना बढ़ गई थी।
मैकिंजी के मुताबिक भारत को 2022 से 2030 के दौरान कम से कम 10 करोड़ नई नौकरियों की जरूरत होगी। वहीं पुरुषों के मुकाबले यदि महिलाओं की बेरोजगारी को देखा जाए तो महिलाओं के लिए 2030 तक 15 करोड़ नई नौकरियों की जरूरत होगी।
किताब से आगे ज्ञात होता है कि भारत में ब्रिटिश युग अकाल और 1919 की महामारी के बाद कोरोना से तीसरी सबसे बड़ी तबाही हुयी, जिसमें मार्च 2020 से जून 2021 तक भारत में करीब 3. 80 लाख लोग मारे गए। 12 करोड़ लोगों के रोजगार छिने। तो वहीं 23 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे खिसक गए और 2020 के पलायन और लॉकडाउन ने 88 फीसदी परिवारों की आय तोड़ दी।
जून 2020 के एक सर्वे में पाया गया कि ज्यादातर कारोबारियों की आय में अप्रैल से जून 2020 के दौरान 80-90 फ़ीसदी से अधिक की कमी हुई।
भारत में 60 फ़ीसदी जीडीपी आम लोगों के खर्च पर आधारित है और लोगों का रोजगार छूटने की वजह से 2020-21 में अर्थव्यवस्था की विकास दर 7.5% रह गई। और लॉकडाउन से अर्थव्यवस्था को करीब 10 लाख करोड़ रुपए का घाटा हुआ।
देश की 600 बड़ी कंपनियां कुल राजस्व 500 मिलियन डॉलर से ज्यादा जीडीपी (महंगाई सहित)में 48 फीसदी, निर्यात में 40 फ़ीसदी और औपचारिक रोजगार में 20 फ़ीसदी हिस्सा रखती हैं और इनकी उत्पादकता दर पूरी अर्थव्यवस्था की तुलना में 11 गुना अधिक है।
भारत को एक दशक तक 9 करोड़ रोजगार का लक्ष्य पूरा करने के लिए 2030 तक ऐसी 1000 कंपनियों की जरूरत होगी। जिन्हें 2030 तक 2.4 ट्रिलियन डॉलर की नई पूंजी जुटानी होगी। और 9 करोड़ रोजगार के लक्ष्य के लिए अगले 10 साल तक जीडीपी के अनुपात में 37 फ़ीसदी की दर से सालाना निवेश चाहिए। जिससे 2023 से 2030 के बीच औसतन 8 से 9 फीसदी की सालाना विकास दर पर हर साल 1.2 करोड़ रोजगार तैयार हो सकें।
किताब में आगे जिक्र किया गया है कि भारत में लगभग 40 करोड़ लोग गरीब हैं, जिनके पास आपदाओं को झेलने लिए कोई ऐसी सुरक्षा नहीं जिससे वह मरने से बच पाए। जनगणना 2011 के मुताबिक करीब 50 करोड़ लोग या 55 फ़ीसदी ग्रामीणों के पास जमीन का एक टुकड़ा तक नहीं है। इंडिया रेटिंग्स के अध्ययन ने बताया कि खेती के कामों से गांव में मजदूरी दर 8.5 फीसदी (अप्रैल-अगस्त 2020) से घटकर 2.9 फीसदी (मार्च-नवंबर 2021) पर आ गई।
1950 के दशक के बाद पहली बार ऐसा हुआ जब प्रति व्यक्ति वार्षिक खर्च केवल 7 प्रतिशत (2013 और 2020 के बीच) की गति से बढ़ा जबकि कमाई में बढ़ोतरी 5.5 प्रतिशत रह गई।
आईएमएफ का एक अध्ययन बताता है कि युवा आबादी की वजह से प्रति व्यक्ति आय में अतिरिक्त बढ़ोतरी का सबसे अच्छा दशक 2011 से 2020 खत्म हो गया। इस दशक में देश की प्रति व्यक्ति आय 2.62 प्रतिशतांक बढ़ी, जो पिछले 20 सालों में सबसे ज्यादा थी। लेकिन 2020 से 30 के दशक में इसमें तेज गिरावट नजर आएगी।
अप्रैल-मई-जून 2021 में महंगाई ने नए तेवर दिखाए और सीएमआईई के अनुसार भारत में 96 फीसदी लोगों की आय में कमी आई। तो वहीं 2021 में पेट्रोल-डीजल की महंगाई में (मई और जून के बीच ) 22 बार मूल्य वृद्धि हुई।
किताब में स्वास्थ खर्च के बारे बताते हुए जिक्र किया गया कि कोविड-19 के इलाज पर लोगों ने 66000 करोड़ रुपए ज्यादा खर्च किए। वहीं विश्व बैंक का आंकड़ा कहता है कि भारत में स्वास्थ्य पर कुल खर्च में सरकार का हिस्सा केवल 27 फ़ीसदी है जबकि लोग अपनी जेब से करीब 73 फीसदी लागत उठाते हैं।
किताब के मुताबिक 2021 से 2031 के बीच भारत की कामगार आबादी हर साल 97 लाख लोगों की दर से बढ़ेगी जबकि अगले एक दशक में यह हर साल 42 लाख सालाना की दर से कम होने लगेगी। तो वहीं 2041 तक भारत की युवा आबादी का अनुपात अपने चरम पर पहुंच चुका होगा। क्योंकि कार्यशील आयु के 20 से 59 वर्ष वाले लोग आबादी के करीब 60 फ़ीसदी होंगे।
वहीं मैकिंजी की एक रिपोर्ट बताती है कि सरकारों को बैलेंस शीट संभालना सबसे ज्यादा मुश्किल होने वाला है। 2030 तक सरकारों के घाटे 30 ट्रिलियन डॉलर पहुंच जाएंगे। इसके लिए उन्हें संपत्तियां बेचनी होगी या टैक्स बढ़ाने होंगे।
2021 में दुनिया का सावरिन या पब्लिक डेट कर्ज, सकल विश्व उत्पाद का 96 फीसदी हो जायेगा। भारत में ही कर्ज जीडीपी अनुपात 2021 में 80 फ़ीसदी होने वाला है। और 2023 से ब्याज दर बढ़ेगी यानी भारतीय बाजार में सस्ती पूंजी के दिन पूरे हो रहे हैं कच्चे तेल की कीमतों ने जून 2021 की कीमतों में 10 साल का औसत तोड़कर 75 डॉलर की तरफ कदम बढ़ा दिया है।
यह किताब कोरोना और लॉकडाउन के मध्य जरूरतों से जूझते संघर्षशील गोविंद, खंडूजा और रोहन जैसे आदि लोगों के जीवन की सच्चाई भी बयां करती है जिनमें कोरोना से किसी ने अपना रोजगार खोया, नौकरी खोयी तो किसी ने परिवार खो दिया, तो कोई सांसों के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर तलाशता रह गया। और कोविड-19 की तबाही से इंसान न अपनों को बचा पाया और न सपनों को बचा पाया।
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