अर्जेंटीना के लोगों ने 'नी ऊना मेनोस' आंदोलन की पांचवीं वर्षगांठ मनाई
3 जून को अर्जेंटीना में नी ऊना मेनोस (एक महिला भी कम नहीं) आंदोलन के गठन की पांचवीं वर्षगांठ मनाई गई। इस अवसर पर हज़ारों महिलाओं और नॉन-बाइनरी लोगों ने देश में और साथ ही इस क्षेत्र में लिंग आधारित हिंसा को समाप्त करने की मांग के लिए वर्चुअल प्रदर्शन किया।
हज़ारों नागरिक, नारीवादी, एलजीबीटीक्यूआई एक्टिविस्ट, वामपंथी नेता, मानवाधिकार संगठन, सामाजिक आंदोलन और ट्रेड यूनियन इस वर्चुअल प्रदर्शन में शामिल हुए। लोगों ने फेसबुक, इंस्टाग्राम और ट्विटर पर संदेश साझा किया, महिलाओं और ट्रांसजेंडर के ख़िलाफ़ हिंसा को लेकर जागरूक किया जो पुरुषवाद के परिणामस्वरुप जन्मा था और उनके लिए समान सामाजिक-राजनीतिक अधिकारों की मांग की। सोशल मीडिया को नारीवादी रंगों अर्थात बैंगनी और हरे रंग से भर दिया गया था। ये रंग गरिमा, स्वतंत्रता और आशा का प्रदर्शित करते हैं। चिली और पेरू के एक्टिविस्ट ने भी इस वर्चुअल प्रदर्शन में हिस्सा लिया।
सोशल मीडिया #NiUnaMenos (#एक महिला भी कम नहीं), # 5AñosNiUnaMenos (# 5वर्ष एक महिला भी कम नहीं), #BastaDemicFidicidTravesticidios जैसे नारों से अटा पड़ा था।
नी ऊना मेनोस मूवमेंट ने ट्वीट में लिखा है, "पहली आवाज़ के पांच साल बाद हम फिर से कहते हैं कि एक महिला भी कम नहीं है। इस महामारी ने हमें जो कुछ भी सिखाया है तो वह यही है कि हम अपने आप में सशक्त हैं और नारीवादी नेटवर्क जिसे हमने बनाया है उसे बिखड़ने नहीं दे सकते।"
नारीवादी पत्रकारों, एक्टिविस्टों और कलाकारों के एक समूह द्वारा एक पहल के रूप में नी ऊना मेनोस आंदोलन 3 जून 2015 को प्रारंभ हुआ था। इन एक्टिविस्टों ने नारीवाद, बलात्कार और महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा के अन्य रूपों को रोकने की आवश्यकता महसूस की थी। भारी समर्थन के साथ ये आंदोलन तेजी से फैल गया और विभिन्न महिलाओं, एलजीबीटीक्यू और सामाजिक संघर्षों के लिए एक सामूहिक अभियान बन गया।
3 जून 2015 से 25 मई 2020 तक 'नाउ दैट दे सी अस' ऑब्जर्वेटरी द्वारा एकत्र आंकड़ों के अनुसार, पूरे देश में 1,450 महिलाओं की हत्याएं हुईं। दूसरे शब्दों में कहें तो अर्जेंटीना में हर 30 घंटे में एक महिला की मौत हुई। आंकड़ों से यह भी पता चला है कि मारी गई महिलाओं में से 45% की हत्या उनके पार्टनर ने की, 31% महिलाओं की हत्या उनके एक्स पार्टनर ने की और 15% की हत्या उनके परिवार के सदस्यों ने की। इन आंकड़ों से यह भी पता चला कि इन हत्याओं में से 64% मामले पीड़ित के घर में ही अंजाम दिए गए, 25% सार्वजनिक स्थानों पर और 3% मामलों को हमलावर के घर पर ही अंजाम दिया गया।
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