BCCI ने किया महिला क्रिकेटर्स के लिए समान मैच फ़ीस का ऐलान, लेकिन बराबरी अभी भी दूर क्यों है?
भारत में जहां महिला क्रिकेट को राष्ट्रीय चैनलों पर भी प्रसारण तक के लिए संघर्ष करना पड़ता है, वहीं अब भारतीय महिला क्रिकेटर्स को पुरुष क्रिकेटर्स के बराबर मैच फ़ीस मिलने की घोषणा अपने आप में ऐतिहासिक कदम है। बीसीसीआई ने अपनी इस पहल को 'भेदभाव दूर करने के लिए उठाया गया पहला क़दम' बताया है। हालांकि अभी भी इस बराबरी की जंग में महिला क्रिकेट टीम को एक लंबा रास्ता तय करना है, लेकिन फिलहाल के लिए ये शुरुआत स्वागत योग्य जरूर है।
बता दें कि बीसीसीआई सचिव जय शाह अपने ट्वीट में जिस समान वेतन की बात की है, वो केवल उन महिला क्रिकेटरों तक ही सीमित है, जिनके साथ बोर्ड सालाना अनुबंध करता है। और बात अगर अनुबंधों की करें तो पुरुषों की तुलना में बहुत कम महिला क्रिकेटर्स ही फ़िलहाल अनुबंध के दायरे में हैं। इसके अलावा पूरे वर्ष के दौरान पुरुषों की तुलना में महिलाओं के मैचों की संख्या भी कहीं कम होती है। जिसके चलते महिला क्रिकेटर्स इस बराबरी की घोषणा के बावजूद अपने पुरुष समकक्षों से कहीं कम पाएंगी।
क्रिकेट में फिलहाल महिलाओं की क्या स्थिति है?
बीते कुछ सालों में महिला क्रिकेट ने किछ लाइम लाइट जरूर हासिल की है। पूर्व कप्तान मिथाली राज पर फिल्म बन गई तो वहीं धैरदार गेंदबाज झूलन गोस्वामी की बॉयोपिक जल्द ही लोगों के सामने होगी। जाहिर है इन सालों में महिला क्रिकेट ने बहुत तरक्की की है, खिलाड़ियों ने अपनी मेहनत से मीडिया और बोर्ड का ध्यान अपनी ओर खींचा है। जिसके चलते बीसीसीआई ने अभी बीते हफ़्ते ही अगले क्रिकेट सत्र से महिला इंडियन प्रीमियर लीग (डब्ल्यूआईपीएल) के आयोजन का ऐलान भी किया है। बेशक ये फ़र्क धीरे-धीरे सिमट रहा है, लेकिन पुरुषों के मुक़ाबले टी20 और वनडे वर्ल्ड कप जैसे टूर्नामेंट में अभी भी बहुत फ़र्क है।
प्राप्त जानकारी के मुताबिक फ़िलहाल, रिटेनर ग्रुप में शामिल महिला क्रिकेटर्स को 50 लाख रुपये मिलते हैं। वहीं ग्रेड 'बी' के खिलाड़ियों को 30 लाख रुपये जबकि ग्रेड 'सी' के प्लेयर्स को 10 लाख रुपये मिलते हैं। वहीं अगर पुरुष क्रिकेटर्स को देखें तो, उन्हें चार वर्गों में रखा जाता है, ग्रेड ए+ के खिलाड़ियों को 7 करोड़ रुपये, ग्रेड 'ए', 'बी', 'सी' के क्रिकेटर्स को क्रमशः पांच करोड़, तीन करोड़ और एक करोड़ रुपये दिए जाते हैं। फ़िलहल ग्रेड 'ए+' में तीन पुरुष खिलाड़ी हैं जबकि ग्रेड 'ए' में 10. वहीं ग्रेड 'ए' में केवल छह महिला खिलाड़ी हैं।
मालूम हो कि बीसीसीआई के समान मैच फ़ीस देने के ऐलान से पहले तक महिला क्रिकेटर्स को अंतरराष्ट्रीय वनडे/टी20 मैच के लिए एक लाख रुपये जबकि प्रति टेस्ट मैच चार लाख रुपये मिलते रहे हैं। लेकिन इस ऐलान के बाद अब उन्हें पुरुष क्रिकेटर्स के बराबर प्रति टेस्ट मैच 15 लाख रुपये, अंतरराष्ट्रीय वनडे के लिए 6 लाख रुपये और टी20 के लिए 3 लाख रुपये मिला करेंगे। यानी महिला क्रिकेटर्स की फ़ीस में बहुत बड़ी राशि का इज़ाफ़ा हुआ है।
फैसले का स्वागत और सवाल
पे-इक्विटी पॉलिसी के ऐतिहासिक फैसले का पूर्व और मौजूदा महिला क्रिकेटरों ने ज़ोरदार स्वागत किया है। पूर्व कप्तान मिताली राज ने ट्विटर पर अपनी ख़ुशी का इज़हार करते हुए ट्वीट किया, "भारत में महिला क्रिकेट के लिए यह एक ऐतिहासिक फ़ैसला है। मैच फ़ीस में बराबरी के साथ ही अगले साल से महिलाओं के लिए आईपीएल, हम भारत में महिला क्रिकेट के एक नए दौर में प्रवेश कर रहे हैं। शुक्रिया जय शाह और बीसीसीआई। इसे सच करने के लिए। मैं आज वाक़ई बहुत ख़ुश हूं।"
This is a historic decision for women’s cricket in India! The pay equity policy along with the WIPL next year, we are ushering into a new era for women's cricket in India. Thank you @JayShah Sir & the @BCCI for making this happen. Really happy today. https://t.co/xOwWAwsxfz
— Mithali Raj (@M_Raj03) October 27, 2022
इस साल महिला क्रिकेट वर्ल्ड कप में भारतीय टीम का हिस्सा रहीं यास्तिका भाटिया ने भी ट्विटर पर अपना आभार प्रकट किया। उन्होंने इस फैसले के लिए जय शाह और बीसीसीआई को धन्यवाद कहा।
Thanks jay sir and bcci 🙏🏻
— Yastika Bhatia (@YastikaBhatia) October 27, 2022
भारतीय महिला क्रिकेट टीम का शानदार प्रदर्शन
गौरतलब है कि पिछले कुछ समय में भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने शानदार प्रदर्शन किया है। टी20 वर्ल्ड कप 2020 में फाइनल्स तक पहुंचने के साथ-साथ 2022 एशिया कप जीतने और इनॉगरल कॉमनवेल्थ गेम्स में सिल्वर मेडल जीतने तक भारतीय महिला क्रिकेट टीम अपने नाम कई खिताब कर चुकी है।हालांकि इसके बावजूदउनकी जीत का जश्न कॉमन मीडिया से दूर रहता है, उनके मैचों के प्रसारण तक को देखने के लिए संघर्ष करना पड़ता है।
हालांकि बीसीसीआई ने बीते कुछ सालों में महिला क्रिकेटरों के लिए कई उपाय किए हैं जैसे कि पूर्व महिला खिलाड़ियों को पुरुष खिलाड़ियों की तरह ही एक मुश्त भत्ता, टेस्ट खिलाड़ियों को पेंशन और ट्रैवल के साथ ही ठहरने के लिए समान सुविधाएं। लेकिन महिलाओं के लिए समान अनुबंध पाने की दिशा में अभी बहुत किए जाने की ज़रूरत है। पुरुष क्रिकेटर्स की तरह ही महिला क्रिकेटरों की ब्रैंड वैल्यू भी बढ़ानी होगी, जिससे अधिक से अधिक स्पॉन्सर्स उन्हें सपोर्ट कर सकें।
एक रिपोर्ट के मुताबकि 2020 में बीबीसी की एक शोध में पाया गया कि जब इनामी राशि की बात आती है तो बड़ी संख्या में (85%) भारतीयों का मानना है कि पुरुषों और महिलाओं को एक समान वेतन मिलने चाहिए। इसे देश में महिला खिलाड़ियों के लिए अच्छे संकेत के तौर पर देखा जा सकता है। हाल्ंकि ये हाल सिर्फ भारत और क्रिकेट के संदर्भ में नहीं है बल्कि अन्य खेलों की भी तस्वीर यही है।
शायद आपको याद होगा कि एक समान वेतन को लेकर साल 2016 में अमेरिकी महिला फ़ुटबॉलर होप सोलो अमेरिकी फ़ुटबॉल संघ के ख़िलाफ़ कोर्ट गई थीं। इस मुक़दमे मे पूरे फ़ुटबॉल जगत को हिला कर रख दिया था। उस साल अमेरिकी पुरुष टीम के वर्ल्ड कप राउंड-16 में पहुंचने में नाकाम रहने के बावजूद उसे उस महिला फ़ुटबॉल टीम से 7 मिलियन डॉलर (क़रीब 58 करोड़ रुपये) अधिक मिले थे जिसने 2014 में देश के लिए महिलाओं का वर्ल्ड कप जीता था। इस विवाद को सुलझाने के लिए अमेरिकी फ़ुटबॉल संघ ने पुरुष और महिला राष्ट्रीय टीमों को एक समान अनुबंध देने की पेशकश की थी।
इससे पहले 70 के दशक में टेनिस में बराबरी के लिए आवाज़ उठाने वाली बिली जीन किंग की कोशिशों की बदौलत अमेरिकी ओपन टूर्नामेंट में महिलाओं को पुरुषों के समान इनामी राशि दी गई और अंततः सभी चार ग्रैंड स्लैम्स के दोनों वर्गों में महिलाओं और पुरुषों को एक समान इनामी राशि दी जाने लगी।
जाहिर है समानता के लिहाज़ से बीसीसीआई का कदम काबिले तारीफ है। महिला क्रिकेटरों को उनका हक़ बहुत पहले ही मिल जाना चाहिए था, लेकिन अब भी कहा जा सकता है कि देर आए-दुरुस्त आए। हालांकि रास्ता अभी भी महिला क्रिकेट के लिए आसान नहीं है, बावजूद इसके अब उम्मीद की किरण जरूर सामने है, जो बराबरी की चमक बिखेरती है।
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