बीएचयू का सर सुंदरलाल अस्पताल सवालों के घेरे में, मुश्किल में दिल के मरीज़, खाली पड़े बेड का मुद्दा गरमाया
पूर्वांचल के एम्स का दर्जा हासिल करने वाले काशी हिंदू विश्वविद्यालय के चिकित्सा विज्ञान संस्थान के सर सुंदरलाल अस्पताल में भ्रष्टाचार और अहम-नियम की लड़ाई तेज हो गई है। यहां दिल के मरीजों की सुविधाओं को लेकर हृदय रोग विभाग के अध्यक्ष प्रो. ओमशंकर ने चिकित्सा अधीक्षक प्रो. केके गुप्ता के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। बीएचयू के नवनिर्मित सुपर स्पेशियलिटी ब्लॉक में सीसीयू, कार्डियो वार्ड में दिल के मरीजों को सुविधाएं न मिलने पर प्रो. ओमशंकर ने पीएमओ, स्वास्थ्य मंत्रालय तक से चिकित्सा अधीक्षक के मनमानी की शिकायत की है।
मौजूदा समय में बीएचयू में हृदय रोगियों के लिए 45 बेड हैं। इन रोगियों के सस्ते इलाज के लिए प्रो. ओमशंकर सुपरस्पेशियलिटी ब्लॉक में 41 और बेड की डिमांड कर रहे हैं। इस तरह वह 86 बेड चाहते हैं।
वह न्यूज़क्लिक से कहते हैं, "भारत में जितनी तेजी से आबादी बढ़ रही है, उससे तेज रफ्तार से हृदय रोगी बढ़ रहे हैं। मौजूदा समय में हृदय रोग अब किलर नंबर-1 बन गया है। भारत में कोरोना के दौरान दो सालों में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक करीब 5 लाख से ज़्यादा लोगों की मौतें हुईं। इस महामारी से दुनिया भर में जब 65 लाख लोगों की जानें गईं तो भूचाल आ गया, लेकिन भारत में हर साल 60 से 65 लाख लोग हृदय रोग से मर रहे हैं, जिसकी न कहीं चर्चा हो रही है, न ही कोई चिंतित नजर आ रहा है।"
"आंकड़ों को देखें तो भारत में कोरोना के मुकाबले हृदय रोगों से मरने वालों की तादाद बीस गुना ज्यादा है। हृदय रोग से जान गंवाने वालों में आधे से अधिक लोग 50 साल से कम उम्र के होते हैं। हार्ट अटैक से पीड़ित लोगों में एक तिहाई आबादी ऐसी है जिनकी उम्र 40 साल से कम है। एक दशक पहले बीएचयू की ओपीडी में रोजाना सिर्फ 50 मरीज आते थे और इस समय 350 मरीज आ रहे हैं। हृदय रोग विभाग के लिए पहले से आवंटित 45 बेड को घटाकर 41 करने के लिए दबाव बनाया जा रहा है। यह स्थिति तब है जब दिल की बीमारी खौफनाक ढंग से अपना शिकंजा कसती जा रही है।"
दरअसल, चिकित्सा अधीक्षक (एमएस) प्रो. केके गुप्ता और प्रो. ओमशंकर के बीच विवाद ने तब तूल पकड़ा जब सुपरस्पेशियलिटी ब्लॉक में हृदय रोगियों के लिए बनाए गए 41 बेड को डिजिटल लॉक कर दिया गया। इसके चलते दोनों के बीच रार बढ़ गई। प्रो. ओमशंकर का आरोप है कि कई बार पत्र देने के बावजूद प्रो. गुप्ता हृदय रोगियों के बेड पर लॉक लगाए हुए हैं। अस्पताल चिकित्सा अधीक्षक के आदेश से नहीं, बल्कि नियम से चलता है।
बीएचयू के चिकित्सा विज्ञान संस्थान के सर सुंदरलाल अस्पताल में सुपर स्पेश्यालिटी शताब्दी भवन है। इसी के पांचवें फ्लोर पर हृदय रोग विभाग को शिफ्ट किया गया है। इसी ब्लॉक में हृदय रोग विभाग का कैथ लैब, सीसीयू, कार्डियो वार्ड है। वार्ड बनने के बाद से यहां कैथ लैब और दूसरे वार्डों का ताला नहीं खुल पाया तो प्रो. ओमशंकर ने जून 2022 में प्रो. गुप्ता के सामने सवाल खड़ा किया। काफी जद्दोजहद के बाद कैथ लैब का ताला खुल पाया। कैथ लैब तो सुपर स्पेशियलिटी विभाग में चल रहा है, लेकिन स्टाफ की अनुपलब्धता और हॉस्पिटल इनफार्मेशन सिस्टम में सीसीयू के बेड न दिखने की वजह से यहां मरीज भर्ती नहीं हो पा रहे हैं।
बनारस के जाने-माने कार्डियोलाजिस्ट प्रो. ओमशंकर ने चिकित्सा अधीक्षक प्रो. केके गुप्ता के खिलाफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रपति और स्वास्थ्य मंत्रालय से शिकायत की है। साथ ही उन पर भ्रष्टाचार के कई संगीन आरोप भी लगाए हैं।
शिकायती-पत्र में उन्होंने कहा है, "सर सुंदरलाल हास्पिटल में हर रोज 41 हृदय रोगियों को भर्ती करने और इलाज करने से रोका जा रहा है। नए बेड पर एडमिशन नहीं किए जा रहे हैं। हृदय रोग विभाग के सेवा विस्तार के लिए सुपर स्पेशियलिटी ब्लाक बनाया गया था, मगर यहां तो मरीजों को ही बेड नहीं दिया जा रहा। बेड न मिलने से हृदय रोगियों की जान खतरे में है।"
इलाज के इंतज़ार में मरीज़ और उनके तीमारदार
ज़्यादा बेड मिले हैं- प्रो. केके गुप्ता
प्रोफेसर ओमशंकर के आरोपों पर चिकित्सा अधीक्षक प्रो. केके गुप्ता मीडिया से कहते हैं, "नेशनल मेडिकल काउंसिल (एनएमसी) की गाइडलाइन के मुताबिक हृदय रोग विभाग को पहले से ही अधिक बेड दिए गए हैं। एनएमसी की गाइडलाइन के अनुसार जनरल मेडिसीन विभाग के पास पर्याप्त बेड नहीं है। हृदय रोग विभागाध्यक्ष को कैथ लैब, सीसीयू, कार्डियो वार्ड को सुपरस्पेशियलिटी ब्लॉक में स्थानांतरित करने के लिए पहले ही 16 अप्रैल, 28 अप्रैल, 16 जून, 27 जून 2022 को प्रशासनिक आदेश जारी किया गया। कई अनुस्मारक पत्र भेजे गए, नर्सों, सहायक स्टाफ, जरूरी उपकरण भी ले जाने को कहा गया। इसके बाद भी विभागाध्यक्ष प्रो. ओमशंकर ने सीसीयू, वार्ड को शिफ्ट नहीं किया।"
प्रो. गुप्ता यह भी कहते हैं, "सभी विभागों को उपयुक्त संख्या में बेड की व्यवस्था की गई है। हृदय रोग विभाग को शताब्दी भवन के पांचवें तल पर शिफ्ट होना है। उससे पहले पुरानी बिल्डिंग में मौजूदा जगह छोड़ने होंगे। वहां पर कायाकल्प के तहत नए निर्माण होने हैं।पुराने वार्डों को खाली न किए जाने की वजह सेकार्डियो वार्ड, सीसीयू में नवीनीकरण, सुदृढ़ीकरण का कार्य नहीं हो पा रहा है। इसकी सूचना बीएचयू प्रशासन को दी जा चुकी है।"
प्रो. केके गुप्ता के आरोपों को हृदय रोग विभाग के अध्यक्ष प्रो. ओमशंकर सिरे से खारिज करते हैं। वह कहते हैं, "एनएमसी की गाइडलाइन के अनुसार यदि आपके इंस्टीट्यूट में हर साल 100 एमबीबीएस स्टूडेंट का दाखिला हो रहा है, तो इस आधार पर वहां के जनरल मेडिसिन में 100 बेड होने चाहिए। बीएचयू में इस समय जनरल मेडिसीन के पास 106 बेड हैं। चिकित्सा अधीक्षक मनमानी पर उतारू हैं। वह अवैध तरीके से हृदय रोग विभाग के बेड पर कब्जा करना चाहते हैं। प्रो. गुप्ता को यह अधिकार नहीं है कि वह जिसको जहां चाहे, भेज दें। दोनों भवनों के बीच काफी दूरी है। बीएचयू अस्पताल, सुपरस्पेशियलिटी ब्लॉक दोनों जगह हृदय रोग विभाग को आवंटित हैं। हमारी मांग है कि पांचवें तल के साथ ही पुरानी बिल्डिंग में जो पहले से एलोकेटेड वार्ड हैं, वहां के बेड भी दिए जाएं। जनरल सर्जरी और मेडिसिन को जरूरत से ज्यादा बेड दे दिया गया है।"
प्रो. ओमशंकर कई गंभीर सवाल खड़ा करते हुए कहते हैं, "पीएम नरेंद्र मोदी बीएचयू में दूसरा एम्स बनाना चाहते हैं तो चिकित्सा अधीक्षक प्रो. गुप्ता मनमानी पर क्यों उतारू हैं? आखिरकार, बीएचयू को एम्स की तर्ज पर क्यों नहीं चलाया जा रहा है? नई दिल्ली के एम्स में जनरल मेडिसिन के लिए 54 बेड हैं, जबकि हृदय रोगियों के लिए दो सौ बेड दिए गए हैं। हमारे पास पुराने बिल्डिंग में 45 और नए में 41 बेड हैं। जब पूरे 86 बेड हो जाएंगे तभी हृदय रोग विभाग विकास हो सकेगा। प्रो. गुप्ता पर भ्रष्टचार के आरोप हैं। ब्लड बैंक में इनका भ्रष्टाचार जगजाहिर हो चुका है। नर्सिंग स्टाफ तक ने इनकी बदसलूकी की शिकायतें उच्चाधिकारियों तक से की है। मेरा कहना है कि बेड घटाने से किसी विभाग का विकास नहीं होता।"
डॉ. ओमशंकर
एम्स के लिए तीन बार अनशन
बीएचयू में प्रोफेसर ओमशंकर ऐसे शख्स हैं जो काशी हिंदू विश्वविद्यालय के चिकित्सा विज्ञान संस्थान को एम्स का दर्जा देने के लिए तीन मर्तबा आमरण अनशन कर चुके हैं। अपने अनूठे आंदोलन और ईमानदारी की अलख जगाने की वजह से उन्हें 14 महीने तक निलंबन का दंश भी झेलना पड़ा। इनकी मुहिम का नतीजा था कि बीएचयू में चिकित्सकीय सुविधाओं के विस्तार के लिए सरकार ने एक हजार करोड़ रुपये की मंजूरी दी। मरीजों के लिए जब सुविधाओं के विस्तार का वक्त आया तो आरोप है कि हृदय रोग विभाग की अनदेखी की जाने लगी। हृदय रोग विभाग के 41 बेडों पर चिकित्सा अधीक्षक प्रो. केके गुप्ता नौ महीने से डिजिटल लाक लगाए हुए हैं। इस वजह से नौ महीने में 12 हजार से ज्यादा मरीज लौट चुके हैं।
प्रो. ओमशंकर कहते हैं, "जिन हृदय रोगियों को लौटाया गया वो किस हाल में हों समझा जा सकता है? वो या तो मौत के मुंह में समा गए होंगे (जिनकी जानें बचाई जा सकती थीं) अथवा अपना इलाज निजी अस्पतालों में कराने के बाद कंगाली व भुखमरी के दौर से गुजर रहे होंगे। चिकित्सा अधीक्षक प्रो. केके गुप्ता को हमने कई मर्तबा पत्र लिखा। कुलपति एसके जैन को भी तीन चिट्ठियां भेजी और मिलने के लिए कई बार समय भी मांगा। कुलपति न जाने किन कारणों से प्रो. गुप्ता का बचाव कर रहे हैं। "
"हृदय रोगियों की मौतें हो रही हैं तो इस अपराध के लिए सिर्फ अकले प्रो. गुप्ता ही नहीं, कुलपति भी दोषी हैं।"
धन ख़र्च हुआ, पर सुविधाएं नदारद
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 16 फरवरी 2022 को बीएचयू के शताब्दी सुपर स्पेशियलिटी ब्लाक का लोकार्पण किया था। उस समय अपनी उपलब्धियों का बखान करते हुए कहा था, "बीएचयू के सर सुंदरलाल अस्पताल में कुछ वर्षों में सुविधाएं लगभग दोगुनी हो गई हैं। यहां का हृदय रोग विभाग प्रदेश में सबसे अधिक सुविधाओं वाला विभाग बन गया है।" उस समय बीएचयू के मेडिकल प्रशासन ने भी दावा किया था कि बीएचयू के अस्पताल में पहले सिर्फ 40 बेड ही थे, जो बढ़कर अब 95 बेड हो गए हैं। यही नहीं यहां की कैथ लैब व एंजियोप्लास्टी की सुविधाएं भी उच्चीकृत हो गई है। पहले बेड के अभाव में कई मरीज भर्ती नहीं हो पाते था, लेकिन यह समस्या भी अब दूर हो जाएगी।
शताब्दी सुपर स्पेशियलिटी ब्लाक के लोकार्पण के बाद बनारस के लोगों में उम्मीद जगी थी कि उच्चीकृत कैथ लैब से एन्जियोग्राफी, काम्पलेक्स एन्जियोप्लास्टी इपी-आरएफए समेत कई सुविधाएं मिलने लगेंगी। आधुनिक कैथ लैब की सुविधा मिलने से दिल के सुराख को बंद करने के आपरेशन भी किए जा सकेंगे। शताब्दी सुपर स्पेशियलिटी ब्लाक के पंचम तल पर अत्याधुनिक आपरेशन थिएटर, प्री आपरेटिव वार्ड, अडल्ट आईसीयू, नीकू, पोस्ट आपरेटिव वार्ड, डाक्टर्स, नर्सेज, रेजिडेंट, एनेस्थेटिस्ट, ओटी स्टोर रूम, सीसीयू, पेसेंट वेटिंग एरिया, कैथ लैब एक से पांच, प्री कैथ, रिकवरी, डाक्टर्स, टेक्निशियन, स्टोर, नर्सेज, रेजिडेंट ड्यूटी रूम, थाइरोसिस आइसीयू, डे केयर, रिसर्च लैब, कंसलटेंट, रिसर्च, एचओडी, सेंट्रल कंट्रोल रूम, लाइब्रेरी व माइनर ओटी की व्यवस्था है।
बीएचयू के प्रोफेसरों के बीच विवाद खड़ा होने से सुपरस्पेशियलिटी ब्लॉक में बने सीसीयू में मरीजों को भर्ती का पूरा लाभ नहीं मिल पा रहा है और दिल के मरीजों को बिना इलाज ही लौटाया जा रहा है। प्रो. ओमशंकर कहते हैं, "इस मामले को लेकर हमने बीएचयू के कुलपति, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री सहित तमाम लोगों को शिकायती-पत्र भेजा, लेकिन कार्रवाई की कौन कहे, जांच तक नहीं की गई। शिकायती-पत्रों पर किसी का जवाब तक नहीं आया। यह स्थिति बेहद निराशाजनक है। ऐसे में शासन-प्रशासन से कोई कैसे उम्मीद करे कि उनके साथ कोई नाइंसाफी या मनमानी होती है तो उनकी बात सुनी जाएगी या नहीं? इस मुद्दे पर हमने आर-पार की लड़ाई का फैसला किया है। अगर हमारी बातों को गंभीरता से नहीं लिया गया तो विरोध और कड़ा होगा।"
प्रो. ओमशंकर ने सोशल मीडिया पर भी लिखा है कि अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक प्रो. केके गुप्ता कई महीनों से हृदय रोग विभाग के 41 बेडों पर मरीजों की भर्ती रोके हुए हैं। हर रोज हृदय रोगियों की मौतें हो रही हैं और उन्हें कोई चिंता नहीं है।
और भी हैं आरोप
प्रोफेसर ओमशंकर कहते हैं, "बीएचयू में स्थित जिस अमृत फार्मेसी का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था, वह हृदय रोग विभाग के ऑपरेशन थिएटर में स्थित है। यह फार्मेसी विगत छह सालों से अवैध तरीके से संचालित की जा रही है। इस दुकान को खोलने के लिए न तो तत्कालीन विभागाध्यक्ष की अनुमति ली गई है, न दुकान संचालक के पास ड्रग लाइसेंस हैं। अमृत फार्मेंसी के लिए भूतल पर एक जगह निश्चित की गई है और उसी का लाइसेंस भी है। इसके विपरीत फार्मेसी संचालक, एक लाइसेंस पर कई आउटलेट्स बनाते जा रहे हैं। ये सभी अवैध हैं और उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। यहां मरीजों के तीमारदारों को दवा खरीद की पक्की रसीद भी नहीं दी जाती है, जो यह साबित करता है कि यह एक अवैध आउटलेट है।"
विभागाध्यक्ष की नोटिस के जवाब में अमृत फार्मेसी के प्रभारी का कहना है कि हमारा आउटलेट 2016 से ही कैथलैब के पास स्टंट और गुब्बारों की बिक्री कर रहा है। यह सुविधा यहां इसलिए दी गई क्योंकि कोई अनाधिकृत दुकानदार अपनी दुकानदारी न चला सके। बीएचयू और फार्मेसी के बीच करार हुआ है। उस करारनामे के तहत सभी दुकानें वैध हैं।
इसके जवाब में प्रो. ओमशंकर कहते हैं, "चिकित्सा अधीक्षक की अनुमति से अस्पताल में कहीं भी दुकान नहीं चला सकते हैं। यदि वह जगह किसी विभाग के अधिकार क्षेत्र में है तो आपको विभागाध्यक्ष की संस्तुति लेनी ही होगी। लेकिन फार्मेसी संचालक या प्रभारी की ओर से ऐसी कोई कार्रवाई पिछले छह साल से नहीं की गई है।"
वह आरोप लगाते हैं कि "बीएचयू में आने वाले मरीजों की भलाई के लिए अमृत फार्मेसी को साल 2016 में शुरू किया था, लेकिन यह कमाई और दलाली का अड्डा बन गया है। दिल में पड़ने वाला जो स्टंट और गुब्बारा अमृत फार्मेसी में जिस दाम में मिल रहा है, उसे बीएचयू आधे दाम पर ही उपलब्ध करा सकता है। हमारा ध्येय रोगियों की बाईपास सर्जरी अथवा एंजियोप्लास्टी जैसे ऑपरेशन 30 से 35 हजार रुपये के भीतर कराने का है, ताकि गरीब मरीजों का आसानी से इलाज हो सके। मौजूदा अस्पताल प्रशासन ऐसा करने में अड़गा लगा रहा है।"
"अमृत फार्मेसी, कंपनी से दवा लेकर उस पर दो बार हैंडलिंग चार्ज लगाकर मरीजों के परिजनों को ऊंची कीमत पर पर बेचती है। इस वजह से दवाएं महंगी होती जा रहीं हैं। बीएचयू अथवा कार्डियोलॉजी विभाग की खुद की फार्मेसी होनी चाहिए ताकि मरीजों को किफायदी दर पर वाजिब दवा मिल सके। अमृत फार्मेसी के अवैध आउटलेट को हटाने के लिए हमने कई चिट्ठियां लिखी है, लेकिन चिकित्सा अधीक्षक केके गुप्ता और कुछ डाक्टर अपने निहित स्वार्थों के लिए इसे जबरिया चलवा रहे हैं। इस फार्मेसी के हटने के बाद विभाग में एंजियोप्लास्टी में होने वाले खर्च में एक-तिहाई की कमी हो सकती है।"
बीएचयू के स्टूडेंट्स लीडर रहे पीके श्रीवास्तव कहते हैं, "प्रोफेसर ओमशंकर ने जो सवाल उठाए हैं वह गंभीर मसला है। बीएचयू के अस्पताल में जिन खामियों और अव्यवस्थाओं की ओर उन्होंने इशारा किया है वह निश्चित तौर पर तथ्यपूर्ण होंगे। सरकार और विश्वविद्यालय प्रशासन को इस पर फौरन ध्यान देने की जरूरत है। पूर्वांचल और पश्चिमी बिहार के लोगों के लिए यह आयुर्विज्ञान संस्थान बहुत उम्मीदों से भरा चिकित्सालय है। बड़ी संख्या में मरीज, खासकर वो जो निजी अस्पतालों में अपना इलाज करा पाने में सक्षम नहीं होते हैं वो इसी अस्पताल की तरफ रुख करते हैं। बेड खाली होने के बावजूद बेड न दिया जाना एक गंभीर और संज्ञेय अपराध है।"
"बीएचयू के ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को देखें तो इसके संस्थापक मदन महन मालवीय ने इस मेडिकल कालेज की स्थापना इस मकसद से की थी कि चिकित्सा शिक्षा के साथ ही यहां पूर्वांचल और पश्चिमी बिहार के गरीब-गुरबों की जिंदगी आसानी से बचाई जा सकेगी। अपनी इस परिकल्पना के तहत ही उन्होंने देश भर से योग्य चिकित्सकों की नियुक्ति कराई थी। लंबे अरसे तक यह मेडिकल कालेज उनके सपनों को साकार करता रहा। पहले गंभीर रोगी यहां इलाज के लिए आते थे और चंगा होकर जाते थे। करीब तीन दशकों से इस बीएचयू के सर सुंदरलाल अस्पताल में मरीजों के चिकित्सा की सुविधा कौन कहे, उनके सामने मुसीबतों का पहाड़ खड़ा किया जा रहा है। इसके खिलाफ अक्सर आमजनों के बीच से आवाज उठती रही है, लेकिन पहला मौका है जब अस्पताल एक जाना-माना चिकित्सक पूरी हिम्मत और हौसले के साथ खुलकर बोल रहा है।"
श्रीवास्तव कहते हैं, "हैरत इस बात की है कि काशी हिंदू विश्वविद्यालय स्थित चिकित्सा विज्ञान संस्थान के सर सुंदरलाल अस्पताल को एम्स का दर्जा हासिल है, लेकिन सरकार और यहां का चिकित्सकीय प्रशासन इस कदर असंवेदनशील है कि इलाज के नाम पर दुर्व्यवस्था, भ्रष्टाचार, बेईमानी की तरफ से न सिर्फ आंखें मूदे हैं, बल्कि उसमें भागीदार बन गए हैं। पूर्वांचल के जाने-माने चिकित्सक डा. ओमशंकर की आवाज नक्कारखाने में तूती बनकर रह जा रही है। जरूरत इस बात की है कि टैक्स पेयर के पैसे चल रहे इस संस्थान की ओवरहालिंग की जाए और बेईमान लोगों हटाया जाए। तभी महामना का मकसद और सपना पूरा होगा।"
(बनारस स्थित लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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