दो टूक: बांग्लादेशी हिन्दुओं के लिए आंसू बहाने वालों से कुछ सवाल
निश्चित ही किसी देश-समाज में किसी भी नागरिक पर हमले की निंदा की जानी चाहिए। अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की गारंटी तो सबकी ही पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। लेकिन एक जगह के अल्पसंख्यकों का रोना रोकर दूसरी जगह के अल्पसंख्यकों को निशाने पर नहीं लेना चाहिए।
लेकिन ऐसा ही हो रहा है
बांग्लादेशी हिन्दुओं पर हमले की सच्ची-झूठी और मिसलीडिंग ख़बरें दिखाकर भारत में तथाकथित मुख्यधारा का मीडिया और सत्तारूढ़ भाजपा के नेता और कार्यकर्ता और अन्य हिन्दुत्ववादी जिस तरह का नैरेटिव गढ़ने की कोशिश कर रहे हैं, उसका मकसद साफ़ है। वो है भारत के मुसलमानों को निशाने पर लेने का एक और मौक़ा तलाश करना।
बांग्लादेश में हिन्दू महिला के साथ रेप की घटना बताकर एक वीडियो के स्क्रीनशॉट्स शेयर किये जा रहे हैं. कहा जा रहा है कि ऐसा करने वाले मुसलमान हैं. जबकि ये वीडियो 2021 का है और ये घटना बेंगलुरु में हुई थी. मामले में कोई सांप्रदायिक ऐंगल नहीं था. | @Oishanib_https://t.co/LGTGXnSdxm
— Mohammed Zubair (@zoo_bear) August 6, 2024
इस बारे में कुछ तथ्य साफ़ कर लेने चाहिए–
बांग्लादेश में तख़्तापलट या बग़ावत के बाद जिस तरह के हमले हो रहे हैं वो हिंदू-मुसलमानों सब पर हो रहे हैं।
ख़ासतौर से उन लोगों पर जो वहां अवामी लीग से जुड़े रहे। वो अवामी लीग जो वहां की सत्तारूढ़ पार्टी थी और जिसकी नेता शेख़ हसीना थीं, जिनके ख़िलाफ़ ये पूरी बग़ावत हुई और जिन्हें देश छोड़कर भागना पड़ा और भारत में शरण लेनी पड़ी।
अगर केवल हिन्दुओं की बात की जाए तो वो केवल हिंदू नहीं हैं बल्कि बांग्लादेशी हिन्दू हैं। यानी बांग्लादेश के नागरिक।
यहां हमें बांग्लादेश में रह रहे भारतीय नागरिकों और बांग्लादेशी हिन्दुओं में फ़र्क़ करना होगा।
भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने संसद में बताया है कि बांग्लादेश में कुल 19 हज़ार भारतीय हैं जिनमें से 9 हज़ार छात्र हैं, जो वहां पढ़ने गए हैं।
एस जयशंकर के अनुसार इन छात्रों में से भी ज़्यादातर जुलाई के महीने में भारत लौट आए हैं।
इसी के साथ भारत सरकार बांग्लादेश में सभी भारतीयों की सुरक्षा पर पैनी नज़र रख रही है।
यानी साफ़ है कि बांग्लादेश के विप्लव या विद्रोह के दौरान वहां भारतीयों पर हमले नहीं हो रहे बल्कि वहीं के नागरिक जिनमें हिंदू, मुसलमान सभी शामिल हैं उन पर हमले हो रहे हैं।
"Minority community places of worship have never been attacked in India" - @RShivshankar
Meanwhile these are the two recent incidents of vandalising by the right wing in India. But Anchors like Rahul Shivshankar chose to deliberately ignore because they didn't want to show the… https://t.co/DoU0NmCM2e pic.twitter.com/jrWPhpKTDI— Mohammed Zubair (@zoo_bear) August 6, 2024
हालांकि सैद्धांतिक रूप से किसी भी व्यक्ति या नागरिक पर हमले नहीं होने चाहिए लेकिन हमें समझना होगा कि बांग्लादेश एक बड़े परिवर्तन के दौर से गुज़र रहा है और ऐसे में वहां सत्ता में रही अवामी लीग के प्रति लोगों में कितना गुस्सा है। क्योंकि इसी पार्टी की रहनुमाई या निर्देश पर वहां आंदोलनकारियों पर बड़े पैमाने पर हिंसा हुई, हत्याएं हुईं। जुलाई से शुरू हुए इस आरक्षण विरोधी आंदोलन जो बाद में सत्ता विरोधी आंदोलन में बदल गया, अब तक तीन सौ से ज़्यादा हत्याएं हो चुकी हैं। इनमें कुछ पुलिसवालों को छोड़कर ज़्यादातार आंदोलनकारी छात्र-नौजवान ही हैं। हज़ारों लोग अभी भी ग़ायब बताए जा रहे हैं।
तो ऐसे दौर से गुज़र रहा है हमारा पड़ोसी देश बांग्लादेश। इस दौरान जब वहां कोई सरकार ही नहीं है। कोई क़ानून व्यवस्था ही नहीं है तो ऐसे में कट्टरवादी, उपद्रवी और अराजक तत्वों का हावी होना या मौक़े का फ़ायदा उठाना चिंता की तो बात है, लेकिन हैरत की बात नहीं है। इसलिए समझना होगा कि हिन्दुओं या हिंदू मंदिरों पर हमले इन्हीं कट्टरवादी और अराजकर तत्वों की करतूत है, न कि आम बांग्लादेशी मुसलमान की।
बांग्लादेश से जितनी तस्वीरें और वीडियो हिन्दुओं या हिन्दू मंदिरों पर हमले के आ रहे हैं उससे ज़्यादा उनकी रक्षा के आ रहे हैं।
बांग्लादेशी नागरिक ख़ासकर बहुसंख्यक मुसलमान और आंदोलनकारी जिन्होंने साफ़ कर दिया है कि उन्होंने एक तानाशाह को तो उखाड़ फेंका है लेकिन वे नहीं चाहते कि उनकी देश में कोई भी फासिस्ट या कट्टरवादी सरकार या सैन्य तानाशाही आए। यही लोग बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों ख़ासकर हिन्दुओं की सुरक्षा में डटे हुए दिखाई दे रहे हैं।
तमाम तस्वीरें और ख़बरें हैं जब छात्र-नौजवान और अन्य मुसलमान हिन्दू घरों और मंदिरों की सुरक्षा में दिन-रात पहरा देते दिख रहे हैं।
सार्वजनिक तौर पर अपील जारी की जा रही हैं कि किसी भी अल्पसंख्यक को कोई नुकसान न पहुंचाया जाए और उनकी सुरक्षा हमारी पहली प्राथमिकता है।
बांग्लादेश के अल्पसंख्यक समुदाय के नेताओं ने भी बयान जारी कर साफ़ किया है कि हिन्दुओं को टार्गेट करके छिटपुट हमले हुए हैं, बड़े पैमाने पर वहां हिन्दू सुरक्षित हैं। और आंदोलनकारियों के साथ विपक्षी पार्टी बीएनपी और जमात ने भी आश्वस्त किया है कि सभी की सुरक्षा की गारंटी की जाएगी।
"I am advocate Gobinda Pramanik, general secretary of Bangladesh National Hindu Mahajot. After Sheikh Hasina's resignation last afternoon, the Hindu community of this country thought they would be attacked in a massive way and there'd be incidents of arson. But leaders of BNP and… pic.twitter.com/4zmtMiISar
— Mohammed Zubair (@zoo_bear) August 6, 2024
हालांकि मैं इस बात का तरफदार हूं कि देश-दुनिया के किसी भी हिस्से में किसी भी व्यक्ति या समुदाय पर अत्याचार हो रहा हो, बर्बरता हो रही हो, टार्गेटेड किलिंग हो रही हो तो उसके ख़िलाफ़ दुनिया के सभी अमनपसंद इंसाफ़पसंद लोगों को बोलना चाहिए, लेकिन यहां हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि ये बांग्लादेश का अंदरूनी मामला है और इसे उसे संभालने का मौक़ा मिलना चाहिए। क्योंकि अभी तक ऐसी ख़बरें नहीं आईं हैं कि वहां किसी भारतीय नागरिक पर हमला किया गया है।
भारत के हिन्दुत्ववादी सांप्रदायिक तत्व दुनिया के सारे हिन्दुओं से ख़ुद को जोड़कर मेरे इस अंदरूनी या आंतरिक मामले के तर्क को ख़ारिज कर सकते हैं, लेकिन यहीं उनसे यह सवाल बनता है कि क्या वे चाहते हैं कि भारत के मुसलमानों के मामले में कोई और देश बोले। जब कोई अन्य देश ख़ासकर पाकिस्तान भारत में अल्पसंख्यकों ख़ासतौर पर मुसलमानों की दशा पर कोई चिंता जताता है तो हम क्या कहते हैं, यही कि– यह हमारा आंतरिक मामला है और किसी को हमें ज्ञान देने की ज़रूरत नहीं।
दुनिया का रहनुमा बनते हुए अमेरिका ने जब-तब हमें भारत में अल्पसंख्यकों की दशा पर कोई सलाह दी है, चिंता जताई है तो हमने न केवल उसे नकारा है बल्कि उसके बरअक्स अमेरिका के अल्पसंख्यकों की स्थिति को उदाहरण दिया है। सांप्रदायिक हिंसा के बरअक्स रंगभेदी नस्लभेदी हिंसा का उदाहरण दिया है और कहा है कि तुम तो न ही बोलो।
तो यही बात बांग्लादेश के संदर्भ में भी लागू होती है। क्योंकि अगर हम बांग्लादेशी हिन्दुओं को लेकर बहुत ज़्यादा चिंता जताएंगे तो वे पलट कर भारत में मुसलमानों की दशा पर सवाल करेंगे क्योंकि हमारे यहां तो भारतीय मुसलमानों को हिन्दुत्ववादी पाकिस्तान परस्त या बांग्लादेशी घुसपैठियां ही कहते हैं। भाजपा की पूरी राजनीति ही इस पर निर्भर है।
इसलिए इस एक फ़र्क़ को बहुत ध्यान से पहचान लीजिए वह यह कि इस समय बांग्लादेश में कोई सरकार नहीं है। तब वहां यह स्थिति है। लेकिन हमारे यहां यानी भारत में तो सरकारी नियंत्रण में ऐसी हिंसा आम होती जा रही है।
आरएसएस और भारतीय जनता पार्टी के उग्र अभियान के चलते 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस और उसके बाद के दंगों की तो आपको याद ही होगी। और किस तरह यह सब सरकार की शह पर किया गया। क्योंकि उस समय उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह के नेतृत्व में भाजपा की ही सरकार थी, जिसने सुप्रीम कोर्ट में शपथपत्र दिया था कि बाबरी मस्जिद की सुरक्षा की जाएगी और फिर कैसे उसी के समर्थन से मस्जिद को गिरा दिया गया।
और गुजरात दंगे या नरसंहार… । भले ही मोदी जी तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री बन गए हैं लेकिन 2002 के गुजरात दंगों में उनकी और उनकी राज्य सरकार की क्या भूमिका रही सभी जानते हैं। इस आरोप से वे कभी बरी नहीं हो सकते।
बहुत पीछे न भी जाएं। पुरानी घटनाओं को याद न भी करें। तो 2024 का आम चुनाव तो पूरी तरह मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रत पर केंद्रित रहा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से यहां तक कहा गया कि विपक्ष वाले आपकी मां-बहनों का मंगलसूत्र तक छीनकर मुसलमानों को दे देंगे। घुसपैठियों को दे देंगे।
यही नहीं अभी कांवड़ यात्रा के नाम पर यूपी-उत्तराखंड में जो बवाल हुआ और मुसलमानों को जिस तरह निशाने पर लिया गया, वो तो सबको भली-भांति याद ही होगा। कैसे कांवड़ियों को उपद्रव की पूरी तरह छूट गई, रास्ते आरक्षित कर दिए गए। फूल बरसाए गए। जबकि आपने देखा होगा कि इसी मार्च के महीने में ईद से पहले जुमे (शुक्रवार) को दिल्ली में सड़क पर नमाज़ पढ़ते व्यक्ति को कैसे पुलिसवाला लात मारकर उठा देता है। किसी कांवड़िये के ख़िलाफ़ आप ऐसे व्यवहार की उम्मीद कर सकते हैं। यहां तो पुलिस पर भी हमले के मौके पर पुलिस कांवड़ियों के सामने बेबस और निरीह नज़र आई।
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यही नहीं बाक़ायदा सरकारी फ़रमान जारी करके मुसलमानों की दुकानों यहां तक की फल के ठेलों तक पर नेम प्लेट लगवाने का क्या उद्देश्य था, इसे तो बताने की ज़रूरत नहीं। इस एक आदेश के जरिये मुसलमानों के आर्थिक बहिष्कार की सरकार के स्तर पर कोशिश की गई। जिसमें सुप्रीम कोर्ट तक को हस्तक्षेप करना पड़ा।
इससे पहले कभी सीएए के नाम पर, कभी यूसीसी के नाम पर, कभी आर्टिकल 370 के नाम पर…कभी वेज-नॉनवेज के नाम पर, कभी हलाल और झटका के नाम पर, कभी कोरोना जिहाद, कभी लैंड जिहाद और कभी लव जिहाद के नाम पर मुसलमानों को लगातार निशाने पर लिया जा रहा है।
यही नहीं गाय के नाम पर मॉब लिंचिंग का दौर अभी तक जारी है। कभी ट्रेन में नाम पूछकर एक जवान द्वारा मुसलमानों को मार दिया गया कभी कुछ और। ये सब क्या है। हम किस मुंह से बांग्लादेशी हिन्दुओं की चिंता करें।
और मैं फिर कह रहा हूं कि बांग्लादेश में हिंसा या अराजकता कि यह स्थिति तब है जब वहां कोई सरकार अस्तित्व में नहीं है। हमारे यहां तो यह सब बाक़ायदा सरकारी संरक्षण में हो रहा है। और सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी की पूरी राजनीति ही मुस्लिम विरोध पर आधारित है।
इसलिए इस फ़र्क़ को समझना बेहद ज़रूरी है। इसके बाद भी मैं यह नहीं कहूंगा कि बांग्लादेश की वर्तमान स्थिति पर नज़र मत रखिए या वहां अल्पसंख्यकों पर हो रहे किसी भी हमले पर चिंता मत जताइए, बल्कि मेरा इतना कहना है कि कृपया बांग्लादेशी हिन्दुओं के नाम पर भारतीय मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रत फैलाने और निशाना बनाने का एक और मौक़ा मत तलाशिए।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)
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