बिहार विधानसभा: महामारी की बढ़ती रफ़्तार, सरकार ने सजाया चुनावी बाज़ार
चंद दिनों पहले की ही तो बात है जब अख़बार–चैनलों और सोशल मीडिया में लॉकडाउन में अमानवीय त्रासदियों से जूझते प्रवासी मज़दूरों की ख़बरें सबलोग खुली आँखों से देख–सुन रहे थे। एनएच की सड़कों व रेल पटरियों के किनारे किनारे चिलचिलाती धूप में भी भूखे–प्यासे और जगह जगह बैरिकेड लगाकर खड़े पुलिस के डंडे खाते हुए उन लाखों प्रवासी मज़दूरों में एक विशाल तादाद बिहारी मज़दूरों की थी। जो अचानक घोषित लॉकडाउन की जानलेवा दुर्दशा में फंसे अपने व परिवार का जीवन बचाने के लिए हर फजीहत झेलकर भी सैकड़ों मील का फासला तय करते हुए गाँव–घर लौट रहे थे। उन प्रवासी बिहारी मज़दूरों की दिल हिला देने वाली किसी भी ख़बर पर किसी सरकार–मंत्री और आला नेताओं की सुनियोजित चुप्पी भी सबने देखी ।
अब जबकि बिहार विधानसभा चुनाव की सुगबुगाहट बढ़ने लगी है तो सरकार के मंत्री–नेताओं द्वारा प्रवासी मज़दूरों की दुर्दशा–तमाशा देखने औए अनदेखा करने वालों में शामिल देश के गृहमंत्री जी अचानक से बोल पड़े हैं। प्रवासी बिहारी मज़दूरों को स्वाभिमानी बताते हुए अपनी सरकार द्वारा उनकी भलाई के कार्य गिनाने लगे हैं।
यह अचम्भा हुआ है आसन्न बिहार विधान सभा चुनाव के कारण। जब रोज़ रोज़ बढ़ती महामारी संक्रमण कि रफ़्तार के बीच भी 7 जून को ‘वर्चुअल रैली’ से चुनावी अभियान की शुरुआत की। सूचना के अनुसार 72 हज़ार एलईडी स्क्रीन लगवाकर वीडियो कांफ्रेंसिंग से ‘ बिहार जन संवाद रैली ’ के भव्य आयोजन से बिहार में फिर से अपने गठबंधन की सरकार बनाने का दावा किया गया। शाह जी ने अपने इस अभियान को कोरोना के खिलाफ जंग से करोड़ों लोगों को जोड़ने की पहल बताते हुए कहा कि कुछ वक्रदृष्टा को इसमें भी राजनीति दीख रही है।
इसे भूख–बेकारी, नित दिन बढ़ रहे महामारी संक्रमण और लॉकडाउन जनित बढ़ रही मौतों से त्रस्त प्रवासी मज़दूरों और बिहार का अपमान करार देते प्रदेश के सभी वामपंथी दलों ने भी इसी दिन राज्यव्यापी “विश्वासघात / धिक्कार दिवस ”मनाया । जिसके तहत भाकपा माले , सीपीएम व सीपीआई समेत सभी वामपंथी संगठनों ने कोरोना संकट से निपटने में विफल केंद्र – राज्य सरकारों के खिलाफ सड़कों पर प्रतिवाद किया।
राज्य के विभिन्न जिलों में वामपंथी कार्यकर्ताओं ने ‘ आभासी रैली नहीं राशन रोज़गार की गारंटी करो’ इत्यादि नारे लिखे बैनर–पोस्टर लेकर जगह जगह रैली-धरना प्रदर्शन किये। जिसके माध्यम से प्रदेश के क्वारंटीन सेंटरों की बदहाली से प्रवासी मज़दूरों की लगातर हो रही मौतों पर सरकार – प्रशासन की लापरवाही पर सवाल उठाते हुए सभी मृतकों तथा भूख– पलायन से अबतक मारे गए अन्य सभी मज़दूरों के परिजनों को 20 लाख मुआवजा देने समेत 7 सूत्री मांगपत्र पेश किया गया।
सात जून को ही राजद व कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों ने भी भाजपा–एनडीए चुनावी अभियान के खिलाफ अपने समानांतर विरोध कार्यक्रम करते हुए ग़रीब अधिकार दिवस मनाया। बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री के नेतृत्व में जगह जगह कर्यकर्ताओं ने थाली पीटो अभियान चलाया। कांग्रेस ने भी विरोध में काले गुब्बारे उड़ाए।
सात जून को केन्द्रीय गृहमंत्री के नेतृत्व में भाजपा द्वारा शुरू किये गये बिहार विधानसभा के डिजिटल चुनावी अभियान की शुरुआत और इसके माध्यम से बिहार के लोगों के सेहत–रोज़गार पर सरकार के लगातार काम करने का दावा करने पर सोशल मीडिया में भी काफी तीखी डिजिटल प्रतिक्रियाएं वायरल हुई हैं। जिनमें मोदी–शाह व नीतीश कुमार की डबल इंजन की सरकार को कोरोना से निपटने में पूरी तरह से फ्लॉप बताया गया है। बिहार में कोरोना महामारी की अबतक हुई जांचों को सबसे कम बताते हुए सभी प्रवासी मज़दूरों के साथ जानवरों जैसा सुलूक करने इत्यादि का भी सवाल उठाया गया है। कई पोस्टों में तो सीधा पूछा गया कि जब बिहार के लाखों प्रवासी मज़दूर जब हजारों कोस पैदल चल चलकर मर खप रहे थे तब शाह–नीतीश और सुशील मोदी सरीखे सभी मंत्री-नेता कहाँ थे? जब ग़रीब मज़दूर किसी तरह से अपने गाँव लौट रहें हैं तो 72 हज़ार एलईडी स्क्रीन लेकर पहुँच गए!
यह भी अजीब मामला है कि मीडिया की ख़बरों में जहाँ पड़ोसी राज्य झारखण्ड में महामारी संक्रमण की बढ़ती संख्या को फ्रंट पेज और ब्रेकिंग न्यूज़ में काफी प्रमुखता से दिखाया जा रहा है। वहाँ की गैर भाजपा सरकार को पूरी तरह से विफल बताते हुए एनडीए के केन्द्रीय व प्रदेश नेताओं के बयान लगातार दिए जा रहे हैं। वहीं, बिहार में महामारी के बढ़ते ग्राफ की ख़बर अन्दर के पन्ने में देते हुए रोज़ रोज़ महामारी की बढ़ती रफ़्तार की ख़बरों से ऊपर ठीक हो रहे चंद बीमारों की ख़बर को प्रमुखता से परोसा जा रहा है।
एक वायरल हुई ख़बर में राज्य पुलिस मुख्यालय कि और से एक आला उच्चाधिकारी द्वारा अपने विभागीय अफसरों को लिखे विशेष पत्र की चर्चा भी ज़ोरों पर है। जिसमें प्रवासी बिहारी मज़दूरों की आमद के कारण गंभीर विधि व्यवस्था की समस्या होने की आशंका जताया गया है। गंभीर आर्थिक चुनौतियों से उनके परेशान और तनावग्रस्त होने को रेखांकित करते हुए स्पष्ट कहा गया है कि – सरकार की अथक कोशिशों के बावजूद राज्य में सभी को वांछित रोज़गार मिलने की संभावना कम है। इस कारण स्वयं व उनके परिवार के भरण–पोषण के उद्देश्य से अनैतिक व विधि विरुद्ध गतिविधियों में शामिल होने की स्थिति से निपटने की तैयारी के तहत विशेष कार्य योजना बनाने सम्बन्धी निर्देश दिया गया है।
उक्त सन्दर्भ विशेष पर संज्ञान अनिवार्य हो जाता है कि जब एक ओर महामारी संक्रमण कि बढ़ती रफ़्तार के बीच भी लोगों को भयमुक्त बनाने की बजाय खुद गृहमंत्री चुनावी अभियान की भव्य शुरुआत करते हैं। उनके साथ साथ प्रदेश गठबंधन सरकार के मंत्री–नेता बिहार के लोगों और विशेष रूप से प्रवासी मज़दूरों की भलाई और रोज़गार देने के कामों को गिनवाते हुए जनादेश मांगते हैं। तो दूसरी ओर, उन्हीं का प्रशासन कह रहा है कि सबों को रोज़गार नहीं मिलने वाला है इसलिए विधि–व्यवस्था चाक चौबंद रहे...। इसका क्या मतलब निकाला जाए? जिसपर एक टिपण्णी यह भी वायरल हो रही है – जनता तुम कोरोना से लड़ो, सरकार तो चली चुनाव लड़ने!
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