बिहार उपचुनाव: आरएसएस-भाजपा के विपक्ष के प्रतीक के रुप में उभरे तेजस्वी
गोपालगंज: उत्तर बिहार के गोपालगंज ज़िले के थावे में देवी काली का ऐतिहासिक मंदिर है। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की जन्मस्थली और उत्तर प्रदेश की सीमा से लगे इस क्षेत्र के स्थानीय लोग और आने जाने वाले श्रद्धालु देवी का आशीर्वाद लेने के लिए इस मंदिर में जाते हैं।
गोपालगंज का विधानसभा क्षेत्र जहां कल गुरूवार को दक्षिण बिहार में मोकामा के साथ उपचुनाव हुआ वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सैकड़ों स्वयंसेवकों के लिए एक अड्डा बन गया है, जो नागपुर के मुख्यालय और उत्तर प्रदेश से आए हैं जहां भाजपा सत्ता में है। भाजपा के 40 विधायकों और तीन केंद्रीय मंत्रियों के अलावा हिंदुत्ववादी पार्टी ने गोपालगंज सीट की जीत को बरक़रार रखने के लिए भगवा सत्ता के केंद्र अयोध्या और वाराणसी से कई कार्यकर्ताओं को तैनात किया गया। यह वह सीट है जिस पर भाजपा के सुभाष सिंह ने लगातार चार चुनावों से अपना क़ब्ज़ा बरकरार रखा। उनके निधन के चलते यहां उपचुनाव कराया जा रहा है।
थावे आने वाले एक व्यक्ति ने अपने साथियों को बताया, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंदिरों पर ध्यान देने से थावे मंदिर की सुविधा में सुधार हुआ है। देखिए कैसे मोदी जी ने केदारनाथ, उज्जैन महाकाल लोक कॉरिडोर, वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर और अयोध्या का विशेष ध्यान रखा।”
इस बातचीत के बीच में दख़ल देते हुए एक स्थानीय युवा व पत्रकार अवधेश कुमार कहते हैं, “लेकिन पीएम की यह ड्यूटी नहीं है कि वह मंदिर-मंदिर जाएं और अलग-अलग पोशाक व वेशभूषा पहनकर पूजा करें और प्रचार के लिए फोटो खिंचवाए। बेहतर होगा कि वह आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती क़ीमतों, चौंका देने वाली बेरोज़गारी और हमारे आर्थिक स्थिति में गिरावट को रोकने के लिए कुछ करें।” अवधेश आगे कहते हैं, ''प्रधानमंत्री को इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि उन्हें किस लिए चुना गया है।''
मंदिर आने वाले उस व्यक्ति की टिप्पणी और अवधेश का हस्तक्षेप मोदी के मंदिरों के प्रति तरजीह देने वाले व्यवहार और उनके शासन की उपेक्षा या अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न के बारे में लोगों की राय में फ़र्क़ को दर्शाता है।
उचकागांव में एक चाय की दुकान पर कुछ बेरोज़गार युवकों ने मज़ाक उड़ाते हुए कहा कि कैसे "पुलिसकर्मियों ने कावड़ियों की मालिश की और उनके इस धार्मिक यात्रा के दौरान उन पर फूलों की पत्तियां हेलीकॉप्टर से बरसायी। तेजस्वी और नीतीश कुमार योगी आदित्यनाथ से बेहतर हैं। वे बेरोज़गारी और आजीविका की बात करते हैं। वे कावड़ियों की मालिश करने में पुलिसकर्मियों को नहीं लगाते हैं।" इस दौरान कुछ ग्रामीण बुज़ुर्ग मौजूद थे जिन्होंने कहा कि आदित्यनाथ और मोदी ने मुसलमानों को "ठीक" कर दिया है।
गोपालगंज में एक महीने के लंबे प्रचार अभियान ने दो स्पष्ट घटनाओं को जन्म दिया है- उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव राज्य के इस हिस्से में आरएसएस-भाजपा के विरोध के सबसे शक्तिशाली प्रतीक के रूप में उभरे हैं, और अब उन्हें अपने आप में एक नेता के रूप में देखा जाता है।
संघ की विश्वदृष्टि के विरोध की पहचान तेजस्वी को अपने पिता से बिना किसी बदलाव के विरासत में मिली है। 1990 में मुख्यमंत्री बनने के बाद से, लालू आरएसएस-भाजपा के मुखर विरोधी और आलोचक के रूप में उभरे और अपनी हिंदू-राष्ट्रवादी रथ यात्रा के दौरान भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ़्तार करने में संकोच नहीं किया। लालू ने अशोक सिंघल, प्रवीण तोगड़िया और आरएसएस के कई अन्य कार्यकर्ताओं को बिहार जाने से भी रोका और बाबरी मस्जिद को गिराने के अभियान में शामिल लोगों पर नकेल कसी। लालू एक घरेलू नाम बन गए, ख़ासकर आरएसएस-भाजपा और उसके नेताओं का मज़ाक बनाने के लिए। अक्सर, लालू के शब्द कड़वा होते थे, विशेषकर जब उन्होंने भाजपा को "भारत जलाओ पार्टी, दंगाईयों की पार्टी, षड्यंत्रकारियों की पार्टी, कायर आदि के रूप में बताया।"
तेजस्वी : जैसा पिता वैसा पुत्र
तेजस्वी ने आरएसएस-बीजेपी पर हमले के लिए ज़्यादातर पर अपने पिता की भाषा को अपनाया है। आम आदमी पार्टी (आप) प्रमुख और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल हिंदुत्व के बड़े आक्रामक चैंपियन के रूप में भाजपा की जगह लेने की होड़ में हैं। उन्होंने नोटों पर हिंदू देवी-देवताओं की तस्वीरें, हिंदुओं की तीर्थयात्राओं के लिए फंडिंग और सरकारी कार्यालयों से महात्मा गांधी की तस्वीरें हटाने की मांग की है। इस बीच, तेजस्वी ने हिंदुत्ववादी ताक़तों को खुश करने के लिए आरएसएस-भाजपा द्वारा बनाए गए हर टेम्पलेट पर जमकर हमला बोला है।
कुछ पर्यवेक्षकों का मानना है कि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के संस्थापक स्वर्गीय मुलायम सिंह यादव, लालू के विपरीत कभी-कभी भाजपा को लेकर अस्पष्ट थे। वे 2019 के आम चुनाव की पूर्व संध्या पर लोकसभा में अपने भाषण के दौरान मुलायम के "मोदी की सत्ता में वापसी की कामना" का उदाहरण देते हैं। कुछ लोग कहते हैं कि उनके बेटे, अखिलेश यादव, आरएसएस-भाजपा के नैरेटिव का मुक़ाबला करने में तेजस्वी की तरह नहीं हैं। वे अखिलेश को हिंदुत्ववादी संगठनों का सम्मान करने, 2020 में हरिद्वार में कुंभ मेले में साधुओं को ज़्यादा तरजीह देने और अपने सार्वजनिक स्तर पर हिंदू धार्मिक तौर-तरीक़ों और रीति-रिवाजों को अपनाना स्पष्ट रूप से "मुस्लिम समर्थक और हिंदू-विरोधी नहीं दिखता" है।
गोपालगंज के स्थानीय लोगों का कहना है कि बहुजन समाज पार्टी (बसपा) प्रमुख मायावती जो गोपालगंज में दलितों के एक वर्ग के बीच दबदबा बनाए रखती हैं उन्होंने भी जनवरी 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की मदद की थी। उनका कहना है कि उन्होंने समाजवादी पार्टी के वोट काटने के लिए मुस्लिम उम्मीदवारों को खड़ा करके ऐसा किया। और कुछ तो केजरीवाल और मायावती को भाजपा की "बी टीम" बताते हुए खुलकर आलोचना करते हैं।
हालांकि, गोपालगंज के लोगों और बिहार के लोगों के लिए, तेजस्वी स्पष्ट रूप से आरएसएस-भाजपा विरोधी नेता हैं। यह धारणा उनके समर्थकों और विरोधियों के बीच समान रूप से मौजूद है, जो यह भी महसूस करते हैं कि वह खुद को एक ऐसा नेता बना रहे हैं जो भविष्य में अपने पिता के पदचिन्हों पर चल सके।
हालांकि, तेजस्वी ने लोगों के बड़े वर्ग के बीच अपनी पार्टी के आधार और स्वीकार्यता का विस्तार करने के लिए कुछ रणनीतिक बदलाव किए हैं। मंडल आयोग की रिपोर्ट का ज़ोरदार समर्थन और कुलीन जातियों पर बिना रोक-टोक के हमलों के कारण, लालू वंचित और कमज़ोर वर्गों के बीच एक अहम शख़्सियत बन गए। दूसरी ओर, तेजस्वी ने सभी सामाजिक वर्गों के युवाओं के प्रति अपने दृष्टिकोण को सरल बनाने की कोशिश की है।
तेजस्वी ने अपने राजद को "ए टू जेड की पार्टी" के रूप में बताया है, जिसका मतलब है सभी वर्ग। और वह कमाई, पढाई, दवाई, सिचाई, सुनवाई, लोगों की शिकायतों पर कार्रवाई पर ध्यान केंद्रित करते हैं। उन्होंने सभी वर्गों के बेरोज़गार युवाओं और बड़े पैमाने पर लोगों के बीच एक जगह बनाई है जो ग्रामीण इलाक़ों में महंगाई और आजीविका के घटते स्रोतों की तंगी का सामना कर रहे हैं।
नीतीश की तरफ़ से स्पष्टता
नीतीश कुमार का जनता दल (यूनाइटेड) 22 वर्षों से अधिक समय से भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का हिस्सा रहा है, लेकिन बिहार के मुख्यमंत्री ने यह सुनिश्चित करने के लिए कड़ी मेहनत की है कि उनकी पार्टी की पहचान उग्र हिंदुत्व के बजाय समाजवाद से हो। भाजपा से जुड़े रहते हुए उन्होंने राज्य विधानसभा में पारित राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के ख़िलाफ़ एक विधेयक पारित कराया और घोषणा की कि वह बिहार में एनआरसी लागू नहीं करेंगे, कुछ 800 मुस्लिम कब्रिस्तानों की घेराबंदी करवाई, 1989 के भागलपुर दंगा पीड़ित परिवारों के लिए पेंशन को मंज़ूरी दे दी, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की एक शाखा को किशनगंज में खोला गया और राज्य में मदरसों में सुधार हुआ।
ऐसा नहीं है कि राज्य में अशांति नहीं थी और इन घटनाओं के लिए अक्सर हिंदुत्व के कार्यकर्ताओं पर उंगली उठाई जाती थी। मुज़फ़्फ़रपुर और चंपारण में गोरक्षा के नाम पर मुसलमानों पर हमले के मामले सामने आए, लेकिन नीतीश सतर्क रहे और पुलिस ने उपद्रवियों की पहचान की और उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई की। सरकारी तंत्र बड़े पैमाने पर मंदिरों में अनुष्ठान करने से दूर रहे-चाहे वह कांवड़ियों के साथ हो या दुर्गा पूजा।
सांप्रदायिकता के मुद्दे पर नीतीश हमेशा भाजपा से असहज रहते थे। तेजस्वी इस मुद्दे और कई जन सरोकार के मुद्दों पर उनके साथ पूरी तरह से तालमेल बिठा रहे हैं, जिनको भाजपा उखाड़ती है।
गोपालगंज और मोकामा विधानसभा क्षेत्रों में कल हुए मतदान के नतीजे 6 नवंबर को घोषित किए जाएंगे, लेकिन इन उपचुनावों में लोगों ने नरेंद्र मोदी की राजनीति पर सवाल खड़े कर दिए हैं। ऐसे में तेजस्वी की बढ़ती स्वीकार्यता स्वाभाविक परिणाम है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और मीडिया के शिक्षक हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करेंः
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