बिहार में खेला: भाजपा-जेडीयू का अलग होना लगभग तय!
इसमें कोई शक नहीं कि जल्द ही बिहार की राजनीति में कुछ बड़ा होने वाला है?नीतीश कुमार महागठबंधन में शामिल होंगे? कांग्रेस का सहारा लेकर आरजेडी के साथ सरकार बनाएंगे? या तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाकर ख़ुद सलाहकार की भूमिका में रहेंगे?... ऐसे तमाम सवाल इन दिनों पटना से होते हुए दिल्ली पहुंच रहे हैं।
वैसे तो नीतीश कुमार और भाजपा के बीच पिछले लंबे वक्त से सब कुछ ठीक नहीं चल रहा, लेकिन आरसीपी सिंह द्वारा जेडीयू से इस्तीफा देते ही माहौल ज्यादा गर्म हो गया और चीज़ें खुलकर सामने आ गईं। आरसीपी सिंह जेडीयू से एकमात्र नेता थे जो पार्टी की ओर से केंद्र में मंत्री बने थे। लेकिन, इस बार जेडीयू ने उन्हें राज्यसभा का टिकट नहीं दिया और वो मंत्री भी नहीं रहे। उनके नीतीश कुमार से रिश्ते खराब बताए जाते हैं।
पार्टी छोड़ते ही आरसीपी सिंह ने जेडीयू को डूबता हुआ जहाज़ बता दिया और नीतीश कुमार के बारे में बोल गए कि वो प्रधानमंत्री पद का ख्वाब देखते रह जाएंगे।
हालांकि इसका जवाब जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ लल्लन सिंह ने ये कहकर दिया कि जदयू डूबता जहाज़ नहीं बल्कि दौड़ता हुआ जहाज़ है, और आने वाले समय में ये पता चल जाएगा, लेकिन कुछ लोग इस जहाज़ में छेद कर इसमें पानी घुसाना चाहते थे, नीतीश कुमार ने ऐसे षड्यंत्र करने वालों को पहचान लिया और जहाज़ मरम्मत कर एकदम ठीक कर दिया।
इस दौरान लल्लन सिंह ने नीतीश कुमार के ख़िलाफ साज़िश रचे जाने की भी बात कही।
इसके अलावा नीतीश कुमार के भाजपा से कुछ और भी नाराज़गी के कारण है जो पिछले लंबे वक्त से देखने को मिल रहे हैं। जैसे सरकार चलाने में नीतीश को फ्री हैंड नहीं मिल रहा है और फिर चिराग प्रकरण के बाद आरसीपी प्रकरण ने भी नीतीश की तल्खियां बढ़ा दी हैं। वहीं बीते कुछ महीने में नीतीश ने कई अहम बैठकों से दूरी बनाई है। कुछ महीने पहले वे प्रधानमंत्री की कोरोना पर बुलाई गई बैठक से दूर रहे। हाल ही में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के सम्मान में दिए गए भोज, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के शपथ ग्रहण समारोह में भी नहीं गए। राज्य में मुख्यमंत्री लोकल स्तर पर कार्यक्रमों में शामिल तो हो रहे हैं, लेकिन भाजपा नेताओं से खुलकर ना तो बात कर रहे हैं ना ही उनसे मिल रहे हैं।
इन्हीं आरोपों-प्रत्यारोपों और नाराज़गी के बीच अचानक ख़बर आई कि 11 अगस्त से पहले बिहार की राजनीति में कुछ बड़ा होने वाला है, भाजपा और जेडीयू का गठबंधन टूट सकता है। और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने सभी सांसदों और विधायकों को अगले दो दिनों में पटना पहुंचने का आदेश दे दिया।
दूसरी तरफ आरजेडी ने भी अपने सभी विधायकों को पटना छोड़ने से मना कर दिया। दूसरी तरफ बड़ी ख़बर ये आई कि नीतीश कुमार ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने फोन पर बातचीत की है। जिसके भी अपने अलग मायने हैं।
दरअसल लालू-नीतीश के बीच सोनिया गांधी कड़ी के रूप में काम कर सकती हैं। सोनिया गांधी ही हैं, जिनकी लालू प्रसाद यादव बात नहीं टाल सकते हैं। सोनिया से नीतीश कुमार के भी रिश्ते ठीक हैं। सूत्र कहते हैं कि नीतीश कुमार ने सोनिया गांधी से फोन पर बात की है। अगर जेडीयू और भाजपा का गठबंधन टूटता है तो नई सरकार के गठन की अड़चनों को सोनिया गांधी ही दूर करेंगी। हालांकि रिपोर्ट्स ये भी कहते हैं कि आरजेडी इस बार कंप्रोमाइज़ के मूड में नहीं है। कहने का अर्थ ये है कि अगर जेडीयू को आरजेडी का साथ चाहिए तो मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को ही बनाना होगा।
ये इसलिए भी कहा जा रहा हैं कि पिछले दिनों विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव काफी एक्टिव रहे हैं और उनका जन समर्थन भी लगातार बढ़ रहा है, जिसका उदाहरण लोगों को बीते 7 अगस्त को पटना की सड़कों पर देखने को मिला जब तेजस्वी यादव ने प्रतिरोध मार्च निकालकर अपनी ताकत दिखाई। उन्होंने महागठबंधन की पार्टी कांग्रेस को तो अपनी ताकत का एहसास कराया ही उससे अधिक जेडीयू को अपनी ताकत बताई है। इतना लंबा प्रतिरोध मार्च पटना में हाल के सालों में तो नहीं ही दिखा। वे कड़ी धूप के बावजूद चार-पांच घंटे तक डटे रहे। तेजस्वी ने अपनी नई छवि गढ़ी है।
अब अगर तेजस्वी यादव अपना कद बढ़ा रहे हैं, तो मुश्किल ही है कि उनकी पार्टी बग़ैर मुख्यमंत्री पद जेडीयू के साथ जाने के लिए तैयार होगी।
इस बात पर भी ग़ौर करना ज़रूरी है कि भले ही नीतीश कुमार ने सोनिया गांधी की मदद लेने की कोशिश की हो, लेकिन उनके लिए नीतीश को मुख्यमंत्री बनाने के लिए लालू से बात करना इतना आसान होगा नहीं। क्योंकि लालू प्रसाद एक मात्र ऐसे बड़े नेता हैं जिन्होंने सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा उठने पर भारतीय संस्कृति की व्याख्या की थी और सोनिया गांधी का साथ दिया था। ऐसे भी लालू प्रसाद और नीतीश कुमार में से ज्यादा बड़े सेक्यूलर नेता लालू प्रसाद को माना जाता है। बिहार विधानसभा चुनाव के बाद राजद और कांग्रेस के रिश्ते में खटास आई लेकिन कांग्रेस ने प्रतिरोध मार्च में हिस्सा लिया। इससे पहले राष्ट्रपति चुनाव के समय भी कांग्रेस-राजद एक मंच पर यशवंत सिंहा के पक्ष में दिखे। हालांकि राजनीतिक समीकरण किसके पक्ष में बनते हैं ये तो आने वाला वक्त तय करेगा।
इस विषय पर न्यूज़क्लिक ने सीपीआई-एम के पूर्व राज्य सचिव और केंद्रीय कमेटी सदस्य अवधेश कुमार सिंह से सीधा सवाल किया कि मुख्यमंत्री कौन बनेगा? तो उन्होंने जवाब दिया कि हमें इसमें ज्यादा दिलचस्पी नहीं है, हम बस इतना चाहते हैं कि बिहार में भाजपा से अलग सरकार बने। हम तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार दोनों का स्वागत करते हैं। बस जिस भी पार्टी से मुखिया चुना जाए उनका नज़रिया सभी के लिए सकारात्मक होना चाहिए। क्योंकि आरजेडी के ही सबसे ज्यादा विधायक है तो तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री बन सकते हैं।
इसके अलावा जब हमने भाजपा के ऑपरेशन लोटस से निपटने पर सवाल किया तब वे बोले कि आरजेडी या कांग्रेस या जेडीयू के विधायक में अगर टूट होती है, या जो भी विधायक पार्टी छोड़कर जाते हैं उनकी राजनीति खत्म हो जाएगी। उन्होंने कहा कि भाजपा ने यहां खेल शुरू कर दिया है, और विधायकों को ढूंढने में लग गई है। लेकिन बिहार की राजनीतिक का परिपेक्ष बाकी राज्यों से अलग है, इसलिए हम लोग यहां ऐसा होने नहीं देंगे। सभी पार्टियों ने विधायकों को पटना बुला लिया है। बाकी बहुत जल्द ही राज्य की तस्वीर साफ हो जाएगी।
अवधेश कुमार सिंह की बातों से इतना तो साफ हो गया है कि भाजपा ने ख़रीद-फरोख्त वाला अपना अभियान शुरु कर दिया है। हालांकि वो इसमे कितना कामयाब होते हैं, ये वक्त बताएगा। लेकिन बिहार में क्या राजनीतिक समीकरण हैं और क्या बन सकते हैं ये जान लेना बेहद ज़रूरी है।
2020 में नीतीश की पार्टी जेडीयू की 28 सीटें घट गई थीं और वह 43 पर आ गई, जबकि भाजपा की 21 सीटें बढ़कर 74 पर पहुंच गई थीं। इसके बावजूद भाजपा ने नीतीश को मुख्यमंत्री बनाया था। एनडीए को 125 सीटें और महागठबंधन को 110 सीटें मिली थीं। जिसमें आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी बनकर सामने आई थी। आरजेडी के 79 विधायकों ने चुनाव जीता था।
अब अगर नीतीश कुमार भाजपा से अलग हो जाते हैं तब भी सरकार नीतीश कुमार की ही बनेगी। क्योंकि मौजूदा वक्त में आरजेडी के पास 79, जेडीयू के पास 45, कांग्रेस के पास 19, लेफ्ट के पास 16 और 1 निर्दलीय विधायक है, यानी नीतीश कुमार या फिर भाजपा से अलग सरकार बनने पर 160 विधायक इकट्ठा हो रहे हैं। वहीं अगर ‘हम’ भी समर्थन करती है तो उनके चार विधायक मिलाकर 164 हो जाएंगे। जबकि भाजपा के पास सिर्फ 77 विधायक ही हैं। जबकि एक विधायक एआईएमआईएम का है, जबकि एक सीट खाली है।
इन आंकड़ों के मुताबिक तो ग़ैर भाजपाई सरकार बन जाएगी, लेकिन अगर नीतीश कुमार महागठबंधन में शामिल होते हैं, तो ये ज़रूर कहा जा सकता है कि आने वाले 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के लिए ये सब मिलकर चुनौती ज़रूर बन जाएगें। एक बात बेहद अहम जो ध्यान देने वाली है कि नीतीश कुमार ने हमेशा अपना पद सुरक्षित रखा है, वे किसी भी कीमत पर अपने वर्चस्व के साथ समझौता नहीं करते... चाहे भाजपा के साथ रहें, या कांग्रेस के। अब ऐसे में इस बात से इन्कार नहीं कर सकते कि वो 2024 में प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने के लिए कांग्रेस पर दबाव बनाएं।
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