बिल्क़ीस बानो मामला: मोर्चा जीता है जंग जारी है...
"एक महिला सम्मान की हकदार है, भले ही उसे समाज में कितना ही ऊंचा या नीचा क्यों न माना जाए या वह किसी भी धर्म को मानती हो या किसी भी पंथ को मानती हो। क्या महिलाओं के खिलाफ जघन्य अपराधों में छूट दी जा सकती है?"
ये टिप्पणी देश की सर्वोच्च अदालत ने गुजरात दंगों की पीड़िता बिल्क़ीस बानो मामले में अहम फैसला सुनाते हुए की। अदालत ने आज सोमवार, 8 दिसंबर को बिल्क़ीस के 11 दोषियों की सज़ा में छूट देकर रिहाई करने के गुजरात सरकार के फ़ैसले को रद्द कर दिया। साथ ही सभी दोषियों को दो हफ़्ते के भीतर जेल प्रशासन के पास हाज़िर होने का आदेश भी दिया। कोर्ट का ये न्याय कई मायनों में महत्वपूर्ण बताया जा रहा है। ये जीत सिर्फ बिल्क़ीस की नहीं, बल्कि हर ज़ोर-जुल्म से संघर्ष करने वाले की है, जो निरंतर सत्ता की मनमानियों के खिलाफ आवाज़ बुलंद कर रहा है।
शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में गुजरात सरकार को लेकर तीखी बातें कहीं। अदालत ने कहा कि गुजरात सरकार के पास सज़ा में छूट देने या कोई फ़ैसला लेने का अधिकार नहीं है। जस्टिस बीवी नागरत्ना और उज्जल भुयन की पीठ के मुताबिक मई 2022 में गुजरात सरकार ने दोषियों की सज़ा में छूट देकर तथ्यों की उपेक्षा की थी। जिस तरह रिहाई का आदेश दिया गया, वह दूसरे के अधिकार को हड़पने का मामला है, क्योंकि इस मामले में सज़ा माफी का अधिकार महाराष्ट्र सरकार के पास था लेकिन रिहाई का आदेश गुजरात सरकार ने दे दिया।
गुजरात सरकार को फटकार
सुप्रीम कोर्ट ने कठोर शब्दों में कहा कि बिल्क़ीस का मामला एक क्लासिक उदाहरण है कि कैसे इस अदालत के आदेश को नियमों का उल्लंघन करने के लिए इस्तेमाल किया गया। फिर दोषियों को उस सरकार ने रिहा कर दिया जिसके पास ये अधिकार ही नहीं था। इस मामले में गुजरात सरकार का दोषियों को लेकर पहले ही रवैया विवादित था, इसलिए इस केस के ट्रायल को ही राज्य के बाहर ट्रांसफर करना पड़ा था।
बता दें कि साल 2002 के गुजरात दंगों के दौरान पांच महीने की गर्भवती बिल्क़ीस बानो के साथ गैंगरेप किया गया था। उनकी तीन साल की बेटी की भी बेरहमी से हत्या कर दी गई थी। इसके अलावा इस दंगे में बिल्क़ीस बानो की मां, छोटी बहन और अन्य रिश्तेदार समेत 14 लोग मारे गए थे। इस मामले में साल 2004 में आरोपियों को गिरफ्तार किया गया। इसी साल केस को अहमदाबाद से बॉम्बे ट्रांसफर कर दिया गया। क्योंकि बिल्क़ीस ने सबूतों के साथ संभावित छेड़छाड़ और गवाहों के लिए खतरे का मुद्दा उठाया था।
जनवरी 2008 में CBI की स्पेशल कोर्ट ने 11 दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। जिसे 2017 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने भी अपने फैसले में बरकरार रखा। सभी अपराधियों को पहले मुंबई की आर्थर रोड जेल और इसके बाद नासिक जेल में रखा गया था। करीब 9 साल बाद उन्हें को गोधरा की सबजेल में भेज दिया गया था।
इस मामले ने साल 2022 में उस समय एक बार फिर तूल पकड़ा जब इनमें एक दोषी राधेश्याम शाह ने मई 2022 में गुजरात हाई कोर्ट, जहां सजा माफी का ये मामला गुजरात सरकार के हवाले कर दिया गया। साथ ही राज्य सरकार को इस मामले की जांच करने की बात भी कही गई। फिर पंचमहल कलेक्टर सुजल मयात्रा के नेतृत्व में एक समिति बनाई गई और इस केस में उम्रकैद की सजा पाए सभी 11 दोषियों को स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त 2022 को रिहा कर दिया गया था। गुजरात सरकार इसके पीछे सभी दोषियों के 'अच्छे व्यवहार' का कारण बताया था। हालांकि इसके बाद जिस तरह दोषियों का स्वागत सत्कार हुआ, ये पूरे देश में आलोचना का विषय बन गया था। राज्य सरकार की मंशा पर सवाल भी उठे और एक बार फिर बिल्क़ीस बानो को न्याय के लिए सबसे बड़ी अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ा था।
बिल्क़ीस ने इस मामले में 30 नवंबर 2022 को सुप्रीम कोर्ट में दो याचिकाएं दाखिल की थीं। पहली याचिका दोषियों की रिहाई के खिलाफ थी और दूसरी याचिका में सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश पर विचार करने की मांग की गई, जिसमें कहा गया था कि दोषियों की रिहाई पर फैसला गुजरात सरकार करेगी। बिल्क़ीस बानो का कहना था कि जब केस का ट्रायल महाराष्ट्र में चला था फिर गुजरात सरकार फैसला कैसे ले सकती है?
विपक्ष ने सत्य की जीत बताया, तो सत्ता पक्ष ने साधी चुप्पी
ध्यान रहे कि इस मामले में एक लंबे संघर्ष और सुनवाई के बाद पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने 12 अक्तूबर को अपना फ़ैसला सुरक्षित रख लिया था। इस केस में कई जनहित याचिकाएं भी दायर हुई थीं। जिस पर अब फैसला आया है। और इस फैसले पर अब खास से लकेर आम लोगों की प्रतिक्रियाएं भी सामने आ रही हैं। विपक्षी दल कांग्रेस सहित कई अन्य पार्टियों ने इसे सत्य की जीत बताया है, तो वहीं सत्ता पक्ष बीजेपी फिलहाल इस पर मौन साधे हुए है। क्योंकि गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दायर अपने हलफनामे में कहा था कि कैदियों की रिहाई का फ़ैसला केंद्र सरकार की सहमति के बाद लिया गया था। इसलिए अब ये मामला सीधा-साधा पक्ष बनाम-विपक्ष से भी जोड़कर देखा जाने लगा है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने समाचार एजेंसी पीटीआई से कहा कि बीजेपी सरकार को बिल्क़ीस बानो से माफी मांगनी चाहिए। बीजेपी के लोगों ने इनके गलों में गुलाब का हार डाला, गृह मंत्रालय ने इन दोषियों को छोड़ने के लिए अप्रूवल दिया। इससे बीजेपी की महिलाओं के लिए लड़ाई एक्पोज हो जाती है।
असदुद्दीन ओवैसी ने आगे कहा, "नरेंद्र मोदी नारी शक्ति की तो बात करते है पर जमीनी स्तर पर बिल्क़ीस बानो के रेपिस्टों के साथ खड़े नजर आते हैं। उन्होने फैसले पर कहा, "मैं इस फैसले का स्वागत करता हूं और यह फैसला भविष्य में सभी बलात्कारियों के खिलाफ एक मिसाल के रूप में काम करेगा।"
VIDEO | "I welcome this judgment, and it acts as a precedent against all the rapists in the future," says AIMIM chief @asadowaisi on the Supreme Court's decision in #BilkisBano case.
(Full video available on PTI Videos - https://t.co/n147TvqRQz) pic.twitter.com/mnzkOB09Wb— Press Trust of India (@PTI_News) January 8, 2024
कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा ने बीजेपी पर महिला विरोधी होने का आरोप लगाते हुए लिखा- "अंततः न्याय की जीत हुई है। सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात दंगों के दौरान गैंगरेप की शिकार के आरोपियों की रिहाई रद्द कर दी है। इस आदेश से भारतीय जनता पार्टी की महिला विरोधी नीतियों पर पड़ा हुआ पर्दा हट गया है। इस आदेश के बाद जनता का न्याय व्यवस्था के प्रति विश्वास और मजबूत होगा। बहादुरी के साथ अपनी लड़ाई को जारी रखने के लिए बिल्क़ीस बानो को बधाई।"
अंततः न्याय की जीत हुई है। सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात दंगों के दौरान गैंगरेप की शिकार #BilkisBano के आरोपियों की रिहाई रद्द कर दी है। इस आदेश से भारतीय जनता पार्टी की महिला विरोधी नीतियों पर पड़ा हुआ पर्दा हट गया है। इस आदेश के बाद जनता का न्याय व्यवस्था के प्रति विश्वास और मजबूत…
— Priyanka Gandhi Vadra (@priyankagandhi) January 8, 2024
शिव सेना (UBT) की राज्यसभा सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने ट्वीट कर कहा- "बिल्क़ीस बानो के लिए सम्मान, एक मजबूत महिला जिसने न्याय के लिए अपनी लड़ाई कभी नहीं छोड़ी।"
Do not go gentle into that good night.
Rage, rage against the dying of the light.
Respect for #BilkisBano , a strong woman who never gave up her fight for justice. May your tribe increase.— Priyanka Chaturvedi🇮🇳 (@priyankac19) January 8, 2024
सीपीआई (एम) की वरिष्ठ नेता बृंदा करात ने भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा , "हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हैं। कम से कम यह फैसला न्याय की कुछ उम्मीद जगाता है। खासकर, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और गुजरात सरकार की क्षमताओं पर जो टिप्पणी की। यह गुजरात सरकार ही थी, जिसने दस्तावेज स्वीकार किए थे। कोर्ट ने इसे फर्जी माना है।"
गुजरात के वडगाम विधायक और कांग्रेस नेता जिग्नेश मेवाणी ने भी इसे एक अच्छा फैसला बताते हुए बीजेपी और आरएसएस की महिला विरोधी नीतियों पर सवाल उठाया। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लिखा कि 'बिल्क़ीस बानो के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट का आज बड़ा फैसला आया हैं। जिन बलात्कारियों को गुजरात की भाजपा सरकार ने रिहा किया था उन्हें अब 2 हफ़्ते के भीतर खुद को जेल अधिकारियों के समक्ष सरेंडर करना होगा। मैं हर मंच से इस मुद्दे को उठाता आ रहा हूं और मुझे आज खुशी है इस मामले में कुछ न्याय हो पाया।'
बिल्किस बानो के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट का आज बड़ा फैसला आया हैं।
जिन बलात्कारियों को गुजरात की भाजपा सरकार ने रीहा किया था उन्हें अब 2 हफ़्ते के भीतर खुद को जेल अधिकारियों के समक्ष सरेंडर करना होगा।
में हर मंच से इस मुद्दे को उठाता आ रहा हूं और मुझे आज खुशी है इस मामले में कुछ… pic.twitter.com/AJCM1PduRt— Jignesh Mevani (@jigneshmevani80) January 8, 2024
गौरतलब है कि ये जीत बिल्क़ीस के साथ ही इस देश की न्याय व्यवस्था में आस रखने वाली तमाम महिलाओं और अवाम की भी है, जो अपने खिलाफ हो रहे अत्याचारों के आगे घुटने नहीं टेकती, बल्कि हिम्मत के साथ डटकर उसका सामना करती हैं। जैसा कि इस फैसले के बाद बिल्क़ीस बानो की वकील वृंदा ग्रोवर ने भी कहा कि 'यह एक बहुत अच्छा फैसला है, जिसने कानून के शासन और इस देश के लोगों, विशेषकर महिलाओं की कानूनी व्यवस्था, अदालतों में विश्वास को बरकरार रखा है और न्याय का आश्वासन दिया है।'
हालांकि इस मामले में अभी पेच बाक़ी है। दोषियों की रिहाई रद्द करने का मूल कारण वो तकनीकी आधार है जिसमें कहा गया कि सज़ा माफ़ी का अधिकार गुजरात सरकार का नहीं बल्कि महाराष्ट्र सरकार को था। फ़ैसले के अनुसार सज़ा माफ़ी वह सरकार नहीं दे सकती जहां अपराध हुआ, बल्कि वह सरकार दे सकती है जहां मुक़दमा चला।
बार एंड बेंच की ख़बर के अनुसार—
“अदालत ने कहा कि रिहा किए गए दोषियों को वापस जेल भेजा जाना चाहिए, जहां वे उचित प्राधिकारी (महाराष्ट्र सरकार) के समक्ष फिर से छूट के लिए आवेदन कर सकते हैं।”
इससे साफ़ है कि दोषियों के सामने महाराष्ट्र सरकार के आगे भी सज़ा माफ़ी की अपील करने का रास्ता बचा है। और आप जानते हैं कि अब महाराष्ट्र में भी बीजेपी गठबंधन की सरकार है। इसका अर्थ यह है कि बिल्क़ीस मामले में एक मोर्चा जीता गया है लेकिन वह पूरी लड़ाई जीत गईं ऐसा कहना जल्दबाज़ी होगा। हो सकता है कि यह लड़ाई आगे भी जारी रहे।
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