बिलक़ीस मामला: पूर्व नौकरशाहों ने CJI को लिखा पत्र, कहा- सामूहिक बलात्कार तथा हत्या के दोषियों को वापस भेजें जेल
बिलक़ीस बानो बलात्कार और जनसंहार मामले में बलात्कारियों और अपराधियों की रिहाई के आदेश के खिलाफ देशभर में विरोध रहा है। अब 134 पूर्व नौकरशाहों के एक समूह ने भारत को नए मुख्य न्यायधीश को इस मामले में पत्र लिखा है। इस पत्र में दोषियों को रिहा करने के फैसले को पूरी तरह से गलत बताया गया है और इस फैसले को सुधारने के लिए भी गुहार लगाई गई है।
बिलक़ीस बानो गैंगरेप व उनके परिवार के 7 लोगों की हत्या के इस जघन्य मामले में 2008 में मुंबई की एक विशेष अदालत ने 11 आरोपियों को उम्र कैद की सजा सुनाई थी। जिसे बॉम्बे हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट ने भी बरकरार रखा था।
गुजरात सरकार रेमिशन पॉलिसी (remission policy) के तहत इन सभी जघन्य अपराधियों के रिहाई को मंजूरी दे दी गई । मामले में उम्रकैद की सजा पाए 11 लोगों को सोमवार, 15 अगस्त को आज़ादी की 75वीं सालगिरह के मौके पर गुजरात सरकार ने सजा माफ करते हुए रिहा करने का फ़ैसला किया। जिसके बाद वो गोधरा उप-जेल से बाहर आ गए हैं। सिर्फ यही नहीं इसके बाद दोषियों को विश्व हिंदू परिषद (विहिप) जैसे समूहों ने माला पहनाकर और मिठाई खिलाकर स्वागत किया।
इन लोगों ने 3 मार्च 2002 को गुजरात के दंगों के दौरान अहमदाबाद के पास एक गांव में बिलक़ीस के साथ सामूहिक बलात्कार किया था। वह उस समय 19 वर्ष की थी और गर्भवती थीं। इस हिंसा में उनके परिवार के चौदह सदस्य भी मारे गए थे, जिसमें उसकी तीन साल की बेटी भी शामिल थी, जिसका सिर अपराधियों द्वारा कुचल दिया गया था।
‘कंस्टीटयूशनल कंडक्ट ग्रुप' (Constitutional Conduct Group) के तत्वावधान में पूर्व नौकरशाह ने एक खुला पत्र लिखा । जिसमें उन्होंने लिखा: "बिलक़ीस बानो की कहानी, जैसा कि आप जानते हैं, अपार साहस और दृढ़ता की कहानी है। ... यह साहस की एक उल्लेखनीय कहानी है कि यह पूरी तरह से चोटिल और घायल युवती, अपने अत्याचारियों से छिपकर, अदालतों से न्याय पाने में कामयाब रही थी ।
पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में दिल्ली के पूर्व एलजी नजीब जंग, पूर्व कैबिनेट सचिव केएम चंद्रशेखर, पूर्व विदेश सचिव शिवशंकर मेनन व सुजाता सिंह और पूर्व गृह सचिव जीके पिल्लई जाहत हबीबुल्लाह, हर्ष मंदर, जूलियो रिबेरो, अरुणा रॉय, जी बालचंद्रन, राचेल चटर्जी, नितिन देसाई, एचएस गुजराल और मीना गुप्ता जैसे नाम शामिल हैं। पूर्व नौकरशाहों ने अपनी चिठ्ठी मे कहा है कि इन दोषियों की रिहाई से एक तरह से देश के साथ अत्याचार है। इसमें कहा गया है कि हम आपको इसलिए लिख रहे हैं क्योंकि गुजरात सरकार के इस फैसले हम अंदर तक व्यथित हैं। साथ ही हम मानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ही देश का शीर्ष न्यायिक संस्थान और उसके अंदर ही इस फैसले को सुधारने की क्षमता है।
इस जघन्य अपराध के आरोपी इतने प्रभावशाली थे और राजनीतिक रूप से इतना भयावह मुद्दा था कि न केवल इस मामले की जांच गुजरात पुलिस के बजाय केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा की गई , बल्कि पूरे मामले को स्थानांतरित भी किया गया था। बिलक़ीस बानो को मिली जान से मारने की धमकियों की वजह से निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित करने के लिए गुजरात से मुंबई की एक विशेष सीबीआई अदालत में भेजा गया। समूह उन रिपोर्टों की ओर भी इशारा भी किया जान के खतरों के कारण कुछ वर्षों में 20 बार घर बदलना पड़ा।
सरकार ने 11 दोषियों के छूट आदेश को पारित करने में की खामियों को बताते हुए कहा, "यह भी चौंकाने वाला है कि सलाहकार समिति के 10 सदस्यों में से पांच, जिन्होंने जल्दी रिहाई को मंजूरी दी थी, वेसभी भारतीय जनता पार्टी से है जबकि शेष पदेन सदस्य हैं। यह निर्णय की निष्पक्षता और स्वतंत्रता का महत्वपूर्ण प्रश्न उठाता है।"
पूर्व नौकरशाहों ने पत्र में कहा है कि इस रिहाई का प्रभाव भारत में बिलक़ीस बानो, उनके परिवार और समर्थकों के साथ-साथ विशेष रूप से अल्पसंख्यक और कमजोर समुदायों से संबंधित सभी महिलाओं की सुरक्षा पर होगा।
पत्र में यह भी कहा गया है, ‘‘हम इस बात से आश्चर्यचकित हैं कि उच्चतम न्यायालय ने इस मामले को इतना जरूरी क्यों समझा कि दो महीने के भीतर फैसला लेना पड़ा । साथ ही उच्चतम न्यायालय ने आदेश दिया कि मामले की जांच गुजरात की 1992 की माफी नीति के अनुसार की जानी चाहिए, न कि इसकी वर्तमान नीति के अनुसार.'' उन्होंने आगे कहा कि ‘‘हम आपसे गुजरात सरकार द्वारा पारित आदेश को रद्द करने और सामूहिक बलात्कार तथा हत्या के दोषी 11 लोगों को उम्रकैद की सजा काटने के लिए वापस जेल भेजने का आग्रह करते हैं।''
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