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''...अब ये (अनशन) चार हफ्ते चले या मृत्यु, जो भी पहले हो'' लद्दाख भवन के गेट पर ही अनशन पर बैठे सोनम वांगचुक

''हां, ये अनशन यहीं चलेगा, लेकिन कब तक चलेगा ये देखते हैं, क्योंकि मैं हमेशा से ऐसा करता आया हूं कि पहले एक हफ्ते का किया, फिर दो हफ्ते का, फिर तीन हफ्ते का अब ये चार हफ्ते या मृत्यु जो भी पहले हो''।
Sonam Wangchuk

''हां, ये अनशन यहीं चलेगा, लेकिन कब तक चलेगा ये देखते हैं, क्योंकि मैं हमेशा से ऐसा करता आया हूं कि पहले एक हफ्ते का किया, फिर दो हफ्ते का, फिर तीन हफ्ते का अब ये चार हफ्ते या मृत्यु जो भी पहले हो''। स्वतंत्र पत्रकार नाज़मा ख़ान ने सोनम वांगचुक से ख़ास बातचीत की।

दिल्ली मेट्रो से लद्दाख भवन जाते वक़्त लोगों के लिबास इस बात की तस्दीक कर रहे थे कि त्योहार का मौसम शुरू हो चुका है। वहीं लद्दाख भवन से चंद दूरी पर स्थित सियासी गलियारों में भी बेशक हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के चुनावी नतीजों को लेकर गहमागहमी चल रही होगी। त्योहार और चुनावी मौसम के बीच अगर दिल्ली के पुराने लोगों से पूछा जाए तो वो बताएंगे कि अक्टूबर का महीना दिल्ली में गुलाबी सर्दी का होता है लेकिन बीते कई सालों से अक्टूबर में भी दिल्ली के घरों में एसी चल रहे हैं। पर्यावरण की बदली ये चाल ना सिर्फ हमारे देश के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए ख़तरे की घंटी है।

पर्यावरण से ही जुड़ा एक शख़्स आज कल दिल्ली में अपनी आवाज़ देश के हुक्मरानों तक पहुंचाने की जद्दोजहद में लगा है, पर क्या कोई उन्हें सुनने वाला है?

दिल्ली के लद्दाख भवन पर अच्छी-ख़ासी तादाद में पुलिस बल की मौजूदगी अपने आप ही माहौल को कुछ बोझिल कर रही थी। तेज़ धूप में ज़मीन पर बैठे क़रीब 10 से 15 लोग गा रहे थे '' हम होंगे कामयाब एक दिन'' क्या पता वो दिन कब आएगा?

ये लोग 'दिल्ली चलो मार्च' के वो पैदल यात्री हैं जो सोनम वांगचुक की अगुवाई में क़रीब एक हज़ार किलोमीटर का सफर तय कर 30 दिनों में लेह से दिल्ली पहुंचे। लेकिन दिल्ली पहुंचते ही उन्हें हिरासत में ले लिया गया था, इन लोगों को 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी की समाधि राजघाट जाना था और बाद में जंतर-मंतर पर शांतिपूर्वक प्रदर्शन के लिए बैठना था, साथ ही ये लोग दिल्ली में शीर्ष नेतृत्व से मुलाक़ात कर उन्हें उन वादों (6th शिड्यूल को लागू करना) की याद दिलाने आए थे जो कभी उनसे लिखित में किए गए थे। मुलाकात तो दूर उन्हें दिल्ली में किसी भी जगह पर शांतिपूर्वक प्रदर्शन की भी इजाज़त नहीं मिल रही। जंतर-मंतर पर इजाज़त ना मिलने का दर्द सोनम वांगचुक ने सोशल मीडिया पर शेयर करते हुए लिखा - ''गांधी के ही देश में गांधी का रास्ता अपनाना इतना मुश्किल क्यों है, कोई तो राह होगी? ''

सोनम वांगचुक समेत दिल्ली पहुंचे पैदल यात्रियों में से कुछ लोगों ने दिल्ली के लद्दाख भवन के गेट पर (अंदर की तरफ) ही धरना-प्रदर्शन शुरू कर दिया, हमने सोनम वांगचुक से एक ख़ास बातचीत की।

बता दें सोनम वांगचुक का ये इंटरव्यू लद्दाख भवन के एक कोने में घुस कर करना पड़ा उन्हें बाहर आकर इंटरव्यू भी नहीं देने दिया गया।

सवाल: इस तरह से (लद्दाख भवन के कोने में खड़े होकर) इंटरव्यू देते हुए आपको कैसा लग रहा है?

सोनम वांगचुक : एक उदासी भरी हंसी के साथ वे कहते हैं- अच्छा तो नहीं लग रहा है, ऐसा नहीं होना चाहिए, देश का जो चौथा स्तंभ है मीडिया उसे और नागरिकों को अलग रखा जा रहा है।

सवाल: अभी की स्थिति क्या है क्या आपको हिरासत में रखा गया है, गिरफ्तार किया गया है, या क्या है ?

सोनम वांगचुक : नहीं, मैं डिटेंड (हिरासत में) तो नहीं कहूंगा औपचारिक रूप से, पर खुली छूट भी नहीं है, अगर आप आना चाहें तो आपको पता चल जाएगा।

सवाल: करीब 30 दिन, और करीब एक हज़ार किलोमीटर, वेदर चेंज, और पैरों में छाले लिए जब आप दिल्ली में आए तो क्या आपको 'ऐसे स्वागत' की उम्मीद थी?

सोनम वांगचुक : (दोबारा एक उदास हंसी के साथ) नहीं, बिल्कुल नहीं, हमने तो सपनों में भी नहीं सोचा था, बल्कि हमने तो सोचा था कि हमारी बातों को ध्यान से सुनेंगे, क्योंकि हमने तो बहुत पहले से सिग्नल दिया था। हम किसी राजनीति में रुचि नहीं रखते हैं, जैसे हम कश्मीर से नहीं गए कि कश्मीर में चुनाव है हम किसी पक्ष, विपक्ष में नहीं जाना चाहते, जब हरियाणा आया तो हम हरियाणा से भी बसों में आए। इससे उन्हें समझ जाना चाहिए था कि हम तो सिर्फ एक संदेश लेकर आ रहे हैं अपने शीर्ष नेताओं से मिलने, हम नहीं चाहते थे कि हमें दुश्मन की तरह देखा जाए। हम हैरान हैं कि इतनी प्रतिक्रिया क्यों? डेढ़ सौ बड़े-बूढ़े बुजुर्गों पर, 80 साल के बुजुर्गों पर, महिलाओं पर, फिर भूतपूर्व सैनिकों (दर्जनों) पर हज़ारों पुलिस हथियारों से लैस, ऐसी क्या जरूरत पड़ गई इस अतिप्रतिक्रिया की?

सवाल: लद्दाख में पांच दिन के अनशन के साथ शुरू हुआ आंदोलन अब दिल्ली आ पहुंचा है लेकिन आपको दिल्ली आते ही हिरासत में ले लिया गया, ऐसा क्या डर था आप लोगों से?

सोनम वांगचुक : वो तो आप उनसे पूछें, हमें तो नहीं मालूम हम तो डरावने नहीं लगते।

सवाल: किन मांगों के साथ आप दिल्ली आए हैं?

सोनम वांगचुक : मांगें बहुत जायज़ हैं, लद्दाख के लोग लोकतंत्र की बहाली चाह रहे हैं, जैसा पूरे देश में लोकतंत्र है वैसा ही।

दूसरा लद्दाख का क्षेत्र 6th शेड्यूल में सम्मिलित हो जो कि एक उम्मीद ही नहीं सरकार का वचन था। 2019-20 के चुनाव में जो वो जीते इस बलबूते पर जीते कि उन्होंने ये वचन दिया कि आपको हम 6th शेड्यूल में शामिल करेंगे, ये तो लिखित में है।

6th शेड्यूल में होता क्या है कि- जैसे राज्य में विधानसभा होती हैं, वैसे ही जनजातीय क्षेत्रों में जिले के स्तरों पर छोटी सी विधानसभा होती है जिसे जिला परिषद कहा जाता है वो स्वायत्त जिला परिषद होती है जहां प्रतिनिधियों को अपने कानून अपने जिले के लिए बनाने का हक होता है जिससे की वो अपनी संस्कृति, अपने पर्यावरण, जंगल, जल का संचालन कर सके बस इतनी सी मांग है कि लोगों तक लोकतंत्र के फल पहुंचे (ग्रासरूट तक)।

सवाल: सर, आपको लगता है कि आपने दिल्ली आने के लिए ग़लत वक़्त चुना क्योंकि इस वक़्त चुनाव चल रहे हैं?

सोनम वांगचुक : (बेहद नाराज़गी के साथ) किस वक़्त चुनाव नहीं हैं आप बताइए, जब एक महीना कोई चलेगा तो उसके शुरू में या अंत में कोई ना कोई चुनाव होगा, फिर ये लेह-दिल्ली का सफर ऐसा नहीं है कि जब उठकर चले जाओ। ये तो (रास्ते) 6 महीने के लिए बंद रहता है, गर्मियों में यहां (दिल्ली) नर्क जैसी हालात होती है, तो यही समय था।

सवाल: तो क्या अभी तक आपने उन शीर्ष नेताओं से मिलने की कोशिश की जिनसे आप मिलने आए थे? और अगर मिलने की कोशिश की तो क्या जवाब मिला?

सोनम वांगचुक : धरने पर बैठे अपने साथियों को दिखाते हुए वे कहते हैं ये जो आप पीछे देख रहे हैं ये कोशिश ही तो है, आश्वासन देने के बावजूद, एक तरह का वचन दिया था गृह मंत्रालय के अधिकारियों ने, कहा था कि हम अगले दो दिनों में तिथि देंगे प्रधानमंत्री जी या राष्ट्रपति जी या गृह मंत्री जी से मिलने के लिए मगर दो दिन ख़त्म हो गए और वे भूल गए तो फिर हमें ये करना पड़ा। (अनशन)

सवाल: ये अनशन क्या यहीं (लद्दाख भवन में) चलेगा और कब तक चलेगा?

सोनम वांगचुक : हां, ये यहीं चलेगा, लेकिन कब तक चलेगा ये देखते हैं, क्योंकि मैं हमेशा से ऐसा करता आया हूं कि पहले एक हफ्ते का किया, फिर दो हफ्ते का, फिर तीन हफ्ते का अब ये चार हफ्ते या मृत्यु जो भी पहले हो।

लद्दाख भवन के गेट के अंदर धरने पर बैठे लद्दाख से आए पैदल यात्री

सवाल: चुनाव में पर्यावरण मुद्दा क्यों नहीं बनता?

सोनम वांगचुक : पर्यावरण मुद्दा होना चाहिए, पर्यावरण मुद्दा होने का मतलब है कि अपने बच्चों के पीने का पानी कैसा हो वो ज़हर ना हो, वो जो सांस लेते हैं वो ज़हर ना ले रहे हों, ये मुद्दा है और लोगों को ये नहीं समझ आ रहा है। आप किस जाति के हो वो किस प्रजाति का है, वो बुरा है ये अच्छा है, उससे कहीं ज़्यादा ज़रूरी है कि आप पानी क्या पी रहे हैं, आप कैसी हवा में सांस ले रहे हैं, आपके यहां अगला तूफान कब आएगा, आपके जंगल में आग कब लगेगी और खेती खत्म कब हो जाएगी ये मुद्दे अगर ना हो तो फिर क्या मुद्दे हों, ये समझ लोगों में नहीं है इसलिए ये (पर्यावरण) चुनाव में मुद्दा नहीं बन पाते।

इसे भी पढ़ें : सोनम वांगचुक ने की लद्दाख के लोगों के 'मन की बात' लेकिन क्या दिल्ली तक पहुंची बात?

जिस छठी अनुसूची को लागू करने की मांग के साथ सोनम वांगचुक दिल्ली पहुंचे हैं उसमें कुछ ख़ास प्रावधान होते हैं।

क्या है छठी अनुसूची?

छठी अनुसूची हमारे संविधान के अनुच्छेद 244 के तहत आती है जिसमें कुछ ख़ास प्रोविज़न (प्रावधान) होते हैं।

ये भारत के संविधान में किया गया एक ऐसा प्रोविज़न है, जो ट्राइबल इलाक़ों को Self Administration का अधिकार देता है।

नॉर्थ-ईस्ट के असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम राज्यों के जनजाति क्षेत्रों को छठी अनुसूची में शामिल किया गया है।

इसके तहत ADCs (Autonomous District Councils) बनते हैं जिसमें लोकतांत्रिक तरीके से चुनाव होते हैं और इस काउंसिल के लोग राज्यपाल (गवर्नर) को सलाह दे सकते हैं कि इलाक़े की भलाई के लिए क्या क़दम उठाए जा सकते हैं।

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