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बजट 2023 : "मज़दूरों और ग़रीबों के ख़िलाफ़"

ट्रेड यूनियन के नेताओं ने बातचीत में इस बजट को पूंजीपतिपरस्त व मज़दूर विरोधी करार दिया है। साथ ही इस बजट को महज़ आंकड़ों का मकड़जाल व आम जनता के लिए 'ऊंट के मुंह में जीरा' डालने के समान बताया है।
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केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार 2.0 का अंतिम पूर्ण बजट बुधवार को संसद में पेश किया गया जिसे लेकर प्रधानमंत्री मोदी ने खुद कहा कि ‘किसान, मज़दूर, और गरीब के सपने इस बजट से पूरे होंगे’। तो आखिर इस बजट में मज़दूरों के लिए क्या है और मज़दूर संगठन इस बजट के बारे में क्या राय रखते है इसे समझने के लिए हमनें ट्रेड यूनियन नेताओं और संगठन से संपर्क किया। मौटेतौर पर सभी सेंट्रल ट्रेड यूनियन ने इस बजट को लेकर निराश ही जताई और इसे मज़दूरों और गरीबों के खिलाफ बताया हालांकि सरकार का समर्थन करने वाली और आरएसएस से जुड़ी यूनियन भारतीय मज़दूर संघ ने इस बजट को कल्याणकारी और अर्थव्यवस्था के हित में बताया है। हालांकि  उन्होंने अपने उसी बयान में वे पेंशन व्यवस्था और स्कीम वर्कर्स के मानदेय में बढ़ोतरी न होने पर निराशा भी ज़ाहिर की है। पूरे बयान को देखें तो वो सरकार समर्थित दिखना ज़रूर चाहते हैं लेकिन दबी आवाज़ में वो भी इस बजट को श्रमिकों के सवालों का समाधान न करने को लेकर आलोचना करते भी नज़र आते हैं।

बजट 2023-24 अप्रभावी और खोखला है : एटक

केंद्रीय ट्रेड यूनियन ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एटक) ने अपने बयान में कहा कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने अपना आखिरी पूर्ण बजट 'अमृत काल बजट' के रूप में धूमधाम से पेश किया है। लेकिन हमेशा की तरह प्रधानमंत्री के शब्दों और उपहासों की बमबारी ने उनके बजट भाषण के पर्याप्त हिस्से को भर दिया। संक्षेप में, रोज़गार, स्वास्थ्य, शिक्षा, मूल्य वृद्धि आदि जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान दिए बिना उनका ये बजट खोखला है। ये केवल मतदाताओं को लुभाने के इरादे से उपलब्ध कराए गए कुछ हैंडआउट्स हैं, जबकि जन केंद्रित आर्थिक विकास और मानव विकास की ओर बढ़ने के उद्देश्य से कुछ भी नहीं है। भाषण में झूठ और जुमलेबाज़ी का तड़का लगा था और उपलब्धियों के रूप में प्रस्तुत किए गए अनुमान सत्य से बहुत दूर हैं।

उनके बयान में आगे कहा गया कि ट्रेड यूनियन पुरानी पेंशन योजना, सभी को सामाजिक सुरक्षा, सभी को पेंशन, योजनाबद्ध श्रमिकों को नियमित करने, कृषि श्रमिकों सहित असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए न्यूनतम मज़दूरी आदि की मांग कर रहे हैं। लेकीन यह एक ऐसा बजट है जो राष्ट्र के हितों को पीछे छोड़ देता है। बजट में दीर्घकालिक रोज़गार और गुणवत्तापूर्ण नौकरियों के सृजन पर ध्यान नहीं दिया गया है।

एटक ने इनकम टैक्स में छूट को लेकर कहा कि मध्यम वर्ग को 7 लाख तक की टैक्स छूट से लुभाया जा रहा है। यह औपचारिक वेतनभोगी कार्य बल का एक छोटा सा वर्ग है। यह महज़ वोट बैंक को आकर्षित करने का एक उपाय है। साथ ही उन्होंने महिलाओं और वरिष्ठ नागरिकों को कोई राहत नही दी। इसके अलावा बजट में बढ़ती लैंगिक मज़दूरी असमानता और घटती महिला रोज़गार दर को संबोधित नहीं किया गया है। ये बजट मानव और सामाजिक विकास के उत्थान में पूरी तरह से विफल रहा है। यह भूख, गरीबी, बेरोज़गारी, बढ़ती हुई महंगाई जैसी महत्वपूर्ण समस्याओं को संबोधित नहीं करता है।

तथाकथित अमृत काल का बजट राजनीतिक जुमले के अलावा और कुछ नहीं : सीआईटीयू

सेंटर ऑफ इंडिया ट्रेड यूनियंस (सीटू) के महासचिव तपन सेन ने बजट पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि ये बजट एक राजनीतिक जुमले के अलावा और कुछ नहीं है। इस बजट में देश की गंभीर आर्थिक स्थिति पर एक शब्द का ज़िक्र भी नहीं है। आर्थिक सर्वेक्षण ने एक गुलाबी तस्वीर पेश करके असल सच्चाई को छिपाने की कोशिश ज़रूर की है।

सरकार और उसके समर्थकों द्वारा इस बजट को देश की आर्थिक व्यवस्था के लिए अच्छा बताने वाले दावे को लेकर सीटू ने कहा कि, "आर्थिक सर्वेक्षण ने ही 2022-23 में जीडीपी में 6.5% की गिरावट की भविष्यवाणी की थी। स्वतंत्र भारत के इतिहास में लगातार चार वर्षों तक विकास का ऐसा निचला चक्र अभूतपूर्व है। मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में गिरावट है, जो पिछले वित्त वर्ष के 9.9% के मुकाबले घटकर 1.6% रह गई। यह बजट न केवल नौकरियों के नुकसान, श्रमिकों और आम लोगों के बिगड़ते काम और रहने की स्थिति से बेख़बर है, बल्कि ख़तरनाक बेरोज़गारी और बढ़ती मुद्रास्फीति से भी आँखें मूँदे हुए है जिसके परिणामस्वरूप श्रमिकों और आम लोगों को भारी पीड़ा हुई है। इसके अलावा यह बजट आर्थिक सर्वेक्षण में उल्लिखित जोखिमों को भी संबोधित करने में विफल है जैसे वैश्विक मंदी के कारण निर्यात वृद्धि में ठहराव, चालू खाता घाटे का बढ़ना, रुपये का निरंतर मूल्यह्रास, उच्च ऋण जीडीपी अनुपात आदि।"

सीटू ने आगे कहा, "हाल ही में जारी हुई ऑक्सफैम की रिपोर्ट बताती है कि भारत के निचले आधे लोग शीर्ष 10% की तुलना में अप्रत्यक्ष करों पर छह गुना अधिक भुगतान करते हैं। बजट ने सुपर अमीरों पर टैक्स की दर को और भी कम कर दिया है। दूसरी ओर, इसने वित्त वर्ष के संशोधित अनुमानों की तुलना में खाद्य सब्सिडी में 29%, NFSA के तहत विकेंद्रीकृत खरीद के लिए सब्सिडी में 17%, मध्याह्न भोजन के लिए आवंटन में 9.4% और पोषक तत्वों पर आधारित सब्सिडी में 38% की कटौती की है (वित्त वर्ष 2022)। भोजन पर सकल सब्सिडी में 31% की कमी की गई है। यह तब किया गया है जब भारत दुनिया में सबसे अधिक भूखे और कुपोषित लोगों का देश है।"

सीटू ने कहा, "बजट स्पष्ट रूप से दिखाता है कि मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने कोविड महामारी के दौरान स्वास्थ्य आपदा से कोई सबक नहीं सीखा है, जिसने हमारे देश में सार्वजनिक स्वास्थ्य ढांचे की दयनीय स्थिति को उजागर किया। बजटीय आवंटन बढ़ाने के बजाय, बजट ने आयुष्मान भारत के लिए आवंटन में 34% की भारी कमी की इसके अलावा एनएचएम के लिए आवंटन पिछले साल के अनुमान से 1% कम कर दिया गया है।"

सीटू ने देश के सार्वजनिक संपत्ति के निजीकरण पर भी सवाल उठाया और कहा कि, "सरकार का ये बहुप्रचारित कैपेक्स खर्च वास्तव में राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन के माध्यम से अत्यधिक राजस्व पैदा करने वाली सार्वजनिक संपत्तियों को उपहार में देकर एकत्र किए गए अग्रिम धन द्वारा वित्त पोषित है, जिसमें 9 लाख करोड़ रुपये एकत्र करने की परिकल्पना की गई है। यह और कुछ नहीं बल्कि अगले 30-35 वर्षों के लिए सरकार की राजस्व वसूली की क्षमता को खत्म करने और इसे निजी कंपनियों खासकर सरकार के करीबियों की झोली में दाल देने वाला कदम है। बजट में पीएसयू निवेश में 11 फीसदी की कमी की गई है। रोज़गार सृजन, एमएसएमई के समर्थन के लिए भी बजट में कुछ नहीं है। साथ ही बजट से आम लोगों को जीएसटी में कोई राहत नहीं मिलती है।"

बयान में आगे कहा गया कि, "ये बजट में देश के गरीबों, विशेषकर महिलाओं और बच्चों को स्वास्थ्य, शिक्षा, पोषण और बाल देखभाल सेवाएं प्रदान करने वाली दसियों लाख आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और सहायिकाओं, आशा, मिड-दे मील कार्यकर्ताओं आदि को उनके पारिश्रमिक और लाभों में कोई सुधार किए बिना पूरी तरह से उपेक्षित करता है।

सीटू ने अपने बयान में इसे मेहनतकश लोगों के खिलाफ बताया और उन्होंने संबंधित योजनाओं में कटौती का ज़िक्र किया और कहा कि, "मनरेगा के लिए आवंटन में पिछले साल के संशोधित अनुमानों से 33% की भारी कटौती की गई है। बजट में राष्ट्रीय आजीविका मिशन के लिए भी आवंटन कम किया गया है। अत्यधिक विज्ञापित आत्मनिर्भर भारत रोज़गार योजना के लिए आवंटन में भी 65% की कमी की गई है। सबसे जघन्य हमला मज़दूरों पर हुआ। जबकि वित्त वर्ष 2021 में श्रम संबंधी केंद्रीय क्षेत्र की योजनाओं/परियोजनाओं पर वास्तविक खर्च 23165 करोड़ रुपये था, इस बजट ने इसे लगभग आधा घटाकर सिर्फ 12435 करोड़ रुपये कर दिया है। पेंशन के लिए फंड में 4.2% की कटौती की गई है।"

मज़दूर संगठन ने अपने बयान में कहा कि, "ये बजट मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के जनविरोधी, राष्ट्रविरोधी और कॉर्पोरेट हितैषी चरित्र का एक और सबूत है। तथाकथित अमृत काल का यह पहला बजट लोगों के लिए ज़हरीला साबित हुआ है। जबकि कुछ मायनों में यह उम्मीद थी कि 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले आखिरी बजट होने के कारण सरकार लोगों को कुछ राहत दे सकती है। संभवत: भाजपा-आरएसएस अपने सांप्रदायिक विभाजनकारी एजेंडे पर अधिक भरोसा करना चाहती है। मज़दूर वर्ग और आम जनता को इनके तमाम हथकंडों के प्रति सतर्क रहना होगा।"

बीएमएस ने बजट को कल्याण और अर्थव्यवस्था हितैषी कहा लेकिन पेंशन और स्कीम वर्कर को लेकर जताई नाराज़गी !

भारतीय मज़दूर संघ (बीएमएस) जोकि बीजेपी सरकार की समर्थक मानी जाती रही है और आरएसएस से भी जुड़ी है, उसने बजट पर अपनी संतुलित प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि वित्त मंत्री द्वारा प्रस्तुत किए गए बजट 2023 का उद्देश्य कई कल्याणकारी उपाय करना और बड़े पैमाने पर अर्थव्यवस्था को मजबूत करना है।

साथ ही उन्होंने कहा कि उनकी कुछ प्रमुख मांगों को सरकार ने स्वीकार किया है जिसके लिए वो वित्त मंत्री को धन्यवाद देते हैं।

बीएमएस ने गटर के मैनहोल और सीवरेज की सफाई के लिए मशीन के उपयोग को लेकर सरकार की घोषणा, और इसके साथ ही आयकर में छूट, बुजुर्गों की सेविंग लिमिट को दोगुना करने, मछली पालकों के लिए विशेष पैकेज और स्किल डेवलपमेंट पर प्रमुखता देने पर खुशी जताई है।

हालांकि सीवर में मशीन से सफाई के लिए ये कोई नई घोषणा नहीं है। पहले भी देश में कानूनी रूप से हाथ से मैला ढोना प्रतिबंधित है लेकिन सरकारे इसे रोकने में असफल रही हैं। जिस वजह से आज भी आधुनिक भारत में सफाई मज़दूर गटर में मरने के लिए मजबूर हैं। मोदी सरकार ने खुद देश की संसद में बताया है कि साल 2017 से लेकर 2022 तक कम से कम 400 सफाई कर्मचारी अपनी जान गंवा चुके हैं। देश में एक तरफ सरकार जहां पिछले कई सालों से स्वच्छता और विकास का ढोल पीट रही है वहीं सच यह है कि आज भी देश में सीवर, सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान जान गंवाने वाले मज़दूरों का सिलसिला रुक ही नहीं रहा है। हालांकि सरकार ने इस बजट में एकबार फिर इसकी घोषणा की है लेकिन क्या सरकार इस घोषणा को ज़मीन पर लागू कर पाएगी या एकबार फिर ये हवा-हवाई बात ही रह जाएगी, ये एक गंभीर सवाल है।

इसके अलावा बीएमएस ने रक्षा, परिवहन, रेलवे, संचार, MSME क्षेत्र और युवाओं के लिए नौकरियों को उच्च प्राथमिकता देने का भी स्वागत किया और साथ ही विश्वकर्मा कौशल सम्मान पैकेज और नए उत्पादन में सहकारी समितियों को 15% छूट का भी स्वागत किया है।

हालांकि सरकार की तारीफ के साथ ही उसने दबे स्वर में ही सही लेकिन उद्योगों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के इस्तेमाल को लेकर सरकार को चेताया और सरकार को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के लिए कुछ नियम कानून तय करने को कहा जिससे ये तय हो कि कहां इसका उपयोग किया जा सकता है और कहां इसका उपयोग नहीं किया जाना चाहिए।

इसके साथ ही उन्होंने ईपीएस पेंशनभोगियों के लिए इस बजट को निराशाजनक बताया है और न्यूनतम पेंशन एक हज़ार को जारी रखने को लेकर कहा कि पेंशन पाने वाले ईपीएस पेंशनभोगियों के लिए ये बजट निराशा लेकर आया है क्योंकि पिछले तीन वर्षों से देशभर में उनके आंदोलन किए जा रहे हैं और पेंशनभोगी इस बजट से काफी उम्मीद लगाए थे लेकिन बजट उनकी आशाओं को पूरी नहीं कर सका है। आरएसएस की यूनियन ने कहा कि कम से कम उन्हें आयुष्मान भारत योजना में शामिल किया जा सकता था।

इसके साथ ही उन्होंने कहा कि देशभर में लंबे समय तक काम करने के बावजूद मामूली मासिक मानदेय पाने वाली आशा और आंगनबाडी कार्यकर्ताओं जैसी स्कीम वर्कर्स के लिए भी ये बजट निराशजनक है।

ट्रेड यूनियन के नेताओं ने बातचीत में इस बजट को पूंजीपतिपरस्त व मज़दूर विरोधी करार दिया है। साथ ही इस बजट को महज़ आंकड़ों का मकड़जाल व आम जनता के लिए ऊंट के मुंह में जीरा डालने के समान बताया है।

साथ ही सेंट्रल ट्रेड यूनियन सीटू ने देशभर में अपनी सभी समितियों, सहयोगियों तथा मज़दूर वर्ग व मेंहनतकश जनता के व्यापक हिस्सों से इस बजट का कड़ा विरोध करने और कार्यस्थलों व आवासीय क्षेत्रों में इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने का आह्वान किया है।

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