कोविड-19 : तब्लीग़ी जमात को निशाना बनाने के पीछे दिल्ली सरकार की नाकामी तो नहीं?
दिल्ली: दिल्ली सरकार के कहे अनुसार कोरोनो वायरस से जुड़े दिशा-निर्देशों का कथित तौर पर उल्लंघन करने के आरोप में तब्लीग़ी जमात के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज कर ली गई है। इस मुस्लिम समूह ने आरोपों का खंडन करते हुए कहा है कि लॉकडाउन के कारण अंदर फ़ंसे प्रचारकों के बारे में अधिकारियों को सूचित करने के अलावा किसी भी तरह की सभा के होने पर रोक लगाकर जमात ने मानदंडों का अनुपालन किया है।
15 मार्च तक निज़ामुद्दीन पश्चिम में अपने मरकज़ (मुख्यालय) में तब्लीग़ी जमात द्वारा आयोजित 'इज्तिमा' यानी सम्मेलन या सभा में भाग लेने वाले कई लोगों में बाद में COVID-19 संक्रमण के लक्षण विकसित होते पाये गये थे, उन्हें 29-30 मार्च की रात और बाद में भी दिल्ली सरकार के विभिन्न अस्पतालों में ले जाया गया। सरकार ने कहा है कि उनकी जांच की जा रही है।
उस इज्तिमा में किर्गिस्तान, सऊदी अरब, इंडोनेशिया और मलेशिया से आये हुए लोग शामिल थे। 15 मार्च को तेलंगाना से इस इज्तिमा में भाग लेने आये छह लोगों की तेलंगाना में मौत हो गयी, इस इज्तिमा में भाग लेने वाले एक आगंतुक की पिछले हफ़्ते श्रीनगर में मौत हो गयी थी। दिल्ली आने से पहले, वह उत्तर प्रदेश के देवबंद मदरसा भी गया था।
दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन के मुताबिक़, 24 लोगों का परीक्षण पॉज़िटिव पाया गया है, जबकि 700 लोगों को निज़ामुद्दीन पश्चिम क्षेत्र में क्वारंटाइन में रखा गया है और कम से कम 335 लोगों को अस्पतालों में भर्ती कराया गया है।
अपडेट ये है कि दिल्ली पुलिस ने सरकारी निर्देशों के उल्लंघन के लिए तब्लीग़ी जमात के मौलाना साद और अन्य प्रचारकों के खिलाफ एपिडेमिक डिजीज एक्ट, 1897 की धारा 3 के साथ आईपीसी की धारा 269, 270, 271 और 120 बी (आपराधिक साजिश) के तहत मामला दर्ज कर लिया है।
क्या जहां क़ानूनी ज़िम्मेदारी नाकाम हो, वहां नैतिकता ज़िम्मेदार है?
हालांकि, न्यूज़क्लिक के हाथ लगे दस्तावेज़ नगर प्रशासन की गंभीर खामियों की ओर इशारा करते हैं। 24 मार्च को अचानक हुए लॉकडाउन की घोषणा के बाद, मरकज़ प्रशासन ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा था कि उसने निज़ामुद्दीन पुलिस स्टेशन को एक एक्ज़क्यूशन रिपोर्ट भेज दी थी, जिसमें बताया गया था कि मुख्यालय में मौजूद 1,500 लोगों को वापस भेज दिया गया है। कहा गया था कि 1,000 से अधिक लोग अब भी परिसर में थे और आवश्यक वाहनों के नहीं होने और ट्रेनों के रद्द किये जाने के कारण उनका निकल पाना मुश्किल था।
मरकज़ प्रशासन ने यह भी दावा किया है कि उसने उसी दिन एसडीएम से संपर्क साधा था और उसे अगले ही दिन मिलने के लिए बुला लिया गया था। 25 मार्च को सुबह 11 बजे मिलने का समय दिया गया। विज्ञप्ति में कहा गया है कि एसडीएम की तरफ़ से किसी तरह की कोई तत्परता नहीं दिखायी गयी थी।
मरकज़ ने एसएचओ से इस मामले में तेज़ी लाने का भी आग्रह किया था ताकि फंसे हुए लोगों को उनके सम्बन्धित राज्यों में वापस भेजा जा सके।
“24 मार्च, 2020, डीओ नंबर 293, आपके पत्र के सम्बन्ध में आपको सूचित करना है कि मरकज़ को बंद करने के आपके निर्देशों का हम पालन करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। 23 मार्च, 2020 को हम पहले ही मरकज़ से 1,500 से अधिक लोगों को खाली करा चुके हैं। हमारे पास मरकज़ में अब भी अलग-अलग राज्यों के 1,000 से अधिक लोग हैं। आपके निर्देशों के मुताबिक़, हमने वाहन पास के लिए माननीय एसडीएम से संपर्क किया है ताकि हम बाक़ी लोगों को उनके सम्बन्धित स्थानों पर भेज सकें। एसडीएम कार्यालय ने 25 मार्च, 2020 को सुबह 11 बजे मिलने का समय दिया है। इसलिए आपसे अनुरोध है कि आप शीघ्र कार्रवाई के लिए एसडीएम से संपर्क करें। हम आपके सभी निर्देशों का पालन करने के लिए तैयार हैं।”
न्यूज़क्लिक ने किसी मौलाना यूसुफ़ द्वारा हस्ताक्षरित 25 मार्च के इस आवेदन को देखा और पढ़ा है।
इस प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि उनके पंजीकरण नंबर और ड्राइवरों के नाम और लाइसेंस संख्या वाले 17 वाहनों की सूची उस आवेदन के साथ लगी हुई थी।
हजरत निज़ामुद्दीन पुलिस स्टेशन के एसएचओ को पहले ही भेजे जा चुके अनुपालन रिपोर्ट-सह-आवेदन के बावजूद, 28 मार्च को एक पत्र लाजपत नगर के सहायक पुलिस आयुक्त (एसीपी), अतुल कुमार द्वारा भेजा गया था, जिसमें कहा गया था कि "आदेश पर ठीक से कार्रवाई नहीं की गयी है।" उन्होंने मरकज़ प्रशासन से अभूतपूर्व और आकस्मिक स्थिति पर विचार करने के लिए कहा। महामारी रोग अधिनियम,1957 के तहत क़ानूनी कार्रवाई की चेतावनी भी दी गयी थी।
“प्रस्ताव पत्र संख्या,293-SHO / हज़रत निज़ामुद्दीन,दिनांक 23 मार्च, 2020 को हज़रत निज़ामुद्दीन के एसएचओ के कार्यालय से प्राप्त किया गया, जिसमें यह सूचित किया गया कि भारत सरकार के पूर्ण लॉकडाउन के आदेश, इस सम्बन्ध में आदेश जारी किये गये दिल्ली सरकार की एनसीटी और धारा 144 सीआरपीसी के तहत जारी प्रतिबंधात्मक आदेश, जिसकी विधिवत रूप से घोषणा की गयी है, जिसमें दस्तख़त करने वाले का कार्यालय भी शामिल हैं, इन सबके बावजूद कई लोग निज़ामुद्दीन स्थित मरकज़ में इकट्ठे हुए हैं। अलग-अलग अफ़सरों के आदेश में इस बात को कहा गया है कि चार (4) से अधिक व्यक्तियों का एक साथ इकट्ठा होना निषिद्ध है।”
“आपको पूर्वोक्त क़ानून के आदेश का पालन करने का निर्देश दिया जा चुका है, लेकिन उस पर ठीक से अमल नहीं किया गया है । अभूतपूर्व और आकस्मिक स्थिति और बड़े पैमाने पर सार्वजनिक हित की भावना को ध्यान में रखते हुए, आपको एक बार फिर पत्र में उल्लेखित क़ानूनी निर्देशों का पालन करने के लिए निर्देश दिया जाता है, जिसमें विफल होने पर IPC (भारतीय दंड संहिता) की धारा 188/269/270 सहित महामारी रोग अधिनियम, 1957 की धारा 3 और अन्य क़ानूनी प्रावधान के तहत क़ानूनी कार्रवाई की जायेगी।”
इस पत्र में छह निर्देशों को सूचीबद्ध किया गया है। ये निर्देश हैं- कम से कम छह फ़ीट की सोशल डिस्टेंसिंग को सुनिश्चित करना, ठंड और खांसी और बुख़ार महसूस करने वालों को पूरी तरह क्वारंटाइन और आइसोलेशन में रखना और इसके बारे में तुरंत सम्बन्धित एसडीएम और चिकित्सा अधिकारियों को सूचित करना, क्वारंटाइन और आइसोलेशन में रखे जा रहे लोगों को नियमित अंतराल पर अपने हाथों को धोने के लिए शिक्षित करना, उनके लिए सैनिटाइज़र और फेस मास्क का इंतज़ाम करना और दिल्ली सरकार और सार्वजनिक अधिकारियों द्वारा जारी निर्देशों का पालन करना।
29 मार्च को मरकज़ प्रशासन द्वारा इस पत्र का जवाब दिया गया, जिसमें कहा गया था कि 'तबलीग़ मरकज़' यानी बंगले वली मस्जिद, हज़रत निज़ामुद्दीन, नई दिल्ली, तब्लीग़ी जमात का "अंतर्राष्ट्रीय केंद्र" है, जो हमेशा और हर समय हमारे देश के साथ-साथ हमारे पड़ोसी देशों से आने वाले लोगों से भरा होता है। दुनिया भर में महामारी को देखते हुए केंद्र और राज्य सरकारों की तरफ़ से जारी विभिन्न निषेधात्मक लॉकडाउन आदेश और आपके कार्यालय से जारी आदेश के समय भी यही स्थिति थी।”
इस पत्र को पढ़ने से इस आरोप का खंडन होता दिखता है कि लॉक-डाउन के बावजूद इस मुख्यालय में लोग इकट्ठे हुए थे। इस पत्र में आगे कहा गया है,“...निषेधात्मक-लॉकडाउन आदेशों के बावजूद कई लोगों के इकट्ठा होने का सवाल तो बिल्कुल भी नहीं पैदा होता, क्योंकि ये लोग पहले से ही मरकज़ के अंदर थे और निषेधात्मक-लॉकडाउन के आदेशों की घोषणा के समय दूसरे किसी भी नये व्यक्ति को प्रवेश करने और यहां इकट्ठा होने की अनुमति नहीं थी। क्योंकि लॉकडाउन के आदेशों के बाद मरकज़ के सभी दरवाज़े तुरंत बंद कर दिये गये थे।”
मरकज़ ने दावा किया है कि उसने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा घोषित 22 मार्च को "जनता कर्फ़्यू" का पालन किया था। आगे कहा गया है कि 23 मार्च को मरकज़ को "बहुत हद तक ख़ाली" कर दिया गया था। एसीपी को लिखे पत्र में कहा गया है,’ 24 मार्च की 12 बजे रात से अगले 21 दिनों तक विस्तारित लॉकडाउन के कारण मरकज़ परिसर को ख़ाली करने और खाली करने के आगे के प्रयासों को बीच में ही रोक देना पड़ा, क्योंकि माननीय प्रधानमंत्री की उस घोषणा में निर्देश और सलाह दिये गये थे कि लोग उसी स्थान तक सीमित रहें, जहां वे इस समय रह रहे हैं। इसलिए, कई भारतीय और विदेशी तब्लीग़ी स्वयंसेवक मरकज़ के अंदर ही सीमित और अलग-थलग रहे।”
संपर्क करने पर एसडीएम और एसीपी, दोनों ने इस पूरे प्रकरण पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।
मरकज़ का जवाब
मंगलवार को जारी एक प्रेस वक्तव्य में मरकज़ ने कहा है कि तीन से पांच दिनों से अधिक समय तक चलने वाले उस पूर्व-निर्धारित कार्यक्रमों में दुनिया भर से आने वाले लोगों, मेहमानों, भक्तों, उपासकों का जमावड़ा हुआ था। इसमें आगे कहा गया है कि दूर-दराज़ से आने वालों को अपनी भागीदारी की योजना बनाने के लिए सभी कार्यक्रम एक साल पहले ही तय कर दिये जाते हैं।
कहा गया है कि जब प्रधानमंत्री मोदी ने 22 मार्च को 'जनता कर्फ्यू' की घोषणा की, तो चल रहे कार्यक्रम को तुरंत बंद कर दिया गया; हालांकि, 21 मार्च 2020 को देश भर में रेल सेवाओं को अचानक रोक देने के कारण रेलवे के रास्ते जाने वाले आगंतुकों का एक बड़ा समूह मरकज़ परिसर में ही फंसा रह गया।
इस विज्ञप्ति में कहा गया है कि 22 मार्च को ‘जनता कर्फ़्यू ’के रूप में मनाया गया और उसके मुताबिक़ आगंतुकों को सलाह दी गयी कि वे प्रधानमंत्री के ऐलान का पालन करते हुए 9 बजे तक बाहर का रुख़ नहीं करें।
इस बयान में आगे कहा गया है,“यही वजह है कि लोगों की योजना रेलवे के अलावा अन्य साधनों के ज़रिये भी अपने-अपने मूल स्थानों पर वापस जाने की थी, लेकिन उसे अमल में नहीं लाया जा सका। 9 बजे 'जनता कर्फ्यू' के ख़त्म होने से पहले ही दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 23 मार्च की सुबह 6 बजे से 31 मार्च तक शहर के पूर्ण लॉकडाउन की घोषणा कर दी, जिससे इन आगंतुकों के सड़क परिवहन का फ़ायदा उठाते हुए उनकी घर वापसी के मौक़े भी हाथ से जाते रहे। इस चुनौतीपूर्ण स्थिति के बावजूद, जो थोड़ी बहुत परिवहन सुविधा हासिल थी,उसका इस्तेमाल करते हुए मरकज़ प्रशासन की मदद से लगभग 1500 आगंतुकों ने निज़ामुद्दीन मुख्यालय से कूच कर गये।”
इसके बाद मरकज़ ने कहा कि 24 मार्च की शाम को प्रधानमंत्री द्वारा अचानक एक और देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा कर दी गयी, जिसमें लोगों के लिए स्पष्ट संदेश था कि वे जहां हैं, वहीं रहें।
आगे कहा गया है,“ऐसी विकट परिस्थितियों में मरकज़ निज़ामुद्दीन के पास इस बात के अवावा कोई चारा नहीं रह गया था कि वे फंसे हुए आगंतुकों को निर्धारित चिकित्सा सावधानियों के साथ उस समय तक ठहरने दे, जब तक कि उनकी आवाजाही के लिए हालात अनुकूल न हो जायें या अफ़सरों की तरफ़ से कोई इंतज़ाम न कर दी जाये।”
अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए मरकज़ आगे कहता है, “24 मार्च 2020 को अचानक हज़रत निज़ामुद्दीन पुलिस स्टेशन के एसएचओ की तरफ़ से एक नोटिस जारी किया गया, जिसमें मरकज़ परिसर को बंद करने की मांग की गयी थी। 24 मार्च को इसके जवाब में बताया गया था कि मरकज़ को बंद किये जाने के निर्देशों का अनुपालन पहले से ही चल रहा है और एक दिन पहले ही क़रीब 1,500 लोग यहां से प्रस्थान कर लिया था, इस प्रकार मरकज़ में अलग-अलग राज्यों और देशों से जुड़े लगभग 1,000 आगंतुकों भी यहां से बच गये।”
आगे कहा गया है,“ यह भी बताया गया है कि सम्बन्धित एसडीएम से वाहन पास जारी करने का अनुरोध किया गया था ताकि बाक़ी लोगों को दिल्ली के बाहर उनके मूल स्थानों पर वापस भेजा जा सके। यहां यह बताना प्रासंगिक है कि ड्राइवरों के नाम के साथ पंजीकरण संख्या वाले 17 वाहनों की सूची और उनके लाइसेंस विवरण एसडीएम के सामने पेश कर दिये गये थे ताकि फंसे हुए आगंतुकों / मेहमानों को उनके गंतव्य की ओर ले जाया जा सके। ज़रूरी अनुमति का अब भी इंतज़ार है।”
मरकज़ का दावा है कि 25 मार्च को तहसीलदार ने एक मेडिकल टीम के साथ मरकज़ का दौरा किया था और उनके आगंतुकों की एक सूची के निरीक्षण और तैयारी को लेकर उनके साथ पूरा सहयोग किया गया, जिनमें से कई की जांच उनके द्वारा की गयी थी।
“26 मार्च को एसडीएम ने मरकज़ निज़ामुद्दीन का दौरा किया और हमें ज़िलाधिकारी के साथ एक और बैठक के लिए बुलाया गया। हम डीएम से मिले, उन्हें फंसे हुए आगंतुकों के बारे में जानकारी दी और एक बार फिर हमने वाहनों के लिए इंतज़ाम को लेकर अनुमति मांगी।”
इस विज्ञप्ति में आगे कहा गया है कि अगले दिन (27 मार्च) छह लोग मेडिकल जांच के लिए ले जाये गये। 28 मार्च को एसडीएम और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की एक टीम ने मरकज़ का दौरा किया और 33 लोगों को राजीव गांधी कैंसर अस्पताल में चिकित्सा जांच के लिए ले जाया गया।
इस विज्ञप्ति में कहा गया है,“हैरानी की बात है कि उसी दिन एक और नोटिस जारी किया गया था। इस बार, लाजपत नगर के एसीपी कार्यालय द्वारा प्रतिबंधात्मक आदेशों और क़ानूनी कार्रवाई की चेतावनी को दोहराते कहा गया कि उपरोक्त विचार-विमर्श और क़दमों को पूरी तरह नज़रअंदाज़ किया गया है, जबकी पहले से ही अफ़सरों के परामर्श से मरकज़ निजामुद्दीन इस बाबात क़दम उठा चुका था। हालांकि, 29 मार्च को जारी इस पत्र का जवाब विस्तार से दे दिया गया था।”
मरकज़ का कहना है कि सोशल मीडिया पर सोमवार को ये अफ़वाहें फैलने लगीं कि COVID -19 संक्रमित लोग मरकज़ में मौजूद थे और इस संक्रमण से कुछ लोगों की मौतें भी हुई है, एएनआई के अनुसार,दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अफ़सरों को मरकज़ प्रशासन के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई करने का निर्देश दे दिया था। इस विज्ञप्ति में कहा गया है, “अगर उपर्युक्त तथ्यों की जांच-पड़ताल मुख्यमंत्री कार्यालय की तरफ़ से की गयी होती, तो अफ़सरों ने उन्हें बाक़ी आगंतुकों के भेजे जाने को लेकर मरकज़ द्वारा उनकी यात्राओं, विचार-विमर्श और सहयोग के बारे में विस्तृत जानकारियों से अवगत कराया होता।”
मरकज़ निज़ामुद्दीन का दावा है कि इस पूरे प्रकरण के दौरान, इसने "क़ानून के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन नहीं किया और हमेशा विभिन्न राज्यों से दिल्ली आने वाले आगंतुकों के प्रति करुणा और समझ-बूझ के साथ काम करने की कोशिश की है। उन्हें आईएसबीटी या सड़कों पर जमावड़ा लगाकर चिकित्सा दिशानिर्देशों का उल्लंघन नहीं करने दिया गया।”
इसने अपने पूरे परिसर को क्वारंटाइन सुविधा से लैस कर दिया, जिससे कि अधिकारियों को मौजूदा महामारी की चुनौती से निपटने में मदद मिल सके, अपने 100 साल के वजूद में प्रशासन / अधिकारियों के साथ सहयोग करने और हमेशा से क़ानून के पालन करने की भावना को बनाये रखने का इस मरकज़ का एक "बेदाग़ इतिहास" रहा है।
क्या इसे जान-बूझकर निशाना बनाया जा रहा है ?
यह ग़ौर करने वाली बात है कि नये कोरोनवायरस के प्रकोप के मद्देनज़र, सीआरपीसी की धारा 144 दिल्ली में 22 मार्च की रात 9 बजे से लेकर 31 मार्च की रात 12 बजे तक लगायी गयी थी।
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि पांच से अधिक लोगों के एकत्रित होने की अनुमति नहीं होगी।
तब्लीग़ी जमात का दावा है कि उसने 1,500 लोगों को मरकज़ से पहले ही ख़ाली करा दिया था। और वे 1,000 से अधिक लोगों को नहीं भेजा जा सका, क्योंकि 24 मार्च को पूर्ण लॉकडाउन की घोषणा कर दी गयी और उन्हें ज़िला प्रशासन द्वारा भीड़ कम करने में मदद भी मिली थी।
5 मार्च को केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने एक एडवाइज़री जारी की थी, जिसमें लोगों को सामूहिक सभा से बचने और घर के अंदर रहने के लिए कहा गया था। लेकिन, 13 मार्च को सरकार ने इसे "चिकित्सा आपातकाल" क़रार देने से इनकार कर दिया था, इस तथ्य के बावजूद कि पॉज़िटिव मामलों की संख्या बढ़कर 81 हो गयी थी।
वैष्णो देवी की तीर्थयात्रा, जिसमें कि लोगों की बड़ी भीड़ जुटती है, उसे 18 मार्च को रोक दिया गया था। मगर, सच्चाई तो यह भी है कि जब 15 मार्च को तब्लीग़ी जमात की सभा जुटी थी, तब संसद सत्र चल रहा था। मध्य प्रदेश के विधायकों को बैंगलोर में एक साथ रखा गया था। कई सामूहिक सभायें, जिनमें से कुछ राजनीतिक भी थीं, आयोजित की गयी थीं।
ऐसे लोगों के कई वीडियो फुटेज भी सामने आये थे , जिसमें वे ‘जनता कर्फ़्यू’ की अवहेलना करते नज़र आ रहे थे और बड़ी संख्या में सड़कों पर उतर रहे थे और प्रधान मंत्री के आह्वान पर ताली और थाली बजा रहे थे।
कांग्रेस ने भी यह सवाल किया है कि आख़िर उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री, आदित्यनाथ अगले दिन अयोध्या जाकर भारी भीड़ के साथ देश भर में लागू 21 दिन के लॉकडाउन का अवहेलना कैसे कर सकते हैं।
अंग्रेजी में लिखे गए मूल आलेख को आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं
COVID-19: Is Tablighi Jamaat Being Targeted to Hide Delhi Govt’s Failure?
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