सात ज़रूरी बातें जिनका मोदी ने ज़िक्र नहीं किया
14 अप्रैल, 2020 को प्रधानमंत्री का राष्ट्र के नाम संबोधन, निराशा से भरा और बुनियादी जरूरतों के हिसाब से एक दर्दनाक झटका बन कर रह गया, या वास्तव में कहा जाए तो अधिकांश भारतीय लोगों के लिए यह सवाल अब शायद जीने-मरने का सवाल बन गया है विशेष रूप से गरीब और जनसंख्या के कमजोर तबकों के लिए।
सरकार द्वारा 21 दिन के लॉकडाउन को अतिरिक्त 18 दिनों तक बढ़ाने का निर्णय - जिसमें 20 अप्रैल तक का पहला सप्ताह कड़े प्रतिबंधों के तहत होगा – यह निर्णय महामारी विज्ञान के सबूत या डेटा पर आधारित नहीं है, यह केवल सरकार की गलत धारणा है कि लॉकडाउन ही एकमात्र बुनियादी हथियार है, जो इससे लड़ने के लिए एक ब्रह्मास्त्र और लक्ष्मण रेखा का काम करेगा, और यदि कोई पीएम की पौराणिक संदर्भों की पसंदीदा शैली का अनुसरण करता है तो उसे यह बात बहुत पसंद आएगी। जिस तरह से लॉकडाउन की कल्पना की गई थी या उसे जिस तरह से अब तक इसे लागू किया गया है, वह समझ कोविड-19 महामारी को एक कानून-व्यवस्था का सवाल मान कर चल रही हैं और इसलिए इसे लागू करने के लिए पुलिस पर मुख्य रूप से भरोसा किया जा रहा है जो वाइरस को नहीं बल्कि लोगों को दुश्मन मानती है और अपने आप में एक गैर-आयामी दृष्टिकोण प्रतीत होता है। यह पीएम के उस दावे के विपरीत है जिसे उनकी सरकार कहती है कि उसने महामारी के प्रति "समग्र और एकीकृत दृष्टिकोण" अपनाया है।
पीएम के भाषण में किए गए दावे के अनुसार "देश को लॉकडाउन से बहुत फायदा हुआ है," भले ही यह "आर्थिक दृष्टि से" कितना ही महंगा क्यों न पड़ा हो," पीएम का यह दावा भी तथ्यों के विपरीत है ही साथ ही बेहतरी के दृष्टिकोण से भी विश्वासघात करता है। असंगठित क्षेत्र के प्रवासी कामगार मज़दूर भोजन या सूखे राशन की कमी सहित कई अन्य तरह की भयंकर कठिनाइयों को भी झेल रहे हैं, जैसे भीड़भाड़ वाले आवास में रहना जिसमें शारीरिक दूरी की कोई संभावना नहीं है, जिससे उनमें सक्रमण का खतरा बढ़ जाता है, और उनके पास आमदनी का भी कोई मौका नहीं है। अगर सरकार एकीकृत दृष्टिकोण लेकर चलती तो हालात ऐसे नहीं होते।
महामारी से लड़ने के लिए एक लाख बिस्तर और कई अस्पतालों को तैयार करना सरकार की बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है। लेकिन, ये बेड और अस्पताल पहले से ही मौजूद हैं, जिनकी निशानदेही केवल कोविड-19 रोगियों के इलाज़ के लिए की गई हैं, लेकिन दुर्भाग्यवश अब वे अस्पताल अन्य गंभीर बीमारियों वाले रोगियों के लिए अनुपलब्ध हैं, वर्ना गंभीर मामलों को छोड़कर, अस्पताल की सुविधाएं और यहां तक कि ओपीडी सेवाओं को आम रोगियों को वंचित रखा गया है। परिवहन सेवाओं की अनुपस्थिति भी लोगों को इन आवश्यक स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंचने से वंचित करती है।
पीएम मोदी ने एन95 मास्क, सुरक्षा गाउन और पीपीई की गंभीर कमी को दूर करने के लिए सरकार द्वारा किए गए उपायों के बारे मीन कोई जिक्र नहीं किया है, यहां तक कि सरकार ने "कोरोना योद्धाओं" को भी गंभीर जोखिम में डाल दिया है, जिनका होंसला आम लोग ताली, बर्तन पीटने, दीए और मोमबत्तियाँ जलाकर बढ़ा रहे थे। कई लोग पहले ही अपनी जान गंवा चुके हैं। न ही पीएम ने भारत में जांच के असामान्य रूप से निम्न स्तर, या परीक्षण किटों की भारी कमी को संबोधित किया।
अफसोस है कि जब राष्ट्र को एकताबद्ध तरीके से खड़े होने की जरूरत है, और जिस बात पर पीएम ने बार-बार जोर दिया, लेकिन उन्होंने महामारी के बढ़ते सांप्रदायिकरण और पूरे मुस्लिम समुदाय पर हो रहे हमलों की एक बार भी निंदा नहीं की।
अपने भाषण में, पीएम ने लोगों से कोविड-19 की महामारी के खिलाफ लड़ाई में मदद करने के लिए सात मंत्र लागू करने का आह्वान किया है, जिसमें बुजुर्गों की देखभाल करना, असुरक्षित आयुर्वेदिक उपचारों के माध्यम से प्रतिरक्षा को बढ़ावा देना, अत्यधिक घुसपैठ वाले आरोग्य सेतु ऐप का उपयोग करना, गरीबों के लिए भोजन का प्रबंध करना, कर्मचारियों के प्रति दयालु होना और उन्हें आजीविका से वंचित नहीं करना, सबका ध्यान रखना, और हमारे कोरोना योद्धाओं विशेष रूप में काम कर रहे डॉक्टरों, नर्सों, सफाई कर्मचारियों और पुलिस के प्रति अत्यधिक सम्मान करने को कहा है। हमें विश्वास है कि नागरिक मुद्दों पर काम करने वाले संगठन और नागरिक पीएम की अधिकांश उम्मीदों पर खरा उतरेंगे।
संकट के इस समय में, हम प्रधानमंत्री और उनकी सरकार से आग्रह करते हैं कि वे निम्नलिखित सात कामों को तत्काल अंज़ाम दें:
नागरिकों के वंचित तबकों के लिए पर्याप्त भोजन/सूखा राशन, उचित और स्वास्थ्यपूर्ण निवास प्रदान करने का पूरा खर्च उठाएं, जिससे शारीरिक दूरी कायम हो, और उन्हे उनके मिल रहे वेतन के बदले वित्तीय सहायता मिले, और इस काम को स्वैच्छिक प्रयासों पर न छोड़ा जाए।
डॉक्टरों, नर्सों, सफाई कर्मी और अन्य "कोरोना योद्धाओं" की सुरक्षा के लिए विशेष रूप से घरेलू निर्माताओं से गुणवत्ता वाले मास्क, सुरक्षा गाउन, पीपीई की उपलब्धता को जल्दी ही सुनिश्चित करें; लोगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए न्यूनतम ओपीडी और अन्य स्वास्थ्य सुविधाएं भी खोलें।
पर्याप्त आरटी-पीसीआर और एंटी-बॉडी "रैपिड" टेस्ट किट का अधिग्रहण सुनिश्चित करें, विशेष रूप से इसे घरेलू निर्माताओं से लिया जाए और जल्दी से इसे जांच के आवश्यक स्तर तक पहुंचाया जाए।
मत्स्य पालन, मुर्गी पालन, डेयरी और एनटीएफपी क्षेत्रों सहित कृषि कार्यों को शुरू किया जाए, और संबंधित खरीद, कृषि-प्रसंस्करण, परिवहन, और विपणन को सभी शारीरिक दूरी मानदंडों को बनाए रखते हुए शुरू किया जाए, तय मानदंडों के तहत मनरेगा के काम को तेज़ी से बढ़ाया जाए ताकि किसानों, खेत और गैर-खेतिहर मज़दूरों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था की सहायता की जा सके।
असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों और स्व-नियोजित श्रमिकों के काम को फिर से शुरू करने के लिए बर्खास्तगी या काम से छटनी को कानूनी संरक्षण दिया जाए, और साथ ही जमींदारों द्वारा बेदखली को भी रोका जाए, साथ ही बेरोजगारी भत्ता और एसएमई, भूमि मालिकों को आर्थिक गतिविधि के लिए वित्तीय सहायता दी जाए।
सभी आवश्यक वस्तुओं की अंतर-राज्य आवाजाही और स्थानीय ठिकानो तक पहुँच के लिए परिवहन सुनिश्चित करें, वर्तमान में सरकारी छूट के खराब कार्यान्वयन के चलते खासकर दवाओं और पीपीई सहित अन्य आपूर्ति श्रृंखलाओं में व्यवधान को तुरंत दूर किया जाए और विशेष रूप से बुजुर्गों, विकलांगों और उन लोगों को जो स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों से जूझ रहे हैं और अन्य विशेष जरूरतों वाले लोगों के लिए आवश्यक परिवहन सुविधाओं की व्यवस्था की जाए।
कोविड-19 रोगियों के ख़िलाफ़, चाहे वे पॉज़िटिव केस हों, क्वारंटाईन केस, स्वास्थ्य कर्मी हों, उनके खिलाफ बरते जा रहे भेदभाव और घृणा के खिलाफ कदम उठाएँ तथा महामारी के सांप्रदायिककरण के खिलाफ भी सख्त कदम उठाए जाएँ और दोषियों को बाकायदा सज़ा दी जाए।
अंग्रेजी में लिखे गए मूल आलेख को आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं
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