कोविड-19 : महाराष्ट्र की भीड़भाड़ वाली जेलों में हालात दयनीय
9 मई, 2020 को, नवी मुंबई की तलोजा सेंट्रल जेल में 53 वर्षीय एक विचाराधीन क़ैदी को मुंबई के जे॰जे॰ अस्पताल में भर्ती कराया गया था। क़ैदी मधुमेह बीमारी से ग्रस्त था जो उच्च रक्त शर्करा के कारण होने वाली बीमारी है। उसी दिन उनकी मृत्यु हो गई थी। मरने के बाद जब उनकी कोविड-19 जांच की गई, तो वे पॉज़िटिव निकले।
लगभग तीन सप्ताह बाद, 27 मई को, एक 33 वर्षीय विचारधीन क़ैदी ने उसी जेल के अस्पताल के अंदर फांसी लगा ली। उनकी मृत्यु के बाद, जेल अधिकारियों ने उनके स्वैब की जांच की तो पता चला कि वे भी कोविड-19 से ग्रस्त थे।
चौंकाने वाली बता यह है कि केवल यही वे दो लोग हैं जिनके स्वाब की जांच तलोजा जेल में की गई है, जो कि भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के दिशानिर्देशों का उल्लंघन हैं क्योंकि पॉज़िटिव केस पाए जाने के बाद गैर-लक्षण वाले क़ैदियों की भी जांच करना जरूरी है। जबकि तलोजा में, हालांकि, केवल मृतकों को कोरोनोवायरस की जांच की सुविधा मिली है।
विवादास्पद भीमा कोरेगांव और एल्गर परिषद मामले में गिरफ्तार किए गए मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, वकीलों और स्कोलर्स को उसी तलोजा जेल में क़ैद किया गया है। उनमें आनंद तेलतुंबड़े, सुरेंद्र गाडलिंग, वरवरा राव, महेश राउत, अरुण फरेरा, गौतम नवलखा, सुधीर धवले, रोना विल्सन और वर्नोन गोंजालेस के नाम शामिल हैं।
शोमा सेन और सुधा भारद्वाज मुंबई की बाइकुला जेल में बंद हैं।
इन क़ैद लोगों में से लगभग सभी व्यक्ति 60 वर्ष से अधिक की आयु के हैं, और उनमें सब के सब सह-रुग्णताएं (अन्य रोगों) के शिकार हैं, जिससे कोरोनोवायरस उनके के लिए घातक हो सकता हैं।
फिर भी, तलोजा के अधिकारियों ने कोविड संपर्कों को ढूँढने और उनकी जांच करने का कोई प्रयास नहीं किया है, जो लोग दो मृतक पॉज़िटिव क़ैदियों के संपर्क में आए हैं, इसका इशारा 15 जून को बॉम्बे उच्च न्यायालय में दायर एक हलफनामे में महाराष्ट्र सरकार को किया गया है।
पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (PUCL) द्वारा दायर जनहित याचिका के जवाब में दायर हलफनामा में कहा गया है कि जब तक राज्य की कई जेलों में नगर आयुक्तों/कलेक्टरों द्वारा क्वारंटाइन सुविधा का स्पष्ट आश्वासन नहीं दिया जाता है, तब तक विचाराधीन क़ैदियों की सामूहिक स्वाब जांच नहीं की जा सकती है।
हलफनामे पर जेल और सुधार सेवाओं के आईजी सुनील रामानंद ने हस्ताक्षर किए हैं।
मानवाधिकार वकील, सुसन अब्राहम ने कहा, इस कथन का मतलब है कि यदि वे जांच करना शुरू करते हैं, तो कई अन्य लोग कोरोनावायरस पॉज़िटिव पाए जा सकते हैं, लेकिन जेलों में इससे निपटने के लिए पर्याप्त कावारंटाईन सुविधाएं नहीं हैं।
अब्राहम ने कहा, "हमने जेल के बाहर देखा है कि कैसे कम जांच करके पॉज़िटिव मामलों की संख्या को कम रखने की कोशिश की जाती है।" “ऐसा ही कुछ जेलों के अंदर बहुत बड़े पैमाने पर हो रहा है।"
राज्य सरकार के हलफनामे के मुताबिक, पुणे की यरवडा जेल में कोविड-19 से एक क़ैदी की मौत के बाद, जेल अधिकारियों ने बाकी क़ैदियों की कोई जांच नहीं की है। जेल अधिकारियों ने वही तक एकमात्र जांच अब तक की है।
धुले में, केवल आठ क़ैदियों के स्वाब की जांच की गई है, जिनमें से चार पॉज़िटिव निकले है। उनमें से एक मृत्यु के बाद की जांच में पॉज़िटिव निकाला था।
23 मार्च की शुरुआत में, सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को जेल परिसर के अंदर कोरोनोवायरस के प्रसार को रोकने के लिए जेलों में भीड़ कम करने के लिए कहा था। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार ने आदेश के बाद क़ैदियों को रिहा करने का फैसला करने के लिए एक उच्च शक्ति समिति (एचपीसी) का गठन किया था।
महाराष्ट्र के भीतर 24,030 क़ैदियों की आधिकारिक क्षमता वाली 60 जेल हैं। मार्च 2020 तक, राज्य में कुल 36,061 क़ैदी थे जोकि आदर्श संख्या का 150 प्रतिशत है। कोरोनोवायरस के प्रसार के लिए ये भीड़भाड़ वाली जेलें उपजाऊ जमीन हैं।
तलोजा जेल में 2,134 क़ैदियों की क्षमता है। लेकिन, मार्च में जेल के अंदर 2,635 क़ैदी थे। फिर भी, 70 साल की उम्र के दोनों तेलतुम्बे और नवलखा को मई में गिरफ्तार कर इस जेल में बंद किया गया, जो अपने आप में अति भीड़भाड़ वाली जेल है।
बायकुला में, जहां सेन और भारद्वाज बंद हैं, उसकी क्षमता 200 क़ैदियों की है, जबकि मार्च 2020 में 352 क़ैदी बंद पाए गए हैं।
ठाणे जेल में स्थिति ओर भी बदतर है। वहां 1,105 की क्षमता के खिलाफ, मार्च 2020 तक 3,718 क़ैदी बंद पाए गए थे, जो कि उन क़ैदियों की संख्या से तीन गुना अधिक है, जिस संख्या को जेल में होना चाहिए।
12 मई को, जब महाराष्ट्र में कोरोनोवायरस मशरूम की तरह उगने लगा और 23,000 से अधिक केस हो गए थे तो उच्च आधिकारिक समिति ने 17,000 क़ैदियों को रिहा करने का फैसला किया था। राज्य में अब एक लाख से अधिक कोरोना के पॉज़िटिव केस है।
हालांकि, जेलों में भीड़ कम करने की प्रक्रिया उतनी तेज़ नहीं है जितनी कि जरूरत है। महाराष्ट्र में जेल और सुधार सेवाओं के महानिरीक्षक, सुनील रामानंद, राज्य सरकार की ओर से प्रस्तुत खुलासा किया कि महाराष्ट्र में 23 मई 2020 तक जेल में 29,762 क़ैदी बंद थे और उनमें से करीब 8000 क़ैदियों को पेरोल पर रिहा किया गया है।
रामानंद के हलफनामे में लिखा गया है, "कोविड-19 के प्रबंधन के लिए, जेलों को उनकी आधिकारिक क्षमता (क्वारंटाइन वार्डों के प्रभावी निर्माण के लिए) को दो तिहाई करने की जरूरत है।" उन्होंने कहा, "यद्द्पि महाराष्ट्र राज्य में जेल की प्रबंध की जाने वाले आबादी 16000 है। इसलिए मौजूदा जेल की आबादी में लगभग 14000 क़ैदियों को कम करने की जरूरत है।"
जेलों में क़ैदियों की संख्या को प्राथमिकता के आधार कम न करने खतरनाक परिणाम 15 जून के राज्य के हलफनामे में दर्ज़ हैं। अत्यंत सीमित क़ैदियों की जांच के बाद भी, महाराष्ट्र की जेलों में 269 क़ैदी अब तक पॉज़िटिव पाए गए हैं। इनमें से चार की मौत हो चुकी है। कोविड-19 के मामले में 73 जेल स्टाफ भी सकारात्मक पाए गए है।
भीमा कोरेगांव मामले के आरोपी कार्यकर्ताओं के परिवार के सदस्य इन घटनाओं से विशेष रूप से चिंतित हैं, क्योंकि वायरस जेलों में घुस गया है, जहां महामारी से निपटने की पर्याप्त सुविधाएं नहीं हैं। इनमें से कुछ कार्यकर्ताओं के परिवार के सदस्यों के करीबी सूत्रों ने बताया कि तलोजा जेल के एक बैरक के भीतर करीब 30 लोग बंद हैं, जिससे स्थिति और खराब हो गई है। उन्होंने कहा कि क़ैदियों का ठीक से ध्यान नहीं रखा जा रहा है।
उदाहरण के लिए, अरुण फरेरा को गंभीर दांत का दर्द हुआ था, और शायद उन्हे रूट कैनाल की जरूरत थी। लेकिन, उन्हें दर्द निवारक दवाओं पर डाल दिया गया।
इससे भी बदतर स्थिति, 80 वर्षीय कवि वरवर राव की हैं। उनकी तबीयत बिगड़ने के बाद 30 मई को उन्हें मुंबई के जेजे अस्पताल में भर्ती कराया गया था। लेकिन, तीन दिनों में ही उन्हें छुट्टी दे दी गई। वह तब से जेल के अस्पताल में दाखिल है, जबकि उनकी जमानत अर्जी अभी भी लंबित पड़ी है।
सुसन अब्राहम, जो गोंजालेस की पत्नी भी हैं, ने कहा कि हत्या और बलात्कार के आरोप वाले क़ैदियों को रिहा किया जा रहा है, लेकिन भीमा कोरेगांव मामले में कार्यकर्ताओं को बुनियादी मानव अधिकारों से भी वंचित कर दिया गया है।
उन्होंने कहा, "महाराष्ट्र सरकार ने आरोपियों के साथ सहानुभूति व्यक्त की थी," उन्होंने कहा: "राज्य सरकार अब समाधान के लिए ज़िम्मेदारी से आगे क्यों नहीं बढ़ रही है? जिस गति से राज्य सरकार जेलों में भीड़ कम कर रही है, उससे पता चलता है कि उनका वास्तव में ऐसा करने का कोई इरादा नहीं है।”
इस बीच, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने मांग की है कि राज्य सरकार को हस्तक्षेप करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि स्थिति के नियंत्रण से बाहर होने से पहले इन कार्यकर्ताओं को स्वास्थ्य की बिना पर रिहा कर दिया जाए। हालांकि, यह काफी परेशान करने वाली बात है कि ये विवरण शायद कभी सामने नहीं आए होते अगर पीयूसीएल (PUCL) ने महाराष्ट्र की जेलों के अंदर की स्थिति पर जनहित याचिका दायर नहीं की होती।
एक वकील एवं कार्यकर्ता ने नाम न छापने का अनुरोध करते हुए बताया कि तलोजा में 53 वर्षीय मधुमेह रोगी की मृत्यु उसी दिन हो गई थी जिस दिन उसे भर्ती कराया गया था, यह मानना सही होगा कि उसे बहुत देर से चिकित्सा मिली। "आप उन्हें मरने के लिए छोड़ रहे हैं," उन्होने आगे कहा कि: "आप उस हद तक पहुंचने का इंतजार करते हैं जब वह दिन आता है जब उन्हे भर्ती किया जाता है और वे मर जाते हैं। सुधा भारद्वाज 59 वर्ष की हैं। और उन्हें मधुमेह है।"
लेखक एक स्वतंत्र पत्रकार हैं।
अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।