चमोली एसटीपी करंट हादसा: 16 मौतों के साथ कई अहम सवाल, कई चूक
चमोली का सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट जहां 16 लोगों की मौत हुई
चमोली के पीपलकोटी में नमामि गंगे परियोजना परिसर में बिजली का करंट फैलने से जान गंवाने वाले 16 लोगों में से कम से कम 9 व्यक्ति दलित समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। घायलों में भी अधिकांश दलित समुदाय के लोग ही हैं। अधिकांश लोग मानते हैं कि घटना सीधे तौर पर मानवीय चूक से जुड़ी हुई है। साथ ही सुरक्षा के मानकों की अनदेखी भी की गई है। जानकार मुआवजे की 5 लाख रुपये की रकम को लेकर भी सवाल उठा रहे हैं।
चमोली के पीपलकोटी में नमामि गंगे परियोजना परिसर में बिजली का करंट फैलने से एक-एक कर 16 लोगों की मौत हो गई। जबकि 6 लोग घायल हैं। उन्हें इलाज के लिए हेलिकॉप्टर के जरिये ऋषिकेश एम्स लाया गया। मृतकों में उत्तराखंड पुलिस के एक उपनिरीक्षक और 3 होमगार्ड शामिल हैं।
इस सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट का निर्माण नमामि गंगे योजना के तहत जल निगम की इकाई से करवाया गया था। जिसे दो वर्ष पहले जल सप्लाई से जुड़े उत्तराखंड जल संस्थान को सौंपा गया था।
घटनाक्रम
घटनाक्रम की जानकारी चमोली के एसपी प्रमेंद्र डोभाल ने दी। उन्होंने बताया कि मंगलवार शाम कर्मचारी गणेश लाल की करंट लगने से मृत्यु की सूचना पुलिस को मिल गई थी। बुधवार सुबह पुलिस की एक टीम पंचनामा भरने घटनास्थल पर गई। मौके पर नजदीक के हरमनी, रूपा और पाडुली गांव के लोग पहले से मौजूद थे। मृतक के परिजन मुआवजे की मांग कर रहे थे और शव नहीं हटाने दे रहे थे।
सुबह के करीब साढ़े 11 बजे थे। इसी गहमागहमी के बीच प्लांट में बिजली सप्लाई शुरू हो गई और सीढ़ियों की रेलिंग पर करंट दौड गया। करंट लगने से एक के बाद एक 22 लोग सीढ़ियों पर ही गिरते चले गए। 15 लोगों की मौत कुछ ही समय के भीतर हो गई। जबकि एक व्यक्ति ने अस्पताल में दम तोड दिया। 6 घायलों का ऋषिकेश एम्स में इलाज चल रहा है।
मौके पर कार्रवाई के लिए गए पुलिस सब-इंस्पेक्टर प्रदीप रावत और तीन होमगार्ड भी मृतकों में शामिल हैं। साथ ही एसटीपी कर्मचारी गणेश लाल के पिता महेंद्र लाल और भाई सुरेश लाल की भी करंट की चपेट में आने से मौत हो गई।
घटना के बाद दहशत में आए आसपास के ग्रामीण
लापरवाही
लगातार बारिश के चलते एसटीपी प्लांट से लेकर जमीन तक गीली थी। कई लोगों के चप्पल-जूते भी गीले थे। लोग एक दूसरे से लगकर खडे थे। चमोली निवासी जयदीप किशोर बताते हैं कि पहली नजर में बिजली विभाग की लापरवाही दिखाई देती है। जब वहां करंट से एक व्यक्ति की मौत हो चुकी थी और घटनास्थल पर भीड मौजूद थी तो बिजली सप्लाई क्यों शुरू की गई?
चमोली में सामाजिक कार्यों से जुडी संस्था आगाज के संस्थापक जगदंबा प्रसाद मैठाणी कहते हैं पहाड़ों में ज्यादातर छोटी-बड़ी औद्योगिक इकाइयों में सुरक्षा मानकों का सही ढंग से पालन नहीं होता। आग से सुरक्षा या बिजली सप्लाई के लिए अर्थिंग की व्यवस्था जैसे मानकों का पालन किया जा रहा है या नहीं, इसकी जांच होनी चाहिए।
वह बताते हैं कि सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट से करीब 6 किलोमीटर दूर कोठियालसैंण पावर हाउस स्थित है। ये एसटीपी चमोली नगर पालिका क्षेत्र में आती है। जब पहले व्यक्ति को करंट लगने के बाद फ्यूज उड़ गया होगा और शॉर्ट सर्किट हुआ होगा, उसके बाद वहां बिजली की स्थिति की जांच की जानी चाहिए थी, करंट क्यों आया, गडबडी कहां थी। पूरी जांच के बाद ही बिजली सप्लाई शुरू करनी चाहिए थी। मैठाणी कहते हैं, “पहाडों में अक्सर अर्थिंग नहीं की जाती है। ये घटना यही बताती है कि हम सुरक्षा मानकों का ध्यान अमूमन नहीं रखते। एसटीपी प्लांट में काम कर रहे कर्मचारी के पास भी रबर के जूते और दस्ताने होते तो उसे करंट लगता ही नहीं। ये मानवीय चूक है”।
चमोली निवासी और सीपीआईएमएल के गढवाल सचिव इंद्रेश मैखुरी कहते हैं, “सारे सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट्स नदियों के किनारे हैं। वहां सुरक्षा के कड़े बंदोबस्त होने चाहिए ताकि पानी के नजदीक ढांचे पर करंट न फैले। ऐसा लगता है कि वहां सुरक्षा का कोई इंतजाम नहीं था। एक व्यक्ति की मौत के बाद भी बिजली नहीं काटी गई। एसटीपी के पूरे ढांचे में करंट मौजूद था। पहली नजर में लगता है कि किसी ने सुरक्षा मानकों की परवाह नहीं की”।
नदियों के किनारे इस तरह के सारे ढांचे हैं तो ये क्यों नहीं देखा गया कि बारिश जैसे मौसम में इस तरह करंट फैलने की गुंजाइश हो सकती है। इंद्रेश कहते हैं, “नमामि गंगे प्रोजेक्ट में आउटसोर्सिंग एजेंसी इन प्लांट्स को चलाती है। कर्मचारियों को वेतन तक समय पर नहीं दिया जाता तो सुरक्षा मानकों की चिंता कौन करेगा”।
इस घटना के तुरंत बाद जिलाधिकारी हिमांशु खुराना ने अपर जिलाधिकारी को एक हफ्ते के भीतर मजिस्ट्रियल जांच करने को कहा है। साथ ही इस तरह की दुर्घटना को रोकने से जुड़े सुझाव भी मांगे हैं।
घायलों को हेलीकॉप्टर के जरिये ऋषिकेश के एम्स लाया गया
आपदा प्रबंधन पर सवाल
मानसून के समय राज्य में आपदा प्रबंधन समेत विभागों को अलर्ट पर रखा है। जबकि यह घटना आपदा प्रबंधन पर सवाल खडे करती है। बिजली के करंट से एक कर्मचारी की मौत की सूचना के बाद एसटीपी को संचालित करने वाले जल संस्थान, बिजली विभाग और आपदा प्रबंधन तंत्र को सक्रिय होना चाहिए था। सबसे पहले सूचना का आदान प्रदान होना चाहिए था।
मीडिया में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक जल संस्थान ने घटना की सूचना पुलिस को दी थी। जल संस्थान के अधिशासी अभियंता संजय श्रीवास्तव का बयान है कि उन्होंने ऊर्जा निगम को हादसे की सूचना दी थी और बिजली काटने को कहा था। जबकि ऊर्जा निगम का कहना है कि बिजली लाइन में फॉल्ट की शिकायत की गई थी लेकिन प्लांट में युवक की करंट से मौत की सूचना नहीं दी गई थी।
आपदा प्रबंधन की एसओपी (स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर) में ऊर्जा इन्फ्रास्ट्रक्चर का प्रबंधन बेहद संवेदनशील होता है।
एसटीपी में करंट लगने से हुई 16 मौतें की वजह कई स्तर पर की गई लापरवाही है, घटना की मजिस्ट्रियल जांच के आदेश दिए गए हैं।
क्या मुआवजा पर्याप्त है?
घटना की सूचना के बाद राज्य सरकार भी हरकत में आ गई और तत्काल दिल्ली सूचना भिजवाई गई। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने फोन पर मुख्यमंत्री से घटना की जानकारी ली। प्रधानमंत्री कार्यालय को खबर की गई।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी तत्काल मृतकों के आश्रितों के लिए 5-5 लाख रुपये और घायलों को 1-1 लाख रुपये अविलंब राहत राशि देने के निर्देश दिए। बुधवार देर शाम ऋषिकेश एम्स जाकर मुख्यमंत्री धामी ने घायलों का हालचाल लिया और आज सुबह चमोली पहुंचकर परिजनों से मिले।
5 लाख रुपए मुआवजे को अपर्याप्त बताते हुए इंद्रेश मैखुरी कहते हैं, “इस घटना में मारे गए लोगों में से बडी संख्या दलितों और गरीबों की है। उनकी जान की तो जैसे कोई कीमत ही नहीं है। करंट लगने से जो पहला आदमी मारा गया, वह भी दलित था। घायलों के लिए एक लाख रुपए की राहत राशि मजाक है। जितना पैसा आप घायलों को दे रहे हैं उससे ज्यादा मंत्रियों के हेलीकॉप्टर आने जाने में खर्च हो जाते हैं। सीपीआई-एमएल ने मृतकों के परिजनों के लिए एक करोड़ मुआवजा और एक परिजन को सरकारी नौकरी और घायलों को कम से कम 50 लाख रुपए मुआवजे की मांग की है”।
साथ ही नदियों के किनारे लगे सभी एसटीपी को चेक करने और उनकी सेफ्टी ऑडिट कराने की मांग भी है।
प्रशासनिक लापरवाही
वहीं, उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने कहा कि इतने सारे लोगों की मौत के लिए प्रशासनिक लापरवाही और नमामि गंगे प्रोजेक्ट के तहत घटिया निर्माण और घटिया यंत्र का भ्रष्टाचार जिम्मेदार है। उन्होंने कहा कि एक व्यक्ति इस प्रोजेक्ट की देख रेख कर रहा है और उसकी सुध लेने वाला या उसके कार्य की निगरानी करने वाला कोई नहीं है। करंट से उसकी मौत की सूचना मिलने के बाद भी प्लांट की बिजली सप्लाई बंद नहीं की गई। मानवीय लापरवाही के कारण इतनी बडी दुर्घटना हुई। इसकी उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए। सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट में इस्तेमाल हुई सामग्री और यंत्र की गुणवत्ता की भी जांच होनी चाहिए।
चमोली में बद्रीनाथ से लेकर नंदप्रयाग तक अलकनंदा और उसकी सहायक नदियों के तट पर 11 एसटीपी काम कर रहे हैं। पीपलकोटी के पास जिस एसटीपी में 16 लोगों की मौत हुई, उसका निर्माण 4 साल पहले किया गया था। इन सभी प्लांट्स के लिए अलग से हाई वोल्टेज लाइन के जरिये बिजली पहुंचाई गई है। जिसके लिए हर प्लांट में अलग से ट्रांसफॉर्मर लगाए गए हैं।
इस घटना की जांच के बाद ही कई तथ्य स्पष्ट होंगे। जल संस्थान, बिजली विभाग, पुलिस और आपदा प्रबंधन तंत्र के बीच सूचना का आदान प्रदान, करंट दौड़ने की सूरत में किए जाने वाले एहतियाती उपाय, सभी एसटीपी का सेफ्टी ऑडिट जैसे मुद्दों पर काम करना होगा।
राज्य के मुख्य सचिव एसएस संधु ने इस घटना के बाद सभी परियोजनाओं, संयंत्रों (establishments), शासकीय कार्यालय परिसरों में बिजली की व्यवस्था के सुरक्षा मानकों का परीक्षण कराने के निर्देश दिए है। साथ ही विभागों के मानकों के मुताबिक हर तीन महीने में इस कार्रवाई को दोहराने को कहा गया है।
(वर्षा सिंह देहरादून स्थित स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
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