रिपोर्ट के मुताबिक सभी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की जलवायु योजनायें पेरिस समझौते के लक्ष्य को पूरा कर पाने में विफल रही हैं
जहाँ एक तरफ दुनिया जलवायु परिवर्तन के प्रकोप को झेलने के लिए अभिशप्त है और वैज्ञानिकों की ओर से लगातार ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती करने के लिए कड़े उपायों को उठाने के लिए जोर दिया जा रहा है, वहीँ दूसरी ओर सभी प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं प्रभावी जलवायु नीतियों को कम से कम पेरिस समझौते के तहत अपने दायित्वों को पूरा करने के मामले में लागू करती नहीं दिखती हैं। इस विश्लेषण को एक अंतर्राष्ट्रीय निगरानी संस्था, क्लाइमेट एक्शन ट्रैकर (सीएटी) द्वारा प्रकाशित किया गया है। अध्ययन के मुताबिक जी20 देशों में से किसी के पास भी पेरिस समझौते के लक्ष्यों तक पहुँच पाने में मदद करने के लिए कोई प्रभावी जलवायु योजना नहीं है।
सीएटी ने यूरोपीय संघ के 27 देशों सहित कुल 36 देशों की नीतियों की पड़ताल की है। अध्ययन में जिन देशों का विश्लेषण किया गया है वे दुनिया के 80% से भी अधिक उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं। सीएटी ने अपने अध्ययन में पाया है कि ये सभी देश पेरिस समझौते के तहत पूर्व-औद्योगिक स्तर से वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लक्ष्यों को पूरा कर पाने की राह पर नहीं चल रहे हैं।
अध्ययन में कुछ ऐसे देशों को भी शामिल किया गया था जिनका उत्सर्जन स्तर निचले स्तर पर बना हुआ है। इसमें गाम्बिया एकमात्र ऐसा देश पाया गया है, जो तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के लक्ष्य के अनुरूप काम कर रहा है।
2015 के पेरिस समझौते ने 190 से अधिक देशों को एक साथ लाने का काम किया था, जो वैश्विक तापमान वृद्धि को औद्योगिक-पूर्व के दौर से 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे सीमित रखने के मुद्दे पर एकमत थे, जबकि 1.5 डिग्री को आदर्श माना गया था। 2 डिग्री सेल्सियस विश्व के चुनिंदा पारिस्थितिकी तंत्रों के लिए निर्णायक चिन्ह होने के साथ-साथ और भी बड़ी विनाशकारी मौसमी घटनाओं के आमंत्रण की सीमा-रेखा भी है।
सीएटी के एक सहयोगी संस्थान के संस्थापक सदस्य निकलस होह्न ने सीएनएन को दिए अपने एक बयान में टिप्पणी की है: “मई में, क्लाइमेट लीडर्स समिट और पीटर्सबर्ग संवाद के बाद हमने सूचित किया था कि नई जलवायु कार्यवाई प्रतिबद्धताओं में अच्छी गति देखने को मिली है। लेकिन उसके बाद से बेहद कम या कहें कि कोई सुधार नजर नहीं आता: कुछ भी आगे नहीं बढ़ पा रहा है। कोई भी इस बात को सोच सकता है कि उसके पास अभी भी काफी समय बचा हुआ है, जबकि यहाँ पर मामला पूरी तरह से विपरीत है।”
सीएटी की रिपोर्ट में पाया गया है कि ब्रिटेन सहित छह देशों में अनुकूल जलवायु नीतियाँ मौजूद हैं। लेकिन इन देशों की नीतियां अभी भी 1.5 डिग्री लक्ष्य के अनुरूप नहीं हैं। इसके बावजूद, इनमें सुधार की गुंजाईश बची हुई है, जो उन्हें लक्ष्य को हासिल करने के लिए प्रेरित कर सकती हैं। हालाँकि, भले ही ब्रिटेन के लक्ष्य 1.5 डिग्री लक्ष्य के अनुरूप हैं, लेकिन देश की नीतियां उस सन्दर्भ बिंदु को हासिल कर पाने से कोसों दूर हैं।
अमेरिका, यूरोपीय संघ और जापान की जलवायु योजनायें 1.5 डिग्री लक्ष्य को हासिल कर पाने के लिए बेहद अपर्याप्त हैं। रिपोर्ट के मुताबिक दिलचस्प तथ्य यह है कि जहाँ एक तरफ इन देशों के घरेलू लक्ष्य काफी हद तक इनके लक्ष्यों के अनुरूप हैं, वहीँ इनकी अंतर्राष्ट्रीय नीतियां इसके उलट हैं।
महत्वपूर्ण रूप से सीएटी ने जहाँ पूर्व में अमेरिका को ‘गंभीर तौर पर अपर्याप्त’ माना था, और ऐसा डोनाल्ड ट्रम्प के नेतृत्व के दौरान माना गया था जब अमेरिका ने खुद को पेरिस समझौते से अलग कर लिया था। घरेलू स्तर पर अमेरिका का उत्सर्जन नियंत्रण लक्ष्य अब लगभग पर्याप्त स्तर पर पहुँच गया है। हालाँकि, सीएटी ने इसकी क्षमता और जिम्मेदारी को देखते हुए इसे अपर्याप्त की श्रेणी में रखा है।
पेरिस समझौते ने सभी देशों को अपने उत्सर्जन में कटौती करने की शपथ प्रस्तुत करने के लिए कहा था जिसे नेशनली डीटरमाइंड कॉन्ट्रिब्यूशन (एनडीसी) के तौर पर जाना जाता है। सभी हस्ताक्षरकर्ताओं को इस साल 31 जुलाई तक अपने-अपने एनडीसी शपथ पत्र को जमा करना था, लेकिन 70 से अधिक देशों द्वारा अभी भी अपडेट करना शेष है।
जुलाई की समय-सीमा को चूकने वाले देशों में भारत, सऊदी अरब और तुर्की शामिल हैं, जबकि चीन ने एक नए लक्ष्य की घोषणा की थी जिसे अभी भी औपचारिक रूप से पेश किया जाना बाकी है।
31 जुलाई के भीतर प्रस्तुत करने वाले देशों में से कईयों ने अपनी शपथ में कोई वृद्धि नहीं की है। उदाहरण के लिए, ब्राज़ील और मेक्सिको ने जिन लक्ष्यों को अपने लिए निर्धारित किया है वे 2015 वाले लक्ष्यों के समान हैं।
एक अन्य सीएटी भागीदार बिल हेयर के अनुसार “विशेष चिंता ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, इंडोनेशिया, मेक्सिको, न्यूज़ीलैण्ड, रूस, सिंगापुर, स्विट्ज़रलैंड और वियतनाम को लेकर है: वे अपने उद्देश्यों को बढ़ाने में पूरी तरह से विफल रहे हैं। इन देशों ने उतना ही या उससे भी कम महत्वाकांक्षी 2030 लक्ष्यों को अपने सामने रखा है जितना कि इन्होने 2015 में अपने लिए रखा था। इन देशों को अपने विकल्प पर पुनर्विचार करने की जरूरत है।”
कोयले का इस्तेमाल अभी भी एक बड़ी चिंता का विषय बना हुआ है, क्योंकि भारत और चीन कोयला जलाने से पीछे हटने के लिए तैयार नहीं हैं। इसी तरह इंडोनेशिया, वियतनाम, जापान और दक्षिण कोरिया के पास भी भविष्य में कोयले के इस्तेमाल पर अंकुश लगाने को लेकर कोई योजना नजर नहीं आती।
कोयला अभी भी एक बड़ी चिंता का विषय बना हुआ है क्योंकि यह जीवाश्म इंधन सबसे अधिक उत्सर्जन करता है। ऑस्ट्रेलिया प्राकृतिक गैस की खोज और बुनियादी ढाँचे में अपने निवेश को देखते हुए 2030 के बाद भी कोयले के खनन को जारी रखने जा रहा है, जो कि सीएटी की रिपोर्ट के मुताबिक ‘विशेष चिंता’ का विषय है।
हालाँकि, प्राकृतिक गैस पर आधारित ईंधन ब्लू हाइड्रोजन भी खतरनाक हो सकता है। हेयर ने अन्य जीवाश्म इंधनों के विकल्प के तौर पर ब्लू हाइड्रोजन को विकसित किये जाने के खिलाफ चेताया है।
हेयर ने अपने अपने वक्तव्य में कहा है “गैस एक जीवाश्म इंधन है, और मौजूदा समय में गैस में किसी भी प्रकार का निवेश एक फंसी हुई संपत्ति बनने का जोखिम रखता है। और जहाँ एक तरफ ग्रीन हाइड्रोजन में रूचि तेजी से बढ़ रही है, वहीँ अभी भी पाइपलाइन में बड़ी संख्या में ऐसी हाइड्रोजन परियोजनाएं हैं जहाँ पर इसे गैस से उत्पादित किया जा रहा है। गैस से उत्पादित हाइड्रोजन अभी भी कार्बन को पैदा कर रही है और यह नेट जीरो के लक्ष्य तक पहुँचने के लिए असंगत है।”
अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें
Climate Plans of Major Economies Failed to Meet Paris Agreement Aims, Says Report
अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।