लखनऊ व इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में छात्रों-प्रशासन के बीच गतिरोध की स्थिति!
उत्तर प्रदेश के दो प्रमुख विश्वविद्यालयों में छात्रों और विश्वविद्यालय प्रशासन के बीच तनाव बना हुआ है। राजधानी के लखनऊ विश्वविद्यालय में छात्र संघ बहाली की मांग को लेकर आंदोलन किया जा रहा है और इलाहाबाद विश्वविद्यालय में एक दलित छात्र को कथित रूप से प्रॉक्टर द्वारा बर्बरता पूर्वक मारे जाने को लेकर विरोध प्रदर्शन चल रहे हैं।
लखनऊ विश्वविद्यालय में छात्र संघ बहाली की मांग को लेकर तीन दिन से चल रहे धरने को ख़त्म कराने के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन अब पुलिस बल की मदद ले रहा है। हालांकि विश्वविद्यालय प्रशासन और पुलिस की तमाम कोशिशों के बावजूद छात्र धरना दे रहे हैं।
आंदोलित छात्रों का कहना है कि केवल मौखिक आश्वासन देने से धरना ख़त्म नहीं होगा। छात्र मांग कर रहे हैं कि विश्वविद्यालय प्रशासन लिखित में बताये कि छात्र संघ की बहाली क्यों नहीं हो रही हैं? अदालत ने छात्र संघ चुनाव पर रोक लगाई है या शासन की तरफ़ से कोई प्रतिबंध है?
पिछले साल नवंबर से छात्र संघ की बहाली के लिये अभियान चला रहे छात्र अब 16 अक्टूबर से धरने पर बैठे हैं। इस बीच अचानक मौसम का मिजाज़ बदल गया लेकिन तेज़ बारिश के बावजूद भी धरना ख़त्म नहीं हुआ। विश्वविद्यालय प्रॉक्टोरियल बोर्ड के सदस्यों ने 2-3 घंटे तक छात्रों से बातचीत कर धरना ख़त्म कराने की अपील की लेकिन उनका यह प्रयास विफल रहा।
इस बीच 17 अक्टूबर को विश्वविद्यालय परिसर में जमकर हंगामा हुआ। छात्र संघ चुनाव की मांग को लेकर चल रहा धरना पुलिस की कथित दख़लअंदाजी से उग्र हो गया। पुलिस ने बिना अनुमति धरना देने की बात कहते हुए आंदोलित छात्रों के विरुद्ध कार्रवाई शुरू कर दी। पुलिस ने विश्वविद्यालय प्रशासन की मौजूदगी में छात्रों को धरना स्थल से हटा दिया और उन्हें गाड़ी में बैठा कर ले गई।
इस कार्रवाई के दौरान विश्वविद्यालय परिसर का माहौल अचानक बिगड़ गया। वहां मौजूद छात्र आवेश में आ गए और उनके व पुलिस के बीच झड़प होने लगी। आंदोलित छात्रों का आरोप है कि "पुलिस ने उनको मारा और बदसलूकी करते हुए कुछ छात्रों को खींचा और धक्का दिया जिसमें कुछ छात्रों को मामूली चोट भी आई थी।" इस बीच धरना थोड़ी देर के लिए रुका और कुछ देर बाद फिर से शुरू हो गया।
लखनऊ विश्वविद्यालय में छात्र संघ बहाली मोर्चा के नेता विंध्यवासिनी शुक्ला ने बताया कि कुलपति और कुलसचिव को छात्र संघ बहाली के सिलसिले में ज्ञापन भी दिया जा चुका है। उनके अनुसार विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से अभी तक कोई जवाब नहीं आया है जिस से छात्रों में आक्रोश है और वे धरने पर बैठे हैं।
एमए प्रथम वर्ष के छात्र विंध्यवासिनी शुक्ला कहते हैं, "जब तक विश्वविद्यालय में छात्र संघ चुनाव बहाल नहीं किया जाएगा तब तक छात्रों का धरना जारी रहेगा।" लेकिन जब हमने विश्वविद्यालय के प्रवक्ता डॉ. दुर्गेश श्रीवास्तव से बुधवार की शाम संपर्क किया तो उन्होंने कहा विश्वविद्यालय में सब ठीक-ठाक है और कहीं कोई परेशानी नहीं है और धरने पर बैठे छात्रों और विश्वविद्यालय प्रशासन के बीच बातचीत की जा रही है। बता दें कि विश्वविद्यालय में आख़िरी बार चुनाव 18 साल पहले 2005 में हुआ था।
वहीं एक दलित छात्र विवेक कुमार को इलाहाबाद विश्वविद्यालय के चीफ प्रॉक्टर डॉ. राकेश सिंह द्वारा बर्बरता पूर्वक मारे जाने को लेकर विश्वविद्यालय प्रशासन और छात्रों में गतिरोध की स्थिति बनी हुई है।
इस कथित बर्बरता के ख़िलाफ़ छात्रों ने प्रयागराज में 18 अक्टूबर को 'आक्रोश मार्च' निकाल कर एएसपी कार्यालय का घेराव किया। छात्रों ने पहले विश्वविद्यालय के छात्र संघ भवन पर नारेबाज़ी करते हुए विरोध सभा की और फिर इसके बाद वहां जुलूस निकालते हुए कमिश्नर ऑफिस का घेराव किया।
विश्वविद्यालय के शोध छात्र मनीष कुमार ने आरोप लगाया कि "प्रशासन दलित-पिछड़े छात्रों के साथ निलंबन, निष्कासन से लेकर के जेल भेजने जैसी कार्रवाईयां कर रहा है, जो प्रॉक्टर के जातिवादी मानसिकता को प्रदर्शित करता है।"
छात्र संगठन आइसा के प्रदेश अध्यक्ष आयुष ने न्यूज़क्लिक से कहा कि "विश्वविद्यालय में छात्रों के ऊपर दमनात्मक कार्रवाई कर विश्वविद्यालय को निजी जागीर बनाने की कोशिश की जा रही है जिसके ख़िलाफ़ प्रदेश भर के छात्र आगे आएंगे और इस तानाशाही के ख़िलाफ़ लड़ेंगे। यह लड़ाई सिर्फ़ विवेक कुमार पर हुए हमले की नहीं है बल्कि विश्वविद्यालय को बचाने की लड़ाई है जिसके लिए हम लोग एकजुट हैं।"
हमने, चीफ प्रॉक्टर की कथित बर्बरता के शिकार हुए छात्र विवेक कुमार से बात की। उन्होंने आरोप लगाया कि "विश्वविद्यालय में पीने के लिए स्वच्छ पानी तक उपलब्ध नहीं है। अगर बुनियादी सुविधाओं के लिए कोई छात्र आवाज़ उठाता है तो उसको झूठे आरोप में जेल भेज दिया जाता है या उनकी पिटाई होती है।"
विवेक कुमार कहते हैं कि "विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में 6 बजे शाम से ताला लगा दिया जाता है जबकि छात्र पुस्तकालय को 24 घंटे खोलने की मांग कर रहे हैं। विश्वविद्यालय में फ़ीसवृद्धि के ख़िलाफ़ आंदोलन हुआ था जिसमें शामिल कई छात्रों पर बेबुनियाद आरोप लगाकर जेल भेज दिया गया जिसमें कई छात्र तीन महीने से जेल में बंद हैं।" बता दें कि विवेक कुमार आइसा के इलाहाबाद इकाई के अध्यक्ष भी हैं।
छात्रों ने विश्वविद्यालय के छात्रसंघ गेट से आक्रोश मार्च निकालते हुए कमिश्नर कार्यालय का घेराव किया और घंटों वहां पर विरोध प्रदर्शन और नारेबाज़ी करते रहे। वे चीफ प्रॉक्टर पर मुक़दमा दर्ज कर कार्रवाई करने की मांग कर रहे थे।
छात्रों ने साफतौर पर चेतावनी दी है कि "अगर गिरफ़्तार छात्रों को रिहा नहीं किया जाता और चीफ प्रॉक्टर के ख़िलाफ़ मुकदमा दर्ज कर जेल नहीं भेजा जाता तो आंदोलन निरंतर जारी रहेगा और हम लोग पुलिस कमिश्नर तक का घेराव करेंगे।" हमने इस बारे में प्रॉक्टर से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन उनका फोन नहीं उठा।
आपको बता दें इस मामले को लेकर और साथ ही लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्र निखिल के छः माह पुराने निलंबन के रद्द न होने से भड़के छात्रों ने लखनऊ विश्वविद्यालय में भी विरोध प्रदर्शन किया।
नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया के नेता विशाल सिंह ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में विवेक पर हुए कथित हमले की निंदा करते हुए कहा, "इलाहाबाद विश्वविद्यालय के शोध छात्र मनीष कुमार को मुख्य प्रॉक्टर ने विश्वविद्यालय परिसर के भीतर लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए खड़े होने के लिए तीन बार निलंबित किया है। 17 अक्टूबर, 2023 को मनीष और उसके सहपाठी को परीक्षा देने से रोक दिया गया था, जिसके कारण इलाहाबाद विश्वविद्यालय में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुआ। इसी विरोध प्रदर्शन के दौरान विवेक को प्रॉक्टर ने पीटा था।"
उन्होंने कहा कि "लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्रों को भी इसी तरह की कार्रवाई का सामना करना पड़ा है। लाइब्रेरी का समय बढ़ाने और परिसर में आरओ वाटर प्यूरीफायर लगाने के लिए प्रदर्शन करने पर आइसा लखनऊ के उपाध्यक्ष निखिल को निलंबित कर दिया गया था। सत्र के मध्य में निखिल की छात्रावास सुविधाएं भी ले ली गईं है। लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्रों को भी छात्रावास, अच्छे भोजन और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की बुनियादी सुविधाओं की मांग करते समय इसी तरह के हमलों का सामना करना पड़ा है।"
विशाल ने आगे कहा, "लखनऊ विश्वविद्यालय परिसर में लगातार लोकतांत्रिक अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है। लखनऊ विश्वविद्यालय प्रशासन को निखिल का निलंबन तुरंत वापस लेना चाहिए।"
आइसा एलयू के सह संयोजक क्रांति ने कहा, "आइसा ने लगातार लखनऊ विश्वविद्यालय में छात्र चुनाव की बहाली की मांग की है। इससे छात्र राजनीति में लड़कियों की बड़ी राजनीतिक भागीदारी होगी जो समाज में रूढ़िवादिता को तोड़ देगी।"
लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्रों और अन्य छात्र संगठनों ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रों के साथ अपनी एकजुटता व्यक्त की है और छात्र कार्यकर्ताओं पर निष्कासन नोटिस और निलंबन आदेश को हटाने के लिए कहा है। साथ ही स्टूडेंट्स ने छात्र संघ बहाली की भी मांग की है।
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