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क्या यौन उत्पीड़न के ख़िलाफ़ विनेश फोगाट की लड़ाई की वजह से उन्हें ओलंपिक पदक से हाथ धोना पड़ा?

ओलंपिक में फाइनल में प्रवेश करने वाली पहली भारतीय महिला पहलवान बनने के बाद अयोग्य घोषित की गईं फोगाट अपने साथियों के साथ पिछले लंबे समय से देश के कुश्ती महासंघ में यौन उत्पीड़न के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ रही हैं।
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मई 2023 में दिल्ली में कैंडल मार्च में पहलवान भीड़ को संबोधित करते हुए। (फोटो: सुरंग्या)

भारतीय पहलवान विनेश फोगाट को बुधवार, 7 अगस्त को चल रहे पेरिस ओलंपिक में 50 किलोग्राम वर्ग के कुश्ती मैच के फाइनल से पहले अयोग्य घोषित कर दिया गया, जबकि उनकी लगातार दो जीतों ने उन्हें स्वर्ण पदक की दावेदारी करने वाली पहली भारतीय महिला पहलवान बना दिया था। 29 वर्षीय पहलवान को अयोग्य घोषित किए जाने से भारत में राजनीतिक तूफान खड़ा हो गया है।

फाइनल मैच से ठीक पहले आई इस खबर ने, भारत में व्यापक जश्न को मातम नें बदल दिया और खेलों में उनके साथ गए भारतीय अधिकारियों के खिलाफ गुस्सा फुट पड़ा, और कई लोगों ने तो फोगाट के साथ संभावित षड्यंत्र की अटकलें लगानी शुरू कर दीं।

बुधवार को भारतीय संसद में विपक्ष के सदस्यों ने संसदीय कार्यवाही का बहिष्कार किया और सरकार पर आरोप लगाया कि वह ओलंपिक अधिकारियों के सामने फोगाट का उचित बचाव करने में विफल रही है और यहां तक कि राजनीतिक कारणों से फोगाट की अब तक की उपलब्धियों को कमतर आंकने का प्रयास कर रही है।

बुधवार को फोगाट का वजन मैच से पहले सुबह 50 किलोग्राम से मात्र 100 ग्राम अधिक पाया गया और खेल के नियमों के अनुसार उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया गया। उन्हें रजत पदक भी नहीं दिया गया। अधिकारियों ने फाइनल मैच में क्यूबा की पहलवान युस्नेलिस गुज़मैन को, जो एक दिन पहले सेमीफ़ाइनल में फोगाट से हार गई थी, को अमेरिका की सारा हिल्डेब्रेंट से मुकाबला करने का आदेश दिया और नतीजतन सारा ने आखिरकार स्वर्ण पदक जीत लिया।

फाइनल की दौड़ के दौरान, फोगाट ने चार बार की विश्व चैंपियन और गत स्वर्ण पदक विजेता जापान की यूई सुसाकी को हराया था, जिन्हें फोगाट के अयोग्य घोषित होने के बाद कांस्य पदक के लिए प्रतिस्पर्धा करने के लिए कहा गया, जिसे उन्होंने जीत लिया।

फोगाट भारत सरकार के खिलाफ़ एक कठिन लड़ाई लड़ रही हैं, उन्होंने अप्रैल में सोशल मीडिया पर ओलंपिक ट्रायल शुरू होने से ठीक पहले उन्हें ज़रूरी सहायक स्टाफ़ मुहैया कराने में अधिकारियों द्वारा की गई देरी पर अपनी निराशा व्यक्त की थी। उन्होंने अधिकारियों की ओर से उनके खिलाफ संभावित षड्यंत्र के बारे में भी आशंकाएं जताई थीं।

भारतीय कुश्ती महासंघ (WFI) द्वारा फोगाट को उनके प्राकृतिक भार वर्ग से बहुत नीचे के वर्ग में प्रतिस्पर्धा करने पर मजबूर करने पर विवाद खड़ा हुआ था। वह पहले 53 किलोग्राम वर्ग में भाग ले रही थी, जबकि उसे 50 किलोग्राम वर्ग में प्रतिस्पर्धा करने को कहा गया और ऐसा न करने पर पेरिस जाने का मौका गंवाने की चेतावनी दी गई।

बुधवार को अयोग्य ठहराए जाने के कुछ घंटों बाद फोगाट ने कुश्ती से संन्यास की घोषणा कर दी और दावा किया कि अब उनमें कई लड़ाइयां लड़ने की ऊर्जा नहीं बची है।

यौन उत्पीड़न के खिलाफ फोगाट की लड़ाई

मंगलवार को फोगाट की जीत ने आम भारतीयों में जोश भर दिया था। ओलंपिक में भारत द्वारा जीते जाने वाले पदकों की दुर्लभता को देखते हुए, उनमें से प्रत्येक को देश में एक खजाने की तरह संजोया जाता है। हालांकि, फोगाट के मामले में जश्न ज़्यादा ज़ोरदार था क्योंकि वह जिन परिस्थितियों में प्रतिस्पर्धा कर रही थी। कई लोगों ने सोचा कि संभावित स्वर्ण पदक देश में खेलों में यौन उत्पीड़न के खिलाफ़ उसकी लड़ाई को सही साबित करेगा।

फोगाट के मित्र और ओलंपियन बजरंग पुनिया ने कहा कि वह खेलों के बाद संन्यास लेने की योजना बना रही हैं और अपना समय देश में महिला मुक्केबाजों की भावी पीढ़ी के लिए खेलों में सुरक्षित माहौल बनाने के लिए समर्पित करेंगी।

ओलंपिक से ठीक पहले, फोगाट और उनके साथियों का मुकाबला भारत में खेलों की एक बहुत शक्तिशाली लॉबी से था, जिसका समर्थन सत्तारूढ़ दक्षिणपंथी और हिंदू-वर्चस्ववादी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) करती है।

फोगाट, साक्षी मलिक और पुनिया (दोनों ही ओलंपिक पदक विजेता पहलवान) ने पिछले साल मई-जून में राजधानी नई दिल्ली में धरना दिया था और तत्कालीन डब्ल्यूएफआई प्रमुख बृज भूषण शरण सिंह सहित अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी। उन्होंने उन पर महिला पहलवानों का यौन शोषण के मामलों में शामिल होने का आरोप लगाया था।

ब्रृज भूषण शरण सिंह, सत्तारूढ़ भाजपा की तरफ से भारतीय संसद के सदस्य भी थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने सत्तारूढ़ पार्टी के सांसद के खिलाफ कोई कार्रवाई करने से इनकार कर दिया था। इसके बजाय, दिल्ली में धरने पर पुलिस ने हमला किया और पहलवानों के साथ बदसलूकी की और उन्हें जबरन कार्यक्रम स्थल से हटा दिया।

सत्ताधारी पार्टी ने सोशल और मेनस्ट्रीम मीडिया दोनों पर फोगाट और अन्य पहलवानों के खिलाफ़ एक शातिर अभियान चलाया, जिसमें भाजपा को राजनीतिक रूप से बदनाम करने के लिए विपक्ष के साथ मिलीभगत के बेबुनियाद आरोप लगाए गए। कुछ सोशल मीडिया यूज़र्स और मेनस्ट्रीम मीडिया के एंकरों ने पहलवानों के तौर पर उनकी साख पर भी सवाल उठाए।

हालांकि शरण सिंह ने डब्ल्यूएफआई छोड़ दी और बाद में दिल्ली की एक अदालत में उनके खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए गए, फिर भी वह अपने करीबी विश्वासपात्र संजय सिंह को डब्ल्यूएफआई का नया अध्यक्ष बनवाने में सफल रहे।

इसके चलते साक्षी ने कुश्ती से संन्यास की घोषणा कर दी। सरकार द्वारा शरण सिंह को कथित तौर पर बचाने के विरोध में उन्होंने पहले ही अपने पदक को समर्पित कर दिया था। पुनिया ने भी डब्लूएफआई पर उत्पीड़न का आरोप लगाया था।

इन विरोधों के बावजूद भाजपा ने आगे बढ़कर शरण सिंह के बेटे करण भूषण सिंह को इस साल की शुरुआत में हुए संसदीय चुनावों में टिकट दिया, जिससे अंदाज़ा लगया जा सकता है कि शरण की राजनीतिक ताक़त कितनी है। करण सिंह चुनाव जीत गए और अब संसद के सदस्य हैं।

पेरिस खेलों में षड्यंत्र की अटकलें इस तथ्य से उपजी हैं कि, अधिकारी सत्तारूढ़ पार्टी और शरण सिंह के प्रभाव में काम कर रहे थे, क्योंकि यदि फोगाट तमाम बाधाओं के बावजूद पदक जीतने में सफल हो जाती तो उन्हें तब बहुत कुछ खोना पड़ता।

यद्यपि फोगाट ने खेलों से संन्यास ले लिया है, लेकिन लैंगिक न्याय और सम्मान के लिए उनका संघर्ष आगे भी भारतीय राजनीति को प्रभावित करता रहेगा।

ाभार: पीपल्स डिस्पैच

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