ईएमएस स्मृति 2021 और केरल में वाम विकल्प का मूल्यांकन
1998 से हर साल, जिस वर्ष ईएमएस नंबूदरीपाद (भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी के पूर्व महासचिव और केरल के मुख्यमंत्री) का निधन हुआ था, ईएमएस स्मृति नामक एक वार्षिक कार्यक्रम जून के दूसरे सप्ताह में केरल के त्रिशूर में आयोजित किया जाता है ताकि उनकी जयंती पर उनके महान कार्यों को याद किया जा सके।
जबकि इसकी शुरुवात वाम सिद्धांत और चिंतन के बारे में शिक्षा कार्यक्रम के रूप में शुरू किया गया था, लेकिन वक़्त के साथ ईएमएस स्मृति व्याख्यान अक्सर देश और विदेश के वामपंथी दलों और प्रशंसित शिक्षाविदों का, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय हालात पर चर्चा और बहस को आगे बढ़ाने का एक मंच भी रहा है जो समाज के आगे बढ़ने के तरीके पर व्यापक जन-दृष्टिकोण पर चर्चा करता है। इन वर्षों में, इसने भारत में कम्युनिस्ट पार्टियों और केरल में वाम लोकतांत्रिक मोर्चे द्वारा किए गए कार्यों के पीछे तर्क और अंतर्दृष्टि प्रदान की है। माकपा के महासचिव इसमें एक नियमित भागीदार के रूप में आते हैं।
पिछले साल, सेंटर ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी फॉर रूरल डेवलपमेंट (COSTFORD) त्रिशूर, जो इस कार्यक्रम का आयोजन करता है, को महामारी और जारी लॉकडाउन के कारण ईएमएस स्मृति कार्यक्रम को रद्द करने पर मजबूर होना पड़ा था। दूसरी लहर के दौरान केरल में कोविड-19 के मामलों में वृद्धि के साथ इस वर्ष कमोबेश वैसी ही स्थिति को देखते हुए, उन्होंने 13 जून को पहली बार वर्चुअल कार्यक्रम की मेजबानी करने का फैसला किया था।
इस वर्ष की थीम "डेवलपमेंट अल्टरनेटिव्स: द एक्सपीरियंस इन केरल", पब्लिक एजुकेशन एंड द नॉलेज इकोनॉमी, द पाथ अहेड फॉर पीपल्स प्लानिंग एंड फाइटिंग कम्युनलिज्म: द लेसन्स फ्रॉम केरल थी। प्रतिभागियों में केरल में सीपीआई और सीपीआई (एम) के वर्तमान और पूर्व मंत्री और विधायक और जाने-माने शिक्षाविद शामिल हुए थे।
पैनल ने और उसके बाद की चर्चाओं ने एक झलक प्रदान की कि केरल राज्य में वर्तमान एलडीएफ सरकार अगले पांच वर्षों में कैसे आगे बढ़ने की योजना बना रही है, विशेष रूप से "नया केरल" बनाने की उनकी योजना के संबंध में, और राज्य में वामपंथी और लोकतांत्रिक संगठन और शिक्षाविद इस अवधि के दौरान उभरी चुनौतियों को कैसे देखते हैं।
सार्वजनिक शिक्षा और ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था
इस सत्र की अध्यक्षता केरल में उच्च शिक्षा और सामाजिक न्याय मंत्री डॉ. आर बिंदू ने की थी। पैनल/वक्ताओं में एमए बेबी, पूर्व शिक्षा मंत्री और डॉ केएन गणेश, लेखक और इतिहासकार थे।
पूर्व वित्त मंत्री डॉ थॉमस इसाक जिन्होने अंतरिम बजट और इस महीने की शुरुआत में वर्तमान वित्तमंत्री केएन बालगोपाल जिन्होने संशोधित बजट पेश क्या था, दोनों ने ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था के विकास पर जोर दिया, और इस उद्देश्य के लिए ₹300 करोड़ निर्धारित किए जाने के बारे में तफसील से बताया।
विधानसभा चुनावों के लिए एलडीएफ के घोषणापत्र में केरल में उच्च शिक्षा क्षेत्र के पुनर्निर्माण के द्वारा स्कूली शिक्षा में हुई प्रगति को आगे बढ़ाने के लिए एक महत्वाकांक्षी योजना की रूपरेखा तैयार की गई थी, जिसमें नए विश्वविद्यालयों, शिक्षा के उत्कृष्ट स्वायत्त केंद्रों को खोलना, बुनियादी ढांचे का नवीकरण करना, नए पाठ्यक्रम तैयार करना, उपलब्ध सीटों में वृद्धि करना, नई फैलोशिप की स्थापना करना और अकादमिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करते हुए मौजूदा छात्रवृत्ति निधि का विस्तार करना, और छात्रों और शैक्षणिक/गैर-शैक्षणिक कर्मचारियों के लोकतांत्रिक अधिकारों को सुरक्षित करने जैसे वादे शामिल थे।
इस सत्र के दौरान हुई चर्चा में एक ऐसी ज्ञान-आधारित अर्थव्यवस्था के निर्माण पर चर्चा की गई जो जन-केंद्रित दृष्टिकोण की आवश्यकता के इर्द-गिर्द घूमती है, जो आम लोगों के लाभ के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी में प्रगति का इस्तेमाल करना चाहती है, न कि ऐसी ज्ञान अर्थव्यवस्था जो केवल अधिक मुनाफे पर केंद्रित हो। डॉ. केएन गणेश ने बताया कि ऐसी अर्थव्यवस्था समाज के लाभ के लिए सूचना के इस्तेमाल पर जोर देगी और मूल्यवर्धन की सुविधा प्रदान करेगी। सूचना के प्रसार पर पूंजी का नियंत्रण, जिससे विचारों का निजीकरण किया जाता है और व्यक्तियों की प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा दिया जाता है, उद्यम को सहकारी या सामूहिक तरीके से आगे बढ़ने के लिए इस व्यवस्था को तोड़ने की जरूरत है।
सूचना और संचार के बुनियादी ढांचे को उन्नत करने या उसका नवीनीकरण करने और केरल में सभी को मुफ्त इंटरनेट प्रदान करने के कार्यक्रमों को एक ऐसे साधन के रूप में देखा जाता है जो जन-दृष्टिकोण आधारित अर्थव्यवस्था को बढ़ाने में सहायता करेगा। प्रतिभागियों ने शिक्षित युवाओं के लिए रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए इस तरह के दृष्टिकोण की जरूरत पर भी जोर दिया, जो एलडीएफ घोषणापत्र का एक और बड़ा वादा है।
जन-योजना का आगे का रास्ता
केरल के पूर्व स्थानीय स्वशासन मंत्री ए.सी. मोइदीन की अध्यक्षता में इस सत्र में पूर्व वित्तमंत्री डॉ. थॉमस इसाक और पूर्व शिक्षा मंत्री प्रो. सी रवींद्रनाथ ने भाग लिया।
हालांकि, 1958 में केरल में पहली बनी कम्युनिस्ट सरकार द्वारा नियुक्त प्रशासनिक सुधार समिति के अध्यक्ष के रूप में ईएमएस के ज़रीए ही विकेन्द्रीकरण के कार्यक्रम को लागू करने के वामपंथी दलों के प्रयास में शुरू हो गए थे, उस वक़्त यह निष्कर्ष निकाला गया था कि ग्राम पंचायतों के माध्यम से शासन और लोकतांत्रिक भागीदारी की जरूरत है; लेकिन उन्हें उस मोर्चे पर काम करने से रोक दिया गया और केंद्र ने ईएमएस सरकार को 1959 में बर्खास्त कर दिया था।
उसके बाद केवल 1996 में ईएमएस के नेतृत्व वाली तत्कालीन एलडीएफ सरकार ने स्थानीय शासन के जारी सत्ता के विकेंद्रीकरण का प्रयोगसिद्ध प्रयास शुरू किए और पीपुल्स प्लान अभियान के साथ इसे शुरू किया गया, जिसने विकेंद्रीकरण को न केवल वित्तीय हस्तांतरण के साधन के रूप में देखा बल्कि इसे सुनिश्चित करने के साधन के रूप में भी देखा ताकि लोगों की भागीदारी के साथ समाज के लोकतंत्रीकरण को आगे बढ़ाया जा सके।
इस क्रांतिकारी कदम के बाद के 25 वर्षों के केरल के अनुभव कई तीसरी दुनिया के देशों से अलग है, जहां तीसरी दुनिया में ऐसे प्रयोगों को विश्व बैंक ने प्रोत्साहित किया जिसमें विकेंद्रीकरण, प्रतिनिधिमंडल और हस्तांतरण के ज़रीए निजीकरण को लाने के साधन के रूप में इस्तेमाल किया गया था, और इसलिए इसे ढांचागत समायोजन और सुधारों के हिस्से के रूप में निर्वाचित सरकारों के अधिकारों को 'छोटा' करने के उद्देश्य से लागू किया गया था।
इस सत्र के दौरान हुई चर्चा में सत्ता के विकेन्द्रीकरण के ज़रीए न्याय सुनिश्चित करने, प्रत्यक्ष भागीदारी को सुगम बनाने और शासन को लोकतांत्रिक बनाने पर ध्यान केंद्रित किया गया। प्रो. सी रवींद्रनाथ का विचार था कि स्थानीय स्वशासन नवउदारवादी विचारधारा पर हमला करने और साम्राज्यवाद का विरोध करने का एक बेहतर साधन है, जो अंतरराष्ट्रीय वित्त पूंजी के लाभ के लिए अधिक से अधिक क्षेत्रों से सरकार को कदम पीछे हटाने की मांग करता है।
डॉ. थॉमस इसाक ने स्थानीय सरकारों के माध्यम से जहां भी जरूरी हो, सूक्ष्म योजनाओं और आय-हस्तांतरण के माध्यम के साथ-साथ रोजगार के अवसरों के सृजन के माध्यम से भयंकर गरीबी के उन्मूलन के लक्ष्य को हासिल करने के लिए जन-योजना पर नए सिरे से प्रयास करने की जरूरत पर प्रकाश डाला, जोकि एलडीएफ घोषणापत्र का एक और बड़ा वादा था।
सांप्रदायिकता से लड़ना: केरल के कुछ सबक़
तीसरे सत्र की अध्यक्षता माकपा त्रिशूर जिला समिति के सचिव एमएम वर्गीस ने की। ए विजयराघवन, केरल में एलडीएफ के वर्तमान संयोजक; कनम राजेंद्रन, भाकपा केरल राज्य समिति के सचिव; और इस सत्र में भाग लेने वाले प्रोफेसर और सार्वजनिक वक्ता डॉ सुनील पी इलयिडोम थे।
एक ऐसे मोड़ पर जब भारतीय जनता पार्टी, केंद्र में सत्ताधारी दल के रूप में, कॉरपोरेट हिंदुत्व की नीतियों को लागू करने के लिए संसदीय मानदंडों और लोकतांत्रिक चर्चा को कम कर रही है या उसके प्रति कोई सम्मान नहीं दिखा रही है, संघ परिवार ने सांप्रदायिकता का इस्तेमाल कर देश की संप्रभुता और लोकतांत्रिक अधिकारों के प्रति संयुक्त संघर्षों को विभाजित करने की कोशिश की है।
केरल, पिछले पांच वर्षों में, इस कॉर्पोरेट-सांप्रदायिक गठजोड़ के खिलाफ लड़ाई में सबसे आगे रहा है, फिर चाहे राज्य सरकार और लोगों द्वारा नागरिकता संशोधन अधिनियम/नागरिकों के राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर के कार्यान्वयन के खिलाफ उठाए गए मजबूत कदमों के माध्यम से हो या फिर केंद्र सरकार द्वारा पेश किए गए तीन कृषि कानूनों के खिलाफ राष्ट्रीय राजधानी की सीमाओं पर चल रहे किसानों के आंदोलन के बारे में हो, केरल सरकार जनता और किसानों के साथ अडिग रही और उनके प्रति एकजुटता व्यक्त की है।
इस ब्रांड की राजनीति के खिलाफ लोगों की एकता इस साल की शुरुआत में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजों में देखी गई, जिसमें भाजपा को एक भी सीट नहीं मिली और उनका वोट-शेयर भी कम हो गया।
इस सत्र में चर्चाओं ने सांप्रदायिकता के खिलाफ लोगों के संघर्ष को मजबूत करने के लिए वर्ग और जन संगठनों की जरूरत पर ध्यान दिया। प्रतिभागियों ने जोर देकर कहा कि वामपंथी विकल्प केवल आर्थिक नीतियों तक ही सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि सामाजिक सद्भाव सुनिश्चित करने के लिए लोगों की एकता के निर्माण का भी होना चाहिए। केरल में 'पुनर्जागरण' आंदोलन और इसकी जाति-विरोधी और लोकतांत्रिक जड़ें इस विकल्प के निर्माण में मदद करेंगी, भले ही असंतोष को कुचला जा रहा हो और देश में विविधता को खत्म करने की कोशिश की जा रही हो।
प्रो. इलयिडोम ने भाजपा-आरएसएस से सावधान रहने की जरूरत को भी रेखांकित किया, क्योंकि चुनावी असफलताओं के बावजूद वे अपने प्रतिगामी सामाजिक और सांस्कृतिक विचारों को प्रचारित करने में सफल रहे है। उन्होंने कहा कि सांप्रदायिकता और ब्राह्मणवाद के खिलाफ वैचारिक संघर्ष को कॉरपोरेट नीतियों के खिलाफ लोगों के संघर्ष के साथ-साथ चलने की जरूरत है।
कुल मिलाकर, त्रिशूर में प्रगतिशील संगठनों और उनके कार्यकर्ताओं की मदद से कॉस्टफोर्ड (COSTFORD) द्वारा आयोजित पैनल चर्चा, केंद्र में सत्तारूढ़ दल द्वारा समर्थित नीतियों के विकल्प के बारे में व्यापक चर्चा को चलाने में सफल रही। .
सत्र की शुरुवात में अपने उद्घाटन भाषण में, माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी ने बड़े पूंजीपतियों और किसानों, बड़े पूंजीपतियों और गैर-बड़े पूंजीपतियों और केंद्र और राज्यों के बीच उभरती टकराव के बारे में बताया। उनके अनुसार, वामपंथी विकल्प को सुधारवाद के रूप में नहीं बल्कि राजनीतिक लामबंदी, संघर्ष और बदलाव के साधन के रूप में देखा जाना चाहिए।
ईएमएस स्मृति के संयोजक प्रो. एम.एन. सुधाकरन ने इस कार्यक्रम में भाग लेने वाले प्रतिभागियों और आम जनता की प्रतिक्रिया पर प्रसन्नता व्यक्त की। विभिन्न प्लेटफार्मों पर 50,000 से अधिक लोगों ने चर्चा में हिस्सा लिया। पूरे कार्यक्रम की रिकॉर्डिंग उनके फ़ेसबुक पेज पर देखी जा सकती है।
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