दस्तावेज रखने के लिए पत्रकारों पर केस दर्ज करना चिंताजनक और चौंकाने वाला है: मीडिया संगठन
गोपनीय दस्तावेज रखने के आरोप में द हिंदू के संवाददाता महेश लांगा के खिलाफ गुजरात पुलिस द्वारा अहमदाबाद में दर्ज किए गए मामले में प्रतिक्रिया देते हुए मीडिया संगठनों ने कहा कि पत्रकारों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई करना चिंताजनक और चौंकाने वाला है।
द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, गुजरात मैरीटाइम बोर्ड (जीएमबी) से जुड़ी कथित रूप से संवेदनशील दस्तावेजों की चोरी के लिए दर्ज एफआईआर की वरिष्ठ वकीलों और कानूनी विशेषज्ञों ने भी आलोचना की है और इसे एक खतरनाक उदाहरण बताया है जिसका पत्रकारों व व्हिस्लब्लोअर्स पर भयावह असर पड़ सकता है। इस बीच लांगा के वकीलों ने आरोप लगाया कि एफआईआर में प्रक्रियागत खामियां हैं।
पत्रकार पर केस दर्ज होने के बाद प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, इंडियन विमेंस प्रेस कॉर्प्स और अन्य पत्रकार संगठनों द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है कि "यह चौंकाने वाला है कि महज दस्तावेजों के आधार पर राज्य द्वारा एफआईआर दर्ज की जा सकती है।”
पत्रकार के संगठनों के बयान में इस एफआईआर की निंदा की गई है साथ ही इसे वापस लेने की मांग की गई।
ज्ञात हो कि एडिटर्स गिल्ड ने सोमवार को एक बयान में कहा, ‘पत्रकारों को अक्सर अपने काम के दौरान संवेदनशील दस्तावेजों तक पहुंचने और उनकी समीक्षा करने की जरूरत होती है, उनके काम के लिए उनके खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई शुरू करना चिंताजनक है।’
गिल्ड ने साथ ही गुजरात पुलिस द्वारा संवेदनशीलता के चलते दर्ज इस एफआईआर को ऑनलाइन उपलब्ध न कराने के निर्णय को गंभीर चिंता का विषय बताया।
द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा कि पुलिस की कार्रवाई ‘स्वतंत्रता के हनन के साथ सेंसरशिप’ का संकेत देती है। उन्होंने कहा, ‘यह परेशान करने वाली बात है कि ह्विसिलब्लोअर एक्ट होने के बावजूद इसे कभी भी इस्तेमाल में नहीं लाया गया, क्योंकि यह ऐसे मामलों में पत्रकारों को सुरक्षा प्रदान करेगा।’
उन्होंने बताया कि केवल आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम द्वारा संरक्षित दस्तावेजों को ही किसी के पास पाए जाने पर प्रतिबंध है।
बता दें कि गत 8 अक्टूबर को दर्ज दूसरे मामले में गांधीनगर पुलिस ने जीएमबी की शिकायत के बाद चोरी, आपराधिक साजिश, धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की विभिन्न धाराओं का हवाला दिया, जिसमें लांगा का नाम है। जीएमबी ने कहा कि उसे 8 अक्टूबर को अपराध शाखा से एक गोपनीय पत्र मिला था, जिसमें पुलिस को मिले 215 पन्नों के दस्तावेज़ के बारे में बताया गया था।
कानून के तहत पूर्ववर्ती आईपीसी की धारा 378 (2) में चोरी को किसी व्यक्ति की सहमति के बिना उसके कब्जे से किसी भी चल संपत्ति को बेईमानी से छीनने के इरादे से किया गया कार्य के रूप में परिभाषित किया गया है, और कानूनी विशेषज्ञों ने सवाल उठाया है कि इस मामले में अपराध कैसे बनाया जा सकता है, क्योंकि एक गैर-गोपनीय दस्तावेज़ की फोटोकॉपी पाई गई है।
वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ अग्रवाल ने कहा, ‘भारत में जहां खोजी पत्रकारिता ने 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले और व्यापम घोटाले जैसे बड़े घोटालों को उजागर किया है, विश्वसनीय रिपोर्टिंग के लिए प्रामाणिक दस्तावेजों तक मुफ्त पहुंच आवश्यक है।’
उन्होंने कहा, ‘शक्तिशाली हितों से उत्पन्न खतरों को देखते हुए संवेदनशील दस्तावेज रखने के लिए पत्रकारों को विशेष संरक्षण प्रदान करने से उनकी सुरक्षा सुनिश्चित होगी तथा निर्भीक रिपोर्टिंग को प्रोत्साहन मिलेगा।’
इस बीच लांगा के अधिवक्ताओं ने प्रक्रियागत कागजी कार्रवाई में चूक की तरफ इशारा किया। उनके वकील वेदांत राजगुरु का कहना है कि लांगा के खिलाफ जीएमबी के दस्तावेजों की कथित चोरी के संबंध में दर्ज एफआईआर में यह उल्लेख नहीं है कि दस्तावेज कहां से बरामद किए गए और न ही जब्ती ज्ञापन में दस्तावेज का उल्लेख है।
इसके अलावा, 8 अक्टूबर को लांगा की गिरफ़्तारी के बाद अहमदाबाद क्राइम ब्रांच द्वारा तैयार किए गए जब्ती ज्ञापन में कहा गया है कि पुलिस ने उनके घर से दो लैपटॉप और एक डेस्कटॉप, एक आईफोन, एक पेन ड्राइव, लांगा और उनकी पत्नी के टैक्स रिटर्न, कलोल तालुका से संबंधित ज़मीन के दस्तावेज़, 1.8 लाख रुपये, आईएएस अधिकारियों के फोन नंबर वाली 2022 फोन डायरेक्टरी और क्रिस्टोफर जैफ़रलॉ की किताब ‘गुजरात अंडर मोदी’ की पांडुलिपि बरामद की है।
घर से जब्त किए गए फोन और लैपटॉप का इस्तेमाल लांगा की पत्नी और उनके बच्चे कर रहे थे। जब्ती ज्ञापन में न तो लांगा के निजी फोन और न ही गोपनीय जीएमबी दस्तावेज़ों का ज़िक्र है।
लांगा को एक पारिवारिक कंपनी द्वारा वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) चोरी के मामले में गिरफ्तार किया गया था, जिसमें वे बोर्ड के सदस्य के रूप में सूचीबद्ध नहीं हैं। शुक्रवार को उन्हें जमानत देने से इनकार कर दिया गया।
एफआईआर में कहा गया है कि आंतरिक जांच के बाद जीएमबी का मानना है कि उसके किसी कर्मचारी ने बोर्ड के चार्टर से संबंधित नीति-संबंधी दस्तावेज़ की प्रतियां बनाकर लांगा को दी होगी।
इस एफआईआर में कहा गया है कि चूंकि दस्तावेज़ सार्वजनिक नहीं है और सूचना के अधिकार अधिनियम के अंतर्गत नहीं आता है, इसलिए इसे अपराध करने के इरादे से चुराया गया है और प्रतियां अवैध रूप से तैयार की गई हैं।
साभार : सबरंग
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