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ग्राउंड रिपोर्ट: ‘पानी ढोने में खप रही उम्र’...पानी की किल्लत से जूझ रहे पूर्वांचल के कई इलाक़े!

प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस से सटे चंदौली, मिर्ज़ापुर और सोनभद्र के लोग आख़िर क्यों कह रहे हैं कि पानी की जद्दोजहद में उनकी ज़िंदगी बीत रही है! पेश है ग्राउंड रिपोर्ट:
water shortage

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यूपी के बनारस का प्रतिनिधित्व करते हैं और उससे सटे चंदौली, मिर्जापुर और सोनभद्र के लोग पानी की किल्लत से जूझ रहे हैं। जंगलों में रहने वाले हज़ारों चेहरे आज भी प्यास की गवाही दे रहे हैं। ऐसी गवाही जो डबल इंजन सरकार की ‘हर घर नल योजना’ के दावों पर सवालिया निशान लगाती है। इन इलाकों में पीने का पानी जुटाना, औरतों और बच्चों के लिए रोज़ का संघर्ष है। यह स्थिति तब है जब दुर्गम इलाकों में पेयजल संकट दूर करने के लिए सबसे अधिक पैसा खपाया गया।

चंदौली ज़िले के नौगढ़ ब्लॉक मुख्यालय से क़रीब 21 किमी दूर घनघोर जंगलों के बीच बसा है एक छोटा सा गांव पंडी। आबादी है क़रीब 195 लोगों की और यहां के लोग सिर्फ एक हैंडपंप के भरोसे हैं। कुछ रोज़ पहले यह हैंडपंप भी बिगड़ गया था, तब पंडी के आदिवासियों ने चंदा जुटाया और डीप बोरिंग कराई। सुबह से देर रात तक यही हैंडपंप आदिवासियों की प्यास बुझा रहा है। कई बार यह हैंडपंप पानी भी छोड़ देता है तब गांव के लोग एक फर्लांग दूर सीवान में चुआड़ की ओर भागते हैं। पंडी गांव के लोगों का कहना है कि उनके लिए पानी का संघर्ष कोई नई कहानी नहीं, सदियों पुरानी है। आमतौर पर हर साल गर्मी के दिनों में इस गांव की औरतें और बच्चे झुंड में पानी के लिए जंगली और पथरीले रास्तों पर दौड़ लगाते हैं। इनका तकलीफ है कि इनकी ज़िंदगी का ज़्यादा वक्त पानी के इंतज़ाम में ही खप जाता है।

चौतरफा पहाड़ियों से घिरे पंडी गांव में सिर्फ खरवार आदिवायों के डेरे हैं और इनकी ज़िंदगी बेहद दर्दनाक है। यहां के लोग हर सुबह उठते ही पानी की फ़िक्र में जुट जाते हैं। खपरैल के मकान में खाने की थाली में चावल, नमक और प्याज़ लेकर उदास रजवंती (45) कहती हैं, "जब से होश संभाला है तब से लेकर आज तक हम पानी ही ढो रहे हैं। अगर हिसाब जोड़ा जाए तो आधा दिन पानी ढोने में गुज़र जाता है। यह सिलसिला तब से चल रहा है जब से हमने अपने घर के बाहर निकलना सीखा है।"

पेयजल संकट के सवाल पर 70 वर्षीया जयमूर्ति भावुक हो जाती हैं और कहती हैं, "हमारे गांव की औरतों की मंजिल बहुत छोटी है। सबकी ज़िंदगी बेरंग है। सिर्फ पानी ढोने, खाना बनाने और बच्चों को पालने में ही पंडी गांव की औरतों की उम्र बीत जाती है। हर घर की औरतें पानी ढोती हैं और पुरुष मजूरी करते हैं। मुश्किल सिर्फ औरतों को नहीं, स्कूल जाने वाले ज़्यादातर बच्चे और बच्चियां अपनी माताओं के साथ पानी के लिए कभी इकलौते हैंडपंप पर लाइन में खड़े नज़र आते हैं तो कभी सिर पर पानी के डिब्बों के साथ। आखिर दहकती गर्मी में यह हैंडपंप भी कब तक हमारा साथ देगा। जब वो पानी छोड़ देता है तो हमें चुआड़ की ओर दौड़ना पड़ता है। अगर हमें आसानी से पानी मिल रहा होता तो औरतें-बच्चे पथरीले रास्तों पर क्यों दौड़ लगाते?

स्कूली बच्चों को भी ढोना पड़ता है पानी

पानी ढोते-ढोते बीत रही उम्र

नौगढ़ का पंडी गांव देवरी ग्राम पंचायत से जुड़ा है और इस गांव की प्रधानी लाल साहब के पास है। प्रभावती बताती हैं, "पानी के संकट ने हमारी ज़िंदगी नर्क बना दी है। जब हैंडपंप बिगड़ जाता है तो कई-कई दिन बिना नहाए रहना पड़ता है। तब चुआड़ के मटमैले पानी से ही हमारी प्यास बुझ पाती है। समूचा पंडी गांव मटमैले पानी के ऊपर निर्भर है। यहां ज़मीन से ऐसा पानी निकलता है जो न पीने लायक होता है, न नहाने लायक।"

सिर पर पानी का डिब्बा और हाथ में बाल्टी लिए रजवंती कहती हैं, "हमारे मवेशियों के लिए पानी नहीं है। आसपास कोई बांध-बंधी और पोखरा भी नहीं है। गर्मी के दिनों में नहाने के लिए साफ़ पानी हमारे नसीब में नहीं होता। जब पीने के लिए पानी उपलब्ध नहीं है तो नहाएं कैसे? दूषित पानी से बीमारी होती है तो महंगा इलाज कराना पड़ता है। तब रोजी-रोटी में भी कठिनाई होती है।"

आदिवासी समुदाय के रामकृत खरवार बताते हैं, "हमारे घरों की ज़्यादातर औरतों की ज़िंदगी और उम्र पानी जुटाने में ही खप जाती है। पुरुष मजूरी करने चले जाते हैं तो औरतें-बच्चे पानी ढोने में जुट जाते हैं। काफी जद्दोजहद के बाद इकलौते हैंडपंप से बाल्टी-दो-बाल्टी पानी निकाल पाते हैं। पंप जब ज़्यादा चलता है तब गंदा पानी आने लगता है। भीषण पेयजल संकट का असर हमारे सामाजिक ताने-बाने पर पड़ रहा है। हालात ये हैं कि कोई भी पिता अपनी बेटी की शादी पंडी और आसपास के गांवों में नहीं करना चाहता है। यहां शादी के इंतज़ार में कई युवाओं की उम्र ढलती जा रही है। रिश्तेदार आते हैं तो कहते हैं पानी नहीं है इसलिए अपनी बेटियों का ब्याह नहीं करेंगे। हमारे गांव के विजय बहादुर और सुरेश सरकारी नौकरी में हैं। पानी के संकट के चलते वो अपने बच्चों को पंडी लेकर तभी आते हैं जब कोई मांगलिक कार्यक्रम होता है।"

नौगढ़ में आदिवासियों के बच्चों को साक्षर बनाने में जुटी ग्राम्या के शिक्षक अरविंद कुमार पंडी गांव में रहते हैं। वह कहते हैं, "शादी के बाद जो औरतें पंडी गांव की बहू बनती हैं उन्हें रोजाना सुबह-शाम घंटों पानी ढोना पड़ता है। यहां औरतों को सिर पर बाल्टी अथवा प्लास्टिक का डिब्बा रखकर आते-जाते कोई भी देख सकता है। चुनाव के वक्त सभी दलों के नेता आते हैं और पानी की मुश्किलों से छुटकारा दिलाने के बड़े-बड़े दावे करते हैं, लेकिन बाद में उनके दर्शन नहीं होते। हमारी कई पीढ़ियां गुज़र गईं, लेकिन पेयजल समस्या का स्थायी समाधान आज तक नहीं हुआ। अप्रैल से जुलाई महीने तक का समय किसी बड़े संकट से कम नहीं होता। अभी तो जून का महीना बाकी है। अभी पानी हाल यह है तो बाद में क्या होगा?"

इसी गांव के चंद्रिका, राम सकल, मुनिया, लालब्रत, जगदीश कहते हैं, "कैलाश खरवार हमारी बिरादरी के विधायक हैं, लेकिन वो आज तक पंडी नहीं आए। किसी ने उनका चेहरा तक नहीं देखा। प्रधान लाल साहब दो-तीन महीने में आते हैं और भरपूर पानी दिलाने का सपना दिखाकर लौट जाते हैं। पानी मिलने लगे तो हमारे गांव में हर चीज़ सही हो जाएगी। सारा कष्ट दूर हो जाएगा।"

पंडी गांव के पश्चिमी छोर पर हमारी मुलाक़ात 10वीं कक्षा के छात्र प्रमोद कुमार और 9वीं कक्षा में पढ़ने वाली पूजा से हुई। दोनों ने अपनी मुश्किलें गिनानी शुरू कर दीं, "सरकारी योजनाएं हमारे गांव में पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देती हैं। पंडी में कई हैंडपंल लगे, लेकिन एक को छोड़ कोई सफल नहीं हो सका। एक चुआड़ पर आखिर कब तक लोग निर्भर रहेंगे? हमने जब से होश संभाला है तब से पानी ढोना हमारी दिनचर्या में शामिल है। सुना है कि सरकार "हर घर नल योजना' शुरू करने वाली है, लेकिन उस योजना का कहीं अता-पता नहीं है। दावा किया गया था कि साल 2022 तक सभी के घरों में पानी पहुंचने लगेगा, लेकिन सरकार के दावे झूठे निकले। गर्मी के दिनों में जब आसमान से आग बरसती है तब पंडी का इकलौता हैंडपंप थोड़ा सा पानी गिराता है फिर बंद हो जाता है। यहां पानी का संकट बहुत पुराना है। बोरिंगें कई बार हुईं, लेकिन सफल नहीं हुईं। हैंडपंप के पानी में लौह तत्व की अधिकता है। यह भी एक स्वास्थ्य समस्याओं का कारण है। गर्मी और बरसात के दिनों में पंडी के तमाम बच्चे खुजली और उल्टी-दस्त से बीमार होते हैं।"

नौगढ़ के दुर्गम इलाकों का दौरा कर लौटे ग्रामीण पत्रकार एसोसिएशन के जिलाध्यक्ष आनंद सिंह कहते हैं, "चंदौली के नौगढ़ इलाके में विकास के नाम पर सालों-साल करोड़ों रुपये ख़र्च किए गए, जिनमें से सबसे अधिक पैसा पानी के संकट को दूर करने में खपाया गया। यहां पैसा तो पानी की तरह बहा, लेकिन लोगों की प्यास नहीं बुझ पाई। बूंद-बूंद पानी के लिए अब भी लोग जूझ रहे हैं। आदिवासी बहुल इस इलाक़े में पीने का पानी जुटाना युद्ध जीतने जैसा होता है। नौगढ़ के किसी भी गांव में चले जाइए। हर कोई यूपी सरकार के जीवन मिशन से उम्मीद लगाए बैठा है। शहर से कोई भी पहुंचता है तो आदिवासी एक ही सवाल पूछते हैं,  "आखिर कब पहुंचेगा सरकारी नल का पानी? कब दूर होगा पेयजल संकट और कब ख़त्म होगी उनकी जद्दोजहद?"

लोगों का आरोप "झूठा निकला सरकारी वादा"

नौगढ़, चंदौली ज़िले का वह इलाक़ा है जहां सर्वाधिक आबादी खरवार, कोल, मुसहर और बैगा जनजातियों की है। इस इलाक़े में पानी की समस्या को लेकर योजनाएं तो कई बार बनी, लेकिन ज़मीनी हक़ीक़त नहीं बदली। नौगढ़ बांध, मूखाखाड़ बांध, भैसौड़ा बांध और राजदरी-देवदरी के पास चंद्रप्रभा बांध सूखने की कगार पर हैं। इस इलाक़े में क़रीब 65 बंधियां हैं, जिनमें अंजुरी भर पानी नहीं है। जिन गांवों के पास से कर्मनाशा और चंद्रप्रभा नदियां गुज़रती हैं, वो भी किसी काम की नहीं रह गई हैं। इन नदियों में मवेशियों और पशु-पक्षियों को भी प्यास बुझाने लायक पानी नहीं रह गया है। इन दिनों हज़ारों मवेशियों को लेकर आदिवासी समुदाय के लोग उन जलाशयों की तलहटी में चले गए हैं जहां थोडा-बहुत पानी उपलब्ध है। मूसाखांड़ बांध में आदिवासियों को गाय-बकरियों के झुंड के बीच देखा जा सकता है।

चंदौली में यह हाल है चंद्रप्रभा नदी का

दूसरी ओर, औरवाटांड जलायश के पूर्व की तरफ़ सेमर साधो ग्राम सभा के सेमर, होरिला, धोबही, पथरौर, जमसोत से लगायत शाहपुर तक सूखे की मार के साथ पेयजल की समस्या है। देवरी के दक्षिण में मंगरई ग्राम सभा के गहिला, सुखदेवपुर, हथिनी, मगरही की स्थिति भी ऐसी ही है। उत्तर में पहाड़ और जंगल है। 40 से 45 किमी तक कहीं हैंडपंप अथवा कुआं नहीं है। पश्चिम में लौआरी ग्राम सभा का गांव है जमसोती, गोड़टुटवा, लेड़हा, लौआरी, लौआरी कला। इन गांवों में औरतों और बच्चों को पीने के पानी के लिए जद्दोजहद करते कभी भी देखा जा सकता है।

केल्हड़िया, सपहर, पंडी, नोनवट, करमठचुआं और औरवाटांड गांव देवरी ग्राम सभा के हिस्से हैं। क़रीब 30-35 लोगों की आबादी वाले गांव सपहर से गनपत, रामसूरत और छोटेलाल का कुनबा भीषण पेयजल संकट के चलते बिहार के हरसोती गांव में पलायन कर गया है। दूसरी ओर, औरवाटांड में एक शानदार झरना है, जहां लुत्फ़ उठाने बड़ी संख्या में सैलानी आते हैं, लेकिन यहां पीने के पानी का संकट ऐसा है कि लोग अपनी बेटियों की शादी नहीं करना चाहते। पेशे से मज़दूरी करने वाले औरवाटांड के रामदीन कहते हैं, "हमारे सामने सबसे बड़ी दिक्कत पानी की है। 65 घरों की आबादी प्यास से बेहाल है। बूंद-बूंद पानी के लिए हम सभी को जद्दोजहद करना पड़ रहा है। पानी तो बहुत है, लेकिन प्यास बुझाने लायक नहीं है। यहां सड़क किनारे लगे एक हैंडपंप से पूरे गांव के लोग पानी पीते हैं।" इन्हीं के पास खड़ीं रामरती देवी कहती हैं, "पानी के बर्तन ख़ाली होने पर लोग हैंडपंपों पर नंबर लगाते हैं और अपनी बारी आने पर पानी भरते हैं।" शंकरलाल को शिकायत है कि "हर साल सूखे के हालात बनते हैं और फिर लोग कई किलोमीटर दूर जाकर पानी लाकर गुज़ारा करते हैं। कुछ जगहों पर टैंकर से भी पानी पहुंचाया जाता है।"

नौगढ़ कहें या कालाहांडी?

दरअसल, नौगढ़ इलाक़ा पहले पूर्वांचल का दूसरा कालाहांडी माना जाता था। इसी प्रखंड के कुबराडीह और शाहपुर जमसोत में दो दशक पहले भूख से कई आदिवासियों की मौत हुई थी। नौगढ़ इलाक़े में दशकों तक डकैतों का साम्राज्य रहा। डकैत ख़त्म हुए तो नक्सलियों की आमद-रफ़्त बढ़ती चली गई। इस इलाक़े में कभी नामी डकैतों का सिक्का चला करता था तो कभी यह इलाक़ा कुख्यात नक्सलियों का सबसे बड़ा गढ़ हुआ करता था। फ़िलहाल दोनों समस्याएं काफ़ी हद तक ख़त्म हो गई हैं, लेकिन आदिवासियों की पेयजल की मुश्किलें जस की तस हैं।

साल 2011 की जनगणना के अनुसार चंदौली ज़िले की आबादी 19,52,756 थी, जिसमें 10,17,905 पुरुष और 9,34,851 महिलाएं शामिल थीं। 2001 में चंदौली ज़िले की जनसंख्या 16 लाख से अधिक थी। चंदौली में शहरी आबादी सिर्फ़ 12.42 फ़ीसदी है। 2541 वर्ग किलोमीटर है फैले चंदौली ज़िले में अनुसूचित वर्ग की आबादी 22.88 फ़ीसदी और जनजाति आबादी 2.14 फ़ीसदी है। यहां खेती के अलावा कोई दूसरा रोज़गार नहीं है।

यूपी की योगी सरकार ने जून 2020 में 'हर घर जल योजना' की शुरुआत की और वादा किया कि चंदौली के नौगढ़ इलाक़े में हर घर तक पाइपलाइन से पानी पहुंचा दिया जाएगा। यह योजना केंद्र सरकार के जल जीवन मिशन का हिस्सा है। 'हर घर जल' योजना को पूरा किए जाने की समय सीमा जून 2022 तक रखी गई थी। मियाद भी बीत गई, लेकिन लोगों का आरोप है कि यह योजना ज़मीन पर नहीं  उतरी।

यूपी के पूर्वांचल में सोनभद्र, मिर्जापुर और नौगढ़ (चंदौली) पहाड़ी इलाके हैं, जहां पानी के बगैर सब सूना है। न्यूज़क्लिक के लिए हमने पूर्वांचल के कई गांवों में जाकर ज़मीनी हालात देखने की कोशिश की। पड़ताल में एक बात साबित हुई कि विकास के नाम पर यहां कई सालों से हज़ारों करोड़ रुपये खर्च किए गए, जिनमें से सबसे ज़्यादा पैसा पानी के संकट को दूर करने में खर्च किया गया। आदिवासी बहुल किसी भी गांव में अगर कोई जलसा या फिर शादी-विवाह होता है तो सबसे ज़्यादा मशक्कत पानी के लिए करनी पड़ती है।

नौगढ़ के उप ज़िलाधिकारी आलोक कुमार मीडिया से कहते हैं, "कोशिश की जा रही है कि जल जीवन मिशन के तहत नौगढ़ में हर घर तक जल पहुंच जाए। हमने नौगढ़ के कई स्कूलों में डीप बोरिंग कराई लेकिन वो फेल हो गई। फ़िलहाल यह कह पाना कठिन है कि मिशन के तहत पेयजल कब तक पहुंचेगा। नौगढ़ का क्षेत्रफल बड़ा है और आबादी कम है, जिसके चलते विकास के लिए धन कम मिल पा रहा है। दशकों से चली आ रही समस्या को एक दिन में ख़त्म नहीं किया जा सकता। थोड़ा वक़्त लगेगा, लेकिन सरकार के प्रयास सफल होंगे। हम गांवों में तालाब और बंधियां बनवा रहे हैं। धीरे-धीरे समस्या ख़त्म होगी।"

बांध-बंधियां पानी को मोहताज़

बनारस से सटे मिर्जापुर ज़िले में सरकार ने जल संकट को दूर करने के लिए पानी की तरह पैसा बहाया लेकिन स्थिति जस की तस है। पर्वतीय अंचल में कई शानदार झरने, बड़े जलाशय और नदियां हैं। यहां सिरसी बांध की जल संचयन क्षमता 2,06,550 घन मीटर, मेजा बांध की 3,02,810 घन मीटर, अहरौरा बांध की 58,300 घन मीटर, जारगो बांध की 1,42,920 घन मीटर और ढेकवा बांध 6,020 घन मीटर है। सिरसी जलाशय के पानी का एक बड़ा हिस्सा सिंचाई और घरेलू उपयोग के लिए प्रयागराज भेजा जाता है। मिर्जापुर की मिट्टी कम नम है, जो बड़ी मात्रा में पानी सोखती है।

मड़िहान के सरसावा निवासी सूर्य प्रसाद कहते हैं, "पानी की कमी के चलते खेती करना मुहाल हो गया है। आसमान से आग बरस रही है और अभी तक धान की नर्सरी तक नहीं लग पाई है। नलकूप लगाने के लिए पत्थर काटने वाली मशीन से डीप बोरिंग करानी पड़ती है, जिसका खर्च दो-तीन लाख रुपये आता है। आखिर हम इतना पैसा कहां से लाएंगे?"

बता दें कि पीएम नरेंद्र मोदी ने 22 नवंबर, 2020 को 'हर घर नल योजना' की शुरुआत की थी। क़रीब 5,544 करोड़ रुपये की इस परियोजना का लक्ष्य पूंजीगत व्यय के साथ मिर्जापुर और सोनभद्र जिलों में हर घर में स्वच्छ और सुरक्षित पेयजल की आपूर्ति करना है। बांध के पानी को उपचारित कर मिर्जापुर के 1,606 गांवों और सोनभद्र के 1,389 गांवों में जल संकट कोदूर करने की योजना है। स्वच्छ पेयजल के भंडारण के लिए साफ़ पानी के 48 जलाशयों के निर्माण के साथ-साथ मिर्जापुर में 784 किलोमीटर लंबी पाइपलाइन बिछाई जा रही है। साथ ही 58 कच्चे जल उपचार संयंत्र स्थापित किए जाएंगे। पटेहरा के कलवारी खुर्द मझारी में अमृत पेयजल योजना के तहत 600 लाख लीटर के ओवरहेड टैंक का निर्माण कराया जा रहा है, लेकिन मियाद बीत जाने के बावजूद कार्य अब तक अधूरा है। दीपनगर की सरोजा कहती हैं, "मिर्जापुर के पहाड़ी इलाकों में की गई ज़्यादातर डीप बोरिंगें फेल हो गई हैं। ज़्यादातर हैंडपंप ऐसे हैं, जिन्हें काफ़ी ज़्यादा चलाने के बाद बस बूंद-बूंद पानी ही आता है।

मिर्जापुर में क़रीब 90 फ़ीसदी लोग खेती पर निर्भर हैं, जिनमें 70 फ़ीसदी खेतिहर मज़दूर हैं, जो कर्ज के दलदल में फंसे हैं। कई किसानों को बैंक लोन से उधार चुकाने के लिए अपनी ज़मीनें बेचनी पड़ी। सिंचाई के लिए बनाए गए बांधों के पानी का इस्तेमाल जब से पेयजल संकट दूर करने के लिए किया जा रहा है तब से किसानों की स्थिति और भी ज़्यादा दयनीय हो गई है। किसानों को यह तक नहीं सूझ रहा है कि वो अपनी फसलों की सिंचाई कैसे करें। पिछले दो-तीन सालों से इस इलाके में सूखे जैसे हालात हैं, जिसके चलते आदिवासी बहुल इलाकों में रहने वाले लोगों की मुश्किलें बढ़ गई हैं और सबकी ज़िंदगी पहाड़ सरीखी हो गई है।

सोनभद्र में साफ़ पानी की चुनौती

मिर्जापुर की तरह सोनभद्र में भी हालात बदतर हैं। ज़िले की क़रीब 22 लाख की आबादी के सामने पीने के साफ़ पानी की समस्या एक गंभीर चुनौती बनकर उभरी है। प्रदूषित पानी की वजह से ज़िले के दस प्रखंडों के क़रीब 26 गांवों के लोग पिछले बीस बरस से फ्लोरोसिस जनित बीमारियों की ज़द में हैं। दुद्धी, नगवां, रॉबर्ट्सगंज, घोरवल, म्योरपुर प्रखंड क्रिटिकल जोन और कोन, बभनी, चतरा, करमा, चोपन आदि गांव सेमी क्रिटिकल ज़ोन में चले गए हैं। नगवां इलाके के गोगा, केवटम, ढोसरा समेत दर्जनों गांवों में औरतों और बच्चों को क़रीब दो-तीन किलोमीटर दूर से पानी ढोना पड़ रहा है। इन गांवों में लगे ज़्यादातर हैंडपंप खराब हैं या फिर सूखे हैं। दूषित पानी पीने की वजह से यहां कमर में दर्द, जोड़ो में दर्द की शिकायत आम है। सबसे ज़्यादा असर बच्चों पर है। खास बात यह है कि एशिया के बड़े जलाशयों में शुमार रिहंद बांध अब खुद अपने लिए पानी के लिए लड़ रहा है।

सोनभद्र ज़िले के 270 गांवों में पेयजल का गंभीर संकट है। पंचायती राज विभाग 408 टैंकरों से जलापूर्ति कर रहा है। इसके बावजूद स्थिति चिंताजनक बनी हुई है। नदी, नाला, बांध और तालाबों का जलस्तर तेज़ी से खिसकने लगा है। राबर्ट्सगंज से सटे उरमौरा, लोढ़ी, रौंप, बिचपई, लोढ़ी, पोखरा, चकरिया, बसुहारी, दरमा, चेरूई, पल्हारी, सिलथम, पटना, कजियारी, बाकी, दरेव आदि गांवों में पानी के लिए बदतर स्थिति है। नगर पंचायत ओबरा, घोरावल, ओबरा, पिपरी, रेणुकूट, अनपरा और दुद्धी के कई इलाकों में पानी पाताल में चला गया है।

पूर्व विधायक राजेंद्र सिंह कहते हैं, "गर्मी के दिनों में पूर्वांचल के पर्वतीय इलाकों में धरती जलविहीन हो जाती है। पेयजल की ज़्यादातर योजनाएं कागजी हैं और पानी के लिए लोग भटकने के लिए मजबूर हैं। पानी की सही कीमत जानना हो तो पूर्वांचल के चंदौली, मिर्जापुर और सोनभद्र के किसी भी गांव में चले जाइए। ऐसे गांवों की तादाद बहुत ज़्यादा है जहां रात का अंधेरा दूर भी नहीं होता कि लोग पानी की खोज में निकल पड़ते हैं। सबसे ज़्यादा दिक्कतें बुजुर्गों और बीमार लोगों को झेलनी पड़ती हैं। बढ़ते जल-संकट के बीच कई बार चूक हो जाती है तो बुजुर्ग प्यासे रह जाते हैं। जिन संकटग्रस्त गांवों में टैंकर से पानी नहीं पहुंचता, वहां चूल्हे तक ठंडे पड़ जाते हैं। बहुत से गांवों में पानी के स्रोत ऊंची जातियों के कब्ज़े में हैं। गरीबों और आदिवासियों को पानी उनके रहमोकरम पर ही मिल पाता है।"

राजेंद्र यह भी कहते हैं, "योगी सरकार ने जून 2020 में 'हर घर जल योजना' के तहत पूर्वांचल के पहाड़ी इलाकों में हर घर तक पाइपलाइन के ज़रिए पानी पहुंचाने का वादा किया था, लेकिन यह योजना कोई करिश्मा नहीं दिखा सकी है।"

हालांकि जलशक्ति मंत्री स्वतंत्रदेव सिंह दावा करते हैं, "मिर्जापुर, सोनभद्र और चंदौली में हालात पहले और ज़्यादा खराब थे। हमारी सरकार हर घर तक पानी पहुंचाने में जुटी है। दशकों से चली आ रही समस्या को एक दिन में ख़त्म नहीं किया जा सकता। थोड़ा वक़्त लगेगा, लेकिन सरकार के प्रयास ज़रूर सफल होंगे।"

(लेखक बनारस स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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