ज्ञानवापी: तहख़ाने में पूजा को लेकर उठे गंभीर सवाल, क्या SC के आदेश की भी हुई अनदेखी!
ज्ञानवापी परिसर के तहखाने में पूजा और राग-भोग शुरू कराने की हड़बड़ी में बनारस के प्रशासनिक अफसरों ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की धज्जियां उड़ाकर रख दीं। कोर्ट ने साल 1997 में ज्ञानवापी मस्जिद की बैरिकेडिंग कराने का आदेश पारित करते हुए साफ तौर पर कहा था कि यहां सुरक्षा से संबंधित हमारे आदेश के ऊपर किसी भी सब-आर्डिनेट कोर्ट का कोई प्रभाव नहीं होगा। पाबंदी के बावजूद मस्जिद परिसर में दो लेयर वाली 16 फीट ऊंची बैरिकेडिंग काट दी गई। इसके लिए शीर्ष अदालत से किसी तरह की अनुमिति लेने की जरूरत नहीं समझी गई।
इस बीच, ज्ञानवापी के दक्षिणी हिस्से में स्थित व्यास तहखाने में पूजा के समय की एक चौकाने वाली तस्वीर वायरल हो रही है, जिससे एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। कहा जा रहा है कि पूजा के समय कमिश्नर कौशलराज वहां जजमान की भूमिका में मौजूद थे। हालांकि कौशलराज ने साफ तौर पर इस तस्वीर में ख़ुद के होने से इंकार किया है। उनका कहना है कि तस्वीर बनावटी है और 31 जनवरी 2024 को पूजा के समय तहखाने में वह मौजूद नहीं थे?
क्या है पूरा मामला
वाराणसी के डिस्ट्रिक जज डा. एके विश्वेश ने अपने रिटायरमेंट के दिन ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में स्थित सोमनाथ व्यास के तहखाने में पूजा और राग-भोग शुरू कराने का आखिरी फैसला सुनाया था। अपने 31 जनवरी 2024 के आदेश में कोर्ट ने यही आदेश दिया था कि, "जिला मजिस्ट्रेट, वाराणसी/ रिसीवर को निर्देश दिया जाता है कि वह सेटेलमेंट प्लाट नंबर-9130, थाना चौक, जिला वाराणसी स्थित भवन के दक्षिण की तरफ स्थित तहखाने जो कि वादग्रस्त संपत्ति है। वादी और काशी विश्वनाथ ट्रस्ट बोर्ड के द्वारा नामित निर्दिष्ट पुजारी से तहखाने में स्थित मूर्तियों की पूजा और राग-भोग कराए। इस उद्देश्य के लिए सात दिन के भीतर लोहे की बाड़ आदि में उचित प्रबंध करे।"
सवालों के घेरे में अफसर
ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में दो लेयर में बैरिकेडिंग की गई है। आम धारणा है कि यह बैरिकेडिंग मुलायम सरकार ने लगवाई थी, लेकिन ऐसा नहीं है। ‘न्यूज़क्लिक’ की पड़ताल में यह तथ्य सामने आया है कि ज्ञानवापी मस्जिद की सुरक्षा के लिए मुहम्मद असलम उर्फ भूरे नामक व्यक्ति ने साल 1993 में सुप्रीम कोर्ट में एक पीआईएल दाखिल की थी। इस मामले में शीर्ष अदालत ने मस्जिद की कड़ी सुरक्षा का निर्देश दिया था और प्रशासन को मस्जिद के चारों ओर बैरिकेडिंग लगाने का निर्देश दिया था। बाड़ लगाने के बाद वाराणसी जिला प्रशासन ने सुप्रीम कोर्ट में शपथ-पत्र देते हुए कहा था कि ज्ञानवापी की मस्जिद की चौतरफा बैरिकेडिंग करा दी गई है। ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में जो पहली बैरिकेडिंग की गई थी, वह करीब दस फीट ऊंची है।
ज्ञानवापी का विवाद दोबारा उछला तो सुप्रीम कोर्ट ने मस्जिद की सुरक्षा की समीक्षा करते हुए और ऊंची बैरिकेटिंग करने के लिए 14 मार्च 1997 को एक और आदेश जारी किया। कोर्ट ने अपने आदेश में साफ तौर पर कहा, "ज्ञानवापी की सुरक्षा और बैरिकेडिंग के मामले में हमारे आदेश के ऊपर किसी भी सब आर्डिंनेट कोर्ट का प्रभाव नहीं होगा।"
मुस्लिम पक्ष अब बड़ा सवाल खड़ा कर रहा है कि व्यास तहखाने के रिसीवर जिलाधिकारी एस.राजलिंगम ने मस्जिद की बैरिकेडिंग से संबंधित सुप्रीम कोर्ट के आदेश को क्यों छिपा लिया? उन्होंने डिस्ट्रिक कोर्ट में शीर्ष अदालत का आदेश क्यों नहीं रखा?
जिस समय ज्ञानवापी मस्जिद की बैरिकेडिंग काटी जा रही थी, उस समय सीआरपीएफ के कमांडेंट समेत कई अफसर मौजूद थे। इन अफसरों ने भी सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन पढ़ने और उसे समझने की कोशिश क्यों नहीं की? डिस्ट्रिक कोर्ट ने डीएम को सात दिन के भीतर लोहे की बाड़ आदि का उचित प्रबंध करने का हुक्म दिया था, लेकिन जिलाधिकारी एस.राजलिंगम ने तूफानी रफ्तार दिखाई और सिर्फ सात घंटे के अंदर ही बैरिकेडिंग कटवाकर पूजा, राग-भोग शुरू करा दिया।
प्रशासन के मुताबिक़, ज्ञानवापी मस्जिद के दक्षिण तरफ पंडित सोमनाथ व्यास का तहखाना है जो 35 से 40 फीट लंबा और 25 से 30 फीट चौड़ा है। इसके पांच चैंबर हैं। एक चैंबर में मिट्टी भरी हुई है और तीन चैंबर खुले हुए हैं। पांचवां चैंबर दीवार से बंद है। व्यास तहखाने के सामने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर लगवाई गईं कुल 12 पाइपें काटी गईं। चौकाने वाली बात यह है कि डिस्ट्रिक कोर्ट के फैसले की सत्य प्रतिलिपि मिलने से पहले ही प्रशासनिक अफसरों ने तहखाने की रंगाई-पुताई शुरू करा दी थी। तहखाने के पिलर को भी दुरुस्त कराया गया और फर्श पर मार्बल बिछवाया गया। कुछ ही घंटे में तहखाने में बिजली भी लगा दी गई।
खंडित मूर्तियों की पूजा क्यों?
डिस्ट्रिक कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा था, "वादी और श्री काशी विश्वनाथ ट्रस्ट बोर्ड के द्वारा नामित निर्दिष्ट पुजारी से पूजा, राग-भोग, तहखाने में स्थित मूर्तियों का कराए।" बताया जा रहा है कि 31 जनवरी 2024 की रात जिस समय व्यास तहखाने में पूजा कराई गई उस समय इस मुकदमे से संबंधित पक्ष अथवा विपक्ष का कोई याची मौजूद नहीं था। श्री काशी विश्वनाथ ट्रस्ट के अध्यक्ष नागेंद्र पांडेय और दूसरे सदस्य भी मौके पर नहीं थे। पूजा से समय की जो तस्वीर समाने आई है उसमें काशी विश्वनाथ मंदिर के दो पुजारी दिख रहे हैं। इनमें एक हैं ओमप्रकाश मिश्र और दूसरे द्रविण गुरु के नाम से पुकारे जाने वाले पुजारी गणेश्वर दत्त।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, व्यास तहख़ाने से बरामद कुल आठ मूर्तियों की पूजा की गई। यह पहले से ही सरकार के ट्रेज़री में मौजूद थीं। वहां से उन्हें पूजा के लिए निकाल कर तहखाने में लाया गया। इसमें पत्थर के शिवलिंग के दो अरघे, एक विष्णु की मूर्ति, दो हनुमान और एक गणेश की मूर्ति, एक राम लिखा हुआ छोटा सा पत्थर और एक गंगा जी का मकर है। प्रशासन का कहना है कि इनमें से कोई भी मूर्ति पूरी नहीं है और सभी खंडित हैं। प्रशासन के मुताबिक, कोर्ट के निर्देश पर इन मूर्तियों की पूजा कराई गई।
एक बड़ा सवाल यह है कि काशी विश्वनाथ ट्रस्ट के सभी सदस्यों को संज्ञान में लिए बगैर उनकी गैर-मौजूदगी में तहखाने में खंडित मूर्तियों पूजा, राग-भोग क्यों कराया गया? हड़बड़ाहट दिखाने के बजाय ट्रस्ट की बैठक बुलाकर पुजारी का नाम क्यों नहीं तय किया गया? न्यास बोर्ड की बैठक से पहले ही शास्त्री की तैनाती क्यों और किसके आदेश पर की गई? हिन्दू शास्त्रों में खंडित मूर्तियों की पूजा का प्रावधान नहीं है। खंडित शिवलिंग तो किसी भी दशा में पूज्य नहीं है। ऐसे में खंडित शिवलिंग व मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठ कैसे की गई? क्या बनारस में अब खंडित मूर्तियों को पूजने का चलन शुरू हो गया है? यह सवाल उस समय भी उठा था जब कनाडा से अन्नपूर्णा देवी की एक खंडित मूर्ति लाकर विश्वनाथ मंदिर परिसर में स्थापित की गई थी। उस समय बनारस के तमाम विद्वानों ने अन्नपूर्णा की खंडित मूर्ति स्थापित करने का कड़ा विरोध किया था।
चौंकाने वाली तस्वीर
31 जनवरी 2024 को देर रात हुए घटनाक्रम के बारे में बनारस के लोगों में इस बात का कुतूहल है कि उस रात पूजा में कौन-कौन लोग शामिल थे? व्यास तहखाने के भीतर कितने लोगों ने पूजा में हिस्सा लिया और कितने लोग राग-भोग के साक्षी बने? सोशल मीडिया पर चौंकाने वाली एक ऐसी तस्वीर वायरल हो रही है जिसके बारे में दावा किया जा रहा है कि वह कमिश्नर कौशलराज शर्मा की है। पुजारियों के सामने कमिश्नर शर्मा हैं और पीछे उनका पुत्र। पुजारी ओमप्रकाश मिश्र व द्रविण गुरु के अलावा सहायक पब्लिक रिलेशन आफिसर पुनीत धवन का चेहरा साफ-साफ दिख रहा है।
यह तस्वीर ठीक उसी व्यास तहखाने की है, जहां पर 31 साल बाद कोर्ट के आदेश पर विग्रहों की पूजा शुरू हुई है। तस्वीर को लेकर दावा किया जा रहा है कि प्रशासनिक पद पर बैठे मंडल आयुक्त कौशल राज शर्मा पूजा में शामिल हुए और एक संवैधानिक पद पर बैठा कोई भी अधिकारी पूजा कैसे करा सकता? हालांकि न्यूज़क्लिक स्वतंत्र तौर पर इस तस्वीर और दावों की सत्यतता की पुष्टि नहीं करता है।
तस्वीर में कमिश्नर कौशलराज शर्मा का चेहरा नहीं दिख रहा है, लेकिन सोशल मीडिया में किए जा रहे दावे के मुताबिक तस्वीर पूजा पर बैठे शख्स के पीछे से ली गई है और चेक डिजाइन वाले कोट पहने व्यक्ति के सामने वही पुजारी दिख रहे हैं, जिनकी तस्वीर और वीडियो एक फरवरी को हिन्दू पक्ष के वकील विष्णुशंकर जैन ने पूजा करते समय साझा की थी। कथित तौर पर कमिश्नर के सामने गणेश्वर दत्त शास्त्री और ओमप्रकाश मिश्र बैठे दिख रहे हैं। इसके अलावा कुछ शास्त्री पूजन सामग्री और फूल माला लिए अगल-बगल दिखाई पड़ रहे हैं।
बनावटी है तस्वीरः कमिश्नर कौशलराज
व्यास तहखाने में पूजा, राग-भोग के समय की जो तस्वीर सोशल मीडिया में वायरल हो रही है वह 31 जनवरी, 2024 की रात की बताई जा रही है। दावा किया जा रहा है कि कमिश्नर कौशलराज उस आधिकारिक टीम के हिस्सा थे जो पूजा के दौरान मौके पर मौजूद थे। सोशल मीडिया पर वायरल तस्वीर को बनारस के कमिश्नर कौशलराज शर्मा आधारहीन बताते हैं। वह दावा करते हैं, "यह मूर्ति पूजा की फोटो नहीं है। बनावटी तस्वीर हो सकती है। 31 जनवरी 2024 की रात सिर्फ पुजारी की ओर से पूजा की गई थी। मौके पर कोई मौजूद नहीं था।"
एक ऐसा वीडियो भी बाहर आया है जिसमें 31 जनवरी 2024 की रात कई खबरिया चैनलों के प्रतिनिधि कमिश्नर कौशलराज शर्मा से पूजा और राग-भोग के बारे में सवाल पूछ रहे होते हैं। कार पर सवार कमिश्नर कुछ पल के लिए गाड़ी का शीशा नीचे करते हैं और मौके पर मौजूद तमाम पत्रकारों के सवालों का संक्षिप्त उत्तर देते हैं और फिर शीशा बंद कर आगे बढ़ जाते हैं। कहा जा रहा है कि इस वीडियो में कमिश्नर कौशलराज शर्मा ठीक उसी तरह की चेक डिजाइन वाला कोट पहने दिखते हैं जैसा तहखाने में बैठा शख्स दिखता है।
कुछ लोगों का दावा है कि कौशलराज शर्मा ने 31 जनवरी 2024 की रात में तहखाने में पूजा के आयोजन और संचालन में प्रमुख भूमिका निभाई थी। उस समय वहां कलेक्टर एस. राजलिंगम, पुलिस आयुक्त मुथा अशोक जैन, विश्वनाथ मंदिर के पूर्व सीईओ सुनील वर्मा के अलावा सीआरपीएफ के कमांडेट समेत कई अफसर और मंदिर के पब्लिक रिलेशन आफिसर मौजूद थे। सवाल यह भी है कि अगर तस्वीर सही है तो किसने खींची और किसे लाभ या हानि पहुंचाने के लिए, किसके इशारे पर उसे वायरल कराया गया?
डिस्ट्रिक कोर्ट ने तो सिर्फ जिलाधिकारी को व्यास तहखाने वाले हिस्से का रिसीवर नियुक्त किया था। कमिश्नर कौशलराज शर्मा अगर ट्रस्ट के पदेन पदाधिकारी की हैसियत से पूजा में शामिल हुए थे तो कानूनी तौर पर क्या सही था और क्या गलत? इस सवाल पर भी तरह-तरह के तर्क दिए जा रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि तस्वीरों का सच तभी उजागार हो सकता है जब 31 जनवरी 2024 की रात की मंदिर में लगे सीसीटीवी कैमरों के फुटेज की जांच होगी। मंदिर के ये कैमरे ही झूठ और सच को बेनकाब कर सकते हैं।
कई तरह के सवाल
ज्ञानवापी मामले में लोगों के मन में कई तरह के और सवाल कौंध रहे हैं। काशी विश्नवाथ मंदिर के नियमित दर्शनार्थी वैभव कुमार त्रिवाठी कहते हैं, "मंदिर की तरह ज्ञानवापी मस्जिद के बाहर भी चौबीस घंटे सुरक्षा कर्मचारियों का कड़ा पहरा रहता है। पुलिस, अर्धसैनिक बलों के जवान और खुफिया एजेंसियों के लोग जब जांच-पड़ताल कर लेते हैं तभी मस्जिद में प्रवेश करने की अनुमति दी जाती है। हर किसी का नाम-पता तक दर्ज किया जाता है। 31 जनवरी 2024 को सुरक्षा व खुफिया एजेंसियों ने क्या यह जानने की कोशिश नहीं की कि मस्जिद परिसर स्थित व्यास तहखाने में किन-किन लोगों ने प्रवेश किया? तहखाने में काम करने वाले मजदूर भी आए होंगे। तहखाने में जो लोग आए वो तहखाने में क्या रख गए और क्या ले गए, किसी को क्या मालूम? प्रशासन को चाहिए कि वह बताए कि पूजा के समय व्यास तहखाने में अगर कमिश्नर नहीं थे तो यजमान की तरह बैठकर पूजा-अर्चना करने वाला शख्स कौन था? "
31 जनवरी 2024 की रात में व्यास तहखाने की पूजा और राग-भोग के बाद बनारस के कलेक्टर एस. राजलिंगम एक वीडियो में यह दावा करते नजर आ रहे हैं कि कोर्ट के आदेश का अनुपालन किया गया है। वह साफ तौर पर यह नहीं बताते हैं कि पूजा को अंजाम दिया गया है। मीडिया से पूछे जाने वाले सवालों का वह कोई सीधा जवाब नहीं देते। वह सिर्फ एक ही बात दुहराते हैं कि कोर्ट के आदेश का अनुपालन में ऐसा किया गया है। हिंदू पक्ष ने अपनी याचिकाओं में दावा किया था कि साल 1993 तक पंडित सोमनाथ व्यास ज्ञानवापी के तहख़ाने में पूजा किया करते थे और तत्कालीन मुलायम सरकार ने इस पर रोक लगा दी थी।
अंजुमन इंतज़ामिया मसाजिद कमेटी के सवाल
इस बीच, ज्ञानवापी मस्जिद की देख-रेख करने वाली अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी ने एक बयान जारी कर कई सवाल उठाए हैं। मसाजिद कमेटी के संयुक्त सचिव एमएम यासीन सीधे तौर पर आरोप लगाते हैं कि 31 दिसंबर 2023 की रात कमिश्नर कौशलराज शर्मा ने खंडित मूर्तियों की पूजा कराई। यजमान की भूमिका में भी वही थे, जबकि कोर्ट ने उन्हें ऐसा करने का कोई आदेश नहीं दिया था। साल 1993 तक व्यास तहख़ाने में पूजा-पाठ की बात सरासर गलत है। वहां कोई पूजा-पाठ नहीं हुई। कोर्ट ने अपने आदेश में मूर्ति रखने की इजाजत नहीं दी थी, लेकिन बनारस के कलेक्टर एस. राजलिंगम, कमिश्नर कौशलराज शर्मा और पुलिस कमिश्नर मुथा अशोक जैन ने सीआरपीएफ की मदद से कोर्ट के आदेश की अनदेखी करते हुए वहां आठ मूर्तियां रखवा दीं।"
"डीएम-कमिश्नर खुद मूर्ति लेकर तहखाने में पहुंचे थे। पूजा के दौरान तहखाने में मौजूद कमिश्नर कौशलराज शर्मा ने डिस्ट्रिक कोर्ट के फैसले से कई कदम आगे बढ़कर वह सब कुछ कर डाला जिसके लिए कोर्ट ने उन्हें अधिकृत नहीं किया था। बीजेपी में अपना नंबर बढ़वाने (माइलेज लेने) के लिए अफसरों ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को तार-तार कर दिया। बनारस के कई अफसर झूठ की बुनियाद पर बितंडा खड़ा करा रहे हैं। इनमें वो अफसर शामिल हैं जो कई सालों से बनारस में जमें हुए हैं। सरकार और चुनाव आयोग की न जाने कौन की बेबसी है जो उन्हें बनारस से हटाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही है?"
बनारस जिला प्रशासन की नीयत पर सवाल खड़ा करते हुए एमएम यासीन कहते हैं, " 31 जनवरी 2024 की रात काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर में लगे सीसीटीवी फुटेज की जांच कराएंगे। हम जल्द ही सुप्रीम कोर्ट में अपील करेंगे कि वह किसी पदासीन न्यायिक अधिकारी से इस आशय की जांच कराए कि पूजा के समय व्यास तहखाने में कौन-कौन लोग मौजूद थे। सोशल मीडिया में कथित तौर पर कमिश्नर और उनके बेटे की वायरल तस्वीरों का सच क्या है? पुजारियों कि नियुक्ति किसने की? इसके लिए क्या न्यास बोर्ड की अनुमिति ली गई थी? डिस्ट्रिक कोर्ट के तहखाने में पूजा के निर्णय को हमने हाईकोर्ट में चुनौती दी है। स्थानीय कोर्ट का यह निर्णय उचित नहीं है और निराधार तर्क पर आधारित है, जिसमें कहा गया है कि सोमनाथ व्यास का परिवार 1993 तक ज्ञानवापी मस्जिद के तहख़ाने में पूजा करता था और इसे राज्य सरकार के आदेश पर बंद कर दिया गया था। डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने तहख़ाने में पूजा शुरू कराने के लिए एक हफ्ते का वक्त दिया था।"
यासीन यह भी कहते हैं, "भारत के सुप्रीम कोर्ट को दुनिया का सबसे शक्तिशाली कोर्ट माना जाता है। इस कोर्ट को कार्यकारी अधिनियमों, संसदीय क़ानूनों और संविधान में संशोधन, स्वतंत्र रूप से मामलों को शुरू करने और निर्णय लेने की प्रक्रिया में सहायता के लिए विशेषज्ञ पैनल गठित करने की शक्तियां हैं। ऐसे कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए ज्ञानवापी मस्जिद की बैरिकेडिंग मनमाने ढंग से कटवा देने का मामला बेहद गंभीर और चिंताजनक है। हम यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि डिस्ट्रिक कोर्ट के आदेश की सत्य प्रतिलिपि जारी होने से पहले ही पूजा और राग-भोग की प्रक्रिया कैसे शुरू कर दी गई? तहख़ाने में न सिर्फ मूर्तियां रखवाई गईं, बल्कि उसकी फोटोग्राफी कराने के बाद प्रशासनिक अफसरों ने जमकर प्रचार भी कराया। खबरिया चैनलों को पूजा-अर्चना तक के फुटेज भी बांटे गए।"
नीयत पर उठे कई गंभीर सवाल
नई दिल्ली से प्रकाशित होने वाले एक वेब पोर्टल AIDEM के सीएमडी एवं प्रबंध संपादक वेंकटेश रामकृष्णन ने भी बनारस के कमिश्नर कौशलराज शर्मा की भूमिका पर बड़ा और गंभीर सवाल खड़ा किया है। रामकृष्णन ने अपनी एक रिपोर्ट में कमिश्नर कौशलराज शर्मा की कथित यजमान वाली तस्वीर और कुछ वीडियो को शामिल करते हुए कहा है, "उत्तर प्रदेश और बिहार के विभिन्न हिस्सों में बनारस के कमिश्नर शर्मा की कार्यप्रणाली ने कई चिंताजनक सवालों को जन्म दिया है। सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या आयुक्त और दूसरे अफसर पूजा जैसे अनुष्ठान करने के लिए योग्य थे? प्रशासनिक अफसरों को ऐसा करने के लिए क्या कोर्ट ने कोई विशेष आदेश-निर्देश जारी किया था? " रामकृष्णन अपनी रिपोर्ट में कहते हैं कि चित्र के आधार पर अनुमानों की प्रतिक्रिया प्राप्त करने के लिए कमिश्नर और कलेक्टर समेत अन्य अफसरों से संपर्क करने की कोशिश की गई, लेकिन वो जवाब देने के लिए उपलब्ध नहीं थे।
AIDEM की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पूजा, राग-भोग शुरू कराने के लिए प्रशासन ने अनुचित तौर पर इसलिए जल्दबाजी दिखाई, ताकि आक्रामक हिंदुत्व राजनीतिक परियोजना को आगे बढ़ाया जा सके। पीएम नरेंद्र मोदी के अयोध्या के राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह के बाद हिंदुत्व राजनीति को आगे बढ़ाने के लिए आनन-फानन में ज्ञानवापी मस्जिद परिसर स्थित तहखाने में पूजा शुरू कराई गई। पूजा, राग-भोग कमिश्नर कौशलराज शर्मा की मौजूदगी में उनके सामने हुआ। AIDEM के सीएमडी एवं प्रबंध संपादक वेंकटेश रामकृष्णन ने कौशलराज पर चौंकाने वाले सवाल खड़ा करते हुए एक्स हैंडल पर एक साथ कई राजनीतिक दलों को ट्विट भी किया है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई
ज्ञानवापी मस्जिद परिसर स्थित व्यास तहख़ाने में पूजा-पाठ वाले जिला अदालत के आदेश को चुनौती देने के लिए अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी पहले सुप्रीम कोर्ट गई, लेकिन वहां उसे कोई रिलीफ नहीं मिली। शीर्ष अदालत के निर्देश पर मुस्लिम पक्ष जब इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंचा तो वहां भी उसे निराशा हाथ लगी। मुस्लिम पक्ष की याचिका पर 2 फरवरी 2024 को सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने एडवोकेट जनरल (एजी) को लॉ एंड ऑर्डर मेंटेन रखने का निर्देश दिया था। वाराणसी के डिस्ट्रिक कोर्ट ने 17 जनवरी को व्यास तहखाने का जिम्मा जिलाधिकारी को सौंपा था। कोर्ट के आदेश पर डीएम एस.राजलिंगम ने मुस्लिम पक्ष से तहखाने की चाबी हासिल कर ली थी। एक हफ्ते बाद 24 जनवरी 2024 को तहखाने का ताला खोला गया था।
डिस्ट्रिक कोर्ट के आदेश के मुताबिक, सोमनाथ व्यास के तहख़ाने के अंदर सिर्फ एक पुजारी को ही जाने की अनुमति है। बैरिकेडिंग काट कर जो गेट लगाया गया है, वो सुबह पहली आरती के समय 3:30 बजे खुलेगा और रात 10:30 बजे की आरती के बाद बंद हो जाएगा। मौके पर सीआरपीएफ तैनात की गई है। जो श्रद्धालु देखना चाहते हैं वो सिर्फ एक गेट से ही अंदर देख सकते हैं, लेकिन उसके अंदर घुस नहीं सकते हैं। काशी विश्वनाथ मंदिर के ट्रस्ट के सीईओ विश्व भूषण मिश्रा के मुताबिक, तहख़ाने में भी पूजा करने का काम ट्रस्ट कर रहा है।
व्यास तहखाने में पूजा-पाठ पर रोक लगाने के लिए अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी की याचिका पर 12 फरवरी 2024 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की सिंगल बेंच में सुनवाई की। दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद सुनवाई 15 फरवरी 2024 तक के लिए टाल दी गई। कमेटी की ओर से अधिवक्ता एसएफए नकवी व पुनीत गुप्ता अपना पक्ष रखा। इनका कहना था कि, "विवादित संपत्ति पर वादी यानी कि व्यास का कोई अधिकार है, यह अभी तक तय नहीं हुआ है। वादी का अधिकार जाने बगैर ही तहखाने में पूजा की अनुमति देना गैर-कानूनी और गैर-वाजिब है। डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट इस केस के हिस्सा नहीं थे, लेकिन वह ज्ञानवापी मामले में कैसे आ गए? "
(लेखक बनारस स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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