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ज्ञानवापी विवादः मस्जिद के पास उत्तेजक नारेबाजी और उन्मादी बयान से आक्रोश, थाने में दी गई तहरीर

बनारस में एक समुदाय को निशाना बनाते हुए खुलेआम गाली-गलौज किए जाने से ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करने वाली संस्था अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी के पदाधिकारी खासे नाराज हैं।
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ज्ञानवापी मस्जिद के व्यास तहखाने में पूजा के बाद उठे विवादों के बीच हिंदू पताका लेकर उत्तेजक नारेबाजी किए जाने से बनारस की फिजां बिगड़ने लगी है। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 13 फरवरी 2024 को तहखाने में जाकर पूजा-अर्चना की थी, जिसके बाद बनारस में हलचल बढ़ गई है। शुक्रवार (आज) की सुबह हिंदू समुदाय के लोगों ने पताका लेकर ज्ञानवापी मस्जिद के चारो तरफ जमकर नारे लगाए और अयोध्या के बाद काशी व मथुरा लेने का उद्घोष किया। मौके पर मौजूद सुरक्षा बलों के अफसर और जवान तमाशबीन बने रहे। उत्तेजक नारेबाजी और उन्मादियों को रोकने के लिए कोई आगे नहीं आया।

काशी विश्वनाथ मंदिर के सरस्वती फाटक स्थित गेट नंबर-04 के बाहर कुछ रोज पहले खुद को जगतगुरु परमहंस बताने वाले एक तथाकथित साधु ने मुस्लिम समुदाय के लोगों को जमकर गालियां दी। बनारस का अमन-चैन बिगाड़ने के लिए उसने अपना वीडियो भी वायरल कराया। आश्चर्य की बात यह है कि पुलिस और प्रशासनिक अफसरों ने इस तथाकथित साधु के खिलाफ आज तक कोई कार्रवाई नहीं की। ज्ञानवापी के मुद्दे को बीजेपी सरकार जिस तरह से गरमाने की कोशिश कर रही है उससे बनारस में मुस्लिम समुदाय के लोग भयभीत हैं। बनारस में मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाते हुए खुलेआम गाली-गलौज किए जाने से ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करने वाली संस्था अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी के पदाधिकारी खासे नाराज हैं।

थाने में दी गई तहरीर

ज्ञानवापी में जुमे की नमाज से पहले बनारस के मुफ्ती-ए-बनारस मौलाना अब्दुल बातिन नोमानी ने चौक थाने में जाकर तथाकथित साधु जगतगुरु परमहंस आचार्य और कुछ महिलाओं के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करने के लिए अर्जी दी। मौलाना अब्दुल बातिन नोमानी ही ज्ञानवापी मस्जिद में मुस्लिम धर्मावलंबियों को नमाज पढ़ाते हैं। वह मस्जिद के सचिव भी हैं। चौक थाने के प्रभारी को दी गई तहरीर में उन्होंने कहा है, "बनारस और देश की एकता भंग करने और हिंदू-मुसलमानों के बीच नफरत फैलाने के मकसद से विश्वनाथ मंदिर के प्रांगण में कुछ दिन पहले नंदीजी के पास बीस अवांछनीय आपराधिक प्रवृत्ति के लोग इकट्ठा हुए। एक तथाकथित संत जो विवादित वायरल वीडियो में खुद को जगतगुरु परमहंस आचार्य कह रहा है। उसके साथ षड्यंत्रकारी सीता साहू व मंजू व्यास जो ज्ञानवापी मस्जिद के मुकदमे में वादी हैं, खड़ी होकर विवादित बयान दिलवा रही हैं।"

"अभियुक्त जगतगुरु परमहंस आचार्य द्वारा दिए गए बयान में विवादित वीडियो जो व्हाट्सएप पर प्रसारित और प्रचारित किया जा रहा है। ज्ञानवापी मस्जिद के वजुखाने व मुसलमानों के बारे में गलत बातें कह रहा है। अभियुक्त ने ज्ञानवापी मस्जिद में नमाज पढ़ने वालों और अन्य मुसलमानों को भद्दी-भद्दी गालियां दे रहा है। पूर्व में दिल्ली में नुपुर शर्मा द्वारा मोहम्मद साहब के बारे में दिए गए असंवैधानिक और गैरकानूनी व आपत्तिजनक बयान को सही ठहरा रहा है। ज्ञानवापी केस में वादी महिलाएं परमहंस आचार्य के विवादित बयान दिलवाकर शहर के माहौल को बिगाड़ने और दंगा कराने के लिए लोगों को उकसाने व राष्ट्रीय एकता-अखंडता को नुकसान पहुंचाने के मकसद से अपराध किया है। विवादित वीडियो के बारे में बनारस जिला प्रशासन पूरी तरह वाकिफ है, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है। इससे अपराधियों के हौसले बुलंद हैं। समाज में नफरत फैल रही है। मुस्लिम समुदाय में गुस्सा और दुख व्याप्त है।"

मुफ्ती–ए-बनारस अब्दुल बातिन नोमानी ने अपनी तहरीर के साथ अभियुक्तों की तस्वीर और पेन ड्राइव में उनका वीडियो सौंपा है। साथ ही अभियुक्त जगतगुरु परमहंस आचार्य के अलावा सीता साहू व मंजू व्यास समेत 20 अज्ञात लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर उचित कार्रवाई करने की मांग की है। साथ ही बनारस में अमन और भाईचारा कायम रखने के लिए विवादित वीडियो को प्रतिबंधित करने का आग्रह किया है। न्यूजक्लिक से बातचीत में नोमानी कहते हैं, "ज्ञानवापी परिसर में नई परंपरा की शुरुआत और पताका लेकर उत्तेजक नारेजाबाजी किए जाने से मुस्लिम समुदाय के लोग खासे नाराज हैं।"

दूसरी ओर, संस्था के संयुक्त सचिव एमएम यासीन कहते हैं, लोकसभा चुनाव में सियासी फायदे के लिए बनारस शहर की फिजां बिगाड़ने की कोशिश की जा रही है। काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर में जिस तरह से मुस्लिम समुदाय को खुलेआम गालियां दी जा रही हैं वह कोई सामान्य घटना नहीं है। पुलिस की चुप्पी से लगता है कि बनारस को अराजकता की आग में झोंकने की योजना है। उत्तेजक बयानबाजी और नारेबाजी करने वालों के खिलाफ पुलिस को स्वतः संज्ञान लेकर एक्शन लेना चाहिए, लेकिन अफसरों की जुबान बंद है। ज्ञानवापी का मामला कोर्ट में है तो जानबूझकर क्यों तूल दिया जा रहा है। कुछ दिनों पहले अजित सिंह बग्गा नामक व्यक्ति ने भी मुस्लिम समुदाय के लोगों के खिलाफ उत्तेजक बयानबाजी की थी। पुलिस ने हमारी शिकायत पर आज तक मुकदमा दर्ज नहीं किया। पुलिस ने परमहंस पर एक्शन नहीं लिया तो हम कोर्ट की शरण लेंगे और मुकदमा दर्ज कराएंगे।"

इस बीच, अखिल भारतीय संत समिति ने ज्ञानवापी मस्जिद के पीछे आज (16 फरवरी 2024) श्रृंगार गौरी के विग्रहों का दर्शन-पूजन और नंदी का जलाभिषेक भी किया। संस्था के महामंत्री स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती के मुताबिक, अब वहां लगातार नौ दिनों तक रामकथा होगी। आदि विश्वेश्वर मंदिर तोड़े जाने के बाद से ही यहां रामकथा की शुरुआत हुई थी। सरकारी रिकॉर्ड में यह परंपरा 66 साल पुरानी है। श्रृंगार गौरी विग्रहों का साल 1993 तक बिना रोक-टोक के आम श्रद्धालु पूजा-अर्चना करते आ रहे हैं। बाबरी विध्वंस के बाद पूजा की परंपरा टूट गई थी। अब साल में एक बार चैत्र नवरात्रि की चतुर्थी पर ही आम भक्तों के दर्शन के लिए पूजा-अर्चना करने का मौका दिया जाता है।

क्‍या है ज्ञानवापी विवाद?

नब्बे के दशक में राम जन्‍मभूमि आंदोलन के दौरान काशी-मथुरा को लेकर नारे लगते रहे हैं। हिंदूवादी संगठनों का दावा है कि स्वयंभू शिवलिंग के ऊपर मस्जिद का निर्माण हुआ है। उनकी मांग मस्जिद हटाकर वो हिस्‍सा मंदिर को सौंपे जाने की है। द्वादश ज्‍योतिर्लिंगों में प्रमुख श्री काशी विश्‍वनाथ मंदिर और उसी के पास स्थित ज्ञानवापी मस्जिद का केस साल 1991 से वाराणसी की स्‍थानीय अदालत में चल रहा है। काशी विश्‍वनाथ मंदिर और उससे लगी ज्ञानवापी मस्जिद के बनने और दोबारा बनने को लेकर अलग-अलग तरह की धारणाएं और कहानियां चली आ रही हैं। हालांकि इन धारणाओं की कोई प्रमाणिक पुष्टि अभी तक नहीं हो सकी है। बड़ी संख्‍या में लोग इस धारणा पर भरोसा करते हैं कि काशी विश्‍वनाथ मंदिर को औरंगजेब ने तुड़वा दिया था। इसकी जगह पर उसने यहां एक मस्जिद बनवाई थी।

कुछ इतिहाकारों का कहना है कि ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण 14वीं सदी में हुआ था और इसे जौनपुर के शर्की सुल्‍तानों ने बनवाया था, लेकिन इस पर भी विवाद है। कई इतिहासकार इसका खंडन करते हैं। उनके मुताबिक शर्की सुल्‍तानों द्वारा कराए गए निर्माण के कोई साक्ष्‍य नहीं मिलते हैं। न ही उनके समय में मंदिर के तोड़े जाने के साक्ष्‍य मिलते हैं। एएसआई सर्वे के बाद हिंदू पक्ष लगातार यह दावा करता आ रहा है कि ज्ञानवापी ढांचे के नीचे विश्वेशर मंदिर के जुड़े पुरातात्विक अवशेष हैं।

दूसरी तरफ काशी विश्‍वनाथ मंदिर के निर्माण का श्रेय राजा टोडरमल को दिया जाता है, जिन्होंने साल 1585 में दक्षिण भारत के विद्वान नारायण भट्ट की मदद से कराया था। ज्ञानवापी मस्जिद के निर्माण के बारे में कुछ लोग यह भी कहते हैं कि अकबर के जमाने में नए मजहब 'दीन-ए-इलाही' के तहत मंदिर और मस्जिद दोनों का निर्माण कराया गया था। हालांकि ज्‍यादातर लोग यही मानते हैं कि औरंगजेब ने मंदिर को तुड़वा दिया था, लेकिन मस्जिद अकबर के जमाने में 'दीन ए इलाही' के तहत बनाई गई या औरंगजेब के जमाने में इसको लेकर जानकारों में मतभेद हैं। अंजुमन इंतज़ामिया मसाजिद के पदाधिकारी किसी प्राचीन कुएं और उसमें शिवलिंग होने की धारणा को भी नकारते हैं। उनका कहना है कि वहां ऐसा कुछ भी नहीं है। सरकारी अभिलेखों के मुताबिक, मौजा शहर खास स्थित ज्ञानवापी परिसर के 9130, 9131, 9132 रकबा नंबर एक बीघा नौ बिस्वा लगभग जमीन है।

क्यों भड़काया जा रहा उन्माद?

काशी विश्वनाथ मंदिर के महंत रहे राजेंद्र तिवारी इस बात से आहत है कि ज्ञानवापी का विवाद उठाकर समाज और सिस्टम में जहर घोलने की कोशिश की जा रही है। न्यूज़क्लिक से बातचीत में वह कहते हैं, "यह विवाद साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में मतों का ध्रुवीकरण कराने की कसरत है। मस्जिद का सर्वे हो चुका है और सभी को मालूम है कि वो पुराना विश्वनाथ मंदिर था। आप बताना क्या चाहते हैं? सरकार का मकसद क्या है, पब्लिक भी जानती है। हमारे पूर्वजों ने औरंगजेब से काशी विश्वनाथ के शिवलिंग को बचाया था, जिसे बाद में मौजूदा मंदिर में प्रतिस्थापित कराया गया था। विश्वनाथ मंदिर का मामला कोर्ट में विचाराधीन है। आगामी लोकसभा चुनाव में ज्ञानवापी ही इनका असली एजेंडा है। इन्हें न मंदिर से मतलब है और न ही मस्जिद से। सांप्रदायिक आंच में झोंककर वोट बटोरना ही इनका मकसद है।"

वाराणसी के वरिष्ठ पत्रकार एवं चिंतक प्रदीप कुमार कहते हैं, "यह तयशुदा राजनीतिक एजेंडा है, जिसपर काम अब शुरू हो गया है। यह मसला कानूनी कम, राजनीतिक ज्यादा है। महंगाई, बेरोजगारी और डगमगाती अर्थव्यवस्था सत्ता के लिए मुफीद साबित नहीं हो रही है। ऐसे में उस ओर से जनता का ध्यान हटाने का सबसे कारगर तरीका मंदिर-मस्जिद मसला ही हो सकता है। यह पहले से ही अनुमान लगाया जा रहा था कि अयोध्या से खाली होने के बाद काशी विश्वनाध मंदिर और ज्ञानवापी विवाद को हवा दी जाएगी। अनुमान के अनुरूप धीरे-धीरे सारे घटनाक्रम सामने आते जा रहे हैं। इस मसले का कानूनी पहलू क्या है और उसका हल क्या निकलेगा कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। इतना जरूर है कि सिलसिला यूं ही चलता रहा तो सांप्रदायिक सद्भाव जरूर खतरे में पड़ जाएगा। बनारस के लोगों को चाहिए कि सियासत के हथियार न बनें और शहर के अमनो-अमान को अपनी परंपरा के अनुसार कायम रखें।"

प्रदीप यह भी कहते हैं, "ज्ञानवापी परिसर में नारेबाजी कोई नई बात नहीं है। यह तो बीजेपी का एजेंडा ही है। जबसे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने व्यास तहखाने में पूजा किया है उसके बाद से यह मुद्दा तूल पकड़ने लगा है। बीजेपी के लोग लोकसभा चुनाव में पूर्वांचल ही नहीं, समूचे यूपी में ज्ञानवापी को मद्दा बनाकर चलेंगे। इसमें उनको न कोई शर्म है, न संकोच है। वो अपने तयशुदा एजेंडे पर काम कर रहे हैं। विपक्ष को सोचना है कि उनके धार्मिक उन्माद का वो कैसे जवाब देंगे? बीजेपी का एजेंडा साफ है। वो आबूधाबी तक अपने एजेंडे पर काम कर रहे हैं। ये ताकतें देश को कहां ले जाना चाहती हैं, यह जनता को सोचना है। बीजेपी धर्म को ही विकास का पैमाना मानती है। इनके विकास की परिभाषा सिर्फ इतनी है कि जितने मंदिर बनेंगे उतना उनकी पार्टी का विकास होगा। इसकी काट फिलहाल विपक्ष के पास नहीं है।"

(लेखक बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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