जेंडर बजट में वृद्धि लेकिन महिला-उन्मुख योजनाओं को लेकर अनदेखी
देश में महिलाओं की आर्थिक और सामाजिक स्थिति सुधारने के लिए 18 साल पहले बजट में ‘जेंडर बजट’ का प्रावधान किया गया था। हालांकि पिछले गुज़रे सालों में इसके उद्देश्य महज़ काग़ज़ों तक ही सिमट कर रह गए और क्रियान्वयन बहुत पीछे छूट गया। इस साल मोदी सरकार का ये आखिरी पूर्णकालिक बजट था, जिसे वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा 'अमृतकाल' का पहला बजट भी कहा गया। हालांकि महिलाओं को इस बजट में सिर्फ 'महिला सम्मान बचत पत्र' की ही खुशी मिली। इसके अलावा महिलाओं के लिए कोई नई स्कीम या किसी खास रियायत की घोषणा सुनने को नहीं मिली।
अपने बजट भाषण में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने महिला सशक्तिकरण और अधिकारों की बड़ी-बड़ी बातें तो कीं मगर उनके बजट में सरकार की वो प्रतिबद्धता महिलाओं के लिए नज़र नहीं आई। जेंडर बजट के तहत आवंटित पिछले वित्त वर्ष के 1,71,006.47 करोड़ रुपये के मुकाबले इस वर्ष 2023-24 के लिए 2,23,219.75 करोड़ रुपये जरूर कर दिया गया लेकिन इस बजट की इस पूरी बढ़ोत्तरी को पीएम आवास योजना से भी जोड़ दिया गया है, जो लैंगिक असमानता को वास्तविक तौर से कम करने में कोई खास भूमिका निभाती नज़र नहीं आती। इसके अलवा महिला सशक्तिकरण के लाख वादों और दावों के बीच ‘जेंडर बजट’ अभी भी कुल GDP का एक प्रतिशत से भी कम ही है।
बता दें कि इस साल केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्रालय के आवंटन में भी करीब1 प्रतिशत की मामूली वृद्धी दिखाई देती है। वित्त वर्ष 2022-2023 में इस मंत्रालय को 25,172.28 करोड़ रुपये मिले थे, जिसे बढ़कर चालू वित्त वर्ष में 25,448.75 करोड़ रुपये कर दिया गया, जो कि मामूली बढ़ोतरी है। मंत्रालय के लिए पिछले साल संशोधित अनुमान 23,912 करोड़ रुपये था। ये आंकड़े पहली नज़र में शायद हरे निशान वाले बढ़ोत्तरी लग सकते हैं, लेकिन दूसरे ही पल ये पहले से चल रही प्रमुख योजनाओं पर कुछ खास कमाल करते दिखाई नहीं देते।
ध्यान रहे कि मिशन शक्ति के लिए आवंटन, जिसके तहत बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, महिला हेल्पलाइन, वन स्टॉप क्राइसिस सेंटर के साथ-साथ प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना सहित महिलाओं की सुरक्षा के लिए मंत्रालय की प्रमुख योजनाएं आती हैं, उसके आवंटन में इस साल 1.2 प्रतिशत की गिरावट देखी गई है। इसका आवंटन पिछले साल 3,184.11 करोड़ रुपये था, जो इस साल मात्र 3,143.96 करोड़ रुपये रह गया। सामाजिक सुरक्षा और कल्याण की योजनाओं के फंड में भी लगातार गिरावट देखी जा रही है। पिछले वित्त वर्ष 2022-23 में इसका आवंटन3,437 करोड़ रुपये था, इस साल गिरकर 1,429 करोड़ रुपये पर आ गया है।
ऐसे समय में जब देश में बाल कुपोषण का स्तर भयंकर है। सक्षम आंगनवाड़ी और पोषण अभियान 2.0, बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए सरकार के प्रमुख पोषण कार्यक्रम में भी कोई महत्वपूर्ण वृद्धि नहीं देखी गई। वित्तीय वर्ष 2022-23 में 20,263 करोड़ रुपये के आवंटन से इस साल ये 20,554 करोड़ रुपये के आवंटन तक पहुंचा है।
मोदी सरकार के 'ऐतिहासिक काल' में भारत को पहली पूर्णकालिक महिला वित्त मंत्री के रुप में निर्मला सीतारमण मिलीं, जो साल 2020 से इस पद पर आसीन हैं और एक महिला होने के नाते महिलाओं को उनसे उम्मीदें भी अधिक थी लेकिन कुल मिलाकर देखें तो, बजट अनुमान के अनुसार उनके कार्यकाल में औसत जेंडर बजट, कुल खर्च का 4.6 फीसदी रहा है। जबकि उनके पहले 15 वर्षों का औसत जेंडर बजट 4.9 फीसदी रहा था।
क्या होता है जेंडर बजट?
जेंडर बजट पुराने समय के रेल बजट की तरह अलग से एलोकेट नहीं होता। किसी भी मंत्रालय की महिलाओं से जुड़ी योजना के लिए अलग से पैसे का आवंटन सुनिश्चित करना ही जेंडर बजट है।
जेंडर बजट को जेंडर बजट स्टेटमेंट (GBS) कहा जाता है। इसमें हर मंत्रालय और विभाग यह बताता है कि उनके यहां जेंडर आधारित कौन-कौन से कार्यक्रम या स्कीम हैं और उनके लिए कितने पैसे दिए गए हैं।
इसमें दो भाग होते हैं, पहला भाग उन योजनाओं के लिए होता है जो पूरी तरह से महिलाओं से संबंधित हैं। दूसरे भाग के अंतर्गत वे योजनाएं आती हैं जिसमें कम से कम 30 फीसदी हिस्सा महिलाओं के लिए होता है।
इस चालू वित्त वर्ष के जेंडर बजट का पहला भाग, जिसे इस साल 88,000 करोड़ रुपये से अधिक आवंटन मिला है, इसका लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी और ग्रामीण आवास दोनों) के लिए है। वहीं दूसरा भाग जिसे 2023 के बजट में 1.35 लाख करोड़ रुपये प्राप्त हुआ है, उसमें ग्रामीण विकास, स्वास्थ्य, शिक्षा और महिला सशक्तिकरण से संबंधित कई योजनाएं शामिल हैं। कुल मिलाकर देखें तो, पिछले वर्ष 2022-23 की तुलना में जेंडर बजट के पहले भाग में 228 प्रतिशत की भारी वृद्धि हुई है, जबकि दूसरे भाग में छह प्रतिशत की गिरावट देखी गई।
इस साल महिलाओं को क्या मिला?
वित्त वर्ष 2023-24 के लिए महिलाओं को सिर्फ महिला सम्मान बचत पत्र योजना का ही तोहफ़ा मिला। इस योजना के अनुसार महिलाएं दो साल के लिए दो लाख रुपये की बचत कर पाएंगी और उन्हें इस रक़म पर 7.5 की दर से ब्याज मिलेगा। इसमें आंशिक निकासी की सुविधा भी दी गई है। आसान भाषा में समझें तो, अगर कोई महिला दो लाख रुपये खाते में जमा करती है तो दो साल बाद उसे 2 लाख 30 हजार रुपये मिलेंगे।
बजट में महिलाओं की सुरक्षा और सशक्तिकरण पर केंद्रित मिशन शक्ति योजना के लिए इस साल 3144 करोड़ रुपये अलग कर दिए गए हैं। पिछले साल इसके लिए 2280 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे।
इसके अलावा निर्मला सीतारमण ने दीन दयाल अंत्योदय योजना राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार मिशन के तहत महिलाओं को 81 लाख स्वयं सहायता समूह से जोड़े जाने का जिक्र किया। उनका कहना था इन महिलाओं को आर्थिक सशक्तिकरण के अगले पायदान पर लाने की कोशिश की जाएगी ताकि वो बड़े बाज़ार में माल बेच सकें।
पिछले बजट डॉक्यूमेंट में कहा गया था कि जेंडर बजट लाने का उद्देश्य लिंग के दृष्टिकोण से खर्च और जनसेवा की निगरानी रखना है ताकि सभी गतिविधियों में महिलाओं की चिंताओं को मुख्यधारा में लाने और सार्वजनिक संसाधनों तक उनकी पहुंच में सुधार के साधन उपलब्ध कराए जा सकें।
जेंडर बजट के तहत सबसे बड़ी योजना ग्रामीण आवास (प्रधानमंत्री आवास योजना) है, इसके लिए 54,587 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। सरकार ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) को भी जेंडर बजट में शामिल कर लिया है। इस योजना के लिए 25,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए है।
जेंडर बजट के अंतर्गत अन्य योजनाओं में सक्षम आंगनवाड़ी एवं पोषण, गर्भवती महिला बाल स्वास्थ्य एवं स्वास्थ्य व्यवस्था सुदृढ़ीकरण के मजबूत कोष के साथ-साथ राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रम और राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन, समग्र शिक्षा योजना, महिला सशक्तिकरण के लिए सामर्थ्य योजना और स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) शामिल हैं। इन पांचों योजनाओं के लिए करीब 45,000 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है।
हालांकि इस पूरे बजट में महिलाओं को आय पर कोई अलग से टैक्स रियायत नहीं दी गई। महिलाओं की सुरक्षा, सशक्तिकरण के लिए स्किल डेवल्पमेंट या जेंडर गैप को कम करने से जुड़ी किसी नई योजना का कोई जिक्र नहीं हुआ। सिंगल महिलाओं, ट्रासजेंडर या निर्भया फंड जैसे मामलों पर भी लगभग चुप्पी ही दिखाई दी।
मोदी सरकार के अमृतकाल में महिलाओं को जगह नहीं
महिला संगठन अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति (एडवा) ने भी एक बयान जारी कर इस बजट में महिलाओं की अनदेखी की आलोचना की है। एडवा के मुताबिक महिला एवं बाल विकास मंत्रालय का खर्च पूरे बजट एक्सपेंडिचर का लगभग 0.05% है। इसमें से लगभग 80% सक्षम आंगनवाड़ी पोषण 2.0 योजना के लिए है। सुरक्षा मुद्दों और महिलाओं के खिलाफ हिंसा को संबोधित करने वाली योजनाओं के बजट में सबसे कम वृद्धि की गई है। इसके अलावा, महिला खिलाड़ियों के लिए कोई खास प्रावधान नहीं है, जिनकी सुरक्षा हाल के दिनों में एक बड़ी चिंता बन गई है।
महिला सम्मान बचत योजना पर एडवा ने कहा कि ये केवल कुछ ही महिलाओं को कवर करने जा रही है जो बचत कर सकती हैं। इस प्रकार की वित्तीय योजनाएं कर्ज के दलदल में धंसी महिलाओं की समस्या को दूर करने के लिए नाकाफी है। इसके अलावा बजट में मनरेगा जैसी रोजगार सृजन योजनाओं के लिए आवंटन में 33% की कटौती की गई है। जो वास्तव में महिला-उन्मुख योजनाओं पर सीधा हमला है।
गौरतलब है कि कोरोना वायरस महामारी की वजह से लगे लॉकडाउन के दौरान महिलाओं को कई तरह की मुसीबतों का सामना करना पड़ा। ग़ैर सरकारी संगठनों की रिपोर्ट के मुताबिक, लॉकडाउन में महिलाओं पर घरेलू काम का बोझ बढ़ गया था, घरेलू हिंसा के मामलों में बढ़ोत्तरी आई, बड़ी संख्या में कामकाजी महिलाओं का रोज़गार छिन गया, उन्हें सेनेटरी नेपकिन जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए मुश्किलों का सामना करना पड़ा। इसके अलावा देश के कई राज्यों से बच्चों की तस्करी और बाल श्रम के मामले बढ़े। यानी अब जिस मुश्किल वक्त में महिलाओं और बच्चों को ज़्यादा सरकारी मदद की ज़रूरत है, उस समय सरकार का ध्यान कहीं और है।
लखनऊ के अंकित शर्मा लंबे समय से जेंडर मुद्दों पर काम कर रहे हैं। वो जेंडर बजट में आंकड़ों की हेरा-फेरी को लेकर चिंतित हैं। उनके मुताबिक जेंडर बजट के मिशन शक्ति में कटौती सीधा-सीधा महिलाओं के पक्ष की अनदेखी है।
अंकित ने न्यूज़क्लिक से कहा, "जेंडर और महिलाओं के मुद्दे को लेकर सरकार कभी गंभीर नज़र ही नहीं आई। महामारी हो या महिला सुरक्षा सरकार ने इस बार किसी दिशा में कुछ खास नहीं किया। बीते साल कई सारी स्कीमों को एक साथ लाकर खिचड़ी पका दी गई थी, इस साल सम्मान बचत के नाम पर सुर्खियां बटोर ली गईं। लेकिन जो व्स्तविक दिक्कते हैं, जैसे आंगनवाड़ी वर्कर्स, आशाकर्ममियों की उसका कोई समाधान नहीं दिया गया।"
यूपी के पूर्वांचल ग्रामीण क्षेत्रों में लंबे समय से औरतों के मुद्दे पर काम कर रहीं बीएचयू की पूर्व छात्रा स्वाति बताती हैं कि यूपी में महिला हेल्प लाइन-181 सिर्फ इसलिए बंद हो गयी थी क्योंकि विभाग के पास बजट नहीं था। जबकि विभाग कुल जारी बजट को खर्च तक नहीं कर पाया था। ये समझने की बात है कि जो बजट जिस विभाग के लिए जारी किया जाता है वो विभाग उस बजट को खर्च नहीं कर पाता इसकी जवाबदेही जब तक तय नहीं होगी, तब तक साल दर साल ये बजट ऐसे ही घटता-बढ़ता रहेगा और लोगों को कुछ समझ नहीं आएगा।बहरहाल, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बजट भाषण में महिलाओं का नाम तो आया लेकिन उनके पिटारे में औरतों के लिए सम्मान के अलावा नया कुछ नहीं निकला। न घरेलू महिलाओं को महंगाई से राहत मिली, न ही कामकाजी महिलाओं को कर से कोई विशेष रियायत। कोरोना महामारी में जो महिलाएं लेबर फोर्स से ही बाहर हो चुकी हैं, उनका तो कोई जिक्र तक नहीं हुआ। शिक्षा और स्वास्थ्य बजट का हाल पहले ही बेहाल है, ऐसे में अमृतकाल के इस बजट में अमृत न हो कर, महिलाओं का विकास तो पक्का दिखाई नहीं पड़ रहा है। वैसे इस बजट की सबसे बड़ी ख़ास बात यही रही कि इसमें कोई ख़ासियत ही नहीं है। इस बजट से ज़्यादातर लोगों को निराशा ही हाथ लगी।
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