पड़तालः नरेंद्र मोदी का गुजरात में पोषण संबंधी दावा भ्रामक
18 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वड़ोदरा, गुजरात में एक सभा को संबोधित किया और मुख्यमंत्री मातृशक्ति योजना शुरू करने की घोषणा की। उन्होंने अपने तकरीबन 45 मिनट के भाषण में महिलाओं को खासतौर पर संबोधित किया और उनका भाषण माताओं और बच्चों के स्वास्थ्य व पोषण के इर्द-गिर्द ही रहा। उन्होंने अपने भाषण में पोषण संबंधी और अन्य योजनाओं पर खर्च की गई राशि और लाभार्थियों की लाखों-करोड़ों की संख्या तो बताई, लेकिन ये नहीं बताया कि गुजरात में फिलहाल माताओं और बच्चों के पोषण की स्थिति क्या है? इस दौरान उन्होंने गुजरात में पोषण की स्थिति संबंधी कई दावे किए।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में कहा कि “दो दशक पहले जब गुजरात ने मुझे सेवा का अवसर दिया तो कुपोषण यहां एक बहुत बड़ी चुनौती थी। तब से हमने एक के बाद एक इस दिशा में काम करना शुरू किया जिसके सार्थक परिणाम आज हमें देखने को मिल रहे हैं”। यानी प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि 2002 में गुजरात में पोषण की स्थिति काफी खराब थी और लगातार प्रयासों के चलते आज 2022 में उसमें काफी सुधार आया है। क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ये दावा सही है? आइये, पड़ताल करते हैं।
जांच-पड़ताल
नरेंद्र मोदी का दावा है कि पिछले दो दशकों में गुजरात में माताओं और बच्चों के पोषण की स्थिति में सुधार आया है। इस दावे की पड़ताल करने के लिए हम नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की वर्ष 2005-06, वर्ष 2015-16 और वर्ष 2019-20 की रिपोर्ट को आधार बना लेते हैं और देखते हैं कि स्थिति क्या है? इसके जरिये हम पिछले लगभग दो दशकों के उतार-चढ़ाव समझ पाएंगे।
पांच साल से कम आयु के बच्चों के पोषण की स्थिति
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2005-06 की रिपोर्ट के अनुसार गुजरात के 49% बच्चों का शारीरिक विकास बाधित था और 41% बच्चे अंडरवेट थे। रिपोर्ट के अनुसार ये बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित थे।
वर्ष 2015-16 की रिपोर्ट के अनुसार गुजरात के 38.5% बच्चों का शारीरिक विकास बाधित है और 39.3% बच्चे अंडरवेट थे।
वर्ष 2019-20 की रिपोर्ट के अनुसार 39% बच्चों का शारीरिक विकास बाधित है और 39.7% बच्चे अंडरवेट हैं।
वर्ष 2005-06 की तुलना में वर्ष 2015-16 में स्थिति में कुछ सुधार दिखाई देता है। शारीरिक विकास में बाधा वाले बच्चों की संख्या में 10.5% और अंडरवेट बच्चों की संख्या में मात्र 1.7% की कमी दिखाई देती है। लेकिन जब वर्ष 2015-16 और 2019-20 की तुलना करते हैं तो पाते हैं कि पोषण की स्थिति में सुधार नहीं हुआ है बल्कि हालत बिगड़ी ही है।
शारीरिक विकास में बाधा वाले बच्चों की संख्या में 0.5% और अंडरवेट बच्चों की संख्या में 0.4% की बढ़ोतरी हुई है। यानी पिछले दशक में गुजरात में पांच साल से कम आयु के बच्चों के पोषण की स्थिति में गिरावट आई है। अंडरवेट बच्चों की संख्या को देखें तो गुजरात लगभग वर्ष 2005की स्थिति के ही करीब पहुंच जाता है।
बच्चों और माताओं में ख़ून की कमी की स्थिति
वर्ष 2005-06 में पांच साल से कम आयु के 69.7% बच्चे ख़ून की कमी का शिकार थे।
वर्ष 2015-16 में थोड़ा सुधार हुआ और ये आंकड़ा 62.6% पर आ गया। यानी 7.1% की कमी आई।
लेकिन वर्ष 2019-20 में आंकड़ा वर्ष 2005-06 से भी बदतर स्थिति में पहुंच गया। वर्ष 2019-20 की रिपोर्ट के अनुसार गुजरात के पांच वर्ष से कम आय़ु के 79.7% प्रतिशत बच्चे ख़ून की कमी का शिकार हैं।
अगर वर्ष 2005 से तुलना करें तो पाते हैं कि 10% की बढ़ोतरी ही हुई है। ये काफी चिंताजनक स्थिति है।
वर्ष 2005-06 में गुजरात की 15-49 वर्ष आयु वर्ग की 60.8% महिलाएं ख़ून की कमी की शिकार थीं।
वर्ष 2015-16 में ये आंकड़ा 51.3% था। यानी 9.5%की कमी दर्ज़ की गई।
लेकिन वर्ष 2019-20 में ये आंकड़ा वर्ष 2005 से भी बदतर स्थिति में पहंच गया। वर्ष 2019 में 15-49 आयु वर्ग की ऐसी गर्भवती महिलाएं जिनमें ख़ून की कमी थी, उनकी संख्या में 11.3% की बढ़ोतरी हुई और आंकड़ा 62.6% पर पहुंच गया।
वर्ष 2015-16 में गुजरात की 15 से 19 वर्ष आयुवर्ग की 56.5% युवतियां ख़ून की कमी की शिकार थीं।
वर्ष 2019-20 में इनकी संख्या में 3.5%की बढ़ोतरी हुई और अब ये आंकड़ा 69% पर पहुंच गया है जोकि काफी गंभीर है। इस श्रेणी में भी कमी की बजाय बढ़ोतरी ही दर्ज़ की गई है। इस संदर्भ में वर्ष 2005-06का आंकड़ा उपलब्ध नहीं था।
निष्कर्ष
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गुजरात में माताओं और बच्चों के पोषण संबंधी दावे की पड़ताल करने पर पाया कि नेशनल फैमिली हैल्थ सर्वे की रिपोर्टें प्रधानमंत्री के दावे की पुष्टि नहीं करती हैं। वर्ष 2005 से वर्ष 2015 के बीच पोषण की स्थिति में कुछ सुधार देखने को मिलता है। लेकिन वर्ष 2019-20 तक आते-आते स्थिति वर्ष 2005 से भी बदतर हालत में पहुंच जाती है। ये दर्शाता है कि पोषण की स्थिति में सुधार नहीं हुआ है बल्कि स्थिति और बिगड़ी ही है। परिणास्वरूप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दावा भ्रामक है।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं ट्रेनर हैं। आप सरकारी योजनाओं से संबंधित दावों और वायरल संदेशों की पड़ताल भी करते हैं।)
पड़तालः क्या हर हफ्ते एक नया विश्वविद्यालय बनाया गया है?
असल सवालः सेना और अर्द्धसैनिक बलों में अब तक सवा दो लाख से ज़्यादा पद क्यों हैं खाली?
अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।