झारखंड: एनआरसी-सीएए-एनपीआर के खिलाफ प्रस्ताव लाने में हेमंत सरकार कर रही है देरी
एनपीआर-सीएए-एनआरसी के खिलाफ संघर्ष कर रहे संगठनों और आंदोलनकारियों को राज्य की गैर भाजपा सरकार के रुख से काफी निराश होना पड़ रहा है। वहीं 1 अप्रैल से एनपीआर लागू करने के केंद्र सरकार के आदेश पर झारखंड में हो रही प्रशासनिक तैयारी प्रक्रिया ने भी लोगों की चिंताएं बढ़ा दी है। क्योंकि सबको उम्मीद यही थी कि भाजपा के खिलाफ मिले जनादेश का सम्मान करते हुए हेमंत सोरेन सरकार अन्य गैर भाजपा राज्य सरकारों की भांति झारखंड में भी क़ानूनों को लागू नहीं करने संबंधी प्रस्ताव तुरंत लाएगी।लेकिन पिछले 28 मार्च से शुरू हुए विधान सभा के चालू सत्र में 6 मार्च को होली के अवकाश के कारण स्थगित होने के दिन तक सरकार की ओर से अभी तक इस मामले पर कोई ठोस निर्णय नहीं लिया जा सका है।
5 मार्च को जाने माने अर्थशास्त्री व एक्टिविष्ट ज्यां द्रेज़ , पूर्व आईएएस गोपीनाथ कन्नन और भाकपा माले विधायक विनोद सिंह के नेतृत्व में एक शिष्ट मण्डल ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मिलकर इस संदर्भ में विशेष ज्ञापन देकर बात भी की । जिसके जवाब में सीएम द्वारा कहा जाना कि - अभी वे संविधान व कानून विशेषज्ञों से राय मशविरा कर रहें हैं जल्द ही इस पर निर्णय लेंगे। आपलोग धैर्य रखें। उनकी यह बात बहुत अधिक भरोसा नहीं दिला पा रही है।
झारखंड विधान सभा के चालू सत्र में माले विधायक विनोद सिंह द्वारा इस सवाल पर लाये गए कार्यस्थगन प्रस्ताव को स्पीकर द्वारा खारिज कर देने की घटना ने भी हेमंत सोरेन सरकार और उसके घटक दलों के ढुलमुल रुख को लेकर संशय बढ़ा रखा है। सदन में विनोद सिंह के कार्यस्थगन प्रस्ताव को सत्ताधारी दल के स्पीकर ने बिना कुछ सुने ही खारिज कर दिया। सीएए–एनपीआर विरोधी होने का दावा करनेवाली कॉंग्रेस–झामुमो के किसी भी विधायक ने उस समय सदन में न तो विनोद सिंह के कार्यस्थगन प्रस्ताव का समर्थन किया और न ही कोई आवाज़ उठाई और सभी मौन बैठे रहे।
एनपीआर–सीएए–एनआरसी खारिज के खिलाफ केरल, पंजाब और पश्चिम बंगाल जैसे गैर भाजपा सरकारों द्वारा अपने प्रदेश में इसे लागू नहीं करने के लिए गए प्रस्ताव की भांति झारखंड में भी इस प्रस्ताव को पारित करने की मांग हेमंत सोरेन सरकार से की जा रही है । राजधानी समेत कई जिलों में इस सवाल पर धरना – प्रदर्शन इत्यादि कार्यक्रमों का तांता लगा हुआ है।
5 मार्च को राजभवन के समक्ष कई सामाजिक संगठनों द्वारा प्रतिवाद धरना दिया गया । जिसमें पूर्व कन्नन गोपीनाथ , ज्यां द्रेज़ और विधायक विनोद सिंह विशेष रूप से शामिल हुए।वहीं रांची के कडरू,शाहीनबाग के अलावे धनबाद, कोडरमा और कुमारधुबी जैसे कई स्थानों पर मुस्लिम महिलाओं का अनिश्चितकालीन धरना निरंतर जारी है। जमशेदपुर में प्रशासन द्वारा धारा 144 लगाए जाने के कारण कई स्थानों पर लोगों ने अपनी चप्पलें इकट्ठी कर ‘ चप्पल सत्याग्रह ’ प्रदर्शन कर “ खामोशी की गूंज ” प्रतीक प्रतिवाद किया। प्रगतिशील महिला एसोशिएशन के बैनर तले महिलाओं ने 6 से 8 मार्च तक बागोदर और धनवार में अनवरत प्रतिवाद अनशन कार्यक्रम किया।
दिलचस्प मामला है कि एनआरसी के मुद्दे को लेकर पिछले 25 फरवरी को जब बिहार विधान सभा के चालू सत्र के दौरान माले विधायकों ने राज्य में एनआरसी नहीं लागू करने संबंधी कार्यस्थगन लाया तो सत्ताधारी दल ( एनडीए गठबंधन ) से जुड़े स्पीकर ने स्वीकार कर लिया। साथ ही उसके समर्थन में तेजस्वी यादव समेत विपक्ष के कई गैर भाजपा विधायक भी खुलकर खड़े हो गए। इसी कार्यस्थगन प्रस्ताव पर हुई व्यापक चर्चा उपरांत सर्व सम्मत फैसला हुआ कि बिहार में एनआरसी नहीं लागू होगा।लेकिन झारखंड विधान सभा में सत्ताधारी दल (गैर भाजपा गठबंधन) के स्पीकर द्वारा कोई चर्चा भी नहीं होने देना, वाकई संशय का मामला बन जाता है।
झारखंड प्रदेश के मुस्लिम व आदिवासी संगठनों समेत कई सामाजिक संगठनों द्वारा हेमंत सोरेन सरकार से लगातार मांग की जा रही है कि वह झारखंड में एनपीआर–सीएए–एनआरसी नहीं लागू करने का प्रस्ताव जल्द से जल्द पारित करे। लेकिन अभी तक मुख्यमंत्री और सरकार के रवैये से कोई सकारात्मक संकेत सामने नहीं आया है।
1 अप्रैल से जमीनी स्तर पर शुरू होनेवाली एनपीआर प्रक्रिया को लेकर लोगों में संशय गहराता जा रहा है। हालांकि इस पर रोक लगाने को लेकर कई सामाजिक संगठनों द्वारा गाँव गाँव में ग्राम सभा से प्रस्ताव पारित कर सभी स्थानीय विधायकों और मुख्यमंत्री को पत्र भेजने की अपील की जा रही है। लेकिन इसका विरोध करने और झारखंड में इसे लागू नहीं होने देने का दावा करनेवाले सरकार के प्रमुख घटक दल झामुमो और कॉंग्रेस में इस सवाल पर कहीं कोई जमीनी सुगबुगाहट का नहीं दीखना लोगों को काफी निराश कर रहा है।
आदिवासी सवालों पर सक्रिय सामाजिक कार्यकर्त्ताओं और आदिवासी बुद्धिजीवियों द्वारा सोशल मीडिया में इस बात को लेकर काफी चिंताएँ जताई जा रही है कि वैसे अनगिनत आदिवासी परिवारों का क्या होगा जिनके पास ज़रूरी कागजात नहीं है । हेमंत सोरेन सरकार आदिवासी हितों का झण्डा बुलंद करने की हरचंद कवायद कर रही है लेकिन ज़मीन पर एनपीआर की समस्याओं से निजात अथवा कोई राहत दिलाने के लिए कोई सक्रियता नहीं दिखला रही है।
एनपीआर – सीएए – एनआरसी विरोध का संयुक्त अभियान संगठित कर रहे एआईपीएफ एक्टिविष्ट नदीम खान का कहना है कि जब राज्य कि बहुसंख्यक जनता ने सम्पन्न हुए विधान सभा चुनाव में भाजपा की नीतियों के खिलाफ अपना जनादेश दिया है और उक्त काले क़ानूनों का मुखर विरोध भी कर रही है, तो सत्ताशीन होनेवाली इस गैर भाजपा सरकार का यह मुख्य दायित्व बन जाता है कि समय रहते वह इस प्रदेश में भी एनपीआर–सीएए–एनआरसी नहीं लागू करने का फैसला ले वरना देर ना हो जाए कहीं ..... !
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