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झारखण्ड  : फादर स्टैन स्वामी की हिरासत में हुई मौत के ख़िलाफ़ वाम दलों और सामाजिक जन संगठनों का राजभवन मार्च

"एक ओर, बम विस्फोट और ह्त्या की आरोपी प्रज्ञा ठाकुर को फ़ौरन जमानत मिल जाती है, लेकिन असहमति के स्वर उठाने के कारण 84 वर्षीय बीमार फादर स्टैन को जमानत देने की बजाय उनकी जान ले ली गयी।"
झारखण्ड  : फादर स्टैन स्वामी की हिरासत में हुई मौत के ख़िलाफ़ वाम दलों और सामाजिक जन संगठनों का राजभवन मार्च

इसे दुखद विडंबना ही कहा जायेगा कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन फादर स्टैन स्वामी की शोक सभा में शामिल होकर उनके विचारों को नहीं मरने देने का आह्वान करते हैं, तो दूसरी ओर, उन्हीं का प्रशासन तंत्र फादर स्टैन स्वामी की हिरासत में हुई मौत की न्यायिक जांच की मांग को लेकर निकाले जा रहे राजभवन मार्च को निकलने से रोकने के लिए घंटों अड़ा रहा।

पूर्व से ही अनुमानित आशंकाओं के अनुरूप 15 जुलाई को राज्य के सभी वामपंथी दलों और सामाजिक जन संगठनों द्वारा रांची में आयोजित राजभवन मार्च को निकलने से रोकने के लिए प्रशासन पूरी तरह से अड़ा रहा। कोविड नियमों का हवाला देकर मार्च निकालने के स्थल रांची जिला स्कूल का मुख्य द्वार बंद कर हथियारबंद पुलिस का पहरा बिठा दिया गया था। मार्च के लिए जुटे लोग सरकार व प्रशासन विरोधी नारे लगाते हुए पुलिस प्रशासन के इस रवैये के खिलाफ आक्रोश प्रकट करने लगे। काफी नोक-झोंक और बहस मुबाहिसे के बाद प्रशासन इस शर्त के साथ राजी हुआ कि मार्च में 50 लोग ही शामिल रह सकते हैं और एक-एक की लाइन बनाकर ही आगे बढ़ सकते हैं।

जिसे धता बताते हुए सीपीएम पोलित ब्यूरो सदस्य व झारखण्ड प्रभारी वृंदा करात, भाकपा माले विधायक विनोद सिंह समेत सभी वामदलों के राज्य नेताओं समेत अन्य सामाजिक जन संगठनों के सदस्यों ने न्याय मार्च निकालकर राजभवन तक मार्च किया। मार्च राजभवन पर लगाए गए बैरीकेड के पास पहुंचकर प्रतिवाद सभा में तब्दील हो गया।

सभा की अध्यक्षता करते हुए चर्चित आन्दोलनकारी दयामनी बारला ने हेमंत सोरेन सरकार प्रशासन द्वारा फादर स्टैन स्वामी की मौत के सवाल पर निकाले गए न्याय मार्च रोके जाने की तीखी निंदा की। अपने आक्रोशपूर्ण संबोधन में कहा कि, "हम शांतिपूर्ण और लोकतान्त्रिक आन्दोलन करने वाले लोग हैं। इस राज्य में पांचवी अनुसूची के कस्टोडियन राज्यपाल जी को ये बताने आये हैं कि फादर स्टैन स्वामी पिछले तीन दशकों से पांचवी अनुसूची के अनुपालन और उससे वंचित किये गए आदिवासी, दलित और शोषित वंचितों के सवालों को लेकर संघर्ष करते रहें हैं, लेकिन 2014 में जब से भाजपा सत्ता में आयी है उसने पांचवी अनुसूची और विरोध की आवाज़ों पर हमला बोलते हुए पुरे देश में कॉर्पोरेट शासन शुरू कर दिया।

वे अपने वक्तव्य में आगे कहती हैं, "2016 से ही फादर स्टैन की ह्त्या की भूमिका शुरू की जाने लगी थी कि जो जल जंगल ज़मीन की लूट की बात करेगा, उसे देशद्रोही आतंकवादी कहा जाएगा। दमन का यह खेल रघुवर दास शासन में खुलकर शुरू हो गया था। इसी के तहत भीमा कोरे गांव काण्ड के नाम पर फादर स्टैन को फंसाकर जेल कस्टडी में उनकी संस्थागत हत्या कर दी गयी। इस हत्या के खिलाफ हम न्यायिक जांच की मांग को लेकर यहां आयें हैं।

प्रतिवाद सभा को संबोधित करते हुए वृंदा करात ने भी मोदी सरकार पर आरोप लगाया कि वह अपने खिलाफ होने वाले विरोध की आवाज़ों को दबाने के लिए एनआईए का इस्तेमाल कर रही है। एनआईए को नेशनल क्राइम एजेंसी की उपाधि देते हुए करात ने कहा, "फादर स्टैन की मौत भाजपा प्रायोजित साज़िशपूर्ण ह्त्या है इसलिए इसकी न्यायिक जांच होनी चाहिए। आदिवासी, दलित और वंचितों के सवालों पर निरंतर संघर्षरत रहे फादर स्टैन स्वामी से भाजपा कितना नफरत करती है, यह उसके तानाशाह रवैये से खुलकर सामने आ गया है।"

उन्होंने आगे अपने वक्तव्य में आक्रोशपूर्ण लहजे में केंद्र की सरकार से पूछा कि क्या वह बताएगी कि जिस तथाकथित जांच के नाम पर 84 वर्षीय बीमार और बुजुर्ग फादर स्टैन को गिरफ्तार कर पिछले अक्तूबर से जून 2021 तक जेल की यातनाओं में रखा गया, उसकी जांच अब तक क्यों नहीं की गई है? उन्होंने साफ तौर पर कहा कि उनके पास फादर पर लागए गए आरोपों का कोई सबूत ही नहीं था। इस प्रकरण में एनआईए की अमानवीय भूमिका का उल्लेख करते हुए करात ने कहा कि यह सारा प्रपंच देश के गृहमंत्री अमित शाह के इशारे पर ही रचा गया है। फादर स्टैन की शहादत हम कभी नहीं भूलेंगे।

सभा में शामिल झारखण्ड के भाकपा माले विधायक विनोद सिंह ने कहा, "ये वही राजभवन और रांची की सड़कें हैं, जहां सैंकड़ों बार फादर स्टैन के साथ हम सभी जल जंगल ज़मीन के सवाल, अलग राज्य गठन के बाद भाजपा सरकारों द्वारा इस राज्य के लोगों और आदिवासियों वंचित समाज के निर्दोष लोगों पर ढाए गए दमन अत्याचार के खिलाफ उनके कंधे से कन्धा मिलाकर लड़े हैं। वे प्रदेश की जनता के सावालों के एक सशक्त आवाज़ थे। अब हमें उन तमाम सवालों पर इस सरकार को कठघरे में खड़ा करना होगा।"

उन्होंने केंद्र सरकार पर आक्रामक तेवर के साथ हमला बोलते हुए कहा, "वर्तमान की भाजपा सरकारों के तानाशाह रवैये के ख़िलाफ़ असहमति और विरोध की आवाजों को दबाने के लिए कभी देशद्रोह तो कभी नक्सलवाद के नाम पर साजिश रची जा रही है। एक ओर, बम विस्फोट और ह्त्या की आरोपी प्रज्ञा ठाकुर को फ़ौरन जमानत मिल जाती है, लेकिन असहमति के स्वर उठाने के कारण 84 वर्षीय बीमार फादर स्टैन को जमानत देने की बजाय उनकी जान ले ली गयी। आज उनकी मौत की जांच भले ही न हो, लेकिन भाजपा और एनआईए का चेहरा पूरी तरह से उजागर हो गया है। फादर के अधूरे कार्यों को पूरा करने के लिए हम सब संकल्पबद्ध हैं।"

सभा को सीपीआइ के पूर्व सांसद भुवनेश्वर प्रसाद मेहता, हेमंत सोरेन सरकार के घटक दल राजद के राजेश यादव, हॉफमैन लॉ नेटवर्क के फादर महेंद्र पीटर तिग्गा, फादर स्टैन स्वामी न्याय मंच के कुमार वरुण समेत कई अन्य वक्ताओं ने संबोधित किया। सभा का संचालन भाकपा माले के भुवनेश्वर केवट ने किया।

न्याय मार्च और सभा में काफी संख्या में सीपीएम, सीपीआइ, भाकपा माले ,एसयूसीआई, मासस, आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच, सीटू, एटक, एक्टू, छात्र संगठन आइकफ़ व आइसा सदस्यों ने सक्रीय भागीदारी निभाई। इसके अलावा झारखण्ड टीएसी के पूर्व सदस्य रतन तिर्की , भोजन के अधिकार अभियान से जुड़े वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्त्ता बलराम तथा कई नागरिक अधिकार संगठनों के प्रतिनिधियों ने भी भागीदारी निभाई।

प्रतिवाद सभा की शुरुआत फादर स्टैन स्वामी की स्मृति में एक मिनट की मौन श्रद्धांजली दी गयी। सभा की ओर से वहां तैनात दंडाधिकारी के माध्यम से राज्यपाल को  ज्ञापन दिया गया, जिसमें फादर स्टैन स्वामी की हिरासत में हुई मौत की न्यायिक जांच कर दोषियों को सज़ा देने, यूएपीए कानून रद्द करने तथा झारखण्ड समेत देश की जेलों में बंद सभी विचाराधीन राजनितिक बंदियों तथा वरिष्ठ मानवाधिकार व सामाजिक कार्यकर्ताओं की अविलम्ब रिहाई की मांग की गयी। सभा से यह भी घोषणा की गयी कि यदि उक्त मांगों को मोदी सरकार नहीं मानेगी तो इसके खिलाफ व्यापक जन दबाव खड़ा करने का जन अभियान चलाया जाएगा।

सभा स्थल पर यूएपीए हटाने की मांग को लेकर नागरिक हस्ताक्षर बैनर भी लगाया गया था, जिस पर वृंदा करात और विनोद सिंह समेत सभी प्रदर्शनकारियों ने हस्ताक्षर किये।             

गौरतलब है कि इन दिनों झारखण्ड में फादर स्टैन स्वामी की मौत पर शोक और आक्रोश प्रदर्शनों का सिलसिला लगातार जारी है, जिन्हें देखकर इतना तो कहा ही जा सकता है कि मृत्यु के पश्चात भी फादर स्टैन स्वामी के प्रतिरोध के सुर सुनाई दे रहे हैं।

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