झारखंड : क्या पिछली सरकार की ग़लत कार्यशैली से बचेगी हेमंत सोरेन सरकार?
‘झारखंड लैंड म्यूटेशन बिल 2020’ पास करने जैसे कई अन्य विवादास्पद फैसलों के कारण सोरेन सरकार को व्यापक झारखंडी जन समूह के विरोध का सामना करना पड़ रहा है। विरोध का स्वर तब और बढ़ गया जब 18 सितम्बर को राजधानी में अपनी नौकरी के स्थायीकरण की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे सहायक पुलिस कर्मियों पर लाठी चार्ज हो गया।
भाकपा माले विधायक विनोद सिंह ने ‘ झारखंड लैंड म्यूटेशन बिल 2020 ’ लाये जाने और इस लाठी चार्ज के खिलाफ ट्वीट कर कहा कि - पिछली सरकार की गलती न दुहराए हेमंत सोरेन सरकार। गलत नाप के जूते से पैर कटेगा ही।
झारखंड विधान सभा के जारी मॉनसून सत्र में भी इस मामले पर काफी हंगामा हुआ। इस बार इसका जिम्मा विपक्ष में बैठी भाजपा के विधायकों ने बखूबी संभाल रखा है।
21 सितम्बर को सदन की कार्यवाही शुरू होते ही विपक्ष ने सहायक पुलिसकर्मियों पर हुए पुलिस दमन पर विरोध जताते हुए उनकी मांगों के समर्थन में हंगामा शुरू कर दिया। जिसपर सत्ता पक्ष के विधायकों ने अपना कड़ा ऐतराज़ जताते हुए सदन को अस्थिर करने का आरोप लगाया।
बाद में मुख्यमंत्री ने विपक्ष के हंगामे को गलत बताते हुए अपने जवाब में कहा कि सहायक पुलिसकर्मियों की मांगों के प्रति उनकी सरकार की सोच साकारत्मक है। इसीलिए उन्हें समझाने के लिए बार बार सरकार के प्रतिनिधि गए भी लेकिन हर बार उनके जाने के बाद विपक्ष (भाजपा) के नेता वहाँ मंडराने लगते हैं और उन्हें उकसाते हैं।
सहायक पुलिसकर्मियों को अपनी मांगों के लिए उनकी सरकार या विधान सभा घेरने की बजाये पिछली सरकार के मंत्रियों को घेरने की ज़रूरत है जिन्होंने झूठे आश्वासन देकर उन्हें बहाल किया है।
अपने वक्तव्य के बहाने केंद्र सरकार पर भी निशाना साधते हुए कहा कि केंद्र की हिटलरशाही आज तक नहीं रुकी है। पत्र आया है कि डीवीसी के बकाये का भुगतान राज्य की सरकार ने नहीं किया तो केंद्र से मिलनेवाले कम्पंशेसन से ही वह राशी काट ली जायेगी। जबकि यह गलती उन्हीं की पार्टी की पिछली सरकार ने की थी जिसे आज उनकी सरकार के मत्थे मढ़ा जा रहा है। इसके खिलाफ उनकी सरकार हर स्तर अपने अधिकार की लड़ाई जारी रखेगी।
पिछले कई दिनों से राजधानी के मोरहाबादी मैदान में झारखंड प्रदेश के विभिन्न जिलों से सहायक पुलिसकर्मी अपने स्थायीकरण की मांग को लेकर आंदोलन में डटे हुए हैं। ‘ वर्दी - ए- इन्साफ आंदोलन ’ के बैनर तले ये सभी 12 सितम्बर को अपने अपने जिलों से पैदल चलकर यहाँ पहुंचे हुए हैं। जो इस बात से काफी दुखी और आक्रोशित हैं कि खुद उनके विभाग के ही लोगों ने रांची पहुँचने से रोकने के लिए रिजर्व की गयी उनकी सभी गाड़ियों को रोक लिया। 18 सितम्बर को मोरहाबादी मैदान से निकलनेवाले उनके जुलुस को भी निकलने से रोककर उनपर बेवजह लाठी चार्ज करते हुए अश्रु गैस के गोले छोड़े गए। कई महिला सहायक पुलिसकर्मियों ने तो मीडिया को रो रोकर बताया कि कल तक पुलिस के जिन लेगों के हम सहयोगी रहे , आज वही हमपर लाठियां बरसा रहें हैं।
इस घटना को लेकर सवाल उठ रहा है कि क्या यह सरकार भी पिछली सरकार की भांति अपनी मांगों के लिए होनेवाले आंदोलन का जवाब लाठी दमन से देगी।
चर्चा है यह भी कि जब ये लोग शांतिपूर्ण ढंग से जुलुस निकालना चाह रहे थे और पूरी तरह से अनुशासित भी थे तो किसके आदेश से बेवजह लाठी चार्ज करायी गयी। इस बाबत सोशल मीडिया में तो आशंका जताई जा रही है कि राज्य के पुलिस, प्रशासन से लेकर विभिन्न विभागों में बैठे भाजपा समर्थक अफसर जान बूझकर ऐसी घटनाएं करवा रहें हैं ताकि हेमंत सरकार बदनाम हो जाए।
आंदोलनकारी सहायक पुलिस कर्मियों ने बताया कि 2017 में नक्सल प्रभावित जिलों में नक्सली हिंसा से निपटने के नाम पर रघुवर दास सरकार ने इन सभी जिलों में स्थानीय युवा–युवतियों को लेकर ढाई हज़ार से भी अधिक सहायक पुलिसकर्मियों की बहाली की थी . जिन्हें 10000 रु. प्रतिमाह के अनुदान वेतन के साथ तीन वर्षों के अनुबंध पर रखते समय ये भी आश्वासन दिया गया था कि आगे चलकर बेहतर कार्य प्रदर्शन के आधार पर स्थायी नियुक्ति कर दी जायेगी। लेकिन इसी साल के अगस्त माह में अनुबंध समाप्त हो जाने से हमारा वेतन बंद हो चुका है और इस लॉकडाउन बंदी में हम परिवार समेत दाने - दाने को मोहताज़ हो गए हैं.
आंदोलन में शामिल एक पुलिसकर्मी ने दर्द भरे लहजे में मीडिया से यहाँ तक कह दिया कि हम नक्सल प्रभावित क्षेत्रों से आते हैं , सरकार अगर दुबारा बहाल नहीं करेगी तो भूखों मरने से बेहतर होगा कि मजबूरन हमें नक्सली संगठन में ही शामिल होना पड़ जाएगा। जिसके लिए गांव गाँव में उन्होंने पोस्टर भी साट दिया है और अब हमारे घरवालों को धमका रहें हैं।
इस प्रकरण में भाजपा नेताओं द्वारा हेमंत सरकार के खिलाफ की जा रही घेरेबंदी पर आम टिका टीप्पणियों में भाजपा व उनके नेताओं से भी पूछा जा रहा है कि अपने शासन काल में हर आंदोलन का जवाब सिर्फ लाठी गोली और झूठे मुकदमों से देनेवाले , आज किस मुंह से दमन का विरोध कर रहें हैं ?
वैसे , राज्य में छाये कोरोना महामारी संक्रमण के संकटों के बीच बढ़ती विधि व्यवस्था समस्या के साथ - साथ ब्लॉक से लेकर सभी विभागों में जड़ जमाया बेलगाम भ्रष्टाचार व विभिन्न योजनाओं में मची सरकारी लूट तथा ग्रामीण क्षेत्रों के गरीबों को राशनकार्ड व समुचित अनाज नहीं मिलने जैसी अनगिनत जटिल समस्याओं का समुचित निराकरण नहीं होना , गंभीर चुनौती बनी हुई है . जिनसे सिर्फ केंद्र सरकार द्वारा किये जा रहे भेदभाव जैसे मामलों का हवाला देकर नहीं टाला जा सकता है. क्योंकि अब कहा जाने लगा है कि वर्तमान सरकार से प्रदेश की जनता ने जो उम्मीदें बांध रखी है कि यह सरकार पिछली सरकार की गलत कार्यशैली नहीं अपनाएगी और समस्याओं का समय रहते समुचित निदान करेगी हेमंत सोरेन सरकार को हर स्तर पर व्यवहार में उन्हें पूरा कर के तो दिखाना ही होगा।
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