जूलियो रिबेरो : पंजाब के लोग नहीं चाहते ख़ालिस्तान समस्या का दोहराव
जब पंजाब में ख़ालिस्तानी आतंकवाद अपने चरम पर था, तब जूलियो रिबेरो वहां पुलिस में डीजीपी थे। उनके पास पंजाब की स्थिति का सीधा तजुर्बा है। पंजाब के लोग उनकी की खूब प्रशंसा भी करते हैं। रिबेरो 3 महीने से दिल्ली की सीमाओं पर जारी किसान आंदोलन पर बेहद करीब से नज़र रख रहे हैं। उनका मानना है कि एक 'भ्रमित' और 'व्याकुल' सरकार ने इस आंदोलन के दौरान प्रदर्शनकारियों के आसपास बैरिकेड लगाने जैसी कई गलतियां की हैं। उन्होंने सोमवार को न्यूज़क्लिक से एक इंटरव्यू में कहा कि सरकार को याद रखना चाहिए कि पंजाब में आतंकवाद के जख़्म पूरी तरह भरे नहीं हैं। इसलिए नाम लेकर लोगों पर लांछन लगाने की गलती नहीं करनी चाहिए।
सरकार और मीडिया के एक बड़े हिस्से ने प्रदर्शनकारी किसानों पर ख़ालिस्तानी या ख़ालिस्तानी समर्थक होने का ठप्पा लगा दिया है। क्या आपको लगता है इससे कोई विकट स्थिति बना सकती है?
यह सरकार द्वारा की जाने वाली सबसे मूर्खतापूर्ण चीज है। 'देशद्रोही', 'ख़ालिस्तानी', मतलब यह कहना है कि अपने आप में मू्र्खता भरा है। मैं नहीं जानता कि उन्होंने किसानों के लिए ऐसी शब्दावलियों का उपयोग क्यों किया। उन्होंने हाल के दिनों में ऐसा नहीं किया है, बल्कि तीन हफ़्ते पहले भी ऐसे ही आरोप लगाए गए थे, इससे सरकार के व्याकुल होने के बारे में पता चलता है।
यह सत्ता जिस तरीक़े से प्रदर्शनकारियों के साथ व्यवहार कर रही है, उस पर कई सारे सवाल खड़े हो रहे हैं। कहा जा रहा है कि इससे पंजाब में ख़ालिस्तानी समर्थक भावनाओं का ज्वार आ सकता है, क्योंकि वहां का युवा अभी काफ़ी परेशान है, आखिर उनके कई लोग प्रदर्शन में जान गंवा चुके हैं और उनके सैकड़ों बड़े-बुजुर्गों पर UAPA व राजद्रोह की धारा के तहत मामले दर्ज किए गए हैं। आपके इस पर क्या विचार हैं?
सरकार को यहां बेहद सतर्क रहने की जरूरत है, क्योंकि पंजाब के घाव अभी तक पूरी तरह भरे नहीं हैं। पंजाब के मामले में आप इसे (ख़ालिस्तान के डर को) बहुत हल्के में नहीं ले सकते हैं, क्योंकि ज़्यादातर प्रदर्शनकारी सिख और जाट हैं।
इस बात की बहुत संभावना नहीं है कि ख़ालिस्तानी भावनाओं का दोहराव हो, क्योंकि वहां के लोग एक बार इससे गुजर चुके हैं। वह इसकी वापसी भी नहीं चाहते। लेकिन वहां कई लोग हैं, जैसे गुरपटवंत सिंह पन्नू, जिन्हें बहुत ज़्यादा तो नहीं, लेकिन कुछ हद तक पंजाब के युवाओं में समर्थन मिला है।
कुछ दूसरे लोग भी हैं, जो ख़ालिस्तान का समर्थन करते हैं, लेकिन इनमें से ज़्यादातर विदेशों में रहते हैं। लेकिन सरकार को यहां यह सतर्कता बरतनी चाहिए कि इन लोगों का समर्थन ज़्यादा ना बढ़े। यहां मुख्य चुनौती इन्हीं लोगों से निपटने की है, क्योंकि अपने लोगों के साथ व्यवहार उतना मुश्किल नहीं होता।
सिर्फ़ किसान ही ऐसे मुक़दमों का सामना नहीं कर रहे हैं?
हां। वे लोग (पुलिस) सभी के खिलाफ़ मुकदमे दर्ज कर रही है, इसमें पत्रकार और संसद के सदस्य तक शामिल हैं। मैं सरकार को इस तरीक़े के सुझाव नहीं देता। सरकार कई सारे विरोधियों से उलझ रही है। जितने भी लोगों से यह उलझेगी, सरकार की परेशानी उतनी ही बढ़ेगी। मुझे लगता है कि यह लोग ठीक से नहीं सोच रहे हैं। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है।
सरकार द्वारा इस आंदोलन से अब तक कैसा व्यवहार किया गया, आपका समग्र विश्लेषण क्या कहता है?
मुझे लगता है कि सरकार कुछ भ्रमित है। व्यक्तिगत तौर पर किसानों के लिए मैं सरकार द्वारा अपनाई गई रणनीति नहीं अपनाता। जो रणनीति यह लोग अपना रहे हैं, उसके बारे में ठीक से वही जान सकते हैं। मुझे लगता है कि सरकार ताकत का इस्तेमाल करना नहीं चाह रही है और किसान भी किसी तरह का हिंसात्मक टकराव नहीं चाहते। अगर यह लोग शांतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन जारी रखते हैं, जैसा 26 जनवरी के पहले था, तो किसानों को आम आदमी से बहुत समर्थन हासिल होगा। अगर पुलिस किसानों के खिलाफ़ किसी तरह की शक्ति का उपयोग करती है, तो इससे उसकी लोकप्रियता बहुत नीचे गिरेगी। इसलिए दोनों ही पक्ष हिंसा नहीं चाहते।
किसानों ने गणतंत्र दिवस के दिन जिस तरीक़े से लाल क़िले पर झंडा फहराया, क्या आप उससे अचंभित थे?
किसानों का लाल क़िला तक मार्च पहले से प्रायोजित भी नहीं था। सरकार ने उसकी सुरक्षा में कमी रखी। मतलब जितनी सुरक्षा होनी चाहिए थी, उतनी नहीं थी। मुझे लगता है यह एक गलती सरकार ने यहां की।
क्या आपको सरकार द्वारा किसान आंदोलन के साथ किए जा रहे व्यवहार और सरकार द्वारा सीएए प्रदर्शनों के दमन में कोई समानता दिखाई देती है? पुलिस ने कई उम्रदराज़ किसानों को गिरफ़्तार किया है, वह भी तब जब यह लोग बाज़ार में कुछ चीजें खरीदने निकले थे या फिर ई-रिक्शा में सफर कर रहे थे।
अब यह एक तरह की नियमित प्रक्रिया बन गई है। यह एक ऐसी नीति है, जिससे मुझे नफरत है। क्योंकि जब हम सरकार से पूछते हैं कि उन्होंने नफरती भाषण देने वाले लोगों को गिरफ़्तार क्यों नहीं किया, तो उनके पास कोई जवाब नहीं होते। यहां भी पुलिस ने योगेंद्र यादव जैसे लोगों के ख़िलाफ़ गंभीर धाराओं में मामले दर्ज किए हैं।
मेरा कहने का मतलब है कि सरकार कई सारी ग़लतियाँ कर रही है। उन्हें बहुत सावधानी रखनी चाहिए, क्योंकि यह बहुत नाज़ुक मोड़ है। उनके सामने कभी इस स्तर की चुनौती नहीं आई। सरकार को अब तक बहुत आराम मिला है, लेकिन यह चुनौती बहुत जल्दी दूर होने वाली नहीं है। नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ़ होने वाले प्रदर्शनों को महिलाओं और मुस्लिमों ने नेतृत्व दिया था। लेकिन किसानों के साथ इतनी सीधी चीजें नहीं हैं। इसलिए सरकार के लिए यह कठिन परीक्षा का वक़्त है।
आपने प्रदर्शन स्थल पर लगाई गई 10 से 13 स्तर वाली, एलओसी तरह की सुरक्षा बैरिकेडिंग की फोटो और वीडियो तो देखे ही होंगे। इसके बारे में आप क्या सोचते हैं?
सरकार काफ़ी दूर तक निकल चुकी है। वह नहीं चाहती कि किसान दिल्ली में आएं। यह बैरिकेडिंग सरकार के परेशान होने का प्रतीक है और पूरी बैरिकेडिंग बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। सरकार ऐसे कदम उठा रही है, जिनकी उनसे कोई अपेक्षा भी नहीं करता। लेकिन जैसा कुछ लोग कह रहे हैं, वैसा मुझे नहीं लगता कि सरकार प्रदर्शनकारी किसानों को दुश्मन समझकर बर्ताव कर रही है। सरकार जानती है कि वह किसानों को अपना दुश्मन बनाने का भार नहीं उठा सकती। लेकिन यहां सरकार बहुत सारी गलतियां कर रही है। देखिए कैसे पश्चिमी उत्तरप्रदेश में टिकैत बड़े नेता के तौर पर उभरे हैं। भारतीय जनता पार्टी ने चुनाव में वहां जीत दर्ज की थी, लेकिन इस हिस्से में उन्हें अपनी ज़मीन गंवानी पड़ सकती है। सरकार के लिए यह नुकसान का खेल है।
सिर्फ़ सरकार ही नहीं, सुरक्षाकर्मी भी पशोपेश में हैं। उन्होंने कभी इतना लंबा और इतनी ऊर्जा वाला आंदोलन दिल्ली या उसके आसपास होते हुए नहीं देखा। क्या आप मानते हैं कि मानसिक तौर पर यह सरकार के लिए चुनौती भरी स्थिति है?
जब हम ऐसी स्थितियों से निपटते हैं, तो सबकुछ मैदानी हकीक़त पर निर्भर करता है। मेरे कार्यकाल में ज़मीनी हकीक़त और मेरे ऊपर बैठे लोग बहुत अलग थे। पहले आपके पास मनमोहन सिंह थे, अब अमित शाह हैं। यह आसान नहीं है। यह काफ़ी अलग भी है। अब पुलिस को अमित शाह की मनमर्जी पर काम करना होता है। सब चीज इस पर निर्भर करती है कि आपका बॉस स्थिति को किस तरीक़े से देखता है।
आपका मतलब किस तरीक़े से है?
मैं आपको बताता हूं कि सशस्त्र बलों के साथ क्या होता है। उनके नेतृत्व बहुत स्पष्ट होता है। अगर आपका नेतृत्व स्पष्टता रखता है, तो उन्हें हमेशा बेहतर काम करने में आसानी होती है। क्योंकि सशस्त्र सेना के लोगों का जनता के साथ कोई सीधा संबंध नहीं होता, तो वे सिर्फ़ अपने आदेशों का पालन करते हैं। अगर उनके उच्च अधिकारी चीजों को ठीक करने पर केंद्रित हैं, तो सुरक्षाबल भी वैसा ही करेंगे। इस चीज की मैं आपको गारंटी दे सकता हूं भले ही सुरक्षाकर्मी का दिल दूसरी तरफ हो।
मैं नहीं जानता कि सुरक्षाबलों में कितने लोग हिंदुत्व की विचारधारा से परेशान होते हैं या नहीं, लेकिन ज़्यादातर अधिकारी संविधान और कानून के हिसाब से अपना कर्तव्य निभाते हैं। लेकिन अब मैं देखता हूं कि अक्सर यह लोग अपनी प्रतिबद्धता से हट रहे हैं।
ब्लर्ब:
सरकार अब बहुत दूर तक चली गई है। वह नहीं चाहती कि किसान दिल्ली के भीतर आएं। बैरिकेंडिंग सरकार की व्याकुलता दर्शाती है। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। सरकार ऐसी चीजें कर रही है, जिसकी उससे कोई उम्मीद ही नहीं की जाती है।
सशस्त्र बलों के सदस्य अपने नेता का पालन करते हैं। अगर उनका नेता स्पष्टता रखता है, तो उन्हें बेहतर काम करने में मदद मिलती है। इन सशस्त्र बलों का जनता से सीधा संपर्क नहीं होता, तो वे केवल आदेश मानते हैं। अगर उनके उच्च अधिकारी चीजों को सही करना चाहते हैं, तो सशस्त्र बल भी ऐसा ही करते हैं।
सरकार को बहुत सावधानी रखनी चाहिए क्योंकि पंजाब के घाव अभी तक भरे नहीं हैं। पंजाब के मामले में आप इस स्थिति को बहुत हल्के में नहीं ले सकते, क्योंकि ज़्यादातर किसान सिख और जाट हैं। सरकार को बहुत सावधानी रखनी चाहिए।
देखिए कैसे पश्चिमी उत्तरप्रदेश में टिकैत बड़े नेता बनकर उभरे हैं। भारतीय जनता पार्टी ने उत्तरप्रदेश के इस हिस्से में चुनावी जीत दर्ज की थी, लेकिन अब उनकी यहां ज़मीन खिसक सकती है। सरकार के लिए यह बहुत नुकसानदेह खेल है।
इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।
Julio Ribeiro: People of Punjab Wouldn’t Want Khalistan Problem Again
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