राजमार्ग परियोजना में नाइंसाफ़ी के डर से बढ़ रहा किसानों का दर्द!
मध्यप्रदेश के सागर जिले में 13 सितम्बर 2022 को सड़क एंव परिवहन मंत्रालय नई दिल्ली ने भारत के राजपत्र (सरकार के आधिकारिक दस्तावेज) में 25.8 कि.मी. भूमि अर्जन की अधिसूचना जारी की। अधिसूचना में राजमार्ग 146 (रिंग रोड 2) के निर्माण हेतु राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम 1956 की शक्तियों के तहत 15 गांव की जमीन के अर्जन का जिक्र किया गया।
राजपत्र में राजमार्ग 146 की अधिसूचना की आपत्ति
अधिसूचना मे यह भी वर्णित है कि कोई भी भूमि में हितबद्ध व्यक्ति...अधिसूचना प्रकाशन के 21 दिन के भीतर अपनी आपत्ति प्रकट कर सकेगा। आपत्तियों पर प्राधिकारी का आदेश अंतिम होगा। जिसके बाद 15 गांव में से कई गांव के लोगों ने अपनी मांगों को लेकर अनुविभागीय, एसडीएम और कलेक्टर जैसे अधिकारियों को सामूहिक और व्यक्तिगत आपत्तियां दर्ज करायीं। वहीं, बहुत से किसान राजमार्ग 146 का विरोध कर रहे हैं। विरोध की वजह किसानों के घरों और जमीनों पर से राजमार्ग निकालने की घोषणा है। वहीं, राजमार्ग निकालने के लिए सरकारी जमीन भी एक विकल्प है।
जिन 15 गांव की भूमि अधिग्रहण की घोषणा की गयी है उनमें दलित, आदिवासी, पिछड़ा वर्ग सहित सामान्य वर्ग के लोग भी शामिल है। जिनमें अधिकतर के पास एक एकड़ से पांच एकड़ तक जमीन है। और जमीन इनकी जीविका का प्रमुख साधन ही नहीं, वास्तव में इनकी रोटी है। जिसको चीरते हुए राजमार्ग निकाला जा सकता है।
इन्हीं 15 गांव में से एक गांव सुल्तानपुरा (आबादी करीबन 1000) है। जहाँ के कृषकों ने 20 सितम्बर के दिन अनुविभागीय अधिकारी सागर को सामूहिक आपत्ति लगायी। आपत्ति में जिक्र किया गया कि लेदहरा से ढाना रिंग रोड-2 के पुराने नक्शे में 10-12 लोग, दो कुएं, 2 हेक्टेयर भूमि प्रभावित होगी, जिसमें हमें कोई आपत्ति नहीं हैं।
लेकिन नये नक्शे में 40 किसान, 6 कुएं, टेनसन टावर, 8-10 हेक्टेेयर भूमि, पानी स्त्रोत प्रभावित होगें और 8-10 किसान भूमिहीन होगें। इसमें शासन को मुआवजा भी ज्यादा देना होगा। और हम लोगों (कृषकों) को आपत्ति है।
आपत्ति में गांव के निरीक्षण और समस्याओं के समाधान का निवेदन भी किया गया। सुल्तानपुरा निवासियों ने ऐसी ही अन्य आपत्ति कलेक्टर को भी सौंपी।
वहीं, सुल्तानपुरा से सटे गांव चितौरा आबादी (करीब 4000) के लोगों ने एसडीएम (सब डिविजनल मजिस्ट्रेट) के नाम 23 सितम्बर को आपत्ति दर्ज की। आपत्ति में उल्लेख किया गया कि भूमि अधिग्रहण से ग्रामवासी आवासी समस्या, आवास हीन तथा दर-दर की ठोकरे खाने को मजबूर हो जावेगा।
और चितौरा (गांव) से 100 मीटर दूर रामवन पिपरिया मार्ग (सरकारी ज़मीन) का उपयोग भी प्रस्तावित राजमार्ग के लिए किया जा सकता है। ऐसे में शासन को मुआवजा कम देना होगा और अर्थ की बचत होगी।
सुल्तानपुरा गांव का एक किसान परिवार
इसी तरह प्रशासनिक और राजनैतिक लोगों के समक्ष तालचिरी गांव जैसे अन्य गांव ने भी आपत्तियां दर्ज करायीं।
वहीं, व्यक्तिगत आपत्तियों को देखें, तब कई ऐसे लोग है, जिन्होंने स्वयं आपत्ति लगायी है। इनमें चितौरा ग्राम निवासी गोकल पटेल भी है।
जिन्होनेें अपनी आपत्ति में लिखाः- भूमि मौजा-चितौरा...भूमि खसरा नं. 551/1 में कुल रकबा 0,50 एकड़/हेेक्टेयर में से 0,50 ए./हें. शामिल है। उक्त वर्णित भूमि उत्तम क्वालिटी की, सिंचित ज़मीन है, जिसमें सब्जियां उगायीं जाती हैं। जमीन में 15 आम, 1 सागौन, 9 बिही (अमरूद), 2 करोंदे, 5 आंवले सहित 4 नींबू के पेड़ और 15 अन्य पेड़, 8 पक्के मकान है, जिससे स्पष्ट है कि जमीन की वर्तमान बाजारू कीमत करोड़ो रुपए होगी।
चितौरा गांव के एक खेत में लगे सागौन के पेड़
प्रस्तावित राजमार्ग की सूचना में मुआवजा का कोई उल्लेख नहीं है। इस आपत्ति में आगे भूमि के अधिग्रहण नहीं किए जाने की मांग की गयी, और कहा गया यदि अधिग्रहण अपरिवर्तनीय है, आवश्यक हो, तो आपत्तिकर्ता को बाजार मूल्यांकन के आधार पर मुआवजा दिया जाए, अथवा प्रस्तावित रिंग रोड से लगी भूमि के बदले उतने ही मूल्य की भूमि दिलाई जाने का आदेश देने की कृपा करें।
यहां चिंतनीय है कि क्या सरकार गोपाल पटेल जैसे अन्य कृषकों के साथ न्याय करेगी? क्या ऐसे कृषकों के स्वतंत्रता, समानता, आर्थिक, सामाजिक न्याय जैसे संवैधानिक मूल्यों का हनन नहीं किया जायेगा? क्या कृषकों की इन मांगों की जवाबदेही सरकार की होगी? यह विचारणीय है।
इस राजमार्ग परियोजना से संबंधित सागर से लोकसभा सांसद राजबहादुर सिंह का एक पत्र क्रं. SL/SGR/2022/665-B भी हमारे हाथ लगा। जो नितिन जयराम गडकरी (केन्द्रीय मंत्री-सड़क परिवहन एंव राजमार्ग मंत्रालय) को लिखा गया।
पत्र में लिखे कुछ शब्द निम्न हैः .....उक्त मार्ग के निर्माण से सागर शहर के भीतर से गुजरने वाले भारी वाहनों के चलते दुर्घटना एंव प्रदूषण से मुक्ति अवश्य मिलेगी, साथ ही शहर में यातायात की सुगमता होगी। प्रस्तावित सागर रिंग रोड -2 लहदरा से ढाना तक के एकरेखन एलांइनमेंट जिस तरह अनुमोदित किया गया है। उसमें आम जनता का न्यूनतम क्षति/विस्थापन होने की संभावना हैै, जिसकी मैं सराहना प्रकट करता हूं।
प्रस्तावित रिंग रोड 2 का काम जल्द आरंभ कराने के लिए भी कुछ राजनैतिक लोगों ने केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी को पत्र भी लिखा है। लेकिन राजमार्ग के लिए जिन गांव की भूमि अर्जित किये जाने की घोषणा की गयी है, उन गांव का विशेष तौर प्रशासन और राजनीतिक लोगों ने निरीक्षण भी नहीं किया है।
जिन 15 गांव से होते हुए राजमार्ग बनाए जाने की घोषणा की गयी है, उनकी ज़मीनी हकीकत जानने के लिए हमने तीन गांव सुल्तानपुरा, बेरखेरी, चितौरा का भ्रमण किया। जब गांव घूमें तब देखा कि वहां के खेत सब्जियों, फल, फूलों से भरे है और लहलहा रहे हैं। लेकिन कृषकों के चेहरे इस चिंता में मुरझा रहे है कि इस राजमार्ग निमार्ण में उनका होगा क्या? इन कृषकों में कोई अपने बच्चों के सिरहाने हाथ रखें, सोच में डूबा है कि इनका भविष्य कैसा होगा? कोई टकटकी लगाए मवेशियों को देख रहा है, और कह रहा है इनको कहां ले जायेगें? कुछ किसान खेतों को ताककर बोल पड़ते है कि राजमार्ग निमार्ण में बुल्डोजर यहां चलेगा, मगर असर हमारे पेटों पर होगा। वहीं कुछ को झोपड़ी, पक्का मकान और उस कुटी की चिंता जो प्रधानमंत्री आवास योजना में बनायी गयी, लेकिन उनका उद्घाटन तक नहीं हो सका।
चितौरा गांव खेत पर बैठे कुछ किसान
जब राजमार्ग निमार्ण की घोषणा के संबंध में हमने सुल्तानपुरा के निवासियों की प्रतिक्रियाएं जानना चाहा, तब वहां निवासरत् दारा सिंह आदिवासी बताते है कि सुल्तानपुरा गांव कुछ साल पहले थोड़ी दूर बसा था। लेकिन वहां मिलिट्री रेंज स्थापित कर हमें बिना मुआब्जा दिये हटा दिया। फिर हमें यहां स्थापित होनें में कई साल लगें हैैं। अब यहां राजमार्ग 146 के निर्माण की घोषणा ने हमें दुविधा में डाल दिया है। हम लोगों के पास थोड़ी-थोड़ी करीबन एक से दो एकड़ जमीन है। जो दाल-रोटी का जरिया है।
सुल्तानपुरा के रामेश्वर जैसे कई आदिवासियों, हरिजनों, और बेरखेरी, चितौरा गांव के पिछड़ा वर्ग और समान्य वर्ग के लोगों की मांग हैं कि राजमार्ग 146 में हमारी जमीन के बजाए सरकारी जमीन का उपयोग किया जाए। अब यहां ध्यातव्य है कि आर्थिक स्वतंत्रता जैसे संवैधानिक मूल्यों के लिहाज से क्या ग्रामीणों की यह मांग जायज़ है? आज जहां ग्रामीणों के घर और जमीन है, वहां किसी राजनेता या आर्थिक तौर पर मजबूत व्यक्ति की हवेली और जमीन होती, तब क्या उस हवेली और जमीन पर से भी राजमार्ग निकाला जाता? या यहां संविधान का अनुच्छेद 14 फीका प्रतीत होता?
सुल्तानपुरा से सटे गांव बेरखेरी में जब हमारे कदम पड़े और वहां लोगों से बात हुयी। तब मिथलेश राजपूत (जमीन 3 एकड़) जैसे अन्य ग्रामीणों ने कहा यदि हमारी जमीन रिंग रोड 2 में ली जाती है, तो उसके बदले हमें दूसरी जमीन दी जाए। ज़मीन मुआव्जे के संबंध में उनका आशय यह है कि क्या सरकार गारंटी देगी कि, जितनी राजमार्ग में हमारी जमीन ली जायेगी, उसके मुआब्जे से हम उतनी जमीन खरीद पायेगें?
चितौरा और सुल्तानपुरा गांव के किसान
बेरखेरी के एक शख्स इंद्रपाल सिंह ठाकुर की राजमार्ग के संबंध मुह जुबानी कुछ इस तरह हैः
रिंग रोड में हमारी 5.50 एकड़ जमीन निकल रही है। लेकिन हम रोड के लिए तैयार नहीं, ना हमें मुआब्जा चाहिए। ....सरकार अगर हमें खेती का मुआब्जा देगी, तब हम उतनी खेती खरीद नहीं पायेगें, जितनी हमारे पास है। खेती तलाशते हुए पैसा खत्म हो जायेगा।
एक अन्य युवा मनीष यादव का कहना हैं कि रिंग रोड 2 में हमारा कुआं निकलना है। कुएं में हमने 10-15 लाख रुपए लागत लगाई है। क्या कुएं का मुआवजा देने की कोई गारंटी है? कुछ दिन पहले राजमार्ग 146 (1) में लोगों को मुआवजा दिया गया, जिनमें से एक व्यक्ति ने मुझे बताया कि मेरे कुएं का मुआवजा नहीं दिया गया।
जब हमने मनीष के कथन की पुष्टि के लिए उस व्यक्ति से संपर्क किया तब पता चला वह कोलुआ अमरसा गांव के रामसिंह लोधी हैं। हमारे पूछने पर उन्होनें बताया कि, कोलुआ गांव में राजमार्ग 146(1) के निर्माण में हमारे गांव की अवधरानी हरिजन, परम साहु और मेरा कुआं निकला है। मैंने अपने कुएं में 4 लाख रुपए की लागत लगायी है। लेकिन मेरे सहित अवधरानी और परम के कुंओं का मुआब्जा चवन्नी नहीं आया। मुआवजे के लिए हमने कलेक्टर, अनुविभागीय जैसे अन्य अधिकारियों को ज्ञापन भी दिया है। लेकिन ज्ञापनों के उत्तर नहीं मिले। इन ज्ञापनों की प्रतियां राम सिंह ने हमारे साथ भी साझा किये हैं।
अब आप यहां दिमाग पर थोड़ा जोर लगाकर सोचिए कि न्याय जैसे संवैधानिक मूल्यों का क्या यहां हनन हो रहा है? अगर हनन नहीं तो रामसींग जैसे लोगों के कुंए और पेड़ का मुआवजा क्यों नहीं दिया गया? कई लोग ऐसे हैं जिन्हें राजमार्ग 146 (1) में पेड़ों का मुआवजा भी नहीं दिया गया, इन्ही में राम सींग भी हैं, जिनके 15 पेड़ हैं। इन पेड़ों में नींबू जैसा एक पेड़ सालाना 25000 रुपये का मुनाफा देता है। लेकिन सरकार ने पेड़ों का कोई मुआवजा नहीं दिया। यह क्या उनके साथ कानूनी न्याय हुआ? यदि इन पेड़ों का पर्यावरणीय मूल्य देखा जाए, तो पेड़ राम सींग जैसे अन्य लोगों को शुद्ध ऑक्सीजन देते हैं। लेकिन राजमार्ग निमार्ण में पेड़ काटे जाएंगे, तो क्या सरकार राम सींग जैसे लोगों को शुद्ध ऑक्सीजन पूर्ति के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर नियमित रूप से वितरित करेगी?
आगे रिंग रोड 2 के विषय में मनीष से यह पूछने पर कि यहां जमीन का सरकारी मूल्य और बाजार मूल्य क्या है? इस पर मनीष बताते है कि हमारे यहां रजिस्टी आफिस के मुताबिक एक एकड़ जमीन का सरकारी मूल्य 4 लाख रुपए है। वहीं हमारी एक एकड़ जमीन का बाजार मूल्य 15 लाख रुपए है।
यदि हमें सरकारी मूल्य के हिसाब से मुआवजा मिलता है, तो यह हमारे साथ नाइंसाफी होगी।
जब हमने रिंग रोड 2 के संबंध में चितौरा गांव के रहवासियों की राय लेना चाही। तब इंद्र कुमार पटेल ने कहा कि जमीन सरकार के लिए एक टुकड़ा हो सकता है, लेकिन किसान के लिए उसकी मां हैै। जो पीढ़ियों से उसे पालती आ रही है। लेकिन शासन का जो (भू-अर्जन संबंधी) राजपत्र आया है वह आत्मा को आघात करने वाला है। क्योंकि हमारे पास कोई विकल्प नहीं बचता है कि हम क्या करें? ऐसे सरकारी नियम थोप दिये गये हैं। यदि कोई प्रोडक्ट बनाता है तो कीमत खुद तय करता है। लेकिन आज एक किसान भूमि का स्वामी होते हुए भी भूमि का अधिकारी नहीं है। उसे कभी भी भगा दिया जा सकता है।
सुल्तानपुरा निवासियों ने अनुविभागीय अधिकारी को सौपीं राजमार्ग की आपत्ति
जब हमने चितौरा गांव की महिलाओं से राजमार्ग परियोजना के बारें में बातचीत की। तब रानी पटेल ने कहा कि हमारी कुल 1 एकड़ ज़मीन में 60 डिसमल पहले ही राजमार्ग 26 में ली गयी थी। बाकी 40 डिसमल में स्थापित होने में हम परेशानियां झेलने को मजबूर हैं।
फिर आगे रेखा पटेल कहती है सरकार यहां आकर देखे कि रिंग रोड निकलने में हमें कितनी मुसीबतें आयेगीं। सरकार रिंग रोड में जबरदस्ती करेगी। तब हम भी जबरदस्ती करेगें। हम अपना घर नहीं मिटने देगें। आगे विनीता सहित कुछ और महिलाओं ने कहा कि जब राजमार्ग 26 निकाला गया था, तब उसमें हमारे मकान, कुंए, और जमीन ली गयी थी। जिसके बाद हम बहुत कमजोर हो गये थे। हम 4 साल तक तो पानी के लिए दर-दर भटके थे। जैसे-तैसे अभी हमारे मकान बने और कुंए खुदे हैं। लेकिन अब राजमार्ग 146 हमें बड़ी समस्या में दोबारा डाल सकता है।
चितौरा गांव की कुछ महिला किसान
जब हमने सरकार की भू-अर्जन परियोजनाओं के संबंध में भूमि अधिकारों पर कार्यरत संस्था एकता परिषद के मध्यप्रदेश संयोजक डोंगर भाई का विचार जानना चाहा। तब उन्होंने बताया कि, "भूमि अर्जन में सरकार को पैसे देने का कोई मतलब नहीं है, पैसे देने के बजाए जमीन के बदले जमीन और सुविधाएं दी जाए, तो गरीब व्यक्ति की आजीविका सुनिश्चित हो सकती है। एक बार ज़मीन जाने के बाद मुझे नहीं लगता गरीब आदमी जमीन खरीद पायेगा, इसलिए यह गलत है। गरीब आदमी भूमिहीन होता जा रहा है, जिससे वह शहरों की तरफ पलायन करता जा रहा है और शहरों में दबाव बढ़ रहा है।"
वहीं भूमि अधिग्रहण के संबंध में (जिला न्यायालय हरदा, मध्य प्रदेश) कोर्ट के एडवोकेट शेख मुईन का कहना है कि, "जनता के कल्याण के लिए सरकार राजमार्ग बना सकती है, लेकिन सरकार नागरिकों को वास्तविक बाजार मूल्य से दुगना मुआवजा दे, ना कि बेदखल कर दे। और खास बात यह कि यदि किसी जनजातीय क्षेत्र में लोगों के निवास और भोजन योग्य भूमि है, तब कोशिश यह रहनी चाहिए कि राष्ट्रीय राजमार्ग को थोड़ा सा डायवर्ट कर दिया जाए। इन राजमार्गों में पर्यावरण संतुलन का भी ध्यान रखा जाना चाहिए।"
जब आगे हमने राजमार्ग 146 की वर्तमान स्थिति जानने के लिए नरयावली विधानसभा के वर्तमान विधायक प्रदीप लारिया से बात की। तब उन्होंने कहा कि, "रिंग रोड की शहर को आवश्यकता है। और बनना चाहिए। लेकिन अनेक किसानों ने आपत्ति दर्ज की है कि जो जमीन रिंग रोड में आ रही है इसका कोई दूसरा विकल्प हो सकता है तो इस संबंध में एसडीएम, कलेक्टर, मंत्री सबसे समक्ष ये विषय लाया गया। उनसे आग्रह किया गया कि एलाइनमेंट पर पुनर्विचार हो। और एलाइनमेंट ऐसा हो जिसमें सरकारी जमीन ज्यादा हो। लोगों की जमीन और निवास का कम से कम उपयोग हो। हमने लोक निर्माण के प्रमुख सचिव नीरज मंडलोई जी से भी कहा एलाइनमेंट पर पुनः परीक्षण होना चाहिए। और कलेक्टर साहब ने भी आश्वासन दिया कि एक दिन वह पूरे रूट, एलाइनमेंट का निरीक्षण करने वाले हैं। हम लोग प्रोसेस करेगें इस मामले में कि किसानों के हित में निर्णय हो। सड़क बने लेकिन कम से कम लोगों की जमींन उसमें आए।"
सरकार की राजमार्ग जैसी परियोजनाएं लोक प्रयोजन के लिहाज़ से ठीक कही जा सकती हैं। लेकिन इन परियोजनाओं में जिन गरीब लोगों के घरों, जमीनों अन्य संपत्तियों को राजमार्ग के रूप में तब्दील किया जाता है। उससे उन लोगों के आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक व सांस्कृतिक बिखराव की स्थिति पैदा होती है। ऐसे में यदि सरकार लोगों को भूमि के बदले भूूमि और संपत्ति का सम्मानजनक मुआब्जा नहीं देती, तब लोगों के जीवन की स्वतंत्रता, न्याय, नागरिक अधिकार, मानवाधिकार अन्य गरिमापूर्ण जीवन जीने के अधिकारों का हनन होता है। और राजमार्ग जैसी इन परियोजनाओं में ऐसे वर्ग का तो विकास होता है जो चमचमाती कारों में घूम रहा है, लेकिन वास्तव जिस वर्ग के संसाधनों पर राजमार्ग निर्मित किये जाते है। वह वर्ग दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हो जाता है। उसे खुद को स्थापित करने में दशकों लग जाते हैं या कि वह विस्थापित ही रह जाता है। ऐसे में प्रतीत होता है कि सरकार की विकासवादी नीतियों में गरीब वर्ग को आर्थिक और सामाजिक न्याय से जानबूझकर दरकिनार किया जाता है। जिससे संविधान की उस मूल भावना को ठेस पहुंचती है, जिसका लक्ष्य बुनियादी संसाधनों के अभाव में जीते लाइन के अंतिम व्यक्ति के विकास को प्राथमिकता देना है और देश के विकास को लाइन के अंतिम व्यक्ति के विकास से मापना है।
(सतीश भारतीय विकास संवाद परिषद में फेलो पत्रकार हैं)
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