मणिपुर हिंसा: 'दांव पर लगा छात्रों का भविष्य'
''स्टूडेंट्स का करियर दांव पर लगा हुआ है, इंटरनेट शटडाउन है, अफवाह उड़ाई जा रही है। कमोबेश वहां के रिलीफ कैंप और लोगों को देखने के बाद लगता है कि अगर सरकार अभी भी प्रो एक्टिव ना हुई, अभी भी पीएम संसद में आकर संदेश ना दें, तो बचा क्या है।'' मणिपुर दौरे से लौटे आरजेडी सांसद मनोज कुमार झा ने ये बात कही। वे 'इंडिया' ( I.N.D.I.A) गठबंधन के उन 21 सांसदों में से एक हैं जो मणिपुर के हालात का जायजा लेकर दिल्ली लौटे।
#WATCH | "Manipur doesn't need political agendas, it needs 'Malham'... Students' career is at stake, internet shutdown and rumour-mongering are prevailing...In the meeting, we will put across our concerns and then the proceedings will be done," says Rajya Sabha MP (RJD) Manoj… pic.twitter.com/D4RnPTHYIY
— ANI (@ANI) July 31, 2023
सांसदों के इस दौरे के दौरान चुराचांदपुर के एक रिलीफ कैंप में छात्रों ने एक मौन प्रोटेस्ट किया और 'राइट टू एजुकेशन' की मांग उठाई।
Students carry out a silent protest demanding their right to education, during a visit of opposition MPs of INDIA to a relief camp at Don Bosco School in Manipur's Churachandpur district.
Their future is at stake. Bringing normalcy to the region is the only way forward! pic.twitter.com/aeljAkbWRP
— Congress (@INCIndia) July 29, 2023
पिछले तीन महीने से जल रहे मणिपुर में कितना नुकसान हुआ है, इसका अंदाज़ा लगा पाना बेहद मुश्किल है। 160 से ज़्यादा जानों का चले जाना, 60 हज़ार से ज़्यादा लोगों का विस्थापित होना एक बड़ी त्रासदी है। इंटरनेट बंद होने की वजह से बहुत सी बातें व घटनाएं हमेशा के लिए दफन हो कर रह गईं। कुकी महिलाओं के साथ यौन हिंसा का वीडियो आया तो हड़बड़ा कर मेन स्ट्रीम मीडिया मणिपुर की तरफ दौड़ा। दिल दहला देने वाली सच्चाई दुनिया के सामने आने लगी।
लेकिन आज भी संसद में चल रहे मानसून सत्र के दौरान इस मुद्दे पर एक संजीदा बहस की जगह सिर्फ हंगामा और सदन स्थगित ही हो रहे हैं। लगातार जारी हिंसा का आने वाली पीढ़ी पर क्या असर पड़ेगा ये कुछ सालों बाद सामने आएगा। कुछ मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया कि कुकी और मैतेई समुदाय ने अपने-अपने इलाकों के बीच सीमा रेखा खींच दी है और उसकी सुरक्षा के लिए छात्रों ने बंदूक उठा ली हैं। आगे चलकर ये छात्र क्या करेंगे, कोई नहीं जानता, क्या होगा उनका भविष्य? क्या होगा मणिपुर का भविष्य? इन सवालों का जवाब कौन देगा, क्या पता?
इसी 'भविष्य' की चिंता में मणिपुर के कई परिवार देश के दूसरे हिस्सों का रुख़ करने को मजबूर हो रहे हैं। कई छात्र लगातार केंद्र सरकार औरUGC (University Grants Commission) से उन्हें दूसरी सेंट्रल यूनिवर्सिटी में ट्रांसफर करने की गुज़ारिश कर रहे हैं। और इसी को लेकर मणिपुर यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले कुकी-ज़ो समुदाय के छात्रों ने चुराचांदपुर में प्रदर्शन कर उन्हें इंफाल की बजाए कहीं और शिफ्ट करने की मांग की।
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इस प्रोटेस्ट में क़रीब 60 से ज़्यादा छात्रों ने हिस्सा लिया जिसे Joint Students' Body (JSB) of lamka ने आयोजित किया था। इन छात्रों ने UGC (University Grants Commission) और केंद्र सरकार से उनके भविष्य सुरक्षित करने की मांग की। हमने मणिपुर यूनिवर्सिटी की एक छात्रा से बात की जो जूलॉजी के चौथे सेमेस्टर में हैं और उन्होंने इस प्रोटेस्ट में हिस्सा लिया था। उन्होंने हमें बताया कि '' हम चाहते हैं कि जल्द से जल्द हमारी क्लास पहले की तरह ही लगनी शुरू हो जाएं और अगर नहीं होती तो यूजीसी हमें जल्द से जल्द किसी दूसरी सेंट्रल यूनिवर्सिटी में शिफ्ट कर दें ताकि हमारा एकेडमिक सेमेस्टर बर्बाद होने से बच जाए।''
जब हमने इस छात्रा से पूछा कि वे दोबारा यूनिवर्सिटी नहीं जाना चाहती तो उन्होंने कहा कि '' तीन मई के बाद हमारे ऊपर भीड़ के हमले हुए, आते-जाते हुए हमें बदसलूकी की गई। अगर हम वापस यूनिवर्सिटी जाते हैं तो हमें जान का भी खतरा हो सकता है।'' वे आगे बताती हैं कि '' अगर किसी को चुराचांदपुर जाना है तो आइज़ोल हो कर जाना पड़ रहा है।''
इन छात्रों की तरफ से चुराचांदपुर के डिप्टी कमिश्नर के माध्यम से मणिपुर की गवर्नर को एक ज्ञापन भी सौंपा गया।
छात्रों की तरफ से गवर्नर को सौंपा गया ज्ञापन
मणिपुर यूनिवर्सिटी की स्थापना 1980 में हुई थी जिसे 2005 में सेंट्रल यूनिवर्सिटी का दर्जा मिला था।
सिर्फ यूनिवर्सिटी के छात्र ही नहीं बल्कि विस्थापित हुए स्कूल जाने वाले छात्रों को भी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। इंटरनेट बंद होने की वजह ने छात्रों की परेशानी और बढ़ गई है। ऐसे में बहुत से ऐसे परिवार हैं जिन्होंने अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए दिल्ली का भी रुख किया है।
इंडियन एक्सप्रेस में छपी ख़बर के मुताबिक दिल्ली शिक्षा विभाग के मुताबिक 138 मणिपुरी बच्चों ने दिल्ली के स्कूलों में दाखिला लिया है। जबकि 290 एप्लीकेशन अभी प्रक्रिया में हैं।
जान बचाकर निकले ये परिवार फिलहाल दिल्ली में अपने रिश्तेदारों के पास रह रहे हैं। हमने छात्रों की शिक्षा के लिए दिल्ली में हो रही कोशिश के बारे में जानने के लिए कुकी-ज़ो वीमेंस फोरम से जुड़ी Nu Jacinta Simte से बातचीत की हमने उनसे पूछा कि हिंसा, विस्थापन का बच्चों की शिक्षा पर क्या असर पड़ रहा है? उन्होंने कहा कि '' जो हमारे साथ हो रहा है उसके लिए असर शब्द बहुत छोटा है, हम उसे शब्दों में बयां नहीं कर पाएंगे'' वे आगे बताती हैं कि '' कुकी-ज़ो लोग वैली में नहीं जा पा रहे हैं, और सभी तरह से संस्थान वैली में ही हैं, फिर चाहे वे मणिपुर यूनिवर्सिटी हो या फिर कोई और शिक्षा का संस्थान। रही बात हालात की तो वे ठीक नहीं हैं।''
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हमने दिल्ली आए उन छात्रों के बारे में जानना चाहा जो दिल्ली में आकर अपनी पढ़ाई एक बार फिर से शुरू करने की कोशिश कर रहे हैं । दिल्ली के स्कूलों में दाखिला ले रहे हैं। जिसके बारे में उन्होंने बताया कि '' हमारे कम्युनिटी ग्रुप हैं, जो आज से नहीं बल्कि हमेशा से ही हर सुख-दुख में साथ खड़े होते थे, हमारे बॉन्ड बहुत मज़बूत हैं। तो हमने अपने संगठनों को विस्थापितों की मदद के लिए लगाया, कुछ को बच्चों को फिर से स्कूल में दाखिले के लिए कोशिश करने की जिम्मेदारी दी, तो ग्रुप बनाकर बच्चों के एडमिशन का काम किया जा रहा है, और दिल्ली सरकार ने भी हमारा खुली बाहों से स्वागत किया, ऐसे ही प्राइवेट संस्थान भी हमारी मदद कर रहे हैं।''
लेकिन दिल्ली में एक बार फिर से शुरुआत कर रहे इन बच्चों के सामने भाषा एक बड़ी परेशानी बन रही है। लेकिन बताया जा रहा है कि स्कूलों की तरफ से इन बच्चों के लिए ख़ास प्रयास किए जा रहे हैं, जब इससे जुड़ा सवाल हमने Jacinta से पूछा तो उनका कहना था '' बेशक बच्चों को मुश्किल आ रही है लेकिन उससे बड़ी मुश्किल ये बच्चे देखकर आए हैं, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इन छोटे बच्चों को परेशानी झेलनी पड़ रही है लेकिन वक़्त के साथ ये सीख लेंगे, मुश्किल होगी लेकिन हमारे ये यंग लड़के-लड़कियां सीख जाएंगे।''
Jacinta ने सही कहा वक़्त के साथ ये बच्चे भी हिंदी सीख लेंगे, लेकिन क्या ये छात्र अपना घर, अपने दोस्त, और अपना स्कूल भूल कर आगे बढ़ पाएंगे?
हमने दिल्ली में रह रही एक कुकी समुदाय की लड़की Bliss से छात्रों की शिक्षा पर बात की तो उन्होंने कहा कि ''शिक्षा पर बहुत असर पड़ रहा है, वैसे तो सरकार शिक्षा को बहुत ही गंभीर मुद्दा मानती है, लेकिन अभी मणिपुर हिंसा की वजह से इतने सारे छात्रों की शिक्षा पर असर पड़ रहा है फिर वे स्कूल जाने वाले हों या कॉलेज लेकिन उनके बारे में कुछ नहीं किया जा रहा, इंफाल में तो फिर भी हालात कुछ सामान्य हो रहे हैं छात्र स्कूल जाने लगे लेकिन जो हिल डिस्टिक हैं जहां आदिवासी रहते हैं वहां बच्चे रिफ्यूजी कैंप में हैं उनके भविष्य का क्या होगा?''
Bliss का सवाल बड़ा था कि रिलीफ कैंप में रह रहे बच्चों के भविष्य का क्या होगा? शायद ऐसे ही सवालों को संसद में उठाया जाना चाहिए पर अब देखना होगा कि कब मदर ऑफ डेमोक्रेसी के मंदिर में ये सवाल गूंजता है?
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