मिर्ज़ापुर: लहुरियादह में पीने का पानी जैसी बुनियादी ज़रूरत बनी चुनौती!
मिर्ज़ापुर जिला मुख्यालय से करीब 49 किमी दूर आदिवासी बहुल लहुरियादह गांव में प्यास की गवाही देते करीब 1200 चेहरों पर चिंता की गहरी लकीरें हैं तो वहीं सत्तापक्ष के नेताओं के प्रति गुस्सा भी। यूपी का यह ऐसा गांव है, जहां टैंकर से पानी आता है और कार्ड के ज़रिए बांटा जाता है। मिर्ज़ापुर की कलेक्टर दिव्या मित्तल ने लहुरियादह में पानी पहुंचाने के लिए ज़रूर प्रयास किया। हालांकि कुछ दिन बाद ही उनका तबादला हो गया।
मौजूदा हालात की बात करें तो लहुरियादह दोबारा मुसीबत के जंजाल में फंस गया है। आरोप है कि जिस पाइप से इस गांव में पानी की सप्लाई की जा रही थी, अराजकतत्वों ने ड्रमंडगंज घाटी में उसे आरी से काट दिया। इस खुराफात को लेकर तरह-तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं। लहुरियादह के लोगों ने इसकी लिखित शिकायत नवागत कलेक्टर प्रियंका निरंजन से लेकर ड्रमंडगंज थाना पुलिस से तक से की, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। स्थानीय लोगों का आरोप है कि पुलिस और जल निगम के अफसर हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे।
लहुरियादह के प्रधान कौशलेंद्र कुमार गुप्ता कहते हैं, "हमारी कई पीढ़ियां यहीं खप गईं, पर लहुरियादह में पानी किल्लत जस की तस बनी रही। गुलामी के दौर में भी और आज़ादी के बाद भी। हम अफसरों की देहरी पर मत्था टेकते रहे, पर आश्वासन के सिवा कुछ भी नहीं मिला। पिछले साल हम कलेक्टर दिव्या मित्तल से मिले। पैर में चोट के बावजूद वह हमारे गांव आईं। उनकी कोशिशों से लहुरियादह में पानी पहुंचा, लेकिन हमारी खुशी ज़्यादा दिनों तक नहीं टिक सकी। तोड़ी गई पाइप लाइन दुरुस्त कराने के लिए हम प्रशासन और जल निगम के अफसरों के यहां मत्था टेक रहे हैं। कार्यदायी संस्था एनसीसी के लोग चुप्पी साधे हुए हैं। लहुरियादह अब फिर टैंकर के पानी के सहारे ज़िंदा है। इस गांव के लोगों की गुहार रोज़ अखबारों में छप रही है लेकिन आदिवासियों की फरियाद सुनने के लिए कोई तैयार नहीं हैं।"
कौशलेंद्र यह भी कहते हैं, "लहुरियादह में पानी की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए सात टैंकरों की व्यवस्था की गई है। पानी के एक टैंकर की कीमत 800 पड़ती है, जिसका भुगतान ग्राम पंचायत करती है। लहुरियादह में पानी पहुंचाने का सालाना खर्च 20 लाख 16 हज़ार रुपये (बीस लाख सोलह हज़ार रुपये) आ रहा है। पानी का इंतज़ाम करने में ग्राम पंचायत करीब बीस लाख रुपये की कर्जदार हो चुकी है। कुछ बरस पहले यहां पानी पहुंचाने के लिए जो योजना शुरू की गई थी, उस पर 4.87 करोड़ रुपये खर्च करने के बावजूद कोई नतीजा नहीं निकला। तत्कालीन कलेक्टर दिव्या मित्तल की पहल पर दूसरी मर्तबा अप्रैल 2023 में काम शुरू हुआ। करीब दस करोड़ रुपये खर्च करने के बाद लहुरियादह में हर घर तक पानी पहुंचने लगा था।"
मजबूरी, उम्मीद और मायूसी
मिर्ज़ापुर से रीवा जाने वाले फोरलेन मार्ग पर हनुमना घाटी के ऊपर बसा है लहुरियादह गांव। यह गांव हलिया प्रखंड के देवहट ग्राम पंचायत का हिस्सा है, जो यूपी के आखिरी छोर पर बसा है। यहां कोल, धारकर, यादव, गड़ेरिया और केशरवानी समुदाय के लोग रहते हैं। करीब डेढ़ सौ घरों वाले इस गांव में प्राइमरी स्कूल को छोड़कर कोई पक्का मकान नहीं है। सब कच्चे और मिट्टी के बने हुए हैं। सत्ता के कई रंग लखनऊ की सियासत पर चढ़े। कभी पंजे का जलवा, कभी कमल खिला, कभी हाथी तनकर खड़ा हुआ तो कभी साइकिल सरपट दौड़ी, लेकिन लहुरियादह के आदिवासियों की ज़िंदगी बेरंग ही रही।
लहुरियादह जाने वाली पानी की पाइप ब्रेक होने के बाद यहां फिर टैंकरों से पानी की सप्लाई की जा रही है। हमें बताया गया कि 36 घंटे के लिए हर व्यक्ति को 15 लीटर पानी दिया जा रहा है, यानि 12 घंटे के लिए सिर्फ़ पांच लीटर। बारिश के दिनों में भी लहुरियादह में पानी के लिए मारा-मारी हो रही है। गर्मी आती है तो इस गांव की महिलाएं और बच्चे करीब दो किमी दूर चुआड़ (पहाड़ से निकलने वाला पानी) तक पानी के लिए जाते हैं। पानी के लिए जद्दोजहद इनकी ज़िंदगी का हिस्सा बन गया है।
हीरालाल कहते हैं, "हमने सुना है कि सरकार बुलेट ट्रेन चलाने जा रही है। शहर स्मार्ट हो रहे हैं। मिर्ज़ापुर के हर गांव में हर घर तक पानी पहुंचाया जाना है, लेकिन इन बातों से हमें क्या मतलब। हम तो अपनी सांसद अनुप्रिया पटेल से अपने ज़रूरत भर के लिए पानी मांग रहे हैं। हमारी परेशानियां दशकों पुरानी हैं। हमें इंतज़ार है ऐसे नेता की जो आरी से काटी गई पानी की पाइप को जुड़वा दे, ताकि हमें साफ पानी मिल सके।"
मिर्जापुर की सांसद के सचिव का पत्र
50 वर्षीय राम मुरारी कोल के पास रहने के लिए न ठीक घर है, न शौचालय और न पीने का साफ पानी। इनका कुनबा बस किसी तरह गुजर-बसर करने के लिए मजबूर है। महुआ और मज़दूरी के सहारे ज़िंदगी की नैया खेते-खेते हार चुका मुरारी का परिवार आज भी हाशिये पर खड़ा है। वह कहते हैं, "हमने बचपन में सुना था कि जल ही जीवन है। लेकिन ऐसे जीवन का क्या मतलब जब पानी के लिए इंसान को हर रोज़ जंग लड़नी पड़े। शायद लहुरियादह के लोगों का नसीब ही खराब है कि आज़ादी के 76 साल बाद भी हमें पीने का साफ पानी नसीब नहीं हो पा रहा है। फिलहाल करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद अब इस गांव में टैंकर से पानी पहुंचाया जा रहा है। लहुरियादह में जब कभी टैंकर का पानी नहीं पहुंचता तो गांव की महिलाओं और बच्चों को चुआड़ की ओर दौड़ लगानी पड़ती है।"
लहुरियादह गांव में बारिश के चलते के कीचड़ से सने रास्तों पर चलते हुए हमारी मुलाक़ात शीला देवी से हुई। पानी की समस्या के बारे में उनसे पूछा गया तो उनकी आंखें डबडबा गईं। लड़खड़ाती आवाज़ में सिर्फ इतना ही बता सकीं, "सिर्फ एक दिन ही ठीक से नल से पानी आया। पूरा गांव निराश है। क्या पिएं और कैसे नहाएं?"
प्लास्टिक के खाली डिब्बे की ओर इशारा करते हुए शीला कहती हैं, "देख लीजिए, हमारे पास कितना पानी है? यहां तो हम तेल की तरह पानी का इस्तेमाल करते हैं। जैसे सब्ज़ी में आप लोग बचा-बचा कर तेल डालते हो हम पानी बचा-बचाकर पीते हैं। मज़दूरी से जो पैसा मिलता है उससे दो जून की रोटी नहीं, पहले पानी का इंतज़ाम करते हैं। यहां तीन दिन में एक बार ही पानी का टैंकर आता है।"
अभी भी प्यासा है लहुरियादह
लहुरियादह की पगडंडियों पर दिन के किसी भी वक़्त बस दो चीज़ें ही नज़र आती है। एक तो पानी से भरे टैंकर और दूसरा बड़े-बड़े पानी के बर्तन ढोतीं हर उम्र की महिलाएं और बच्चे। पानी के इंतज़ाम में लहुरियादह के बहुत से बच्चे और बच्चियां अपने सपनों का गला ख़ुद घोंट देते हैं। लड़कियों पर पानी की ज़रूरत पूरा करने का बोझ इतना हावी हो गया कि वो आगे नहीं पढ़ पा रही हैं। इस गांव के गिने-चुने बच्चे ही आठवीं कक्षा से ऊपर पढ़ पाएं हैं। हरिश्चंद्र कहते हैं, "हम ग़रीब आदमी हैं। मजूरी करते हैं। काम मिल गया तो ठीक, नहीं तो पानी के इंतज़ाम में जुट जाते हैं। हमें क्या पता, बीजेपी ने कुछ किया या नहीं। हम सिर्फ दिव्या मैडम को जानते हैं। वहीं आईं तो हमारे गांव में पानी पहुंचा। यहां महिलाएं सुबह से शाम तक वो टैंकर की राह देखती हैं और उसके आते ही डिब्बों को लाइन में लगा देती हैं।"
चार साल की एक बच्ची जो ठीक से अपना नाम भी नहीं बता पाती वो भी पानी का डिब्बा लिए टैंकर की लाइन में खड़ी दिखती है। टैंकर से पानी भर रही एक महिला से हमने बात करनी चाही तो उन्होंने घूंघट कर लिया। इशारे से उन्होंने हमसे बात नहीं करने की इच्छा ज़ाहिर की। तब टैंकर के पास खड़े नौवीं क्लास के एक स्टूडेंट ने कहा, "नेता लोग इलेक्शन के समय आते हैं। बोलकर जाते हैं कि पानी ज़रूर आएगा। हमारे वोट से वो चुनाव जीत जाते हैं, फिर लौटकर आते ही नहीं। कोई नेता और अफसर कभी हमारे गांव में आता है तो समूची जनता एक साथ यही मांग करती है कि हमारी पानी की समस्या दूर कर दो। लहुरियादह के लोगों की मजबूरी है, वो वोट भी देते हैं, पर सुनता कोई नहीं है।"
सूरज यादव कहते हैं, "पिछले साल दो नवंबर को कलेक्टर दिव्या मित्तल पहली मर्तबा लहुरियादह आईं। गांव वालों ने उनके सामने सिर्फ दो मांगें रखीं। पहला पानी की और दूसरा मिडिल स्कूल खोलने की। उन्होंने हमारे दरवाज़े तक पानी पहुंचाने का वचन दिया। कुछ महीने के अंदर पानी का लाइन खिंच गई। हर किसी के घर पर नल लग गया। 20 अगस्त 2023 को कलेक्टर दिव्या मित्तल आईं और नल को चालू किया। पानी निकला तो हमारी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा। हमें लगा कि जीवन मिल गया। समूचे गांव ने उनकी जय-जयकार की। अगले दिन खबर आई कि उनका ट्रांसफर हो गया। पूरा गांव भावुक हो गया। हमारे गांव तक आने वाली पानी की पाइप लाइन जानबूझकर काटी गई है और अब उसे ठीक नहीं कराया जा रहा है।"
पीढ़ियों से चली आ रही किल्लत
लहुरियादह में पानी की किल्लत मुसीबत का सबब बनकर रह गई है। पानी की परेशानी के चलते लोग अपनी यहां बेटियों की शादी नहीं करना चाहते। लहुरियादह की औरतें अपना पूरा समय चूल्हा-चौका के बाद पानी ढोने में ही लगा देती हैं। चमेलिया और पार्वती कहती हैं, "टैंकर से सप्लाई तो हो रही है, लेकिन इतना कम पानी मिलता है कि मजबूरन हमें दो किमी दूर चुआड़ (झरना) पर जाना पड़ता है। गांव की सारी औरतें सुबह, शाम और दोपहर सिर्फ पानी ढोने में ही लगा देती हैं।"
दरअसल, लहुरियादह में पीने के पानी की किल्लत पीढ़ियों से चली आ रही है। हर किसी को पानी मिल सके, इसके मद्देनज़र ग्राम प्रधान ने कार्ड बनवा दिया है और उसी के आधार पर लोगों को पानी मिलता है। तीन दिन के लिए हर व्यक्ति को एक साथ 45 लीटर पानी दिया जाता है, यानी रोज़ाना 15 लीटर। लहुरियादह में टैंकर के पहुंचते ही ग्रामीण अपने-अपने डिब्बे और बाल्टी लेकर दौड़ पड़ते हैं और ज़रूरत का पानी इकट्ठा कर घरों में रख लेते हैं।
अर्जुन और झल्लर को शिकायत है, "आज़ादी के बाद से आज तक पानी की समस्या कोई सरकार खत्म नहीं कर पाई। हर चुनाव में यहां नेता पहुंचते हैं, पानी पहुंचाने का वादा करते हैं, लेकिन बाद में वो हमारे गांव में झांकने तक नहीं आते।"
दीनदयाल, शिवरतन, सहोदर, केशव, मोहन कहते हैं, "पुरखों के समय से यहां पीने के पानी की समस्या है। पाइप लाइन कट जाने के बाद भी 06 सितंबर 2023 तक लहुरियादह में पानी पहुंचा, लेकिन बाद में नलों से पानी आना बंद हो गया। हमारी ज़िंदगी अब पुराने ढर्रे पर आ गई है। टैंकर के सामने डब्बों की लाइन लगाने की दुश्वारियां फिलहाल खत्म होती नज़र नहीं आ रही हैं।"
गर्मियों में होती थी दिक्कत
गर्मियों में पीने के पानी की दिक्कतों को दूर करने करने के लिए सरकार ने मिर्ज़ापुर और सोनभद्र के लिए 'जल जीवन मिशन' योजना के तहत 5555.38 करोड़ रुपये की मंज़ूरी दी है। इस योजना के तहत मिर्ज़ापुर के 1606 गांवों में पाइप के ज़रिए पीने के पानी की आपूर्ति की जानी है। सरकार की ओर से दावा किया गया था कि 'जल जीवन मिशन' योजना के मूर्त रूप लेने पर 21 लाख 87 हज़ार 980 लोगों को फायदा होगा। सोनभद्र के 1389 गांवों के 19 लाख 53 हज़ार 458 लोगों की प्यास बुझाने का लक्ष्य है। सोनभद्र में इस योजना की लागत 3212.18 करोड़ और मिर्ज़ापुर में 2343.20 करोड रुपये तय की गई है।
बुजुर्ग हरीलाल और जीवनलाल कहते हैं, "करीब बारह सौ की आबादी वाले लहुरियादह गांव तक पानी की लाइन लाने का काम काफी कठिन था। करीब एक दशक पहले यहां पानी पहुंचाने का काम शुरू किया गया था, जिसे बीच में ही रोक दिया गया था। जल जीवन मिशन योजना शुरू हुई तो इस गांव को उस योजना में शामिल नहीं किया गया। कलेक्टर दिव्या मित्तल की पहल पर काम शुरू हुआ तो लहुरियादह में पानी पहुंच गया। नलों से जब पहली बार पानी गिरा तो समूचा गांव खुशी से झूम उठा। टैंकर से पानी बांटना चुनौतीपूर्ण काम था। पानी के बंटवारे को लेकर आए दिन विवाद होते रहते थे। लहुरियादह के लोगों ने अब ठान लिया है कि उन्हें नलों से पानी नहीं मिला तो आगामी लोकसभा चुनाव का बायकाट कर सकते हैं।"
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, "पूर्व कलेक्टर दिव्या मित्तल के तबादले के बाद मिर्ज़ापुर में सियासी दंगल शुरू हो गया है। सत्तारूढ़ दल के नेताओं को शिकायत है कि पूर्व डीएम सिर्फ अपनी ब्रांडिंग कर रही थीं। प्रोटोकॉल को उन्होंने दरकिनार कर दिया था। जनहित के किसी भी कार्यक्रम में जिले के जनप्रतिनिधियों को न्योता नहीं भेजा जाता था। दिव्या मित्तल की शिकायत लखनऊ से लेकर दिल्ली तक पहुंचाई गई। सीएम योगी को यह तक बताया गया कि तरक्की की उपलब्धियां अगर उनके खाते में नहीं जुड़ीं तो वो कौन सा मुंह लेकर वोट मांगने जाएंगे? "
मिर्ज़ापुर की कलेक्टर दिव्या मित्तल का बस्ती में तबादला किया गया, लेकिन वहां कार्यभार संभालने से पहले उनका नाम प्रतीक्षा सूची में डाल दिया गया। इधर तबादले के अगले दिन नवागत कलेक्टर प्रियंका निरंजन पहुंच गईं और विंध्याचल के एक गेस्टहाउस में बैठकर कार्यभार ग्रहण कर लिया। प्रियंका निरंजन कुछ साल पहले मिर्ज़ापुर में सीडीओ हुआ करती थीं। सिऊर गांव में मिड डे मील योजना के तहत बच्चों को नमक-रोटी परोसे जाने के मामले की जांच में इन्होंने ही पत्रकार पवन जायसवाल को कसूरवार ठहराया था। इनकी जांच रिपोर्ट के बाद पवन के खिलाफ थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई गई थी।
कौन हैं दिव्या मित्तल?
हरियाणा के रेवाणी जिले में जन्मीं दिव्या मित्तल साल 2013 बैच की आईएएस अफसर हैं। आईआईटी दिल्ली से बीटेक करने के बाद उन्होंने आईआईएम बेंगलुरु से प्रबंधन की डिग्री ली। एमबीए की पढ़ाई के बाद उनकी गगनदीप सिंह से शादी हो गई। वह और उनके पति लाखों पैकेज पर नौकरी करने लंदन चले गए। लेकिन उनका दिन इंडिया के लिए धड़कता रहा। कुछ ही महीने बाद दोनों ने लंदन की नौकरी छोड़ी और अपने देश लौट आए।
बाद में पति-पत्नी दोनों ने एक साथ यूपीएससी की तैयारी शुरू की। साल 2012 में वह आईपीएस बन गईं। उन्हें गुजरात कैडर मिला। प्रशिक्षण के बीच उन्होंने आईएएस के लिए तैयारी जारी रखी और अगले साल 2013 में वह सिलेक्ट हो गईं। दिव्या मित्तल के पति गगनदीप सिंह भी आईएएस अफसर हैं और वह इन दिनों कानपुर में तैनात हैं। भ्रष्टाचार विरोधी इमेज के चलते वह हमेशा सुर्खियों में रहीं। नीति आयोग में सहायक सचिव के रूप में काम करते हुए दिव्या मित्तल ने कई मुकाम हासिल किए।
यूपीएससी की तैयारी करने वाले स्टडेंट्स को दिव्या अक्सर टिप्स देती हैं और उन्हें मोटिवेट भी करती है। यही वजह है कि ट्विटर पर उनके करीब 01 लाख 40 हज़ार से ज़्यादा फॉलोवर्स हैं। इंस्ट्राग्राम पर इन्हें 25 हज़ार से अधिक फॉलो करते हैं। दिव्या की लोकप्रियता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि मिर्ज़ापुर से तबादले के बाद उन्हें विदा करने के लिए हज़ारों लोगों का हुजूम उमड़ा।
मिर्ज़ापुर की कलेक्टर दिव्या मित्तल के तबादले के बाद सोशल मीडिया में दो चिट्ठियां वायरल की गईं। पहली चिट्ठी बीजेपी के जिला उपाध्यक्ष विपुल सिंह का और दूसरी अपना दल की मुखिया एवं केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल के अतिरिक्त निजी सचिव अखिलेश कुमार की। दोनों चिट्ठियों में दिव्या मित्तल पर आरोप यह मढ़ा गया कि वो विकास कार्यों के बजाय सिर्फ अपनी पापुलर्टी का ग्राफ बढ़ा रही हैं। उनके तबादले की असल वजह यह रही कि सत्तारूढ़ दल का कोई नेता लहुरियादह में पानी पहुंचाने की कामयाबी का सेहरा अपने माथे पर नहीं बांध पाया। डस्ट पल्युशन की मार झेल रहे अहरौरा इलाके में दिव्या मित्तल ने पहाड़ियों पर अवैध खनन रोकने के अलावा कई अवैध क्रेशरों को बंद करा दिया था। इनमें ज़्यादातर क्रेशर कई मंत्रियों और नेताओं के थे। कमीशनखोरी में लगे लोगों को भी उन्होंने नाथ दिया था।
विश्व हिंदू परिषद के पूर्व प्रांत संगठन मंत्री मनोज श्रीवास्तव ‘न्यूज़क्लिक’ से बात करते हुए गंभीर आरोप लगाते हैं। वह कहते हैं, "डीएम दिव्या मित्तल की लोकप्रियता से मिर्ज़ापुर की सांसद बहुत घबरा गई थीं। योगी सरकार उनसे इसलिए खफा हुई क्योंकि विदाई के समय मौजूद हजारों लोगों के हुजूम ने उन्हें गुलाब के फूलों की पंखुड़ियों से नहला दिया था। मिर्ज़ापुर के पक्का घाट पर यह समारोह आयोजित किया गया था। उनकी विदाई का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद सत्तारूढ़ दल के नेता उनसे खासे नाराज़ हो गए थे। वह वीडियो मुख्यमंत्री तक पहुंचाया गया। इसके बाद उन्हें प्रतीक्षा सूची में डाला गया।"
विहिप नेता रहे मनोज कहते हैं, "पिछले साल 19 सितंबर 2022 दिव्या मित्तल ने यहां कलेक्टर का कार्यभार संभाला और कुछ ही दिनों में वह काफी लोकप्रिय हो गईं। उन्होंने सिर्फ लहुरियादह में पानी ही नहीं पहुंचाया, बल्कि चुनार महोत्सव और मिर्ज़ापुर में कजली महोत्सव का शानदार आयोजन कर नया इतिहास रचा। मिर्ज़ापुर के मंत्री और सत्तारूढ़ दल के नेता जो काम दस साल में नहीं करा सके, उसे उन्होंने चंद महीनों में कर पूरा कर दिया। वह विज़नरी अफसर थीं। मिर्ज़ापुर से कारपेट इंडस्ट्री के मिटते वजूद और पीतल उद्योग को ज़िंदा करने में जुटी थीं। लंबे समय से बंद शास्त्रीपुल को ठीक कराने लिए कोशिश कर रही थीं। इस पुल पर बड़े वाहनों का आवागमन बंद होने से मिर्ज़ापुर का ट्रांसपोर्ट उद्योग चौपट हो गया है, जिसे वह पटरी पर लाने के लिए कोशिश कर रही थीं। अमृत पेयजल योजना के नाम पर खोदी गई सड़कों की बदहाली से नाराज़ डीएम ने ठेकेदारों के भी पेंच कसने शुरू कर दिए थे। कमीशनखोरी बंद होने से नेता परेशान थे।"
समाजवादी जन-परिषद से जुड़ी एक्टिविस्ट प्रज्ञा सिंह मिर्ज़ापुर की रहने वाली हैं। वह कहती हैं, "पूर्व कलेक्टर दिव्या मित्तल जनता के साथ घुल-मिलकर बिना भेदभाव के काम करती थीं। चंद महीनों के अपने कार्यकाल में उन्होंने कई बड़े परिवर्तनकारी फैसले लिए। फरियादियों के लिए अलग से डेस्क बनाया। गांव-गांव में जन-चौपाल लगाकर लोगों की समस्याएं मौके पर ही हल कर देती थीं। वह नेताओं के दबाव में काम नहीं करती थीं। उनके तबादले से जनता के बीच एक बड़ा संदेश यह गया है कि निष्पक्ष और ईमानदार अफसरों के लिए मिर्ज़ापुर फिलहाल नौकरी करने लायक नहीं है। यहां सिर्फ वही अफसर टिक पाएंगे जो नेताओं के हाथ की कटपुतली बनकर काम करेंगे।"
(लेखक बनारस स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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