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बात बोलेगी: I.N.D.I.A की मज़बूत पकड़ से टकराता मोदी का वन नेशन-वन इलेक्शन का दांव

विपक्षी एकता, अडानी के भ्रष्टाचार खुलासे को मोदी के स्पेशल सत्र व one nation one election का दांव क्या ढक पाएगा ?
INDIA
फ़ोटो : PTI

राजनीतिक घटनाक्रम की धुरी बहुत तेजी से घूम रही है। इसे देखते हुए कुछ भी अंदाजा लगा पाना बहुत मुश्किल होता जा रहा है। बस एक बात साफ हो चली है कि वर्ष 2024 के आम चुनावों से पहले बहुत बड़े-बड़े घटनाक्रम का गवाह बनेंगे भारतीय मतदाता-भारतीय नागरिक। सरकार कुछ बड़ा, कुछ अप्रत्याशित करने की तैयारी में दिख रही है। ये कोई साधारण आम चुनाव नहीं होने जा रहे और इसके बारे में आम भारतीय मतदाताओं के बीच भी सुगबुगाहट हो रही है। सरकारी अधिकारियों से लेकर ऑटो रिक्शा चलाने वाले, रेहड़ी लगाने वाले अलग-अलग अंदाज में कहते हैं कि ये सेंगोल युग है, मोदी जी ऐसे नहीं जाएंगे!  इन सुगबुगाहटों-आशंकाओं-कयासों पर ठप्पा लगाती हैं, 30 अगस्त से लेकर 1 सितंबर, 2023 के बीच हुई अहम राजनीतिक घटनाएं या विकासक्रम।

एक तरफ जहां मुंबई में विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A (इंडिया) ने शुक्रवार, 1 सितंबर को ऐलान किया कि वे सब एक साथ मिलकर अगला लोकसभा चुनाव लड़ेंगे और भारतीय जनता पार्टी को हराएंगे। वे इसे देश बचाने की लड़ाई बताते हैं और कहते हैं कि जिस संकट का हम सामना कर रहे हैं, वह अभूतपूर्व है, आजादी के बाद ऐसा संकट हिंदुस्तान से झेला नहीं है। लिहाजा, इससे देश को उबारने के लिए संकल्प भी बड़ा चाहिए।

वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की केंद्र सरकार ने ऐलान किया कि वह 18 सितंबर से पांच दिन का स्पेशल संसद सत्र बुलाने जा रही है। लोकसभा चुनावों को जल्द कराने के कयासों को हवा देते हुए ‘एक राष्ट्र—एक चुनाव’ का मुद्दा फिर उछाला और पूर्व राष्ट्रपति के नेतृत्व में आनन-फानन में एक कमेटी का भी गठन कर दिया गया। ये तीन ही अहम घटनाक्रम हैं—जो संकेत दे रहे हैं कि मोदी सरकार विपक्ष के पक्ष में बन रहे माहौल को नेस्तनाबूद करने पर उतारू है। इसी बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी माने जाने वाले उद्योगपति गौतम अडानी के भ्रष्टाचार के खुलासे से भी राजनीतिक हडकंप मचा हुआ है।

सबसे पहले चर्चा इंडिया गठबंधन की। मुंबई में हुई दो दिन की बैठक (31 अगस्त-1 सितंबर 2023) से यह साफ हो गया कि तमाम जांच एजेंसियों (CBI, ED आदि) की दबिश और छापों के बावजूद I.N.D.I.A और अधिक मजबूत हो गया है। एक तरह से आर-पार की लड़ाई की बिसात बिछ गई है। हालांकि, इसमें दक्षिण भारत के दो राज्य—आंध्र प्रदेश व तेलंगाना गायब है, लेकिन बाकी जगहों से पर्याप्त प्रतिनिधित्व की गूंज पुख्ता रही। राजनीतिक धार व नेतृत्व को लेकर कांग्रेस ने परिपक्वता का परिचय दिया और राहुल गांधी के नेतृत्व को लेकर भी अंदरूनी सहमति दिखाई पड़ी। अभी I.N.D.I.A के न्यूक्लियस (Nucleus) के तौर पर राहुल गांधी स्थापित हो गये हैं। मुंबई की I.N.D.I.A की बैठक के बाद अब लोकसभा चुनावों के लिए सीटों की साझेदारी-बंटवारा जैसे बेहद जटिल काम बाकी हैं, लेकिन अपने आप में यह सहमति बनना कि सब इकट्ठे ही लड़ेंगे—भारतीय जनता पार्टी को परेशान करने के लिए पर्याप्त है।

वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा गठबंधन 42 फीसदी वोट शेयर ही हासिल कर पाया था। तब से लेकर 2023 तक में भाजपा गठबंधन के कई दल उससे किनारा कर चुके हैं। ऐसे में I.N.D.I.A की बैठक से मोदी सरकार में बौखलाहट होना स्वाभाविक ही है और उसने जो दो अहम घोषणाएं की हैं—उन्हें उसकी बढ़ती बेचैनी से जोड़ कर देखा जा सकता है।

I.N.D.I.A की बैठक के दौरान ही जिस तरह से मोदी सरकार ने संसद के स्पेशल सत्र को बुलाने की घोषणा की और वह भी बिना इसे बुलाने के एजेंडे को पब्लिक या सार्वजनिक किये बिना, उसने बड़े पैमाने पर कयासों व अटकलों के दौर को शुरू कर दिया। इससे पहला काम यह हुआ कि हैडलाइंस शिफ्ट हो गईं I.N.D.I.A से स्पेशल सत्र की तरफ। दूसरा खबरें चलने लगीं कि क्या दिसंबर में ही आम चुनावों को कराने के लिए इस सत्र को बुलाया जा रहा है। अब ध्यान से विश्लेषण किया जाए, तो ये दोनों की कयास सारा फोकस विपक्षी गठबंधन की एकता, उसकी तैयारी, उसकी रणनीति से हटाने वाले साबित हुए। मुख्यधारा या कॉरपोरेट मीडिया जो I.N.D.I.A की बैठक को कवर करने मुंबई पहुंचा था, वह भी अपने मुख्य या प्राइम टाइम शो मोदी सरकार की इस घोषणा पर करने लगा।

इसी दौरान मोदी जी के मित्र कहे जाने वाले उद्योगपति गौतम अडानी को लेकर जो दूसरा बड़ा खुलासा हुआ, उसे भी दबाने में सफलता मिल गई। गौतम अडानी के कथित भष्ट्र आचरण, निवेशकों, शेयरों में हेराफेरी का जो पर्दाफाश इस बार हुआ, वह एक तरह से इसी साल आई हिडनबर्ग की रिपोर्ट का ही अगला चरण है। इसमें विस्तार से नाम लेकर निवेशकों, गौतम अडानी के भाई के रूट से शेल कंपनियों का पूरा ब्यौरा सामने रखने की कोशिश की गई है। चूंकि यह खुलासा भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हुआ, लिहाजा इसका डैमेज कंट्रोल करना मोदी सरकार के लिए उतना आसान नहीं हुआ। फिर I.N.D.I.A की बैठक में शामिल हुए राहुल गांधी ने मुंबई में ही 31 अगस्त को इस खुलासे पर संवाददाता सम्मेलन भी कर दिया औऱ वह खबर तमाम जगह आई। वैसे भी अडानी का जिन्न लगातार मोदी सरकार को परेशान कर रहा है और आने वाले दिनों में और भी करता रहेगा। ऐसा पहली बार है कि देश के प्रधानमंत्री का नाम किसी एक उद्योगपति के साथ इस कदर जुड़ गया है।

आलम यह है कि गौतम अडानी की कंपनी ने इस पर्दाफाश-न्यूज़ रिपोर्ट का जो जवाब दिया, उसमें एक तरह से अडानी कंपनी पर सवाल उठाने को देश के खिलाफ अभियान चलाने से जोड़ दिया गया। बिल्कुल वैसे ही जैसे मोदी की आलोचना करने को देश की आलोचना से भक्त गण या कैबिनेट मंत्री तक जोड़ देते हैं। इस बार तो सोशल मीडिया-ट्वीटर पर जो इंफ्लूएंसर्स (influencers)  जाति आदि पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लिए परोक्ष रूप से बैटिंग करते थे, वे अडानी के पक्ष में खुलकर बैटिंग करते हुए बाकी लोगों को ललकारते हुए नजर आए। कभी वे प्रशांत भूषण को कठघरे में डाल रहे थे, तो कभी ऑल्ट न्यूज के मोहम्मद जुबैर को।

इस बवाल को ढकेलते हुए मोदी सरकार ने आनन-फानन में एक राष्ट्र-एक चुनाव के मुद्दे पर राजनीतिक बहस गर्म कर दी। इस पर कमेटी बनाई गई और पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को इसका अध्यक्ष बनाया गया। अभी तक पूर्व राष्ट्रपति को इस तरह की कमेटियों का हिस्सा नहीं बनाया जाता रहा है। I.N.D.I.A की बैठक के दौरान ही इसकी घोषणा अपने आप में बहुत कुछ कह रही है। इस साल के अंत तक पांच विधानसभाओं के चुनावों होने हैं, जिनमें से राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, तेलंगाना व मिजोरम में से किसी भी राज्य में भाजपा की स्थिति मजबूत नहीं बताई जा रही। ऐसे में जब विपक्षी गठबंधन लोकसभा चुनाव संग लड़ने के लिए कमर कस कर मैदान में उतर गया है, तब चुनावों को लेकर एक नया भ्रम पैदा किया गया। मोदी सरकार की कोशिश है कि विपक्ष जमीन पर अपनी पकड़ पूरी तरह से मजबूत न कर पाए औऱ उसमें इस तरह के राजनीतिक दांव कारगर साबित हो सकते हैं। इसी के साथ-साथ यह भी ध्यान में रखना जरूरी है कि वन नेशन-वन इलेक्शन यानी एक राष्ट्र-एक चुनाव भारतीय जनता पार्टी का और खास तौर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का प्रिय मुद्दा है। भारतीय जनता पार्टी ने वर्ष 2014 के चुनावी घोषणापत्र में भी इसे जगह दी थी और तब से लेकर अब तक प्रधानमंत्री इसके पक्ष में अनगिनत बार दलीलें दे चुके हैं। भारत के संघीय ढांचे को खत्म करने की दिशा में भाजपा का यह अहम कदम साबित हो सकता है, क्योंकि तब भारत को अमेरिकी लोकतंत्र की तर्ज पर प्रेसिडेंशियल फॉर्म में ले जाने की शुरुआत हो जाएगी। लिहाजा बहुत सोच-समझ कर भाजपा ने इस कमेटी का अध्यक्ष रामनाथ कोविंद को बनाया है, क्योंकि यह मुद्दा संविधान व संघीय ढांचे से जुड़ा हुआ है।

आने वाले दिन और अधिक सरगर्मी वाले होंगे। जी-20 से लेकर संसद के स्पेशल सत्र के असली मकसद के बाहर आने तक और इस दौरान कॉरपोरेट लूट के खुलासों के दरम्यान लोकतंत्र को बचाने का जो दावा I.N.D.I.A की बैठक में लिया गया है, वह ही दरअसल लोकतंत्र के भविष्य की राह तो तय करेगा। 

(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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