मोदी-शाह के दबदबे को शिवराज से मिल रही सीधी चुनौती!
भारतीय जनता पार्टी में मोदी-शाह का युग शुरू होने के बाद पिछले दस साल में वाजपेयी-आडवाणी युग के ज़्यादातर सूबेदारों यानी प्रादेशिक क्षत्रपों को किनारे कर दिया गया है, लेकिन मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपवाद हैं। वे मोदी और शाह की पसंद न होते हुए भी पार्टी के लिए अपनी प्रासंगिकता और ज़रूरत बनाए हुए हैं। इस समय विधानसभा चुनाव के चलते भी उन्हें हाशिए डालने पर की कोशिशें आलाकमान की ओर से की गईं लेकिन शिवराज ने बेहद चतुराई से ऐसे चुनौती भरे तेवर दिखाए कि आलाकमान को मजबूर होकर अपनी तलवार वापस म्यान में डालनी पड़ी। दस साल में यह पहला मौका है जब किसी क्षत्रप के आगे मोदी-शाह को इस तरह झुकना पड़ रहा है।
दो महीने पहले 21 अगस्त को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल गए थे। इस यात्रा के दौरान उन्होंने मीडिया के समक्ष शिवराज सिंह सरकार के पांच साल का रिपोर्ट कार्ड जारी किया था। इसी कार्यक्रम के दौरान जब उनसे पूछा गया था कि आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा की ओर मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार कौन होगा, तो उन्होंने जवाब में जो कहा था उसके बाद से ही अटकलें लगाई जाने लगी थीं कि शिवराज सिंह चौहान का राजयोग अब समाप्ति की ओर है। अमित शाह ने कहा था, "अभी तो शिवराज जी मुख्यमंत्री हैं ही, चुनाव के बाद मुख्यमंत्री कौन होगा, यह तय करना पार्टी का काम है और पार्टी तय करेगी।"
अमित शाह का यह कथन इस बात का स्पष्ट संकेत था कि भाजपा अपने अब तक के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने वाले शिवराज सिंह चौहान का विकल्प ढूंढ रही है। अमित शाह के इस बयान के बाद भी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की ओर से लगातार संकेत दिए जाते रहे कि अब उनके दिन पूरे हो गए हैं, लेकिन शिवराज सिंह ने हथियार नहीं डाले। चुनाव नज़दीक आते ही उन्होंने गजब की हिम्मत दिखाई और अपने चुनौती भरे तेवरों से आलाकमान को झुकने के लिए मजबूर कर दिया।
पहले तो पार्टी आलाकमान ने कहा कि विधानसभा चुनाव में पार्टी किसी को भी मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित नहीं करेगी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ेगी। इसके बाद पार्टी की ओर से विधानसभा चुनाव के लिए तीन किश्तों में जिन 79 उम्मीदवारों के नामों का ऐलान किया गया, उनमें तीन केंद्रीय मंत्री सहित सात सांसदों और एक पार्टी महासचिव का नाम तो था लेकिन उनमें शिवराज सिंह का नाम नहीं था। इससे यह माना गया कि पार्टी उन्हें चुनाव नहीं लड़ाएगी। इतना ही नहीं, इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी तीन बार मध्य प्रदेश के दौरे पर आए और उन्होंने रैलियां की लेकिन उन्होंने अपने भाषण में शिवराज सिंह का नाम लेना दूर, उनकी ओर देखा तक नहीं। इतना ही नहीं, उन्होंने अपने भाषणों में मध्य प्रदेश सरकार की किसी योजना या उपलब्धि का ज़िक्र भी नहीं किया और केंद्र सरकार की योजनाओं के नाम पर ही लोगों से भाजपा के लिए वोट मांगे। इन सारी बातों को मीडिया में भी प्रमुखता से जगह मिली।
इतना सब होने के बावजूद शिवराज सिंह चौहान ने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने प्रदेश में अपने दौरे जारी रखे और अपनी आम सभाओं में खुद को मुख्यमंत्री पद के दावेदार के तौर पर पेश करना शुरू कर दिया। उन्होंने अपनी सभाओं के ज़रिए बड़ी चतुराई से यह माहौल बनाना शुरू कर दिया कि 2024 में नरेंद्र मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बनेंगे और उससे पहले मध्य प्रदेश में एक बार फिर शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बनेंगे। उन्होंने अपनी सभाओं में लोगों से नाटकीय अंदाज़ में सवाल किया कि शिवराज को फिर मुख्यमंत्री बनना चाहिए या नहीं? लोगों की ओर से जवाब आया कि बनना चाहिए। इस तरह शिवराज सिंह ने बड़ी हिम्मत और चतुराई के साथ शीर्ष नेतृत्व को संदेश दिया कि अगर नरेंद्र मोदी को फिर से प्रधानमंत्री बनना है तो शिवराज सिंह चौहान को मध्य प्रदेश में चुनाव बाद फिर मुख्यमंत्री बनाना होगा।
उन्होंने एक जुमला उछाला है 'मैं शिवराज हूं, शिवराज हूं मैं।’ इसे वे हर जगह दोहरा रहे हैं। उन्होंने शहडोल की एक सभा में कहा, "शहडोल के विकास की आवाज़ हूं मैं, शिवराज हूं मैं।" इसके बाद उन्होंने एक दूसरी सभा में कहा, 'महिला सशक्तिकरण की आवाज़ हूं मैं, शिवराज हूं मैं’। फिर एक अन्य कार्यक्रम में उन्होंने कहा, "मैं दिखने में भले ही दुबला-पतला हूं लेकिन लड़ने में बहुत तेज़ हूं।" भोपाल की एक सभा में उन्होंने कहा, "मैं जनता का सेवक हूं। यदि मर भी जाऊंगा तो फीनिक्स पक्षी की तरह राख के ढेर में से फिर पैदा हो जाऊंगा।"
मध्य प्रदेश में भाजपा घोषित तौर मोदी के नाम पर चुनाव लड़ रही है और ऐसे में शिवराज सिंह का चुनौती भरे अंदाज़ में खुद का नाम जपना किस बात का संकेत हैं, यह समझा जा सकता है। ज़ाहिर है कि अपनी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को लेकर शिवराज सिंह का नज़रिया बदल गया है। कुछ दिनों पहले तक उन्हें लग रहा था कि आलाकमान की जय-जयकार करने और उसके हिसाब से काम करने से कुर्सी पक्की होगी। लेकिन जब ऐसा होता नहीं दिखा और उल्टे सार्वजनिक तौर पर अपमानजनक व्यवहार हुआ तो उन्होंने दूसरा रास्ता अपनाया। उन्होंने घी निकालने के लिए सीधी उंगली की बजाय टेड़ी उंगली का इस्तेमाल शुरू किया।
इस बीच विपक्षी पार्टियों ने जातिगत जनगणना और आरक्षण के मुद्दे को लेकर ओबीसी का जो नैरेटिव बनाया उससे भी शिवराज सिंह को बड़ी राहत मिली है, क्योंकि वे ओबीसी नेता हैं, जबकि कांग्रेस ने कमलनाथ को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया है, जो कि पंजाबी खत्री हैं। भाजपा में मुख्यमंत्री पद के जो अन्य दावेदार हैं उनमें भी ज़्यादातर अगड़ी जातियों के ही हैं।
बहरहाल शिवराज सिंह ने जिस तरह के तेवर दिखाए और खुद को मुख्यमंत्री के उम्मीदवार के रूप में पेश करना शुरू किया, उसे शीर्ष नेतृत्व ने गंभीरता से लिया। इसके अलावा विधानसभा चुनाव के लिए पहली तीन सूचियों में घोषित किए गए 79 उम्मीदवारों के नामों से भी पार्टी में कई जगह से आई असंतोष और बगावत की खबरों से भी शीर्ष नेतृत्व पर दबाव बना और उसे मजबूर होकर उम्मीदवारों की चौथी सूची में शिवराज सिंह का नाम भी शामिल करना पड़ा। इतना ही नहीं, उसने गुजरात की तर्ज पर बड़े पैमाने पर मौजूदा विधायकों के टिकट काट कर नए उम्मीदवार उतारने का जो इरादा बनाया था, वह भी छोड़ना पड़ा। उसने 57 उम्मीदवारों की जो चौथी सूची जारी की उसमें अधिकांश मंत्रियों और विधायकों को मौका दिया है। जिन विधायकों को दोबारा मौका दिया गया उनमें से ज़्यादातर की पैरवी शिवराज सिंह ने की थी।
फिलहाल शिवराज सिंह अपने चुनौतीपूर्ण तेवरों के साथ यह मैसेज भी बनवा रहे हैं कि अगर मध्य प्रदेश में भाजपा जीतती है तो वह शिवराज के चेहरे पर जनादेश होगा, जिसे चुनाव के बाद बदला नहीं जा सकेगा। विधानसभा चुनाव के लिए अपनी और अपने समर्थक विधायकों की उम्मीदवारी घोषित होने के बाद वे ज़मीन पर भी लड़ने के तेवर दिखा रहे है और ऐसा लग रहा है कि पार्टी के अंदर भी लड़ाई की तैयारी कर रहे हैं। वे लगातार यह मैसेज दे रहे हैं कि वे कहीं जाने वाले नहीं है। भले ही पार्टी ने उन्हें मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं किया है लेकिन वे अपने को मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर ही पेश करते हुए चुनाव प्रचार कर रहे हैं। दरअसल वे ऐसी स्थिति बना देना चाहते हैं कि पार्टी आलाकमान को मजबूर होकर मध्य प्रदेश में उनका नेतृत्व स्वीकार करना पड़े।
जैसी हिम्मत और जैसे तेवर शिवराज सिंह चौहान ने दिखाए हैं, वैसा भाजपा का कोई क्षत्रप नहीं कर सका है। राजस्थान में लग रहा था कि वसुंधरा राजे आसानी से हथियार नहीं डालेंगी लेकिन थोड़े-बहुत तेवर दिखाने के बाद फिलहाल वे एक तरह से समर्पण की मुद्रा में हैं। पार्टी ने उन्हें मुख्यमंत्री का उम्मीदवार बनाने से इनकार कर दिया है लेकिन उन्होंने अभी तक आला नेताओं को नाराज़ करने जैसा कोई बयान नहीं दिया है। राजस्थान के लिए घोषित 41 उम्मीदवारों की पहली सूची में उनके कुछ बेहद करीबी नेताओं के टिकट कट गए हैं, लेकिन वे खामोश हैं। छत्तीसगढ़ में 15 साल तक मुख्यमंत्री रहे रमन सिंह पिछले पांच साल से हाशिए पर हैं। हालांकि पार्टी ने चुनाव के मद्देनज़र उन्हें कुछ तरजीह दी है और उन्हें विधानसभा के लिए उम्मीदवार भी बनाया है लेकिन वे शायद ही इतनी हिम्मत जुटा सकें कि शिवराज सिंह की तरह चुनाव प्रचार के दौरान खुल कर कह सके कि वे मुख्यमंत्री बनने के लिए चुनाव लड़ रहे हैं। वसुंधरा राजे और रमन सिंह भी शिवराज की तरह वाजपेयी-आडवाणी दौर के ही क्षत्रप हैं लेकिन उन पर काबू पाने में मोदी-शाह कामयाब रहे हैं। इससे पहले कर्नाटक में बीएस येदियुरप्पा को भी किनारे किया जा चुका है। हालांकि इसके लिए आलाकमान को खूब पसीना बहाना पड़ा था और येदियुरप्पा की कई शर्तें माननी पड़ी थीं।
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