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तिरछी नज़र: घर घर डंडा, हर घर डंडा

एक रात सरकार जी ने अपने सबसे बड़े रत्न, जिसे सरकार जी प्यार से 'चाणक्य' कहते थे, बुलवा लिया। क्यों और किस काम के लिए बुलाया यह बता रहे हैं डॉ. द्रोण कुमार शर्मा। 
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प्रतीकात्मक तस्वीर। फ़ोटो साभार : IndiaMART

सरकार जी चिंता में थे। वैसे तो चिंता की कोई बात नहीं थी पर जब से सरकार जी को रात को नींद तीन घंटे भी कम आने लगी है तब से सरकार जी चिंता में हैं। रात को नींद नहीं आती है तो सरकार जी का मन नहीं लगता है। ऐसी ही एक रात सरकार जी ने अपने सबसे बड़े रत्न, जिसे सरकार जी प्यार से 'चाणक्य' कहते थे, बुलवा लिया। चाणक्य जी अपनी लम्बी सी सरकारी गाड़ी में सवार हो जल्दी ही 7, लोक कल्याण मार्ग पहुँच गये।

चाणक्य उतना ही चाणक्य था जितना दरियाई घोड़ा, घोड़ा होता है। चाणक्य उतना ही चाणक्य था जितना सी हॉर्स, हॉर्स होता है। मतलब चाणक्य चाणक्य था नहीं, पर उसे चाणक्य बुलाया जाता था। वैसे भी सरकार जी के राज में किसी भी बड़े आदमी का नाम लेने की मनाही थी। उससे बड़े आदमी को मानहानि का और नाम लेने वाले को मानहानि के मुकदमे का डर रहता था। इसलिए लोगबाग सभी बड़े लोगों को, जिनकी मानहानि होने का डर रहता था, निक नेम से ही बुलाते थे। सरकार जी के राज में बड़े लोगों का ही मान होता था अतः उनकी ही मानहानि होती थी। बाकी जनता मान रहित जीवन जी रही थी।

इसी तरह से सरकार जी के दो मित्र हैं, जिनका नाम लेने से लोग डरते हैं कि कहीं मानहानि का मुकदमा न ठुक जाए। इसीलिए लोग उन्हें 'ए वन' और 'ए टू' के नाम से बुलाते हैं। सरकार जी ने देश को पांच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनाने की जिम्मेदारी अपने उन्हीं मित्रों को दी हुई है। एक ट्रिलियन ए वन के, एक ट्रिलियन ए टू के, एक ट्रिलियन में बाकी का कुटुंब और बाकी बचे में शेष जनता। देश के लोगों की पर कैपिटा इनकम, मतलब प्रति व्यक्ति आय बढ़ाने में ए वन और ए टू की इनकम का बहुत बड़ा हाथ है। तो सरकार जी लगातार उनकी इनकम बढ़ाने में ही लगे हैं।

चाणक्य ने आते ही सरकार जी से पूछा, 'इतनी रात को क्यों याद किया सरकार जी'। 

सरकार जी ने कहा, 'चाणक्य, हमारी नींद गायब हो चुकी है। मैं रात भर में मुश्किल से दो तीन घंटे ही सो पाता हूँ। इससे दिन भर सुस्ती छाई रहती है'। 

'तो इसमें मुश्किल क्या है सरकार। हम जनता को बता देंगे कि सरकार जी अब देश की उन्नति के लिए, जनता की भलाई के लिए इक्कीस-बाइस घंटे काम करते हैं। पहले भी तो अठारह घंटे काम करने की अफवाह फैलाई हुई थी। और जनता मान भी रही थी। अब इक्कीस घंटे काम करने की अफवाह फैला देंगें। और सोने की क्या चिंता है। दिन में कभी भी सो लो। पीएमओ में सो लो। संसद में सो लो। और वैसे भी बुढ़ापे में नींद कम ही आती है। अब अगले जन्मदिन तक आप पिचहत्तर के हो ही जाओगे', चाणक्य ने सरकार जी को उनकी उम्र याद दिलानी चाही। चाणक्य के मन में भी उन्नति की इच्छा थी। कब सरकार जी अवकाश ग्रहण करें और चाणक्य सरकार जी बने।

'यह बात नहीं है चाणक्य, अभी तो मैं जवान हूँ। जो बात है वह यह है कि लोगों में अब हमारे प्रति असंतोष होने लगा है। देखा नहीं, इस बार हम मुश्किल से ही सरकार बना पाए। वह भी बैसाखियों के सहारे। मामूली बहुमत से। जनता को हम डरा नहीं पा रहे हैं। हमें तो जनता को डराना ही है। चाणक्य, जनता को डराओ, कैसे भी डराओ'।

'सरकार जी, ऐसा करते हैं, आपके नाम पर एक एक डंडा हर घर में रख देते हैं। डंडा लोगों को आपकी याद भी दिलाएगा और लोगों को डराएगा भी। हम घर घर डंडा, हर घर डंडा अभियान शुरू कर देते हैं। घरों में मौजूद आपके नाम का डंडा सबको डराये रखेगा। और हमने न्याय संहिता भी तो बदल दी है', सरकार जी के चाणक्य ने कहा। 

नहीं, नहीं, हम जनता को तो घर घर झंडा, हर घर झंडा ही कहेंगे। पर जिस गुजराती भाई को झंडा बनाने का ठेका देना है, उसे कहेंगे झंडे का कपड़ा कमजोर लगाये और डंडा मजबूत लगाये। कपड़ा हफ्ते भर में गल जाए और डंडा साल भर चले। जनता के लिए घर घर झंडा, हर घर झंडा होगा और हमारे लिए घर घर डंडा, हर घर डंडा होगा। सरकार जी के यह कहते ही सरकार जी और उनके चाणक्य ठहाके मार कर हंसने लगे।

(लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

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