मोहसिन शेख़ लिंचिंग मामला : पांच साल बाद भी परिवार को न्याय का इंतज़ार
मोहसिन शेख़ लिंचिंग मामला भारत में न्यायिक प्रक्रिया पर सवाल खड़ा करने के प्रमुख उदाहरणों में से एक है। पहली नरेंद्र मोदी सरकार के सत्ता में आने के एक सप्ताह के भीतर ही पुणे में एक हिंदू दक्षिणपंथी भीड़ द्वारा उनकी कथित तौर पर हत्या कर दी गई थी। तब से उनका परिवार अपनी रोज़मर्रा की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहा है। हालांकि, उनके लिए न्याय दूर के सपने जैसा दिखाई देता है। बल्कि एक ऐसा माहौल बनाया जा रहा है जहां नफ़रत फैलाने वाले अपराधों की ऐसी संस्कृति को फैलाया जा रहा है।
मोहसिन पुणे में एक आईटी कंपनी के साथ काम कर रहे थे। उन्होंने विप्रो में नौकरी के लिए अपने दूसरे दौर के इंटरव्यू को पास कर लिया था। 2 जून 2014 को वह नमाज़ अदा करने के बाद लौट रहे थे, तभी हिंदू राष्ट्र सेना के कार्यकर्ताओं की भीड़ ने कथित तौर पर उन्हें पीट पीट कर मौत के घाट उतार दिया। इस घटना से पहले एक अफ़वाह फैली। इसमें कहा गया कि किसी ने शिवाजी और शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे की तस्वीर के साथ शरारत की है।
शेख़ की हत्या की ख़बर सुनने के बाद उनका परिवार सदमे में आ गया। शेख़ मूल रूप से सोलापुर का रहने वाले हैं। मोहसिन के दादा एक डाकिया थे और उन्होंने सोलापुर की डाक कॉलोनी में अपना घर बनाया था जहां 34 घरों में से केवल दो घर मुसलमानों के हैं। मोहसिन के छोटे भाई मुबीन ने कहा, "हमें कभी ऐसा नहीं लगा कि धर्म के आधार पर हमारे साथ भेदभाव किया जाएगा। बचपन से हमारे बहुत सारे हिंदू दोस्त हैं। हम हमेशा उनके घर जाते थे और वे हमसे मिलते थे। धर्म हमारे लिए पूरी तरह से व्यक्तिगत था।"
इस हत्या के बाद महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने शेख़ परिवार को न्याय दिलाने और वित्तीय सहायता देने का आश्वासन दिया। इसके अलावा उन्होंने सोलापुर शहर में मुबीन के लिए एक सरकारी नौकरी का भी आश्वासन दिया। लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ है।
मुबीन ने कहा, "हमें नौकरी की उम्मीद थी, भले ही वह थर्ड ग्रेड की हो। लेकिन लगभग एक साल गुज़रने के बाद महाराष्ट्र सरकार ने हमें लिखा कि ऐसे मामलों में परिवार के सदस्यों को नौकरी का कोई प्रावधान नहीं है।" उसके पिता को सरकार की ओर से 10 लाख रुपये मिले लेकिन यह भी लगभग दो साल और कई बार कहने के बाद मिले।
साल 2014 के अक्टूबर में महाराष्ट्र में सरकार बदल गई। बीजेपी शिवसेना के समर्थन से सत्ता में आई। राज्य के मशहूर सरकारी वकील उज्ज्वल निकम तब इस मामले को देख रहे थे। लेकिन उन्होंने ख़ुद को इस मामले से दूर कर लिया। इनका फ़ैसला शेख़ के परिवार के साथ-साथ उनके समर्थकों और सहानुभूति रखने वालों के लिए एक झटका जैसा था जो न्याय के लिए लड़ रहे थे। तब से, राज्य सरकार ने इस मामले में एक भी सरकारी वकील नहीं दिया है।
इस बीच पुलिस ने इस मामले में हिंदू राष्ट्र सेना के प्रमुख धनंजय देसाई और उसके 22 समर्थकों को गिरफ़्तार किया जो अब ज़मानत पर जेल से बाहर हैं।
शेख़ के परिवार को एक के बाद एक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। मोहसिन के पिता सादिक़ अपने बेटे को न्याय दिलाने के लिए हर संभव कोशिश कर रहे थे। उन्होंने मोहसिन की मौत से दो साल पहले अपनी फ़ोटोकॉपी की दुकान बंद कर दी थी। मोहसिन के साथ मुबीन पुणे में रह रहे थे और मार्केटिंग का काम कर रहे थे। इस घटना के बाद मुबीन को अपने परिवार की देखभाल के लिए सोलापुर लौटना पड़ा। इस मामले को लेकर लड़ाई के तनाव ने उनके पिता को बीमार कर दिया। सादिक़ शेख़ भी ब्लड प्रेशर के मरीज़ बन गए। न्याय पाने के लिए चार साल तक संघर्ष करने के बाद सादिक़ शेख़ की दिसंबर 2018 में दुखद मौत हो गई।
मुबीन ने ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में मार्केटिंग में अपनी पहली नौकरी शुरू की थी। सोलापुर लौटने के बाद उन्हें उसी सेक्टर में नौकरी मिली। लेकिन उद्योग में व्याप्त मौजूदा मंदी ने उनकी नौकरी छीन ली है। अपने परिवार के लिए ख़र्च उठाने वाले मुबीन पिछले चार महीनों से बेरोज़गार हैं।
मुबीन और मोहसिन की मां शमाना परवीन भी स्वस्थ नहीं हैं। उन्हें ब्लड प्रेशर की दिक़्क़त और डायबेटीज़ हो चुका है। मुबीन का कहना है, "हम उनके लिए दवाओं की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए परेशान रह रहे हैं।"
चूंकि ये मामला बेहद संवेदनशील है ऐसे में मुबीन महसूस करते हैं कि लोग इसके बारे में बात करने से बचना चाहते हैं। उनका कहना है, "जब मैं नौकरी के लिए इंटरव्यू के लिए जाता हूं तो लोग मुझसे कहते हैं कि इस मामले के बारे में बिल्कुल भी बात न करें। उनकी परेशानी स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही है।" उन्होंने यह भी कहा कि अब तक किसी ने भी उसे इस आधार पर नौकरी देने से मना नहीं किया था।
जब उनसे पूछा गया कि वह न्याय के बारे में क्या सोचते हैं तो मुबीन ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि एक दिन उनके परिवार को न्याय ज़रूर मिलेगा। उन्होंने कहा, "इसमें देरी हो रही है। अभी कोई सरकारी वकील नहीं है। राज्य सरकार को इस मामले में सरकारी वकील देना चाहिए और देखा जाए कि न्याय होता है।" मुबीन और इस मामले में समर्थक फ़ास्ट ट्रैक सुनवाई की मांग कर रहे हैं ताकि यह मामला लिंचिंग जैसे अपराधों के ख़िलाफ़ एक उदाहरण बन सके।"
न्याय के लिए मोहसिन शेख़ के परिवार की उम्मीदें इस देश के नागरिकों के लिए प्रेरणा का काम करती हैं। हालांकि, धर्म के नाम पर मॉब लिंचिंग की घटनाएं देश भर में लगातार जारी हैं। न्याय में देरी इन अपराधों को अंजाम देने वाले दोषियों की बढ़ावा दे रही है।
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