बढ़ती पुरुष हिंसा के बारे में प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक की माता-पिताओं को चेतावनी
प्रमुख नैदानिक मनोवैज्ञानिक और लेखक डॉ. पुलकित शर्मा ने यौन उत्पीड़न के शिकार, हिंसाजनक संबंधों और व्यक्तित्व संबंधित विकारों से पीड़ित व्यक्तियों के साथ बड़े पैमाने पर काम किया है। स्वतंत्र पत्रकार रश्मि सहगल के साथ इस साक्षात्कार में, उन्होंने संभावित कारणों की व्याख्या की है कि भारत में विशेष रूप से व्यक्तिगत संबंधों में महिलाओं के खिलाफ गंभीर हिंसा की घटनाएं नियमित रूप से सुर्खियों में क्यों आती हैं। उनका कहना है कि एक कारण तो यह है कि परिवार और समाज युवाओं की मदद नहीं कर पाता है, विशेष रूप से पुरुषों की मदद करने में वह असमर्थ रहता है, परंपरा और आधुनिकता के बीच संघर्ष को हल करने में असमर्थ रहता है, जो हमारे जीवन के हर पहलू में व्याप्त है- पेश हैं संपादित अंश।
आज हम भारत में जिस तरह की हिंसा देख रहे हैं, क्यों देख रहे हैं? लिव-इन पार्टनर का बेरहमी से कत्ल कर दिया जाता है, और महिलाओं के खिलाफ यौन हमले बढ़ रहे हैं?
इसके कई कारण हैं। आराम और सुरक्षा प्रदान करने वाली पारंपरिक संस्थाएँ लोगों को उदासी से निपटने में मदद करती थीं, जो उन्हें कम आक्रामक बनाती थीं, और उनकी समस्याओं पर चर्चा करने में मदद करती थीं, वे अब टूट चुकी हैं। दस साल पहले माता-पिता के पास बच्चों के लिए समय होता था। आज इसकी जगह गैजेट्स ने ले ली है। माता-पिता ने पालन-पोषण फोन और टैबलेट को सौंप दिया है। मैंने कक्षा 3 या 4 के बच्चों के केस देखे हैं जो पोर्नोग्राफी देखने में समय बिताते हैं! साथ ही, बच्चों को अच्छे और बुरे की अवधारणाओं के बीच अंतर करने के लिए धार्मिक और नैतिक मूल्यों को आत्मसात करने पर जोर दिया जाता है। हम इसे कोई भी नाम से दें, इसे अब हमारे स्कूलों या यहां तक कि हमारे घरों में भी नहीं पढ़ाया जाता है।
मैं बच्चों को सबसे अधिक क्रूरता के साथ तितलियों को मारते देखता हूं। मेरे [आवासीय] समाज में, एक युवा लड़के ने तीन बिल्ली के बच्चों को मार डाला और जब मैंने पूछा कि उसने मुझे क्यों यह बताया कि 'उन्होंने आत्महत्या की' है? उसके माता-पिता ने भी उसे डांटा नहीं था। तेजी से हो रहे शहरीकरण ने भी हमारी समस्याओं को बढ़ा दिया है। संक्षेप में, इसने एक ऐसी पीढ़ी तैयाए की है जो असहिष्णु है जिसे हम मनोवैज्ञानिक शब्दजाल में एलएफटी कहते हैं, और जो नज़र आ रहा है – इसका एक उदाहरण यह है कि – रोड हिंसा/रेज के मामले बढ़ रहे हैं और लोग छोटी सी बात पर एक-दूसरे को मारने पर उतारू हो जाते हैं।
ये पैटर्न युवा पुरुषों के बीच अधिक दिख रहा है। क्या यह उनके हिंसा के प्रति अधिक जोखिम के कारण है?
इन लड़कों में बहुत सारी अध-पकी/कच्ची भावनाएँ होती हैं जिन्हें उन्होंने संभालना नहीं सीखा है। किशोरों में आक्रामक प्रवृत्तियाँ होती हैं, जो उन्हें ताक़त का झूठा बोध कराती हैं और जिस पर वे झूठा विश्वास करते हैं, उन्हें खुद की भावना को सुदृढ़ करने में मदद करती हैं। उन्हें लगता है कि वे कुछ भी तबाह करके अपने दर्द से छुटकारा पाने के हकदार हैं।
हमारे यहां डेटिंग संस्कृति और उपभोग के पैटर्न में बदलाव आया है, लेकिन क्या बदलाव सतही है, जिसमें लैंगिक समानता में कोई स्पष्ट ठोस या मानक बदलाव नहीं है?
युवा पुरुष आज बहुत अधिक ऑनलाइन मीडिया देखते हैं, जिसमें अक्सर बहुत अधिक यौन और आक्रामक सामग्री होती है। यह उन्हें निराश करती है, और इसलिए वे आक्रामक व्यवहार को अतिवादी नहीं मानते हैं। इसके बजाय, वे इसे कुछ सामान्य मानते हैं। महिला सशक्तिकरण हो रहा है, लेकिन मुद्दा यह है कि पुरुष अपनी आक्रामक प्रवृत्ति को कैसे छोड़ेंगे, जिसे वे मर्दाना व्यवहार समझने की गलती कर बैठते हैं? इसलिए, जब सशक्त महिलाएं [इन] पुरुषों का विरोध करती हैं या उन्हें अस्वीकार करती हैं, तो वे इसे स्वीकार नहीं कर पाते हैं। और कुछ हिंसक मामलों में, यह तेजाब द्वारा हमलों या महिलाओं की क्रूर हत्याओं में प्रकट होता है।
आज, हम देखते हैं कि पुरुषों की एक युवा पीढ़ी की किशोरावस्था विस्तारित होकर उनके तीसवें दशक तक फैली हुई है। उदाहरण के लिए वे जवाबदेह नहीं बनना चाहते हैं खासकर विवाह के प्रति। वे सप्ताहांत में छुट्टियां बिताना चाहते हैं और आम तौर पर विस्तारित मौज-मस्ती का जीवन जीते हैं। पारंपरिक सोच वाले पुरुष उन महिलाओं के साथ मौज-मस्ती करना चाहते हैं जिन्हें वे यौन रूप से वांछनीय पाते हैं, जो खुले विचारों वाली और स्वतंत्र हैं, लेकिन वे अभी भी कई असुरक्षाओं को अपने अंदर समेटे हुए हैं। उनके रिश्ते अक्सर हिंसक और हेरफेर वाले हो जाते हैं, खासकर जब महिलाएं उनके प्रभुत्व को चुनौती देती हैं।
लेकिन हम एक आफताब पूनावाला को कैसे समझाएंगे, जिसने कथित तौर पर अपनी प्रेमिका, श्रद्धा वाकर की एक बहस के बाद हत्या कर दी, फिर उसके शरीर के टुकड़े कर सबसे भीषण तरीके से छुपाया? या एक साहिल गहलोत, जिसने कथित तौर पर अपनी पहली पत्नी की हत्या कर दी और उसी दिन दूसरी महिला से शादी कर ली। वास्तव में ये हो क्या रहा है?
ऐसे पुरुषों में कोई विवेक नहीं होता है, कोई अपराध बोध भी नहीं होता है और न ही कोई पछतावा या हानि भावना होती है। संबंध दूसरे व्यक्ति के लिए नहीं होते हैं। यह केवल उनके अपने लिए होते हैं। ऐसे तमाम मर्दों को चिंता रहती है कि कहीं वे पकड़े न जाएं। यह एक अंधेरी सुरंग है। ऐसे व्यक्ति के लिए मनुष्य वस्तु के समान होता है। [गहलोत] ने अपने प्रेमी को मार डाला, जिसके बारे में उनका मानना है कि उसने उसे पुनर्विवाह करने की आज़ादी दी थी। ऐसे पुरुष आधुनिक आचरण का दावा करते हैं, लेकिन ये एक बाहरी दिखावा हैं।
आज कई जोड़े डेटिंग साइट्स पर मिलते हैं। क्या इन साइटों पर महिलाओं के बारे में धारणा अलग होने की संभावना है?
परंपरा और आधुनिकता के बीच संघर्ष हमारे जीवन के सभी पहलुओं में मौजूद है। डेटिंग साइटों पर कुछ पुरुष खुद को महिलाओं की मुक्ति के प्रगतिशील और समर्थक के रूप में पेश कर सकते हैं, लेकिन अक्सर, यह एक दिखावा हो सकता है। कई दिल से रूढ़िवादी रहते हैं। वे आज़ाद मिज़ाज की महिलाओं के साथ रहना चाहते हैं, लेकिन मैंने ऐसे कई मामले देखे हैं, जहां कुछ मुलाकातों के बाद, मुझे एहसास हुआ कि उन्होंने अपने दिल में इन महिलाओं को नीचा माना। उन महिलाओं का उदाहरण लें जो रात 11 बजे के बाद बाहर रहती हैं। वे काम से लौट रहे होंगी, या देर के अन्य कारण हो सकते हैं। लेकिन कई पुरुषों का मानना होता है कि ये औरतें उनके लिए 'उपलब्ध' हैं।
क्या हम अत्यधिक उपभोक्तावादी जीवन शैली के संदर्भ में एक किस्म का 'अमेरिकी मॉडल' का अनुसरण कर रहे हैं, जिसमें बहुत हिंसक व्यवहार भी शामिल हैं?
हाँ। यह मॉडल बहुत गलत संकेत देता है, और यह संयुक्त राज्य अमेरिका में किए गए कई मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षणों में नज़र आता है, जहाँ यौन, शराब और नशीली दवाओं का दुरुपयोग बहुत अधिक है। गन/बंदूक हिंसा के मामलों की बढ़ती संख्या से यह और भी बदतर हो गया है। विवाह की संस्था भी बिखर गई है और अब हमारे पास एक पूरी युवा पीढ़ी है जो बहुत ही चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में पली-बढ़ी है। लेकिन संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत के बीच एक बड़ा अंतर है। संयुक्त राज्य अमेरिका में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों के लिए उपचार स्वतंत्र रूप से उपलब्ध है, और उनके पास मानसिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता हैं जो मनोवैज्ञानिक विकारों या मादक द्रव्यों के सेवन से पीड़ित लोगों के लिए अपार्टमेंट और नौकरियां खोजने में मदद करते हैं। भारत में व्यावहारिक रूप से हमारा कोई मानसिक स्वास्थ्य संस्थान नहीं है, और हमारी सहायता प्रणालियाँ नगण्य हैं। आने वाले वर्षों में हमें बढ़ते हुए आक्रामक और हिंसक व्यवहार को देखने को मिलेंगे, और मैं अपने मरीजों को सलाह देता हूं कि उन्हें बहुत सतर्क रहना होगा।
यहां परिवारों और माता-पिता की क्या भूमिका है? मिसाल के तौर पर वॉकर परेशान करने वाले सपनों के बारे में अपने माता-पिता को नहीं बता सकीं। अपनी मां के मरने के बाद वह घर चली गई, लेकिन मुश्किल से दो हफ्ते रुकी और उसके बाद हिंसक पूनावाला के पास लौट गई, जिसने उसकी हत्या कर दी थी।
माता-पिता को इस बात की कोई समझ नहीं है कि उनके बच्चे किस दुनिया में रह रहे हैं। उन्हें उनकी आकांक्षाओं और सपनों की कोई समझ नहीं है। उनके बीच कोई संवाद नहीं है। माता-पिता अपनी बेटियों के जीवन में क्या चल रहा है, यह समझने की कोशिश नहीं करते हैं और समझने के लिए मानव जिज्ञासा की एक न्यूनतम कोशिश भी नहीं करते हैं। लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली बेटियों के लिए यह विशेष रूप से सच है। ऐसा लगता है जैसे उन्होंने उसे पूरी तरह से रोक दिया है- "खराब रास्ते चल रही है- वह एक बुरी लड़की है।" इस अत्यधिक-उपभोक्तावादी समाज में बच्चों और युवाओं के अपने दम पर जीने के कारण, उन्होंने अपनी समस्याओं का समाधान खोजने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया है।
जैसे ही हिंसक व्यवहार में तेजी आती है, क्या सरकार, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय परिवारों को इससे निपटने में मदद करने के लिए हस्तक्षेप कर रहा है?
इन मामलों में जो बेरुखी देखी गई वह भयानक है। सोशल मीडिया पर कुछ वीडियो पोस्ट करने के अलावा, सरकार को कोई काम नहीं करती है। युवाओं को परिवारों या समुदायों के समर्थन के बिना खुद की लड़ाई लड़ने के लिए छोड़ दिया गया है। ये कमजोर दिमाग कैसे समझ पाएंगे कि उनके आसपास क्या हो रहा है? वे लड़खड़ाते हैं और असफल होते हैं, और यह हिंसा इन्हीं समस्याओं की अभिव्यक्ति है।
रश्मि सहगल एक स्वतंत्र पत्रकार हैं।
अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।
Noted Psychologist Warns Indian Parents About Rising Male Violence
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