ईरान मुद्दे पर रूस को प्रमुख भूमिका निभानी है
ट्रम्प प्रशासन के खिलाफ अपनी सबसे तीखी बयानबाजी में, ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी ने अमरीका पर आरोप लगाते हुए कहा कि प्रतिबंधों के कारण ईरान को करीब 150 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ है जो अमरीकी "बर्बरता" का प्रतीक है।
टेलीविज़न के माध्यम से की गई एक टिप्पणी में, क्रोध से भरपूर आवाज़ में रूहानी ने कहा, "उनकी अवैध और अमानवीय प्रतिबंधों और आतंकवादी कार्रवाइयों के कारण अमेरिकियों ने ईरान के लोगों को 150 अरब डॉलर का नुकसान पहुंचाया है। हमने इस तरह की बर्बरता कभी नहीं देखी है... व्हाइट हाउस की इस तरह की कार्यवाही ईरानी लोगों के शाप और घृणा की हकदार है।"
रूहानी की कड़वाहट इस बात को भी रेखांकित करती है क्योंकि उनके राष्ट्रपति के दो दशक कुछ ही महीनों में खत्म होने वाले है और विरासत के रास्ते से वापस सत्ता में आना कठिन नज़र आ रहा है। सुधारवादी नेता ने बड़े सोच समझकर दिमाग से काम लिया था और सोचा था कि अमेरिका के साथ 2015 के परमाणु समझौते पर वापस आने से पश्चिमी दुनिया के साथ ईरान का एकीकरण हो जाएगा, और पहली बार, ईरान को पश्चिमी प्रौद्योगिकी और पूंजी तक पहुंच हासिल करने और देश को प्रगति के रास्ते पर ले जाने में सहयोग मिलेगा। लेकिन भाग्य में तो कुछ और ही लिखा था।
आज, रूहानी को अपने चारों ओर खंडहर नज़र आता है। अमेरिका ने ईरान के साथ बड़ा धोखा किया और परमाणु समझौते से लाभ मिलने से पहले ही उसे वंचित कर दिया। रूहानी की साख को झटका लगा; फरवरी में मजलिस (संसद) के चुनावों के दौरान ईरान की राजनीति रूढ़िवादी (कट्टरपंथी) राजनीति में तब्दील हो गई, जैसा कि स्पष्ट है; और अब कोई भी ईरानी फिर से अमेरिका पर भरोसा नहीं करना चाहता है।
पूरे के पूरे सुधारवादी एजेंडे का प्रभाव जिसकी वकालत रूहानी करते है, जैसे टूट कर बिखर गया है। रूहानी अपने राजनीतिक निर्णयों में अमेरिकी की नीति आश्वासनों की स्थिरता और विश्वसनीयता के बारे में गलत भरोसा कर गए।
अब, अमेरिकी प्रतिबंधों के साथ-साथ, कोरोनावायरस महामारी ने भी ईरान की अर्थव्यवस्था को तबाह कर दिया है। अब जब सरकार ने सोचा था कि बुरा वक़्त पीछे छुट गया है, कोरोनोवायरस फिर से प्रकट हो गया। जिसके परिणामस्वरूप तेहरान में प्रतिबंधों को आज फिर से लागू कर दिया गया है। स्वास्थ्य प्रोटोकॉल को अन्य बड़े शहरों में भी लागू किया जा रहा है।
यह एक ऐसी निराशाजनक पृष्ठभूमि है जिसमें तेहरान 3 नवंबर को होने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के परिणाम की प्रतीक्षा कर रहा है। तेहरान बिडेन की जीत पर उम्मीद जता रहा है। बिडेन ने ईरान के मुद्दे को अपनी विदेश और सुरक्षा नीति के एजेंडे में सबसे ऊपर रखा है।
प्रसिद्घ नाभिकीय गैर-प्रसार विशेषज्ञ जोई सिरिनकोइन, जो प्लॉशर फंड्स के अध्यक्ष हैं, ने कहा कि बिडेन की योजना भ्रामक रूप से सरल दिखती है: "ईरान परमाणु समझौते और संबंधित संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों के अनुपालन में वापस आएं, और हमारे सहयोगियों के साथ काम करें ताकि उन पर कूटनीति के माध्यम से ईरान के साथ हमारी अन्य असहमति को संबोधित किया जा सके। (यहाँ देखें)
बेशक, यह इस बात की तसदीक करता है कि ईरान विश्वास की कमी को दूर करेगा और अमेरिका के साथ बात करने के लिए सहमत होगा; अन्य क्षेत्रीय शक्तियां (यूएस के क्षेत्रीय सहयोगी) बीच में नहीं आएंगी; और इन विदेशी सरकारों के साथ गठजोड़ करने वाले घरेलू प्रतिद्वंद्वी इस समझौते की फितरत को स्वीकार करेंगे। वास्तव में, बिडेन की खिड़की भी छोटी होगी, क्योंकि ईरान में भी 18 जून को राष्ट्रपति चुनाव होने है, जिसके बाद एक नया कट्टर राष्ट्रपति सत्ता में आ सकता है।
सबसे बड़ी जुगत यहां है। बिडेन को पहले कदम उठाकर जल्दी से और बड़ी ही दृढ़ता से काम करना चाहिए। अच्छी बात यह है कि बिडेन अमेरिका, ईरान के बीच राजनीतिक माहौल तैयार करने के लिए प्रक्रिया को सामूहिक रूप से शुरू करने के यूरोपीय सहयोगियों, रूस और चीन से सद्भावना पर भरोसा कर सकता है जिससे कि बेहतर वार्ता शुरू की जा सके।
ईरान का बिडेन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण है। विदेश मंत्री जवाद ज़रीफ़ ने 21 सितंबर को काउंसिल ऑफ़ फॉरेन रिलेशंस (न्यू यॉर्क) में दर्शकों को कहा कि, “अगर अन्य (पढ़ें वाशिंगटन) जेसीपीओएए (2015 परमाणु समझौते) के अनुपालन पर वापस आ जाते हैं, तो ईरान भी परमाणु समझौते के अनुपालन पर वापस आने के लिए तैयार है।"
वास्तव में, ईरान भी समझौते से पीछे जाने के अपने कदमों में सुधार कर सकता है- जैसे समृद्ध यूरेनियम की मात्रा को कम करना, संचित भंडार का निर्यात करना, उन्नत अपकेंद्रित्र मशीन के संचालन को रोकना आदि।
हालांकि, तब क्या होगा अगर ट्रम्प फिर से चुने जाते हैं? ट्रम्प ने दावा किया है कि यदि वह दोबारा से जी त जाते है, तो वे ईरान के साथ "चार सप्ताह के भीतर" सौदा कर लेंगे। निश्चित रूप से, ट्रम्प ने लंबे समय से ईरान के साथ "वास्तविक सौदा" करने की मांगा कर रहा है, जैसा कि उन्होंने जुलाई में सुझाव दिया था और 2015 के समझौते को बदलने के लिए कहा था। लेकिन उसने प्रतिबंधों को बढ़ाने के ज़रीए गलत रास्ता चुना।
जो हालत अभी हैं, ट्रम्प का अधिकतम दबाव का दृष्टिकोण खुद ही स्वाहा हो गया है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अमेरिका खुद को आज अलग-थलग पा रहा है। ईरान पर पूर्व 2015 के संयुक्त राष्ट्र के व्यापक प्रतिबंधों को फिर से लागू करने के मामले में ट्रम्प प्रशासन के प्रयास बुरी तरह विफल रहे है। अगले तीन हफ्तों के भीतर, ईरान को हथियारों की बिक्री पर संयुक्त राष्ट्र की सीमा समाप्त होने वाली है। ज़रीफ़ ने पिछले हफ्ते मास्को की यात्रा के दौरान खुलासा किया था कि ईरान और रूस हथियारों के सौदे पर चर्चा कर रहे हैं।
इससे अमेरिकी सैन्य खतरे के खिलाफ ईरान की निवारक क्षमता केवल बढ़ने वाली है। इस बीच, ईरान यूरेशियन एकीकरण की अशन्शोधित रणनीति के तहत चीन और रूस के साथ दीर्घकालिक आर्थिक समझौते पर भी बातचीत कर रहा है।
स्पष्ट रूप से, ट्रम्प से अधिकतम दबाव वाले दृष्टिकोण पर पुनर्विचार किए बिना ईरान प्रश्न को संबोधित करने की उम्मीद नहीं कर सकते हैं। उन्हें अपनी वर्तमान विदेश नीति टीम से भी छुटकारा पाने की जरूरत है- विशेष रूप से गृह सचिव माइक पोम्पिओ, जिन्हे ईरान बातचीत के दौरान शामिल करने को तैयार नहीं है।
अटलांटिक काउंसिल के विख्यात ईरान विशेषज्ञ बारबरा स्लाविन ने ट्रम्प के लिए एक रोड मैप तैयार करने एमिन मदद की है। उसने लिखा है, "यदि वह (ट्रम्प) ईरान के साथ नए समझौते में वास्तव में रुचि रखता है, तो उसे यथार्थवादी उद्देश्यों के बदले में ठोस आर्थिक प्रोत्साहन देने की आवश्यकता होगी।"
लेकिन स्लाविन, ईरान के साथ बातचीत या ईरानी की उस शर्त को स्वीकार करने के बारे में ट्रम्प की तत्परता के बारे में अधिक उम्मीद नहीं रखते हैं जिसमें अमेरिका को पहले जेसीपीओए में वापस आने की शर्त है। इसके बजाय, स्लाविन एक रचनात्मक दृष्टिकोण का सुझाव देती है: अमेरिका को यूरोपीय सहयोगियों और रूस और चीन से ईरान और अन्य खाड़ी राज्यों से जुड़े संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में एक क्षेत्रीय प्रक्रिया को चलाने करने के लिए कहना चाहिए, जिसमें परमाणु मुद्दे पर ध्यान केंद्रित करना और अन्य क्षेत्रीय मसलों को शामिल कर एजेंडा का विस्तार करना चाहिए, यहां तक कि कुछ बिंदुओं पर इज़राइल को भी शामिल करना चाहिए!
दिलचस्प बात यह है कि इससे लगता है कि संयुक्त राष्ट्र की मेज पर पहले से ही एक रूसी प्रस्ताव रखा हुआ है, जिसका चीन भी समर्थन करता है। यह एक यथार्थवादी दृष्टिकोण प्रतीत होता है, क्योंकि ईरान के नेतृत्व का व्यक्तिगत रूप से ट्रम्प के साथ टकराव और गंभीर मुद्दा है। पिछले हफ्ते, इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स के कमांडर-इन-चीफ जनरल होसैन सलामी ने कुड्स सेना के पूर्व प्रमुख जनरल कासिम सोलेमानी की हत्या के विषय पर फिर से चर्चा की थी।
उन्होंने ट्रम्प को सीधे संबोधित करते हुए कहा: “हमारी सेना के महान प्रमुख की शहादत का बदला निश्चित है। यह गंभीर है। यह असली है। हम उन लोगों को मारेंगे जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इस महान व्यक्ति की शहादत में शामिल थे। ”महत्वपूर्ण बात यह है कि जनरल सलामी ने केवल सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई के "कठोर प्रतिशोध" के वादे को फिर से दोहराया।
यह कहना पर्याप्त होगा, यह देखना मुश्किल है कि तेहरान कैसे ट्रम्प के साथ सीधे बात करेगा। सोलेमानी को मारने का ट्रम्प का निर्णय एक भयानक गलती थी और उसे इसके परिणामों भुगतने होंगे।
अब देखना ये है कि ट्रम्प ईरान के खिलाफ लगाए गए प्रतिबंधों को कम करने के लिए क्या करेंगे, और अंततः जेसीपीओए में अमेरिका की वापसी भी कर सकते हैं, जो कि तेहरान की भी मांग है, और साथ ही वे अपने यूरोपीय सहयोगियों तथा रूस और चीन को परमाणु मुद्दे पर और ईरान के हालत पर चर्चा के लिए क्षेत्रीय प्रक्रिया का नेतृत्व करने को कह सकते हैं।
इस मुद्दे पर ट्रम्प ने ईरान के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ फोन पर बातचीत में एक से अधिक बार चर्चा की है। यह तय है कि ईरान रूस से भी एक महत्वपूर्ण भूमिका की परिकल्पना करता है। ज़रीफ़ ने जून से तीन बार मास्को का दौरा किया है। 24 सितंबर को ज़रीफ़ की अंतिम यात्रा के बाद, रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने परमाणु मुद्दे पर ईरान के प्रति मजबूत समर्थन व्यक्त किया है।
अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें-
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