बार-बार धरने-प्रदर्शन के बावजूद उपेक्षा का शिकार SSC GD के उम्मीदवार
कमर्चारी चयन आयोग सामान्य सेवा (एसएससी जीडी) वर्ष 2018 में वापस लाई गई एक रिक्त अधिसूचना थी। उस दौरान, केंद्र सरकार ने 18-23 आयु वर्ग के लिए 60,000+ सीटों की घोषणा की थी। रिक्त पदों को भरने का कार्य आज तक लंबित पड़ा हुआ है। 9 फरवरी, 2022 को देश भर से एसएससी जीडी के करीब 1,200 छात्रों ने राष्ट्रीय राजधानी में एकत्र होकर न्याय की मांग की। विद्यार्थी पिछले एक साल से भी अधिक समय से विरोध कर रहे हैं और अभी भी उन्हें गृह मंत्रालय (एमएचए) से समुचित प्रतिक्रिया का इंतजार है।
मामला क्या है?
इस बार छात्र पूरी तैयारी के साथ आये हैं। यदि उन्हें कोई उचित जवाब नहीं मिलता है, तो वे सड़कों पर उतरेंगे और केंद्र सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का रास्ता अख्तियार करेंगे। 2018 में इसकी अधिसूचना जारी की गई थी। किसी भी सरकारी परीक्षा प्रक्रिया को 9 महीने के कार्यकाल के भीतर पूरा हो जाना चाहिए। हालाँकि, एसएससी जीडी की भर्ती प्रकिया जितनी धीमी करनी संभव हो सकती थी, उसे उतना धीमी गति से किया गया। तीन दौर के शारीरिक एवं लिखित परीक्षाओं को पूरा होने में कम से कम तीन साल लग गए। 2018 में शुरू हुई प्रक्रिया 2020 में जाकर कहीं खत्म हो सकी।
इस सबके बावजूद, छात्रों की अंतिम मेरिट सूची को जारी करने में सरकार को एक और पूरा साल लग गया। अब स्थिति ये हो गई कि, कुल उपलब्ध 60,000 (लगभग) रिक्तियों के लिए योग्य पाए गए परीक्षार्थियों में से 30% अभ्यर्थियों ने यह मानते हुए ज्वाइनिंग लैटर का जवाब नहीं दिया क्योंकि उन्होंने किसी अन्य परीक्षा को उत्तीर्ण कर लिया था या किसी अन्य स्थान पर काम करना शुरू कर दिया है। जिन छात्रों ने विरोध प्रदर्शन करने का फैसला किया है, ये वे हैं, जो उन 30% रिक्त पदों को भरे जाने की मांग कर रहे हैं।
यह पहली बार नहीं है जब राष्ट्रीय राजधानी की सड़कों पर इन छात्रों के द्वारा विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है। इन परीक्षाओं के लिए आयु वर्ग 18-23 वर्ष के बीच की है। अब चूँकि भर्ती प्रक्रिया को संपन्न होने में ही चार साल लग गये, ऐसे में इनमें से कई छात्र अब इस आयु सीमा को पार कर गए हैं और उनकी अपनी कोई गलती न होने के बावजूद वे अब परीक्षा में बैठने के हकदार नहीं रहे। दिल्ली में फ़िलहाल प्रदर्शन कर रहे अधिकांश छात्र ऐसे हैं, जो इस उम्र की सीमा को लांघ चुके हैं।
गृह मंत्रालय (राज्य) मंत्री, नित्यानंद राय ने संसद में यहाँ तक कहा था कि सीआरपीएफ सीएपीएफ में 1,00,000 से अधिक की संख्या में पद रिक्त पड़े हैं। उन्होंने सरकार से इस मामले पर गौर करने तक का आग्रह किया था, लेकिन सब व्यर्थ गया। यह बात बीते अक्टूबर 2020 की है। इसके बावजूद, जिस अंतिम मेरिट सूची को तैयार किया गया उसमें सिर्फ 55,000 छात्रों का ही चयन किया गया था। बिहार एसएससी जीडी के एक अन्य अभ्यर्थी, सुशील सवाल करते हैं, “सबसे पहली बात तो यह है कि सरकार ने जितने पदों के लिए भर्तियाँ जारी की थीं उसे पूरा नहीं किया, जो कि कुल मिलाकर 60,210 थीं। वहीँ दूसरी तरफ, राज्य द्वारा तैयार की गई संशोधित मेरिट सूची में कम से कम 30% खाली सीटों को भरने के लिए कोई पुष्टि नहीं की गई है। क्या हम इन खाली पड़े 30% सीटों को भरने के लिए योग्य उम्मीदवार नहीं हैं? क्या हम योग्यता के आधार पर भी अगली पंक्ति में नहीं हैं? हमारी मांग सिर्फ इतनी सी है कि देश भर में बची हुई सीटों को विभाजित कर दिया जाए। क्या हम इससे कुछ ज्यादा की मांग कर रहे हैं?”
इतिहास
अब ये चाहे आरआरबी एनटीपीसी का मुद्दा हो या एसएससी जीडी का या किसी भी अन्य सरकारी परीक्षा का मुद्दा हो, उम्मीदवारों ने अपनी सभी परीक्षाओं को पूरा कर लिया है और भर्ती होने की प्रतीक्षा में हैं। ट्विटर में ट्रेंड कराने से लेकर जमीन पर धरना-प्रदर्शन करने तक, इन छात्रों ने इन सभी कार्यों को पूरा कर के देख लिया है। हालाँकि, उनका आरोप है कि सरकार ने हर बार उनकी अनदेखी की है। बेरोजगारी के मुद्दों पर संघर्ष के लिए युवा आंदोलन के एक मंच, युवा हल्ला बोल के राष्ट्रीय महासचिव, रजत यादव ने बात करते हुए पिछले विरोध प्रदर्शनों और पुलिसिया बर्बरता के बारे में बात की।
उन्होंने विस्तार से बताया, “यह कोई पहली बार नहीं है जब पुलिस ने इस तरह का बर्ताव किया हो। इससे पहले भी जुलाई 2021 में जब संसद का सत्र चल रहा था, और किसान संसद भी जारी था तब हम सब लोग जंतर मंतर पर धरना-प्रदर्शन कर रहे थे। हमें इस वचनबद्धता के आधार पर वहां से चले जाने के लिए कहा गया था कि 15 अगस्त के बाद, पुलिस प्रशासन गृह मंत्रालय के साथ बैठक का प्रबंध करेगा। जब हम 15 अगस्त के बाद लौटे और इसके बावजूद हमें इससे वंचित रखा गया तो हमने सड़कों पर उतरने का फैसला लिया। पुलिस ने लाठीचार्ज का सहारा लिया जिसमें चार लड़कों और यहाँ तक कि दो लड़कियां तक घायल हो गईं। बाद में हम सभी को मंदिर मार्ग पुलिस थाने ले जाया गया, जहाँ पर हममें से गिरफ़्तार 8 लोगों के साथ वहां के एसएचओ ने बात की। उन्होंने लगातार मुझपर आरोप लगाया कि मैंने छात्रों को उकसाया है और मेरे खिलाफ आरोप पत्र दाखिल करने की धमकी दी। हालाँकि, इस बीच हमारी क़ानूनी टीम आ गई और इस मुद्दे को सुलझा लिया गया।”
लगातार हिरासत में लिए जाने, पुलिस द्वारा प्रताड़ित किये जाने और उनके पक्ष में कोई परिणाम न आने की वजह से छात्र पीड़ा में थे, और उनमें एक प्रकार का भय व्याप्त हो गया था। इसकी वजह से विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला दिसंबर 2021 तक और अब फरवरी 2022 में रुके हुए थे।
45 दिनों के इंतजार के बाद एक बार फिर से धरना-प्रदर्शन
बिहार से एक उम्मीदवार, सुनील लांबा ने कहा, “दिसंबर 2021 में, जब हम जंतर-मंतर पर धरना-प्रदर्शन कर रहे थे, तो हमें बताया गया कि 45 दिनों के भीतर गृह मंत्रालय हमारे लिए एक हल लेकर आएगा। हालाँकि, 8 फरवरी को हम जब वापस आये तो हमें किसी प्रकार की मदद नहीं मिली। जब हमारा प्रतिनिधिमंडल एसएससी कार्यालय से नकारात्मक जवाब लेकर लौटा तो सभी उम्मीदवारों के मन में जबर्दस्त गुस्सा था और वे बगावत करने पर आमादा थे।” राजीव चौक मेट्रो स्टेशन पर एकजुट होने के बाद, 1,200 की संख्या में छात्रों ने जंतर-मंतर की ओर मार्च करने का फैसला किया। हालाँकि, उन्हें रोकने के लिए दिल्ली पुलिस बसों के साथ आ पहुंची, और कहने लगी कि उनके पास प्रदर्शन की इजाजत नहीं है।
जब प्रशासन के कहने के बावजूद छात्र नहीं रुके तो पुलिस ने कम से कम 400 छात्रों को हिरासत में ले लिया और उन्हें मंदिर मार्ग पुलिस स्टेशन ले जाया गया। छात्रों ने सोशल मीडिया पर अपील की कोशिश की लेकिन 10 बजे रात तक उन्हें हिरासत में बंद रखा गया, जिसके बाद जाकर कहीं जाकर उन्हें रिहा किया गया। बिरेन्द्र चंद्रवंशी ने इस संवावदाता के साथ अपनी बातचीत में उम्मीदवारों की आगे की रणनीति के बारे में बात करते हुए बताया, “हमारी जिस प्रकार से उपेक्षा की जा रही है उसे हम और ज्यादा बर्दाश्त नहीं करने जा रहे हैं, और हम अपने विरोध को जारी रखेंगे। चूँकि हमें कल ही हिरासत में लिया गया था, ऐसे में हम तत्काल कोई दंडात्मक कार्यवाई नहीं करने जा रहे हैं। हालाँकि, सरकार इस भुलावे में न रहे कि वो हमें किसी भी कीमत पर रोक सकती है। हम तब तक दिल्ली छोड़ कर नहीं जाने वाले हैं जब तक हमारी मांगे नहीं मान ली जातीं हैं और हमारी रिक्तियां नहीं भर दी जाती हैं।”
चंद्रवंशी, जो उस प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा थे जिसने एमएचए और एसएससी अधिकारियों से मुलाकात की थी, ने बताया, “हम इस बीच तीन दफा गृह मंत्रालय और एसएससी के प्रतिनिधियों से मुलाक़ात कर चुके हैं। हालाँकि, जब भी हमने उनसे मुलाकात की है, हमें हर बार सिर्फ मौखिक आश्वासन ही दिया गया है। पिछले साल दिसंबर में, हमारे प्रतिनिधिमंडल ने 9 लोगों के एक पैनल के साथ मुलाकात की, जिसमें गृह मंत्रालय के संयुक्त सचिव सहित एसएससी जीडी के दो अधिकारी शामिल थे। इसके अलावा सीआरपीएफ के डीआईजी भी बैठक में मौजूद थे। हमसे कहा गया कि 45 दिनों में इन रिक्तियों को भर दिया जायेगा।” जब एसएससी जीडी ने पूर्व में 2018 में एक अधिसूचना जारी की थी, तो उसमें कहा गया था कि कम से कम 55,000 छात्रों के लिए पद दिए जायेंगे। 21 दिसंबर 2021 को ये अभ्यर्थी जंतर-मंतर पर इकट्ठा हुए थे, और गृह मंत्रालय से इन आवंटनों को पूरा करने की मांग कर रहे थे जहाँ पर संसद मार्ग पुलिस थाने से एसीपी दिनेश कुमार ने उन्हें बताया था कि गृह मंत्रालय के साथ हुई बातचीत में उन्हें बताया गया था कि अगले 45 दिनों के दौरान गृह मंत्रालय छात्रों की मांगों पर जवाब देगा।
बिरेन्द्र चंद्रवंशी ने इस बारे में आगे बताया, “जब हमने एसएससी के चेयरमैन से बात की तो उन्होंने कहा कि नियमों में कोई बदलाव नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि बदलाव करना उनके हाथ में नहीं है। वे सिर्फ एक परीक्षण एजेंसी हैं, और इसके लिए निर्देश गृह मंत्रालय से आना चाहिए।” छात्रों की बस एक शिकायत बार-बार रही है, कि उन्होंने हर बार अपील करने की कोशिश की है; लेकिन हर बार उन्हें मौखिक आश्वासन और अगली तारीख दी गई है कि उनकी मांगों को अगली तारीख तक पूरा कर लिया जायेगा।
हालाँकि, इनमें से एक भी आश्वासन सच साबित नहीं हुआ है।
उन्होंने अफ़सोस व्यक्त करते हुए कहा, “यह सब करते हुए एक साल बीत गए हैं, और हमें बीच मंझधार में छोड़ दिया गया है। इससे पहले भी हम2021 में उनसे मिल चुके हैं। हर बार उन्होंने कहा है कि वे सिर्फ एक नोडल एजेंसी हैं, गृह मंत्रालय के पास जाओ। एक तरफ तो वे ऐसा कहते हैं, और वहीँ दूसरी तरफ, वे आगे से किसी भी और उम्मीदवार को लेने से साफ इंकार कर देते हैं।”
भर्ती ही एकमात्र उम्मीद है
सुनील लांबा ने इस संवावदाता के साथ अपने दुःख को व्यक्त करते हुए कहा, “मेरे पिता एक दिहाड़ी मजदूर हैं; मैं अपने परिवार की माली हालत को बेहतर बनाने के लिए एसएससी जीडी भर्ती की प्रतीक्षा में हूँ। मैं भी खुद का पेट भरने के लिए निर्माण स्थल पर मजदूरी पर काम करता हूँ।”
छात्रों का कहना है कि उनके पास लगातार धरना-प्रदर्शन करने और सरकार से उनकी मांगों को पूरा करने के लिए नुक्ताचीनी करने और गुहार लगाने के सिवाय दूसरा कोई उपाय नहीं है। इनमें से कई छात्र बेहद दयनीय आर्थिक परिस्थितियों से आते हैं और अपने परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए उन्हें नौकरी की सख्त दरकार है। प्राइवेट नौकरी पाने में असमर्थता और ऊपर से सामाजिक पूर्वाग्रहों के चलते, सरकारी नौकरी ही उनके लिए एकमात्र मुक्ति का मार्ग नजर आता है। और अब जबकि वे भर्ती की सारी प्रक्रिया पूरी करने के बाद करीब दो साल से नौकरी के इंतजार में हैं, तो ऐसा लगता है कि उनके पास पलायन का कोई रास्ता नहीं बचा है।
(ऋषि राज आनंद दिल्ली स्थित एक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
अंग्रेज़ी में प्रकाशित इस मूल लेख को पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें:
Amid Protests and Social Media Trends, are SSC GD Aspirants Victims of Negligence?
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