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कटाक्ष: ज़रा नफ़रत तो बढ़ाओ, यारो!

ये नीरज चोपड़ाओं की और उनकी मम्मियों की भी, मुहब्बत की दुकानें बंद कराओ, यारो! हिंदू को ख़तरा तो दिखाओ, यारो! 
Arshad Nadeem and Neeraj chopra

सच पूछिए तो हिंदू इसीलिए खतरे में है और खतरे में सिर्फ आज ही नहीं है, आगे भी खतरे में ही रहेगा। बल्कि इन नीरज चोपड़ाओं का बस चला तो हिंदू हमेशा खतरे में ही रहेगा। अब बताइए, भाई साहब इस भारत वर्ष के रोल मॉडल हैं। आखिर ओलम्पिक मेडल विजेता हैं। जिस देश में ओलम्पिक मेडल विजेता उंगलियों पर गिने जा सकते हैं, वहां मेडल विजेता हैं। और कांसेवाले मेडल के नहीं, सोने-चांदी वाले मेडल के विजेता हैं। पिछली बार भाला फेंक में सोने वाला मेडल जीतकर लाए थे और इस बार भी सोने से जरा से चूक गए, पर चांदी का मेडल तो ले ही लिया। पर जनाब कर क्या रहे हैं? भाला-वाला तो खैर फेंक ही रहे हैं, पर उसके अलावा क्या कर रहे हैं, वहां पेेरिस में? जिसने इन्हें भाला फेंकने में पछाड़ दिया, उसी अरशद नदीम के साथ कुछ ज्यादा ही फ्रेंडली हो रहे हैं। हार-जीत के फैसले के बाद, अरशद को बुला-बुलाकर उसके साथ फोटो खिंचवा रहे हैं। उसका हाथ कंधे पर रखवाकर फोटो खिंचवा रहे हैं। और तो और भारत के झंडे के तले, उसे साथ में लेकर फोटो खिंचवा रहे हैं। 

माना कि ओलम्पिक, खेल का मामला है। भाला फेंकना भी जब युद्ध का हिस्सा रहा होगा तब रहा होगा, अब तो शुद्ध खेल की चीज है। खेल के साथ, खेल भावना भी होनी चाहिए। प्रतिस्पर्द्धी को दुश्मन नहीं, दोस्त मानना चाहिए, जिससे मुकाबले से पहले भी हाथ मिलाएं और मुकाबले के बाद भी। यह सब तो सही है। पर खेल भावना की भी कोई हद्द तो होती होगी। एक तो पट्ठे ने पोडियम पर सोने वाली सीढ़ी से धक्का देकर, हमारे नीरज को चांदी की सीढ़ी पर पहुंचा दिया। ऊपर से नाम भी अरशद नदीम। उसके भी ऊपर से पाकिस्तानी! इसके बाद भी कोई इतना फ्रेंडली कैसे हो सकता है!

किसी को बुरा लगे तो लगे, हम तो सच कह के रहेंगे। यह खेल भावना-वावना का कुछ नहीं, सिर्फ हिंदुओं को चिढ़ाने का मामला है। अरशद-नीरज की जोड़ी की तस्वीरें वायरल हो रही हैं। उनकी होड़ की कहानियां सुनायी जा रही हैं--होड़ हो तो ऐसी। मैदान में विश्व के सर्वश्रेष्ठ प्रतियोगी और मैदान के बाहर पक्के दोस्त। कहानियां बन रही हैं कि पिछली बार, नीरज को सोना मिला था और अरशद को चांदी, तब भी दोनों में ऐसी ही दोस्ती थी; इस बार अरशद को सोना और नीरज को चांदी मिली है, तब भी दोनों में वैसी ही दोस्ती है। बल्कि होड़ का नतीजा कुछ भी हो, हर मुकाबले से उनकी दोस्ती और पक्की होती जाती है। हद्द तो ये है कि यारी-दोस्ती की इन कहानियां में तडक़ा लगाने के लिए, मम्मियां भी मैदान में कूद पड़ी हैं, अपने-अपने घर से ही। नीरज की मम्मी कह रही हैं कि सोने का अफसोस नहीं है, हमारे लिए तो चांदी का तमगा भी सोने जैसा ही है। खूब जश्न होगा। जिसने सोना जीता है, उसने भी मेहनत की है। वह भी हमारा ही बेटा है! बॉर्डर के इस पार से नीरज की मम्मी, सरोज देवी कह रही हैं कि अरशद भी हमारा ही बेटा है, उधर बॉर्डर के उस पार से अरशद की मम्मी, रजिया परवीन उनके सुर में सुर मिला रही हैं--नीरज भी हमारा बच्चा है। और तो और मम्मियों की जोड़ी की तस्वीरें भी खूब वायरल हो रही हैं? बड़ी गुडी-गुडी सी फीलिंग फैल रही है और स्वयंभू हिंदू-रक्षकों की चिंताएं बढ़ा रही है।

बताइए, जिसका मन करेगा ऐसे ही मोहब्बत की दुकान ही खोलकर बैठ जाएगा, फिर हिंदू को खतरे से निकालने के लिए हथियार कौन उठाएगा? इन नीरज चोपड़ाओं की भी हिंदू को खतरे से निकालने की कोई जिम्मेदारी बनती है या नहीं? बल्कि अगले को तो ज्यादा कुछ करने की भी जरूरत नहीं थी। होड़ थी। इधर हिंदू, उधर मुसलमान था। होड़ के नतीजे में भी उठा-पटक थी। हार में जरा चुटकी भर कडुआहट की ही तो जरूरत थी, बाकी सब काम तो गोदी मीडिया खुद कर देता। बल्कि बेचारे गोदी मीडिया ने तो पिछली बार भी कर दिया था। खबर चला दी थी कि बदमाश अरशद ने, शरीफ नीरज का भाला ही उड़ा लिया था। वह तो नीरज को टैम पर पता चल गया, वर्ना कुछ भी हो सकता था, वगैरह। लेकिन, नीरज ने ही बेचारों की सारी मेहनत पर यह कहकर पानी फेर दिया कि बड़े-बड़े खेलों में ऐसी गलतियां हो जाती हैं; इसके पीछे कोई शरारत नहीं थी! इस बार तो खैर बंदों ने ऐसा कोई बहाना तक नहीं दिया। उल्टे  अपनी मोहब्बत बाजी से बेचारे हिंदू के लिए खतरा कई गुना बढ़ा दिया।

क्या समझते हैं, पेरिस की इस मोहब्बत की दुकान से, बंगलादेश में हिंदुओं पर अत्याचारों की कहानियों का असर कमजोर नहीं हो रहा होगा? हो रहा है, बाकायदा हो रहा है। व्हाट्सएप पर कहानियों का रेला है, फिर भी हिंदू वैसे तैश में नहीं आ रहा है, जैसे उसे तैश में आना चाहिए था। उल्टे ज्यादा कहानियां तो फैलने से पहले ही फैक्ट चेकरों के चक्कर में फुस्स हो जा रही हैं। ऊपर से इसकी कहानियां और कि बंगलादेश के छात्र और बाकी लोग, हिंदुओं को बचाने के लिए इलाके-इलाके में रखवाली कर रहे हैं! फिर इसकी कहानियां भी कि हमले करने वालों के निशाने पर शेख हसीना की पुलिस, उनके संगी, उनकी पार्टी वाले हैं, मुसलमान भी और हिंदू भी। और इसकी कहानियां भी कि वहां जैसा-तैसा जो राज कायम हो रहा है, हिंदुओं की हिफाजत के लिए हाथ-पैर जरूर मार रहा है। फिर बेचारा हिंदू तैश में आए तो आए कैसे? वहां आ नहीं सकता और यहां आए तो तब, जब भाई लोग आने दें।

फिर भी यहां-वहां स्वयंभू हिंदू रक्षकों ने, गरीब बंगालियों, गरीब मुसलमानों या सिर्फ गरीबों की झोंपडिय़ों पर युद्ध की कार्रवाइयां की हैं। आग-वाग लगायी है, लाठी-वाठी घुमायी है, झोंपडिय़ों में रहने वालों को खदेड़ा है। और चूंकि राज करने वाले उन्हें रोकने वाले नहीं हैं, इसलिए यह सब अभी और चलेगा। मगर, हिंदू का खून तो तमीज से खौल ही नहीं रहा है । योगी जी, लव जेहाद कम जबरन धर्मांतरण के लिए सजा बढ़ाने का कानून ले आए हैं, तब भी नहीं। मोदी जी वक्फ कानून को बदलने के लिए नया कानून ला रहे हैं, तब भी नहीं। मोदी जी गुपचुप, यू ट्यूबरों वगैरह पर लगाम लगाने का कानून बनवाए हैं, तब भी नहीं। राम माधव को बंगलादेश को धर्मनिरपेक्ष बने रहने का उपदेश देना पड़ रहा है, तब भी नहीं। चुनाव में मोदी जी को जरा सा झटका क्या लग गया, हिंदुओं के खून का उबाल ही जैसे बैठ गया है। ऐसे तो हिंदू सदा खतरे में ही रहेगा। ये बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। ये नीरज चोपड़ाओं की और उनकी मम्मियों की भी, मुहब्बत की दुकानें बंद कराओ, यारो! हिंदू को खतरा तो दिखाओ, यारो! जरा नफरत तो बढ़ाओ, यारो! और ये विनेश फोगाट को भी फॉरगॉट कराओ यारो ! 

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और लोक लहर के संपादक हैं।)

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