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गांधी तूने ये क्या किया : ‘वीर’ को कायर कर दिया

“गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में बैठे-बैठे ही ताड़ लिया था कि उनके राष्ट्रपिता के आसन के लिए अगर किसी से खतरा हो सकता था, तो वीर सावरकर से ही हो सकता था। अगले ने सावरकर की वीरता में ही खोट डलवा दिया और नये इंडिया में भी  राष्ट्रपिता  का अपना आसन सुरक्षित करवा लिया।”
Savarkar and Gandhi
फोटो साभार : स्वराज

क्या हुआ कि गांधी जी अभी भी  राष्ट्रपिता हैं। जो सत्तर साल में नहीं हुआ, वही सब कर-कर के मोदी जी नया इंडिया बना रहे हैं, फिर भी पुराने भारत के उधारी के  राष्ट्रपिता से ही काम चला रहे हैं। और सिर्फ काम ही नहीं चला रहे हैं, बाकायदा राष्ट्रपिता मानकर दिखा रहे हैं। वर्ना कम से कम दो-दो दिन तो नहीं घेरे रहने देते। बाकी सब के लिए एक-एक दिन है, वह भी मुश्किल से। सरदार पटेल तक का एक ही दिन। पर गांधी जी अब भी दो-दो दिन घेरे हुए हैं, जन्म दिन भी और मरण दिन भी। यानी साल में दो-दो बार, मोदी जी तक सुबह-सुबह याद करते हैं और ट्वीट वगैरह होते से हैं ऊपर से। और हां, नोटों पर भी अभी तक तस्वीर बनकर जमे बैठे हैं। नोटों के साथ तस्वीर भी गायब हो जाने की उम्मीदें भी झूठी निकली हैं। इंडिया है कि नया होकर भी डिजिटल होकर देने को राजी नहीं है। 

खैर! किस्सा कोताह यह कि मोदी जी के नये इंडिया ने भी गांधी जी को वह सब दिया है, जो कृतज्ञ राष्ट्र किसी राष्ट्रपिता कहलाने वाले को दे सकता है, एक उसकी बड़-बड़ पर ध्यान देने के सिवा। पर क्या गांधी जी ने नये इंडिया का राष्ट्रपिता कहलाने लायक कुछ किया है? उल्टे उन्होंने तो वीर सावरकर के साथ ऐसा किया है कि मोदी जी संकोच के मारे चाहे कहें नहीं, पर दिल से तो बापू को कभी माफ नहीं कर पाएंगे!

बताइए, गांधी जी को सावरकर से माफीनामा लिखवाने की क्या जरूरत थी? बेचारे की वीरता पर खामखां झगड़ा खड़ा कर दिया। वह तो हिंदुत्ववादी परिवार है, जो डटकर खड़ा है, अगले की वीरता का बचाव करने में। झूठ से तो हो झूठ से, शासन के डंडे से हो तो डंडे से और गाली से हो तो गाली से, अपने बीर को ‘वीर’ साबित करने पर अडिग है। और तो और गृहमंत्री ने तो एलान कर दिया है कि जैसे 130 करोड़ देशवासियों ने मोदी को राजा चुना है, वैसे ही 130 करोड़ ने सावरकर को वीर डिक्लेअर कर दिया है। इसके बाद जो सावरकर की वीरता पर सवाल उठाएगा, एंटीनेशनल माना जाएगा और सेडीशन केस में सीधे जेल जाएगा। इसके बाद ही वीरता पर विवाद कुछ ठंडा पड़ा है, पर इसके बाद भी बंद नहीं हुआ है, सिर्फ कुछ ठंडा पड़ा है। वर्ना गांधी जी का बस चलता तो, हिंदुत्व परिवार के राष्ट्रवाद के पास देश की सत्ता आने के बाद भी, सिर झुकाने को और फूल चढ़ाने को खास अपनी एक तस्वीर तक नहीं होती। बेचारों को हमेशा उधारी की तस्वीरों से ही काम चलाना पड़ता और म्यूट कर के पूजा करनी पड़ती। मुंह खोलने का मौका पाते ही न जाने कौन सी मूर्ति क्या बोल दे?

हमें पता है कि गांधी जी के पैरोकार, सावरकर की वीरता पर झगड़ा कराने में गांधी का कोई हाथ होने से ही साफ इंकार करेंगे। कई लोग तो तथ्यों का तूमार खड़ा कर के उसके पीछे गांधी की शरारत को छिपाने की कोशिश कर रहे हैं। कह रहे हैं कि सावरकर 1911 में अंडमान जेल गए, उसके छ: महीने में ही पहला माफीनामा भेज दिया, दूसरा दो साल बाद, 1913 में, पर गांधी तो उसके भी दो साल बाद दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस आए थे। फिर गांधी ने कहां से सावरकर को माफी मांगकर जान छुड़ाने की सलाह दे दी? गांधी चाहते भी तो, कैसे सावरकर को कोई सलाह दे सकते थे? वैसे गांधी सावरकर को ऐसी सलाह देते भी क्यों? खुद ग्यारह बार जेल गए और उन्होंने तो कभी माफीनामा नहीं दिया, फिर सावरकर से माफीनामा क्यों लिखवाते? और वह भी एकाध नहीं, पूरे छ:-छ: माफीनामे। भटका हुआ बच्चा बनकर, पितातुल्य अंगरेजी राज से माफीनामे। हुजूर, माई-बाप जो कहें सो करने और सिर्फ वही करने के माफीनामे! लेकिन, ये सब बेकार तथ्यों के तूमार हैं, जो एंटीनेशनल लोग सच को छुपाने के लिए खड़े करते आए हैं। वर्ना व्हाट्सएप के जमाने में अब किसी से छुपा नहीं है कि गांधी जी जैसा काइयां वकील, अपने मुवक्किलों को कहां-कहां से और कैसे-कैसे सलाह दे सकता था। नये तथ्य, जो देश के रक्षामंत्री के पास पहुंचे हैं और राष्ट्र की सुरक्षा के हित में जिन्हें गोपनीय बनाए रखना जरूरी है, शर्तिया यह दिखाते हैं कि गांधी जी की सलाह के बाद ही सावरकर ने माफीनामे लिखे थे। देश के रक्षामंत्री के वचन से बढक़र, दूसरा कोई साक्ष्य क्या होगा! वैसे भी तार से लेकर टेलीफोन तक तो उस जमाने में आ ही चुके थे।

रक्षा मंत्री को प्राप्त हुए नये साक्ष्यों के बाद, अब यह बहस ही बेमानी हो गयी है कि क्या गांधी ने सावरकर से माफीनामे लिखवाए थे? बहस अगर होनी है तो अब इस पर होनी चाहिए कि गांधी जी ने सावरकर को माफी मांगने की सलाह क्यों दी! पहली नजर में किसी को लग सकता है कि अंडमान जेल की तकलीफों से बचाने के लिए और राष्ट्रीय आंदोलन में सावरकर की ऊर्जा लगाने के लिए, गांधी जी ने माफी मांगकर जेल से छूटने की सलाह दी होगी। लेकिन, इस पर कोई गांधी जी को ऊपर-ऊपर से जानने वाला ही विश्वास कर सकता है। आखिर, यह किसी को नहीं भूलना चाहिए कि गांधी जी बनिया थे। और दूर की सोचना और दूर की मार करना, बनिए के खून में होता है। कौन सोच सकता था कि अंगरेजी राज पर यहां-वहां बम-पिस्तौल चलाने से गहरी चोट, अहिंसक सत्याग्रह से होगी? गांधी जी ने सोचा और कर के दिखा दिया। तभी तो  राष्ट्रपिता बने बैठे हैं। गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में बैठे-बैठे ही ताड़ लिया था कि उनके  राष्ट्रपिता  के आसन के लिए अगर किसी से खतरा हो सकता था, तो वीर सावरकर से ही हो सकता था। अगले ने सावरकर की वीरता में ही खोट डलवा दिया और नये इंडिया में भी  राष्ट्रपिता  का अपना आसन सुरक्षित करवा लिया।

रही-बची कसर सावरकर के उतावले चेले, नाथूराम ने पूरी कर दी गांधी पर तीन गोलियां दाग कर। हे राम कर के गांधी राष्ट्रपिता बन बैठे और सावरकर, बूढ़े-फकीर को मरवाने वाले कायर। नये इंडिया के संभावित राष्ट्रपिता की हत्या की इस साजिश के लिए अगर मोदी जी, गांधी जी को दिल से माफ नहीं कर पा रहे हैं, तो क्या गलत है! वैसे भी, 2 अक्टूबर को सुबह-सुबह राजघाट पर गए तो थे। दिल से माफ क्या जबर्दस्ती कराएंगे!

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