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निर्देश के बावजूद अदालत में पेश नहीं किए जाने से एल्गर परिषद के सात आरोपी भूख हड़ताल पर

पिछली तीन सुनवाई में कार्यकर्ताओं को अदालत में पेश नहीं किया गया है। एलगर परिषद मामले में, जो लोग अभी भी जेल में सज़ा काट रहे हैं, वे कई सालों से जेल में बंद हैं, कुछ लोग तो साल 2018 के मध्य से ही जेल में हैं। उनके कई आवेदन लंबित हैं, जिनमें मामले से बरी करने के लिए आवेदन भी शामिल हैं।
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फ़ोटो साभार : द वायर

एल्गर परिषद मामले में लंबे समय से जेल में बंद सात मानवाधिकार कार्यकर्ता शुक्रवार (18 अक्टूबर) को भूख हड़ताल पर चले गए।

मामले में पिछली तीन सुनवाई के दौरान कार्यकर्ताओं को अदालत में पेश नहीं किया गया। अदालत के आदेश के बावजूद नवी मुंबई पुलिस तलोजा केंद्रीय जेल से दक्षिण मुंबई में स्थित विशेष राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) अदालत में कैदियों को ले जाने के लिए एस्कॉर्ट टीम उपलब्ध कराने में विफल रही जिसके चलते कार्यकर्ताओं ने भूख हड़ताल शुरू कर दिया।

द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, इस मामले में कुल 16 लोगों को गिरफ्तार किया गया। कुछ जमानत और एक की मौत के बाद सात पुरुष और एक महिला अभी भी जेल में हैं। हड़ताल करने वालों में मानवाधिकार वकील सुरेंद्र गाडलिंग, दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हनी बाबू, कैदियों के अधिकारों से जुड़े कार्यकर्ता रोना विल्सन, सांस्कृतिक कार्यकर्ता सागर गोरखे और रमेश गाइचोर, विद्रोही पत्रिका के संपादक और लेखक सुधीर धवले और आदिवासी अधिकारों के कार्यकर्ता महेश राउत शामिल हैं।

इस मामले में गिरफ्तार कार्यकर्ता ज्योति जगताप को भी बायकुला महिला जेल में रखा गया है। उन्हें अदालत में पेश किया गया।

सभी 16 लोगों पर "शहरी नक्सली" होने का आरोप लगाया गया है और उन पर गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत कई आरोप लगाए गए हैं। त्योहारों, चुनावों और वीआईपी यात्राओं के कारण आमतौर पर जेल से कैदियों को अदालत या अस्पताल ले जाने के लिए सुरक्षाकर्मियों की कमी होती है।

जेल में बंद लोगों में से गाडलिंग अपना बचाव कर रहे हैं और उन्हें अदालत में पेश नहीं किए जाने का मतलब है कि उन्हें अदालत में अपना आवेदन देने या दलीलें पेश करने का मौका नहीं मिलेगा। पिछली सुनवाई में गाडलिंग और अन्य लोगों को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए पेश किया गया था। अदालत ने तब पुलिस को विशेष रूप से निर्देश दिया था कि मामले में गिरफ्तार सभी लोगों को आज अदालत में पेश किया जाए। लेकिन पुलिस ने इस आदेश की अवहेलना की।

अदालत में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सेवा में तकनीकी खराबी आ गई और गिरफ्तार मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को ऑनलाइन पेश नहीं किया जा सका। भारतीय न्यायपालिका में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सुविधाओं का अभाव एक आम बात है, फिर भी अधिकांश राज्य वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए कैदियों को पेश करने पर जोर देते हैं।

गाडलिंग के बेटे युवा वकील सुमित ने दोपहर के समय अपने पिता से बात की।

सुमित ने द वायर को बताया, "यह सप्ताह में किया जाने वाला कॉल था जिसकी अनुमति मेरे पिता को है। फोन पर मेरे पिता ने मुझे बताया कि उन सभी ने पुलिस द्वारा अदालत के निर्देश की अवहेलना और कानूनी रूप से बाध्य होने के कारण उन्हें सुनवाई के लिए पेश करने से इनकार करने के खिलाफ भूख हड़ताल पर जाने का फैसला किया है।"

दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर बाबू की पत्नी ने भूख हड़ताल को लेकर चिंता जाहिर की।

महाराष्ट्र सरकार ने माना है कि कैदियों को लंबे समय से अदालत के समक्ष नियमित रूप से पेश करने से वंचित रखा गया है और अदालतों ने जेल से कैदियों को अदालतों तक ले जाने के लिए पर्याप्त एस्कॉर्ट टीम उपलब्ध नहीं कराने के लिए राज्य को बार-बार फटकार लगाई है।

स्थानीय सशस्त्र पुलिस इकाई में नए पदों को मंजूरी देने और पुलिसकर्मियों की नियुक्ति करने का सरकारी आदेश कुछ साल पहले जारी किया गया था। हालांकि, इससे जमीनी स्तर पर कुछ भी नहीं बदला है।

कैदी अपने परिवार के सदस्यों से केवल तभी मिल पाते हैं और कुछ समय के लिए खुली जगह पर रह पाते हैं जब उन्हें अदालत में पेश किया जाता है। अदालतों में उनका जाना उनके कारावास के दौरान सबसे महत्वपूर्ण होता है और कई कैदियों ने पुलिस और अदालतों से असंवेदनशीलता के बारे में बार-बार शिकायत की है।

एलगर परिषद मामले में, जो लोग अभी भी जेल में सज़ा काट रहे हैं, वे कई सालों से जेल में बंद हैं, कुछ लोग तो साल 2018 के मध्य से ही जेल में हैं। उनके कई आवेदन लंबित हैं, जिनमें मामले से बरी करने के लिए आवेदन भी शामिल हैं।

जिन लोगों को ज़मानत दी गई है उनमें कवि वरवर राव, शिक्षाविद आनंद तेलतुम्बडे और शोमा सेन, पत्रकार गौतम नवलखा, वकील सुधा भारद्वाज और अरुण फरेरा और कार्यकर्ता वर्नोन गोंजाल्विस शामिल हैं।

उनकी ज़मानत के फ़ैसले कई आधार पर लिए गए, जिनमें सबूतों की कमी भी शामिल है।

इस मामले में गिरफ़्तार किए गए 84 वर्षीय जेसुइट पादरी स्टेन स्वामी की ज़मानत याचिका पर फ़ैसला होने से पहले ही मृत्यु हो गई थी। उनके वकीलों ने सरकार पर आरोप लगाया है कि जब वह कोविड-19 से संक्रमित थे, तब उन्हें पर्याप्त और समय पर इलाज उपलब्ध नहीं कराई गई। विचाराधीन कैदियों के लंबे समय तक जेल में रहने के बावजूद, मामले में अभी तक सुनवाई शुरू नहीं हुई है।

साभार : सबरंग 

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