राजस्थान: क्या मुस्लिमों को उनकी राजनीतिक हिस्सेदारी नहीं मिलनी चाहिए?
जिस नेता का चुनाव देश या प्रदेश की जनता ने सर्वसम्मति से किया हो, वो ये बात कैसे बोल सकता है, कि ‘’मैं खुलकर हिंदुओं की राजनीति करता हूं।‘’
ऐसा तो है नहीं कि चुनाव में वोटिंग के वक्त हिंदुओं की लाइन अलग और मुसलमानों की लाइन अलग लगती है। फिर सवाल ये उठता है कि क्या ऐसे बयान आपसी सौहार्द को बिगाड़ने में भागीदारी नहीं करेंगे?
ख़ैर.. इस बयान के रचयिता असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्व शर्मा हैं, जिन्हें भाजपा अपना फायर ब्रांड नेता कहती है। इन्हीं की तरह एक और फायर ब्रांड नेता उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री है योगी आदित्यनाथ। जो प्रदेश में चुनाव के वक्त खुलकर 80 बनाम 20 का नारा दे रहे थे।
यहां सवाल ये है कि ऐसे फायर ब्रांड नेताओं की तरह ही औरों से उलट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब ये कहते हैं कि वो 145 करोड़ देशवासियो का विकास चाहते हैं, तब ‘’हिंदुओं की राजनीति’’ और ‘’80 बनाम 20’’ वाले बयान कितने सार्थक रह जाते हैं? या फिर जनता को ये मान लेना चाहिए कि ये चुनाव दर चुनाव राष्ट्र और राज्य के हिसाब से भ्रमित करने वाले नुस्खे मात्र हैं। और अगर ये नुस्खे हैं, तो फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन दिनों भाजपा के नेता बनकर राजस्थान के मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में वोट क्यों मांग रहे हैं? और अगर वोट मांग भी रहे हैं तो भाजपा के उम्मीदवारों में मुसलमानों की भागीदारी शून्य क्यों है?
दरअसल हम इन सवालों को धार सिर्फ इसलिए दे रहे हैं, क्योंकि 23 नवंबर को चुनाव प्रचार थमने से पहले प्रधानमंत्री मोदी ने मुस्लिम बाहुल्य सीटों के चक्कर भी लगा दिए हैं, जिसमें जयपुर की तीन विधानसभा सीटें हवामहल, आदर्श नगर और किशनपोल हैं। ये तीनों सीट 2018 से पहले भाजपा का गढ़ मानी जाती थीं, मग़र कांग्रेस ने इन्हें जीतकर भाजपा को पूरे प्रदेश में बैकफुट पर ढकेल दिया था। पूरे प्रदेश में इसलिए कह रहे हैं क्योंकि ये सीटें पूरे प्रदेश में मुस्लिमों को संदेश देती हैं।
इन सीटों के महत्व को आप ऐसे समझ लीजिए, कि कुछ दिनों पहले ख़ुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत हवामहल सीट से आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार पप्पू कुरैशी के घर पहुंचे थे, और उनसे कांग्रेस प्रत्याशी के समर्थन के लिए कहा था।
लेकिन दूसरी ओर भाजपा यहां अलग ही खेल कर रही है, मुस्लिम बाहुल्य होने के बावजूद उसने यहां से हाथोज धाम के महंत बालमुकुंद आचार्य को चुनावी मैदान में उतारा है।
दरअसल हवामहल विधानसभा क्षेत्र बरसों से भाजपा का गढ़ रही है, लेकिन 2003 के बाद इस सीट पर एक बार भाजपा और एक बार कांग्रेस का प्रत्याशी जीत कर आ रहा है। संयोग है कि बीते चार चुनावों में इस सीट से जिस भी पार्टी का विधायक जीत कर आया है, प्रदेश में सरकार उसी पार्टी की बनी है, शायद इसीलिए इस बार दोनों ही राजनीतिक दलों के कद्दावर नेताओं का फोकस इस सीट पर है।
इस विधानसभा सीट पर 2 लाख 54 हजार 373 मतदाताओं में से करीब 95 हजार वोटर अल्पसंख्यक है, बावजूद इसके दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दल यहां ब्राह्मण कैंडिडेट पर दांव खेलते हैं। यानी भाजपा ने तो महंत को टिकट दिया ही है, लेकिन कांग्रेस ने भी आरआर तिवाड़ी को चुनावी मैदान में उतारा है। हालांकि कांग्रेस को इस इलाके में मुस्लिमों की भागीदारी के बारे में खूब जानकारी है, यही कारण है कि अशोक गहलोत पप्पू कुरैशी के घर पहुंचे थे। दावा ये किया जा रहा है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पप्पू कुरैशी को मदरसों और मस्जिदों के लिए जगह, वक्फ फंड, कब्रिस्तान के लिए जमीन और फंड देने का आश्वासन दिया है।
वहीं दूसरी ओर किशनपोल विधानसभा सीट से जहां भाजपा ने चन्द्रमोहन बटवाड़ा को टिकट दिया है, तो कांग्रेस ने अमीनुद्दीन काग़ज़ी को मैदान में उतारा है, ऐसे ही आदर्श नगर में भाजपा ने रवि नय्यर को उम्मीदवार बनाया है, तो कांग्रेस ने रफीक खान को।
यानी जो मुस्लिम बाहुल्य सीटे हैं, वहां भी भाजपा ने मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारे हैं।
अब ऐसे में क्या भाजपा की ‘’मोदी मित्र’’ कैंपेन पर सवाल नहीं खड़े होते?
दरअसल ‘’मोदी मित्र’’ नाम की इस योजना तहत भाजपा कार्यकर्ता मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में कार्यक्रम करवा रहे हैं, ताकि प्रदेश के चुनाव में तो माहौल बने ही, लोकसभा में भी वो भाजपा को वोट दें।
इस ‘’मोदी मित्र’’ योजना के तहत कोशिश की जा रही है, कि 40 दरगाह,150 मदरसों और करीब 100 मुस्लिम चौपालों के जरिए मुस्लिम समाज का रुख भाजपा के पक्ष में मोड़ने की कोशिश की जा सके। पिछले कई दिनों में भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा तकरीर और सूफी संवाद के कार्यक्रम आयोजित कर मुस्लिम समुदाय की भाजपा से दूरी कम करने की कोशिश में लगा है। पार्टी के राष्ट्रीय एवं प्रदेश के नेता मुस्लिम बहुल इलाकों में दौरा कर रहे हैं। भाजपा का दुपट्टा पहनकर मोदी मित्र मुस्लिम मतदाताओं के बीच कांग्रेस की अल्पसंख्यकों के प्रति बेरुखी के बारे में समझाने में जुटे हैं।
प्रदेश में करीब दस फीसदी मुस्लिम आबादी है। भाजपा की योजना है कि लोकसभा चुनाव तक करीब 40 हजार मुस्लिम मित्र बनाकर प्रत्येक क्षेत्र में भेजे जाएं। पार्टी पढ़े-लिखे मुस्लिमों को जोड़ने पर अधिक जोर दे रही है। प्रदेश में छह सीट जयपुर शहर, टोंक, नागौर, चुरू, अलवर एवं झुंझुनूं मुस्लिम बहुल मानी जाती है।
वहीं बात कांग्रेस की करें तो मुस्लिम उम्मीदवार बनाए ज़रूर हैं, मग़र सॉफ्ट हिंदुत्व वाली पतली लकीर को भी थामें ज़रूर रखा है। साल 2011 की जनगणना के अनुसार राजस्थान में 10 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है। ऐसे में कांग्रेस को 10 प्रतिशत के हिसाब से 20 मुस्लिमों को टिकट देना चाहिए था, लेकिन केवल 15 टिकट दिए गए हैं। यह लगभग 7 प्रतिशत है जो मुस्लिमों के साथ राजनीतिक न्याय तो नहीं है। वहीं दूसरी ओर राजस्थान में पांच साल में मुस्लिमों से केवल वादे किए गए। धरातल पर कुछ नहीं हुआ। जयपुर में अल्पसंख्यक छात्रावास का मुद्दा आख़िर में उठाकर ध्यान खींचा गया, जबकि शुरुआत में छात्रावास बनाया जाता तो अल्पसंख्यकों के काम आता। वक्फ बोर्ड, मदरसा बोर्ड के पदों पर अंतिम समय में नियुक्ति कर लुभाने की कोशिश की गई है। सत्ता गठन के साथ मुस्लिम कल्याण के लिए बार्डों में राजनीतिक नियुक्तियां की जाएं तो मुस्लिमों का भला हो सके, लेकिन ऐसा जानबूझ कर नहीं किया जाता है।
ख़ैर... कांग्रेस ने जिन 15 मुस्लिमों को टिकट दिया है उनके नाम जान लीजिए... इनमें आदर्श नगर से रफीक खान, चूरू से रफीक मंडेलिया, फतहपुर से हाकम अली खान, कामा से जाहिदा खान, किशनपोल से अमीनुद्दीन काग़ज़ी, लाडपुरा से नईमुद्दीन गुड्डू, मकाराना से जाकिर हुसैन गेसावत, नगर से वाजिब अली, पोकरण से शाले मोहम्मद, पुष्कर से नसीम अख्तर इंसाफ, रामगढ़ से जुबेर खान, सवाईमाधोपुर से दानिश अबरार, शिव (Sheo) से अमीन खान, सूरसागर से शहजाद खान तथा तिजारा से इमरान खान को प्रत्याशी बनाया है।
कांग्रेस के अलावा मुस्लिमों को सबसे ज़्यादा 13 टिकट बसपा ने दिए हैं। बसपा ने आदर्श नगर से हसन रजा, कामा से मोहम्मद शकील खान, लाडनूं से नियाज मोहम्मद, मंडावा से मोहम्मद सादिक, मसूदा से वाजिद, नगर से खुर्शीद अहमद, नवलगढ़ से गुलाम नबी, पचपदरा से मुखत्यार, फुलेरा से इकरामुद्दीन, पुष्कर से शाहबुद्दीन, सांचौर से शमशेर अली सैयद, सीकर से शकील अहमद व झालरा पाटन से मकसूद को प्रत्याशी बनाया है।
फिर ऑल इण्डिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लमीन यानी एआईएमएआईएम ने भी राजस्थान में 12 मुस्लिम प्रत्याशियों को मुस्लिम बाहुल्य सीटों से प्रत्याशी बनाया है। आदर्श नगर से जरफर अख्तर, बायतू से मोहम्मद खान, फतहपुर से अफसाना बानो, हवामहल से जमील अहमद, कामा से इमरान, किशनपोल से रफीक खान खण्डेलवी, किशनबढ़ बास से जावेद खान, कोटा नार्थ से मोहम्मद युनुस देसवाली, कोटा साउथ से इरशाद अहमद, मकाराना से सिराजुद्दीन, पाली से जाकिर हुसैन गौरी व सवाईमाधोपुर से जफर अहमद अमीन को पार्टी प्रत्याशी बनाया है। एएमआईएएमआई के प्रत्याशी कांग्रेस का कितना गणित बिगाड़ते हैं यह देखने वाली बात है।
इन बड़ी पार्टियों के अलावा राजस्थान की पीपुल ग्रीन पार्टी ने 7 मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं। तो आम आदमी पार्टी ने भी मुस्लिम प्रेम ज़ाहिर किया है, उन्होंने आदर्श नगर से उमरदराज, नोहर से राने खां, चूरू से इशाक कुरैशी, हवामहल से पप्पू कुरैशी, झुंझुनूं से राशिद खान, निंबाहेड़ा से शाकिर मियां व फलोदी से अब्दुल महबूब को यानी पांच प्रत्याशी बनाए हैं।
यहां एक बात बेहद ज़रूरी ये कि भले ही भाजपा ने एक भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं बनाया हो, लेकिन पूर्व मंत्री यूनुस खान उनका खेल बिगाड़ सकते हैं। क्योंकि भाजपा ने इस बार उनका टिकट काट दिया है। खान वसुंधरा खेमे के माने जाते हैं। पिछली बार विधानसभा चुनावों में भाजपा ने राजस्थान से केवल एक मुस्लिम चेहरा टोंक से यूनुस खान के रूप में उतारा था। हालांकि खान सचिन पायलट के सामने चुनाव हार गए थे। अब खान ने टिकट कटने के बाद डीडवाना से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में पर्चा दाखिल किया है। विशेषज्ञों की माने तो डीडवाना सीट पर खान भाजपा और कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशियों के लिए परेशानी का सबब बन सकते हैं। इसके अलावा राजस्थान में 108 मुस्लिम प्रत्याशी अलग-अलग सीटों से निर्दलीय के रूप में चुनाव मैदान में हैं।
कुल मिलाकर मुस्लिमों की भागीदारी सुनिश्चित करने में भाजपा ने तो अपने कदम पीछे खींच लिए हैं, और उनके दूसरे प्रदेश के मुख्यमंत्री भी राजस्थान में आकर ये कहने लग गए हैं कि वो खुलकर हिंदुओं की राजनीति करते हैं। इसके बाद बड़ी पार्टी है कांग्रेस, जिसने टिकट दिए तो हैं मग़र वाजिब हिस्सेदारी से कम। ऐसे में ये कहना ग़लत नहीं होगा कि कांग्रेस भी कर तो हिंदू पॉलिटिक्स ही रही है, मग़र थोड़ा संतुलन बनाकर। अब ये संतुलन मुस्लिम समाज के लिए कितना कारगर साबित होता है, उनके विकास में कितना अहम है, ये वक्त बताएगा।
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