समाज और विज्ञान: पश्चिम का रक्तपात भरा उदय–2
अमेरिकी महाद्वीपों से पश्चिम की मुठभेड़ का नतीजा, इन महाद्वीपों की जनता के लिए सत्यानाशी साबित हुआ। यूरोप द्वारा ‘‘खोजे जाने’’ से पहले तक अमेरिकी महाद्वीपों की आबादी के अनुमान 20 लाख से 10 करोड़ तक जाते हैं। नरसंहार के आंकड़े भी, अमेरिकी महाद्वीपों की मूल आबादियों के अलग-अलग अनुमानों पर ही निर्भर नहीं करते हैं बल्कि इस पर भी निर्भर करते हैं कि किन संख्याओं को, नरसंहार के शिकारों की गिनती में शामिल नहीं किया जाना चाहिए। क्या इस गिनती में उन लोगों को भी गिना जाना चाहिए, जो तब बीमारियों के शिकार होकर मर गए, जब उनके समाजों और उनके समाजों के उत्पादक आधार को नष्ट कर दिया गया? और उन अनुमानत: 20 से 80 लाख तक लोगों को किस गिनती में लिया जाए, जो पोटोसी की चांदी की खदानों में मारे गए थे और जिनमें खासी बड़ी संख्या मूल निवासियों की थी।
चांदी के बाद दूसरा वैश्विक माल- दास
बहरहाल, इन मुद्दों को दूसरों के लिए छोडक़र हम, इस पर लौटते हैं कि चांदी का, जो कि पहला वैश्विक माल बनी, बोलीविया में पोटोसी से लगाकर, खदानों में कैसे खनन होता था। पोटोसी की खदान को नरभक्षी पर्वत या माउंटेन दैट ईट्स मैन के रूप में जाना जाता था। खनन की नृशंस स्थितियां, जमीन के नीचे बिताए जाते दिन के बहुत ज्यादा घंटे और 14,000 फुट की ऊंचाई पर धातु को पीटने की मुश्किल, इस सब की कीमत उन मूल निवासियों को चुकानी पड़ी, जिन्हें गुलाम बनाया गया था। स्पेनियों ने इसका समाधान यह निकाला कि अफ्रीका से गुलामों का आयात कर लिया जाए। टोर्डेसिलास की संधि में अफ्रीका, पुर्तगालियों को ‘‘आबंटित’’ कर दिया गया था, इसलिए स्पेन ने अफ्रीका से गुलामों की आपूर्ति का ठेका पुर्तगालियों को दे दिया। इसे एसिएंटा डि नेग्रोस यानी कालों के लिए समझौता के नाम से जाना गया, जो ठेका बाद में जेनोइस व्यापारियों, डच, फ्रांसीसी और ब्रिटिश के हाथ में आ गया।
पुर्तगालियों ने घाना में अल मीना दुर्ग बनाया था, जहां नौकाओं से रवानगी से पहले अफ्रीकियों को रखा जाता था, जिन्हें चांदी और सोने की खदानों में काम करने के लिए अमेरिकी महाद्वीपों के लिए ले जाया जाता था। बाद में जब डचों ने अल मीना दुर्ग पर कब्जा कर लिया, पुर्तगालियों ने गुलाम हासिल करने के लिए अंगोला की ओर का रुख कर लिया।
कैरीबियाई क्षेत्र और ब्राजील में बागान फसलें--शक्कर, कहवा, तंबाकू तथा कोको--आने के बाद, गुलामों की मांग में नाटकीय बढ़ोतरी हो गयी। खदानों के लिए अपेक्षाकृत थोड़ी संख्या में ही गुलामों की जरूरत होती थी, लेकिन गुलामों के श्रम से चलने वाले बागान या प्लांटेशन, गुलामों के लिए एक प्रमुख बाजार बन गए। जहां चांदी पहला वैश्विक माल थी, गुलाम और शक्कर, पश्चिम के उदय की कहानी का दूसरा प्रमुख हिस्सा बन गए। पुन: यह सब औद्योगिक क्रांति से ढाई सदी पहले शुरू हो चुका था।
अफ्रीका में गुलाम बनाए गए और बागानों के लिए ले जाए गए लोगों की संख्या अनुमानत: 16वीं सदी में 30 लाख, 17वीं सदी में 60 लाख और 18वीं सदी में 30 लाख और तथा कुल मिलाकर 1 करोड़ 20 लाख थी। इसमें भारत और चीन से लाए गए इंडेन्चर्ड मजदूरों को हिसाब में नहीं लिया गया है, जो दास प्रथा के खात्मे के बाद वैस्ट तथा ईस्ट इंडीज के बागानों के लिए मजदूरों का स्रोत बने थे। इसमें अफ्रीका के उस जनसांख्यिकीय पराभव को भी हिसाब में नहीं लिया गया है, जो बड़े पैमाने पर युवकों तथा युवतियों को वहां से हटाए जाने के चलते, इन समाजों की वहनीयता पर पड़ा था, जहां से इन युवाओं को ले जाया गया था। अफ्रीका का जनसांख्यिकीय पराभव, अमेरिका जितना भयानक तो नहीं था, फिर भी इसका नतीजा यह हुआ था कि उस दौर में अफ्रीकी आबादी में बढ़ोतरी नहीं हुई थी, जबकि एशिया तथा यूरोप की आबादियों में तेजी से बढ़ोतरी हो रही थी।
दासों का उत्पादन
दास-श्रम, अमेरिका की बागवानी अर्थव्यवस्था की रीढ़ था। शक्कर, पहली बड़ी प्लांटेशन फसल थी। कैरीबियाई बागानों ने चांदी के बाद दूसरा वैश्विक माल पैदा किया था--शक्कर। धर्मयुद्धों या क्रूसेड्स के दौरान पश्चिम ने शक्कर का उत्पादन अरबों से सीखा था और उन्होंने बागान आधारित शक्कर के उत्पादन की पहली आजमाइश भूमध्य-सागरीय द्वीपों में और उसके बाद स्पेन तथा पुर्तगाल के तटों से दूर एटलांटिक द्वीपों में और आगे चलकर अफ्रीका के तट से दूर साओ टोम में की थी। पुर्तगाली इसे साओ टोम से, जो तब उनके नियंत्रण में था, ब्राजील ले गए। डच, जिनका थोड़े से अर्से तक ब्राजील के शक्कर पैदा करने वाले इलाकों पर नियंत्रण रहा था, उसे डच गयाना ले गए, जहां से इसे बारबडोस, जमैका के ब्रिटिश कैरीबियाई द्वीपों में और सॉन डोमनीक के फ्रांसीसी कैरीबियाई द्वीप (अब हैती) में फैला दिया गया।
प्रबोधन के गर्भ से पूंजीपवाद के जन्म, वैज्ञानिक क्रांति के औद्योगिक क्रांति तक ले जाने का परंपरागत आख्यान, रंगते-चुनते हुए इस इतिहास को भी बाहर कर देता है कि कैरीबियाई क्षेत्र में बागान अर्थव्यवस्था ने, एक वैश्विक माल के रूप में शक्कर को स्थापित किया था। इसके बाद कपास का उत्पादन आया, इसका भी उत्पादन अमेरिका के दक्षिण में गुलामों से कराया जाता था और यही इंग्लैंड की कपड़ा क्रांति के पीछे था। इस कहानी में एक और वैश्विक माल, अफ्रीकी गुलामों को छोड़ ही दिया जाता है क्योंकि आखिरकार, इंसानों को माल कैसे माना जा सकता है। लेकिन, दासों के व्यापार में लगे लंदन, ब्रिस्टॉल तथा लिवरपूल के व्यापारी, जो इंग्लैंड से निकलने वाले गुलामों के 90 फीसद जहाजों के लिए जिम्मेदार थे, ऐसा नहीं सोचते थे। उनके लिए इंसानों की तिजारत भी, एक और माल की तिजारत थी। उनके लिए इंसान, उनके बही-खातों में लाभ और हानि के खानों में आने वाली प्रविष्टियां भर थे।
यूरोपीय देशों ने अफ्रीका से गुलाम हासिल कैसे किए? थोड़े से अर्से तक, स्पेनी-अमेरिकी खदानों से नयी-नयी निकली चांदी गुलामों की खरीद के लिए संसाधन मुहैया करा रही थी और बंदूकें तथा बारूद इस ‘‘व्यापार’’ में मुख्य विवशताकारी तत्व की भूमिका अदा कर रहे थे। चांदी, बंदूकें, बारूद, कपड़ा, मसाले, इस सबने सिर्फ दासों के व्यापार की फंडिंग का काम ही नहीं किया बल्कि अफ्रीका से दासों के ‘‘उत्पादन’’ का भी काम किया। यही था जिसने स्वतंत्र स्त्री-पुरुषों को दासों में बदल दिया, जिसे फ्रांसीसी एंथ्रोपॉलाजिस्ट, मीलासोक्स सोने (धन) और लोहे (बंदूकों तथा गोलियों) के ‘‘गर्भ’’ से, दासों का उत्पादन कहते हैं।
शक्कर: बाजार से वैश्विक वित्त व्यवस्था तक
शक्कर ने सिर्फ पूंजीवादी बाजार ही नहीं बनाया, स्पेनी चांदी के साथ मिलकर, उसने वैश्विक वित्तीय व्यवस्था की भी नींव रखी। इसके साथ ही साथ, दास नाम की जिन्स भी चल रही थी, जिसे अफ्रीका से उठाया जा रहा था और कैरीबियाई क्षेत्र और अमेरिकी महाद्वीपों में बेचा जाता था। ब्रिटिश, डच तथा फ्रांसीसी पूंजी का विकास, उतनी ही इंसानों को बाजार के लिए माल की तरह बरतने के इस जघन्य आचार की कहानी है, जितनी कि इस तरह के श्रम से उत्पादित मालों की कहानी है। कपास भी, जो कि अंग्रेजी कपड़ा मिलों की रीढ़ था, उस दक्षिण अमेरिका के दासों के श्रम से चलने वाले बागानों से ही आता था, जिसे अमेरिकी अब भी अतीत-मोह से एंटेबेल्लम साउथ या दक्षिण ही कहते हैं।
बागान अर्थव्यस्था की नृशंसता के संबंध में हम अमेरिकी साहित्य से और कहीं आधुनिक ‘‘कपास प्लांटेशनों’’ से जानते हैं। कैरीबियाई क्षेत्र और अमेरिका में लुइसिआना के शक्कर प्लांटेशनों में दास मजदूरों की हालत तो और भी बदतर थी। दासों के व्यापार पर प्रतिबंध लगने से पहले तक, एक दास का औसत कार्य जीवन सात साल माना जाता था, जिसके बाद उसे बदलने की जरूरत होती थी। बच्चे चार-पांच साल की उम्र से काम करते थे और खेतों पर अपने मां-बाप का हाथ बंटाते थे। प्लांटेशन मालिकान के खातों में दास श्रम की गणना एकदम तथ्यात्मक होती थी तथा ‘‘वैज्ञानिक ’’ तरीके से की जाती थी: दास को रखने पर कितना खर्चा आता है और कब उसमें लगायी गयी पूंजी की कमाई इतनी हो जाती है कि, उस दास को बदलकर, नया दास लाया जा सकता है? पूंजीपति ठीक इसी तरह से तो अपने पूंजी औजारों की घिसाई या छिलाई की गणना करते हैं।
16वीं से 18वीं सदी के दौरान व्यापार का जो वैश्वीकरण हो रहा था उसमें चांदी चीन तथा भारत की ओर जा रही थी और रेशम, चीनी मिट्टी का सामान, मसाले और सूती कपड़ा, पलटकर यूरोप में पहुंच रहे थे। जहां स्पेनी चांदी पूर्व के साथ व्यापार का आधार थी, डच, फ्रांसीसी तथा ब्रिटिश, वैश्विक बाजारों में किस चीज की आपूर्ति कर रहे थे? डच, फ्रांसीसी तथा ब्रिटिश, वैश्विक व्यापार में कैसे हिस्सा लेते थे? यहां इन तीनों की, कैरीबियाई क्षेत्र के लिए दासों के मुख्य आपूर्तिकर्ताओं की भूमिका--आगे चलकर पुर्तगाल के बाद स्पेन के साथ उन्होंने दासों के लिए ठेके हासिल किए थे-- ही नहीं बल्कि वैश्विक बाजार के लिए शक्कर के उत्पादकों की भूमिका भी आती थी। कैरीबियाई क्षेत्र के शक्कर के प्लांटेशन इसके पीछे थे। आगे चलकर डचों ने भी डच ईस्ट इंडीज में शक्कर के प्लांटेशन खड़े कर लिए थे, लेकिन ये प्लांटेशन उसी प्रकार ज्यादातर भारतीय तथा चीनी इन्डेन्चर्ड श्रम के आसरे थे, जैसे कि अंगरेजों ने वैस्ट इंडीज तथा मॉरीशस में भारतीय इन्डेन्चर्ड श्रमिकों के सहारे किया था।
पूंजीवाद का वास्तविक इतिहास
एरिक विलियम्स ने अपनी कृति, कैपिटलिज्म एंड स्लेवरी में ब्रिटिश अर्थव्यवस्था में दास व्यवस्था के ‘‘योगदान’’ पर पथप्रदर्शक अध्ययन प्रस्तुत किया है। आगे चलकर, जोसफ इनिकोरी ने, अफ्रीकन्स एंड द इंडस्ट्रिअल रिवोल्यूशन इन इंग्लेंड में उनके तर्कों को और आगे बढ़ाया है। हम में से कुछ ने अपने निष्कर्षों का संक्षेपण किया है और शक्कर तथा दास श्रम के मुद्दों पर काम कर रहे हैं और इसमें हमें अफ्रीका के साथ ब्रिटिश व्यापार में कपड़े तथा बारूद की आपूर्ति का पहलू और जोड़ने की जरूरत है। तथाकथित त्रिकोणीय व्यापार में यह मानकर चला जाता है कि त्रिकोण के यूरोप-अफ्रीका बाजू में, अफ्रीका के लिए ब्रिटिश जो भी आपूर्ति करते थे, खुद उनके उत्पादन तथा विनिर्माण से ही आता था। लेकिन, ऐसा नहीं था। अफ्रीका में दासों के कारोबार में दिए जाने वाले मालों के मूल्य का 30 से 50 फीसद तक हिस्सा, भारत के सूती कपड़ों से ही आता था। अंगरेज इस दौर में अब तक अपनी औद्योगिक क्रांति नहीं कर पाए थे, जबकि शक्कर एक प्रमुख वैश्विक माल बन चुकी थी। बारूद किसी को ब्रिटिश उत्पाद लग सकता है, लेकिन था नहीं। बारूद एक प्रमुख घटक तथा उसकी लागत का प्रमुख हिस्सा, शोरा होता था और यह भी बंगाल-बिहार से ही आता था।
पश्चिम हम से जो मनवाना चाहता है उसके विपरीत, पूंजीवाद का इतिहास प्रबोधन, विज्ञान तथा औद्योगिक क्रांति से शुरू नहीं होता है। जैसा कि मार्क्स ने दर्ज किया था, वह तो पोर-पोर से रक्त और पसीना टपकाता हुआ आता है। यही वह इतिहास है, जो वे हमसे भुलवाना चाहते हैं।
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